अनामिका ने अपने पापा मम्मी को इस तरह कभी नहीं देखा था कि मम्मी की किसी बात से पापा इतने उदास हो जाएं कि उनकी आँखों में आंसू आ जाएं। अनामिका इस घटना से विचलित हो गई थी। उसका मन कहीं और था, दिमाग़ कहीं और। वह उसके पापा के लिए दुखी थी तो मम्मी के ऊपर उसे गुस्सा भी आ रहा था। वह सोच रही थी, मम्मी को पापा का इतना प्यार कम पड़ गया और पापा कहाँ कुछ कमी रखते हैं। सब कुछ तो करते हैं फिर भी मम्मी ने इस तरह से बोला, उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। यही सोचते हुए वह अरुण की बात पर ध्यान ना दे सकी तो अरुण ने उसकी चुप्पी को हाँ समझ लिया।
अगले दिन सुबह ही उन्होंने उस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया।
उसी शाम जैसे ही अनामिका को यह मालूम हुआ कि उसके पापा ने रिश्ते के लिए हाँ कह दिया है वैसे ही वह उनके पास आई और कहा, "पापा यह क्या आपने उस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया है? मुझे अभी-अभी मम्मी ने बताया, वह उनके घर जाने के लिए तैयार हो रही हैं।"
"हाँ अनु कल ही तो तय हो गया था।"
"लेकिन पापा मैंने हाँ कहाँ बोली थी।"
"अनु अब बहस का कोई फायदा नहीं है। हम दोनों उनके घर जा रहे हैं। सब बात करने के बाद ही फाइनल हाँ होगी। तुम अब बीच में कुछ मत कहो।"
अरुण के इन शब्दों में काफ़ी सख्ती थी इसलिए अनामिका चुपचाप वहाँ से चली गई।
शाम को अरुण और वैभवी लड़के वालों के घर पहुँचे। उनका महल जैसा घर देखकर उनकी आंखें चुंधियाँ गईं। आलीशान मकान, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ, शहर के नामी बिल्डर संजीव का आशियाना देखकर अरुण और वैभवी की तो अंदर जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। उन्होंने बाहर ही उनका स्कूटर पार्क कर दिया।
वॉचमैन को पहले से बता दिया गया था कि अरुण जी आने वाले हैं। अरुण को स्कूटर पार्क करता देख कर वॉचमैन तुरंत ही उन्हें आदर सहित अंदर ले गया। बगीचे के बीचों बीच एक फाउंटेन था। सुंदर फूलों से सजे धजे वृक्ष लहलहा रहे थे, अरुण को आता देख संजीव ख़ुद उठकर उन्हें लेने बाहर तक आ गए।
उन्होंने अपनी पत्नी सरगम को आवाज़ लगाते हुए कहा, "सरगम बाहर आओ अरुण और वैभवी जी आए हैं।"
अंदर से सरगम बाहर आ रही थी। वैभवी उनके ठाठ देखकर हैरान थी। तभी उसकी आंखों ने एक सपना देखा। उसे लग रहा था कि इतने महंगे कपड़ों में सजी-धजी उनकी बेटी अनु आ रही है। कितनी सुंदर लग रही है अनु। वाह ऐसे कपड़ों में तो उन्होंने आज तक अनु की कल्पना भी नहीं की थी।
तभी उसके कानों में आवाज़ आई, "आइए वैभवी जी आइए बैठिए।"
वैभवी सपने से जागी और नमस्ते करते हुए अंदर सोफे पर बैठ गई । अरुण से हाथ मिलाते हुए संजीव ने उन्हें भी बैठने के लिए कहा। अंदर से कोई लड़की शायद उनके घर काम करने वाली ही होगी, वह कांच के सुंदर गिलास में पानी लेकर आई। उसके बाद शानदार प्लेटों में नाश्ता और चाय भी आ गई।
तब अरुण ने चाय पीते हुए पूछा, "संजीव जी आपको हमारी बेटी के विषय में कैसे ...?"
अरुण की बात पूरी होने से पहले ही संजीव ने कहा, "अरे हाँ यह बात तो आपको ज़रूर पता होनी चाहिए। मेरा बेटा राजीव एक दिन आपकी बेटी के कॉलेज के पास उसके दोस्तों के साथ खड़ा था। तब उसने आपकी बेटी अनामिका को देखा। बस तभी उसने निर्णय ले लिया कि वह शादी करेगा तो उसी से। उसने आकर हमें यह बताया तब हमें पता लगाने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा," कहते हुए वह हंस दिए।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः