Bandhan Pyar ka - 32 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | बन्धन प्यार का - 32

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बन्धन प्यार का - 32

"सही।कश्मीर चलना
औऱ वे स्विट्जरलैंड में हनीमून मनाकर वापस लंदन लौट आये थे।वापस उन्हें ड्यूटी पर जाना था।उनकी छुट्टी खत्म हो रही थी।सास,हिना से बोली,"बहु आज चूल्हा पूजन की रस्म पूरी कर ले।"
",क्या बनाऊ मम्मी2"
",बहु मैं सब कुछ खा लेती हूँ लेकिन मैं वेजिटेरियन हूँ।"
"मम्मी जी मैने भी नॉन वेज छोड़ दिया है जबसे नरेश से दोस्ती हुई है।
"अच्छी बात है
"हलवा बना लू
"बना ले
औऱ हिना किचन में चली गयी।उसने हलवा बनाया था
"मम्मीजी लीजिये"
"ला,"सास बोली,"तुम दोनों भी खा लो"
और तीनो ने हलवा खाया था।हलवा खाने के बाद हिना बोली,"मम्मी जी हलवा पसन्द आया?"
",बहुत बढ़िया।मेरी बहु खाना अच्छा बना लेती है।वरना आजकल की लड़कियों सेसब काम करा लो लेकिन खाना बनाना नही आता,"मीरा बोली,"यहा आ।
हिना पास आई तो मीरा ने उसे कानो की सोने की बाली दी थी2
"यह क्यो?"
"बहु से चूल्हा पूजने की रस्म की भेंट"मीरा, हिना से बोली"कैसे लगे"
"अच्छे हैं मम्मी
"कभी अपनी माँ से बात करती है"
"कई बार करके देखा है लेकिन अम्मी उठाती ही नही है
",अभी वह गुस्सा है।लेकिन समय गुजरने पर उनका गुस्सा कम हो जाएगा।तेरे अलावा उनका है ही कौन"। मीरा बहु को समझाते हुए बोली,"मुझे नम्बर देना मैं बात करूंगी।
और फिर दिनचर्या का वो ही रूटीन चालू हो गया।बेटा बहु दोनों को ऑफिस जाना होता था इसलिए। मीरा सुबह जल्दी उठ जाती।हिना ने टोका भी था।
ममी आप क्यो जल्दी उठ जाती है।आप तो आराम से सोती रहे
"पहली बात तो मुझे जल्दी उठने की आदत है,"मीरा बोली,"फिर तुम दोनों चले जाओगे तब मुझे क्या करना है।दिन भर आराम ही करना है।"
मीरा चाय नाश्ता तैयार करती और दोनों के खाने के टिफिन पैक करती।दोनों चले जाते तब मीरा आराम से बैठकर चाय पीती और नहा धोकर पूजा करती।
दोपहर में बेटे का औऱ बहु का भी फोन आता।दोनों पूछते खाना खाया या नही। शाम को दोनों लौट आते।कभी एक साथ कभी अन्तराल से।हिना शाम को मीरा को बिल्कुल काम नहीं करने देती थी।
एक सन्डे को
नरेश और हिना दोनों की शनिवार व इतवार की छुट्टी रहती थी।एक सन्डे को नरेश हिना से बोला,"मैं आज मम्मी को घुमा लाता हूँ।
"कहाँ?"
"मम्मी धार्मिक प्रवर्ति की है।उन्हें मन्दिर का शौक ज्यादा है।उन्हें स्वामीनारायण मन्दिर दिखाने के लिये ले जाऊंगा"
"मैं भी चलूंगी"
"तुम चलोगी"पत्नी की बात सुनकर नरेश ने उसकी तरफ देखा था
"ऐसे क्यो देख रहे हो?"
"तुम मुस्लिम हो"
"तो क्या मुसलमान मन्दिर नही जा सकता"
"मन्दिर जाने पर कोई रोक नही है।मन्दिर कोई भी जा सकता है।'
"फिर मुझसे क्यो मना कर रहे हो?"
"तुम्हारे धर्म मे मूर्तिपूजा नही है।तुम मुसलमान होकर मन्दिर जाओगी"
"मैं जन्म से मुसलमान हूँ और मुसलमान ही।रहूंगी।लेकिन साथ साथ पत्नी भी हूँ। पत्नी का एक धर्म और होता है,"हिना बोली,"पत्नी का सबसे बड़ा धर्म है पति का अनुसरण करना
"तुम वैसे ही बोल रही हो जैसे एक भारतीय पत्नी बोलती है
"आज भारतीय नही हूँ।पाकिस्तानी hoo लेकिन पाकिस्तान बना तो भारत से अलग होकर।देश भले ही अलग हो गये लेकिन संस्कृति और परम्परा तो भारतीय ही है।"
"बात तो तुम सही कह रही हो लेकिन ऐसी बाते कौन मुस्लिम करता है"
"कोई करे या न करै।।तुम्हारी बीबी तो कर ही रही है,"हिना बोली थी
"तुम्हारा मन हो तो ही चलना, नरेश ने कहा था।"
"मन से चल रही हूँ।पत्नी धर्म का निर्वाह करने