Humraz - 4 in Hindi Crime Stories by Gajendra Kudmate books and stories PDF | हमराज - 4

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हमराज - 4

अब यासीन ज़ेबा से बोली, " ज़ेबा अरे वह लड़का तो दिखने में तो अच्छा है और उसके बोलने के लहजे से शख्सीयत से भी शरीफ लगता है। सबसे ज्यादा जरुरी की वह तुमसे प्यार करता है. तो फिर तुम क्यों नहीं करती. " तब ज़ेबा यासीन से गुस्से में बोली, " यासीन तुम्हे इश्क, प्यार करना है तो करों और उस बादल से हा करना है तो करो. लेकिन मुझे ऐसा कुछ करने की नसीहत मत दो. मैने प्यार करनेवालो को जो खौफनाक सजा मीलती हैं वह मंजर मैने खुद अपनी ऑखों से देखा है. तो अब इसके बाद ना ही तुम उस बादल का जिक़ मेरे सामने करोगी और ना ही इश्क विश्क की बात करोगी. तुम्हे अगर मेरी दोस्ती चाहिये तो तुम्हे मेरी यह शर्त माननी पडेगी, आगे तुम खुद समझदार हो. " ऐसा कहकर वह कॉलेज के भीतर चली गयी. फिर कॉलेज सुरु हुआ और पढ़ानेवाले
अध्यापक आते और जाते गये. लेकिन ज़ेबा का ध्यान आज पढ़ाई में तनीक भी नहीं लग रहा था. कॉलेज छूटने के बाद ज़ेबा अकेली ही घर की और रवाना हो गयी. आज बादल भी ठान के आया था और उसे ज़ेबा से पूरी बात करनी थी. इसलीये वह आज कॉलेज गया ही नहीं वहीं पर ज़ेबा के कॉलेज के बगल में रुककर उसका इंतजार कर रहा था. फिर जब उसे शाम को ज़ेबा अकेली ही घर जाती हुई दिखाई दी तो वह उसके पास गया ओर बोला, " ज़ेबा मुझे माफ़ करना मै फिर तुम्हारे राह में आकर तुमसे बात कर रहा हूँ. मुझे बस एक बात का जवाब तुमसे चाहिये और उसका जवाब मीलने के बाद मै तुमसे कभी भी नहीं मीलूँगा."

    अब ज़ेबा को भी लगने लगा था की बादल की बात सुनते है. इसलीये उसने कहा, कहो तुम्हे क्या काहना है. फिर बादल बोला, ज़ेबा मै और तुम एक दूसरे को बचपन से जानते है पहचानते है. हम आजतक साथ साथ खेले कुदे बड़े हुए. ज़ेबा पहले हम दोनों साथ होते थे तो तब हमारे पास वह अहसास नहीं था. हमें यह भी मालुम था की हम क्या कर रहे है सही या गलत. आज हम उम्र के उस पड़ाव पर आकर ठहरे है जहाँ हमें यह अहसास हो रहा है की हम किसी को चाहते है, हमें भी कोई चाहता होगा. तो ज़ेबा पिछले कुछ दिनों से मुझे तुम्हे लेकर एक अलग अहसास हो रहा है. मै न चाहते हुए भी तुम्हारी तरफ खीँचा जा रहा हुं. मेरा दिल अब तुम्हे देखे बगैर नहीं लगता, रातों में तुम्हारे खवाब आते है और मुझे सोने नहीं देते. मेरी हालत अब दिवानों सी होने लगी है. सारी बातों का एकही मतलब है मै तुमसे प्यार करने लगा हूँ." फिर ज़ेबा ने कहा, " बादल तुम्हे जो भी कहना था तुमने कह दिया अब मेरी बात सुनो. हम दोनों बचपन से आजतक एकसाथ खेले कूदे वह एक दोस्त बनकर, उस वक्त से इस वक्त तक हमें हमारी असली पहचान नहीं हुई थी. आज हमें और तुमको यह समझ आ गया है की तुम एक लड़के, मर्द हो और में एक लड़की, औरत हूँ. लड़का और लड़की जब बच्चे होते है तब उन्हें किसी भी तरह की बंदिश नहीं होती है. वह सबकी नजरों में एकसमान होते है. हाँ लेकिन जब लड़का और लड़की बड़े हो जाते है तब उन दोनों के बीच का रिश्ता चाहे वह दोस्ती का हो या भाई बहन का देखनेवालों को हमेशा ही उनकी नजरों में वह खटकता है. जो लड़का लड़की बचपन में साथ साथ खेलते थे घूमते थे वही लड़का लड़की अगर जवानी में साथ साथ आपना वक्त बीताये तो लोंग तरह तरह की बाते करते है, उनके ऊपर लांछन लगाते है.

     देखो बादल तुम्हारी ही तरह मेरे भी तन और मन में तुम्हारे लीये वह आकर्षण महसूस मुझे पिछले दिनों से होने लगा है. हाँ मै भी यह स्वीकारती हूँ की मुझे भी तुम्हे लेकर पहले से अलग अहसास हो रहा है. लेकिन शायद तुम भी जानते हो की हम दोनों में एक बात बिलकुल ही अलग है और वह है हमारे धर्म, ईमान, इस कारण से हमारा कभी कोई मेल नहीं हो सकता है. हमारा यह रिश्ता पहले हमारे घरवालों को और बाद में इस दुनीया के लोगों को रास नहीं आयेगा. हमारे इस रिश्ते पर पहले हमारे घर के लोंग सौ बंदिशे लगायेंगे और बाद में यह लोंग सौ सवाल उठाएंगे और जाने क्या क्या कहेंगे " तभी बीच में बादल कहता है, "ज़ेबा हमारे रिश्ते के लीये जब तुम राज़ी हो और मै राज़ी हूँ तो फिर हम लोगों की चिंता क्यों करे. ज़ेबा इस जहान में चाहे तुम कुछ भी कर लो लेकिन कुछ तो यह लोंग कहेंगे, अरे इनका काम होता है कहने का. तुम कोई अच्छी बात करों तब भी यह लोंग कुछ कहते है और बुरा करों तो भी यह कुछ ना कुछ कहते है." फिर ज़ेबा ने बीच में ही बादल को टोका और बोली, " देखो बादल तुम्हारे दिल में मेरे लीये जो अहसास है वह तुम्हारे तक ही रखो तो अच्छा है. यह प्यार व्यार मुझसे ना होगा और इसके बारे में आज के बाद मुझसे कोई बात मत कहना." यह शब्द बोलते हुए ज़ेबा किसी डर से थरथरा रही थी. बादल को वह डर साफ़ साफ़ ज़ेबा के चेहरे पर दिख रहा था लेकिन वह उस वक्त कुछ नहीं बोला और ज़ेबा वहाँ से चली गयी.

    अब ज़ेबा घर की और जाने लगी थी लेकिन उसके दिलोदिमाग में वहीं यासीन और बादल की बाते घूम रही थी. बार बार इश्क, प्यार का नाम उसके कानों में गूंज रहा था और ज़ेबा बहोत ज्यादा डर महसूस कर रही थी. फिर उस ही हालत में वह घर जाकर पहुँच गयी. घर जाने के बाद अम्मी ने भी ज़ेबा के चेहरे पर वह डर और परेशानी देखी. तब अम्मी ने हलके फुल्के अंदाज में पूछा, " क्या हुआ बेटा आज फिर कोई कुत्ता पीछे पड़ गया क्या," ज़ेबा उस वक्त कोई भी जवाब नहीं दे पायी और अपने कमरे की तरफ चली गयी. अम्मी को भी बड़ा अजीबसा लगा और फिर अम्मी घर के बाहर आकर इधर उधर देखने लगी. तभी बादल भी कॉलेज से घर आते हुए उन्हें दिखा. उसके बाद अम्मी दस से पंधरा मिनिट वहीं पर रुककर आनेजानेवालों को देखती रही. उस वक्त भी कई लोग वहाँ से गुजरे लेकिन कोई भी चेहरा उन्हें शकजदा दिखाई नहीं दिया. फिर अम्मी घर के भीतर आ गयी और ज़ेबा के कमरे की तरफ गयी. ज़ेबा का कमरा भीतर से बंद था तो अम्मी ने आवाज लगाई, " बेटा क्या कर रही हो बाहर आओ मैंने चाय बनाई है." तब ज़ेबा ने कहा, " अम्मी, अभी चाय नहीं पीउंगी मै थक गयी हूँ थोड़ी देर सोना चाहती हूँ." तब अम्मी ने भी सोचा की अभी बात करना ठीक नहीं है तो उन्होंने कहा, " ठीक है बेटा थोड़ा आराम कर लो हम बाद में चाय पी लेंगे.
   
    शेष अगले भाग में ............४