शुक्रवार का दिन था, और आज मुझे कॉलेज में मेरी पहली परीक्षा ड्यूटी पर जाना था। अंदर एक अजीब सी घबराहट थी, मानो मैं खुद फिर से परीक्षा देने जा रही हूं। परीक्षा सेंटर में प्रवेश करने से पहले वही पुरानी घबराहट, वही प्रेशर। मेरे लिए यह नई भूमिका थी—इनविजिलेटर के रूप में परीक्षा का संचालन करना। लेकिन मन के कोने में ऐसा लग रहा था जैसे मैं फिर से छात्र बन गई हूं।
जैसे ही मैं सेंटर में पहुंची, चारों ओर शांति की उम्मीद थी, लेकिन वह शांति कहीं नजर नहीं आई। आज का परीक्षा सेंटर लड़कों का था। उनकी मस्तमौला प्रवृत्ति ने परीक्षा के माहौल को हल्का-फुल्का बना रखा था। कोई बार-बार मुझसे प्रश्न पूछ रहा था, कोई सीट पर बैठकर शोर मचा रहा था, तो कोई बिना जवाब दिए ही पेपर छोड़कर जाने की बात कर रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे उन्हें परीक्षा की गंभीरता का कोई अंदाजा ही नहीं है।
इसी बीच, एक छात्र ने सेंटर में प्रवेश किया। वह लगभग 30 मिनट देरी से आया था। मैंने सोचा, यह लापरवाही होगी। लेकिन जब मैंने उससे देर से आने का कारण पूछा, तो उसने जो बताया, उसने मुझे हैरान कर दिया। वह छात्र दो डिग्री कोर्स एक साथ कर रहा था। सुबह उसने एक अन्य सेंटर पर परीक्षा दी थी, और वहां से यहां तक आने में उसे यातायात और ट्रैफिक का सामना करना पड़ा। उसकी बातों में कोई बहाना नहीं था, बल्कि एक अद्भुत धैर्य और प्रतिबद्धता झलक रही थी।
वह थका हुआ लग रहा था, लेकिन उसकी आंखों में कुछ अलग चमक थी। जैसे ही उसने अपनी सीट संभाली, वह बिना समय गंवाए प्रश्नों को हल करने में लग गया। उसकी गंभीरता देखते ही बनती थी। दूसरी ओर, बाकी छात्र शोर-शराबे में व्यस्त थे, लेकिन यह छात्र बिल्कुल शांत और केंद्रित था। मुझे लगा जैसे वह समय के साथ दौड़ रहा हो, हर मिनट का उपयोग कर रहा हो।
मैं उसे देखते हुए सोचने लगी कि उसकी लगन और संघर्ष कितने प्रेरणादायक हैं। एक तरफ वह सुबह की परीक्षा देकर आया था और दूसरी तरफ यहां का पेपर भी पूरी तैयारी के साथ हल कर रहा था। उसका समर्पण बाकी छात्रों से बिल्कुल अलग था। यह दृश्य मेरे मन में गहरे उतर गया।
जैसे-जैसे परीक्षा का समय खत्म हुआ, अन्य छात्रों ने अपने-अपने तरीके से परीक्षा समाप्त की। कोई जल्दी उत्तर पुस्तिका जमा कर चला गया, तो कोई बिना उत्तर लिखे ही। लेकिन वह छात्र अंतिम मिनट तक लिखता रहा। उसने अपनी उत्तर पुस्तिका जमा की, और जब उसने मुझे धन्यवाद दिया, तो उसकी आवाज में आत्मविश्वास था।
उस दिन मैंने समझा कि परीक्षा केवल लिखने का माध्यम नहीं है। यह समर्पण, संघर्ष और जिम्मेदारी का परिचय है। लड़कों के शोर-शराबे और हल्के-फुल्के रवैये के बीच वह एक छात्र अपनी लगन से चमक रहा था। वह दिन मेरे लिए एक नई सीख लेकर आया—जीवन में असली परीक्षा वही लोग पास करते हैं, जो समय और परिस्थितियों का सही उपयोग करना जानते हैं।
उस एक दिन ने मुझे इनविजिलेटर के रूप में नहीं, बल्कि एक शिक्षक के रूप में भी बहुत कुछ सिखाया। मैंने जाना कि हर छात्र की अपनी कहानी होती है, और हमें उसकी कहानी को समझने और सराहने की आवश्यकता है।