वाजिद हुसैन सिद्दीकी की कहानी 1990 के आरंभिक दिनों तक कश्मीर में पाकिस्तान परस्त मुसलमानों द्वारा हिंदू विरोधी नरसंहार और हमलों की श्रृंखला चरम पर हो गई थी। जिसमें अनंत कश्मीरी हिंदू घाटी छोड़कर भागने को मजबूर हुए थे। पलायन करने वालों में साक्षी और उसकी मां भी थी। वे दिल्ली में एक छोटे से घर में रहने लगी थी। साक्षी ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी। एक सुबह साक्षी अलसाई सी घर की खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई।'कितना दिन चढ़ गया, अरी कपड़े तो बदल ले, 'मां ने कहा, 'बता साड़ी निकाल दूं या सूट।'जो चाहे निकाल दो- ' साक्षी बेमन से बोली।'तेरी अपनी कोई मर्ज़ी नहीं।''उसमें मर्ज़ी का क्या है? जो निकाल दोगी पहन लूंगी।उसे अपने शरीर पर साड़ी और सूट दोनों में कोई भी चीज अच्छी नहीं लगती थी। क़ीमती से क़ीमती कपड़े उसके अंगों को छूकर जैसे मुरझा जाते थे। 'कश्मीर में इतना बड़ा घर था; खाने- पहनने और हर तरह की सुविधा थी। उसके जीवन में बहुत बड़ा अभाव था जिसे कोई चीज नहीं भर सकती थी। उसकी मां हर रोज गीता का पाठ करती थी। वह बैठकर गीता सुना करती थी; कभी मां कथा सुनने जाती तो वह साथ चली जाती। रोज़-रोज़ पंडित की एक ही तरह की कथा होती थी, नाना प्रकार करके, 'नारद जी कहते भए हैं, राजन।' पंडित जो कुछ सुनाता था, उसकी उसमें ज़रा भी रुचि नहीं रहती थी। उसकी मां कथा सुनते-सुनते ऊंधने लगती थी। वह दरी पर बिखरे हुए फूलों को हाथों से मसलती रहती थी।घर में मां ने ठाकुर जी की मूर्ति रखी थी जिसकी दोनों समय आरती होती थी। उसके पिता रात की रोटी खाने के बाद चौरासी वैष्णवों की वार्ता में से कोई सी वार्ता सुनाया करते थे। वार्ता के अतिरिक्त जो चर्चा होती उसमें सतियों के चरित्र और दाल आटे का हिसाब, निराकार की महिमा और सोने चांदी के भाव सभी तरह के विषय आ जाते। वह पिता द्वारा दी जानकारी पर कई बार आश्चर्य प्रकट करती, पर उस आश्चर्य में उत्साह नहीं होता। कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाज़ों पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था, 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।' मां ने पापा को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी। पापा के रोम- रोम में कश्मीर बसता था। उन्होंने पलायन करने से मना कर दिया। उनकी दलील थी इतना बड़ा कश्मीर का हिस्सा हड़पने के बाद भी पाकिस्तान की भूक शांत नहीं हुई अब पूरा कश्मीर हड़पने का मंसूबाह बना रहा है जिसे मैं अपने जीते जी पूरा नहीं होने दूंगा। मैं कश्मीर की मिट्टी से पैदा हुआ हूं, मरने के बाद कश्मीर में की मिट्टी में मिल जाउंगा। फिर एक दिन पापा के गोलियों से छलनी शरीर की राख यहीं की मिट्टी में मिल गई।मां ने कश्मीर से पलायन करने का मन बना लिया था। पापा की तेरहवीं के बाद! पापा की तेरहवीं से ठीक तीन दिन पहले प्रलय काल था। आकाश के तारे गायब। धरती के सब प्रदीप बुझे हुए थे। आंधी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। चारों ओर 'अल्लाह हो अकबर' के नारों के बीच स्त्री पुरुष और बच्चों का चीत्कार और चीखें सुनाई पड़ रही थी। रुक रुक कर गोलियों की गर्जन आकाश को भेद रही थी। मां अपनी जिंदगी भर की पूंजी को एक पोटली में अपने पेट से बांधे अपनी बेटी का हाथ पकड़े दरवाज़े से चिपटी खड़ी थी।तभी दरवाजे पर एक घबराई हुई आवाज सुनाई पड़ी 'जूलियट।' यह आवाज़ उसे रोमियो की लगी जो आज उसने बरसों बात सुनी थी। साक्षी ने दरवाजा खोल दिया। रोमियो मां बेटी का हाथ पकड़ कर बदहवासी के आलम में पहाड़ी पर चढ़ने लगा। वह इतनी ऊंचाई तक चढ़ चुका था कि गोलियों की आवाज भी धीमी सुनाई पड़ रही थी। वह पल भर के लिए रुका फिर बोला, 'अल्लाह तेरा शुक्र, ख़तरा टल गया।' मां सहम गई। हे भगवान! 'मैं यह क्या कर बैठी, बिना सोचे समझे एक मुसलमान के साथ वीरान पहाड़ी पर पहुंच गई।' उसने कहा मेरा नाम बिलावर है। मैं साक्षी के साथ बचपन से शोपिया के सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। साक्षी मेरी दोस्त है और आप मेरी मां जैसी है। मैं आपको उस जगह तक सुरक्षित पहुंचा दूंगा, जहां से आपको जम्मू के लिए बस मिल जाएगी। मां ने कहा, 'बेटा तुमने हमारे लिए अपनी जान जोखिम में क्यों डाली?' उसने कहा, 'मैं ...।' उसका गला रूंध गया और उसकी आंखें छल्छला पड़ी।थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वह मां बेटी का हाथ पकड़ कर ढलान पर उतरने लगा और जम्मू जाने वाली सड़क पर पहुंच गया। फिर रुंधे गले से कहा, 'मां जी चढ़ाई पर कोई ड्राइवर गाड़ी नहीं रोकता है। मुझे जैसे ही किसी गाड़ी की आवाज़ सुनाई देगी, मैं उसके आगे खड़ा हो जाऊंगा। हो सकता है मेरे चोट लग जाए अथवा कुचल कर मेरी मृत्यु हो जाए पर ड्राइवर को गाड़ी रोकना पड़ेगी। आपको साक्षी की सौगंध, मेरी चिंता किए बिना गाड़ी में बैठ जाइए वरना अनर्थ हो जाएगा।साक्षी ने बिलावर से कहा, 'पापा को आतंकवादियों से निरंतर धमकियां मिल रही थी। उन्हें लगने लगा था, मृत्यु निश्चित है। अत: उन्होंने आनन-फानन में राहुल भट्ट के साथ मेरी सगाई कर दी थी। वह मंदिर वाली गली में मकान नंबर 108 में रहता है। दरवाज़े पर अखरोट का पेड़ लगा है। मैं उसे तुम्हारे सुपुर्द करके जा रही हूं।'बिलावर ने कहा मेरे जीते जी तेरे सुहाग पर आंच नहीं आएगी। मैं अभी उसे लेकर आता हूं। मां ने उसे गले लगा कर विदाई दी और कहा, 'भगवान तेरी रक्षा करेगा।' साक्षी उसे जाता देखती रही जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गया। बीच सड़क पर खड़ी साक्षी बिलावर का इंतजार करने लगी पर वह लौट कर नहीं आया। उसकी एकाग्रता टूटी, तीव्र गति से आती गाड़ी उसके ठीक सामने रुकी। ड्राइवर उसके पास आया और गुस्से में चिल्लाया, 'मरने का शौक है?' साक्षी ने ड्राइवर को पूरा वृतांत सुनाया और कहा, 'दरिंदों की हवस का शिकार बनने से बेहतर गाड़ी से कुचलकर सती की मौत मरना है।' उसके आंसुओं ने ड्राइवर के हृदय को द्रवित कर दिया। उसने मां- बेटी को अपनी गाड़ी में बिठा लिया। वह उन्हें रेलवे स्टेशन ले गया और दिल्ली जाने वाली गाड़ी में बिठा दिया। गाड़ी में बैठने के बाद मां थोड़ी सहज हो गई थी। उसने बेटी से पूछा, 'तुम बिलवार को रोमियो कह रही थी और वह तुम्हें जूलियट क्यों कह रहा था?'ललिता ने मां से कहा, 'आपको याद होगा कई साल पहले मेरे कॉलेज में शेक्सपियर के नाटक 'रोमियो और जूलियट' का मंचन हुआ था जिसमें बिलावर ने रोमियो का किरदार निभाया था और मैं उसकी नायिका जूलियट बनी थी। वहीं हम दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे। बिलावर जलती दोपहर में कॉलेज के गेट के पास मेरी प्रतीक्षा में खड़ा रहता था। एक दिन उसने मुझे एक लव लेटर दिया। मैंने कहा, 'बिलावर, रोमियो और जूलियट के परिवारों में खानदानी रंजिश थी जिस कारण वह कभी एक न हो पाए। हमारी कौमों के बीच दुश्मनी है, हम कभी एक न हो पाएंगे, बेहतर है मुझे भूल जाओ। उसने आह भरते हुए कहा, 'ठीक ही कहती हो। फिर भी यदि मैं कभी तुम्हारे काम आ सका तो अपने को खुश नसीब समझुंगा।' उसने पढ़ाई छोड़ दी और भाई के साथ कश्मीरी सूट और शाल के बिजनेस मैं लग गया।साक्षी खिड़की पर खड़ी, बेमन से हाकर्स की आवाज़ों को सुन रही थी। तभी उसे आवाज सुनाई पड़ी, 'कश्मीरी सूट चाहिए, शाल चाहिए?' उसे वह आवाज़ बिलावर की सी लगी। वह उतावली होकर सड़क पर गई। युवक देखने में और कद- काठी में बिलावर जैसा लगा। उसने युवक को भाई जान कहकर पुकारा। युवक तेजी से उसकी और बढ़ा। उसने कहा, 'कहीं आप साक्षी दीदी तो नहीं?''आप मुझे कैसे जानते हैं?' साक्षी ने पूछा।उसने कहा बिलावर मेरा भाई था। उसने मरने से पहले मुझे आपका हुलिया बताया था। उसने कहा था, 'भाई जान, कहीं से भी साक्षी को ढूंढ निकालना और उससे कह देना, बिलावर ने उसके सुहाग को आतंकवादियों से बचा लिया।'बिलावर की मृत्यु का समाचार सुनकर साक्षी फूट-फूट कर रोने लगी। उसकी मां उसे दिलासा देने लगी। साक्षी नॉर्मल हुई तो उसने भाईजान से कहा, 'आप तो हर गली मोहल्ले में शाल और सूट बेचने जाते हैं, कहीं राहुल मिले तो कह दीजिए साक्षी आपके इंतजार में तिल-तिल घुल रही है।'भाईजान ने कहा, 'बहन माफ करना, मुझे आपको ढूंढने में देर हो गई। एक दिन राहुल भट्ट मुझे राज़ोरी गार्डन में मिला था। उसके साथ में उसकी पत्नी थी जिसकी गोद में दूध मुआं बच्चा था। मैंने उससे आपका ज़िक्र किया तो कन्नी काट गया।साक्षी की आंखों से आंसुओं की बूंदे टपकी। वह घर में गई और एक बंद लाल लिफाफा लेकर आई जो सुनहरे ज़री के धागे से लिपटा हुआ था। उसने लिफाफा भाईजान को दिया है और रूंधे गले से कहा, 'यह ख़त बिलावर ने मुझे लिखा था जिसे मैंने पढ़ा नहीं। इसे आप बिलावर की कब्र मैं दफन कर दीजिए। और कह दीजिए जूलियट की आत्मा इस लिफाफे में कैद है। मेरे दिल को क़रार आ जाएगा और उसकी आत्मा को शांति मिल जाएगी। भाईजान ने उसके सिर पर हाथ रख कर कहा, 'तुम मेरे भाई की अमानत हो, मेरे जीते जी तुम्हारे ऊपर कोई आच नहीं आएगी। हालात नॉर्मल होते ही मैं तुम्हें लेने आऊंगा, तब तक मैं तुम्हारे घर की हिफाजत करूंगा। साक्षी की मां ने आह भरते हुए कहा, 'राहुल तुम्हारा मंगेतर था। उसने इंतजार किए बिना विवाह रचा लिया। बिलावर तुम्हारा दोस्त था। उसने तेरे सुहाग की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। किसी ने ठीक ही कहा है, 'धरती पर हर क़ौम में इंसान और शैतान जन्म लेते हैं।'348 ए, फाइक एंक्लेव, फेज़ 2, पीलीभीत बाईपास, बरेली (उ प्र ) मो: 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com