Kalpaant Srijan in Hindi Fiction Stories by satish bhardwaj books and stories PDF | कल्पांत सृजन

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कल्पांत सृजन

प्रथम चरण - विषाद

सूर्या घास पर एक चटाई बिछा कर लेटा हुआ था।

ये भादवे की उमस भरी गर्मी का मौसम था। बरसात के कारण चारो तरफ हरयाली बहुत ही ज़्यादा थी। उसकी गहरी साँवली त्वचा पर हल्का पसेव आ गया था। जिसके कारण उसकी चमड़ी दमक रही थी। उसके सर के सफ़ेद बाल हवा के हल्के से झोंको से भी झनझना रहे थे।

सूर्या एक वीडियो देख रहा था, जिसमे एक पुरुष और महिला युगल कभी के न्यूयार्क शहर को दिखा रहा थे। शहर में कहीं–कहीं पर कोई सड़क या किसी इमारत के चिन्ह दिखाई दे रहे थे। नहीं तो हर तरफ प्रकृति का वास था। बहुमंज़िला इमारतों ने एक अलग ही प्रकार के बहूमंजिला जंगलो का रूप ले लिया था। कई इमारते इन बड़े पेड़ो के वजन और प्रकृति की मार से नीचे गिर चुकी थी। उनके ढेर पर बना जंगल किसी हरे-भरे पहाड़ जैसा लगता था। कभी जो स्टेडियम रहे थे वो झील बन चुके थे। सब-वे अब किसी नदी या जलाशय का रूप ले चुके थे। इन जंगलो में जंगली जानवरो का आवास था।

सूर्या पोन्नादूरई एक 65 वर्ष का बुजुर्ग जीववैज्ञानिक था। सूर्या का जन्म श्रीलंका में हुआ था। कोशिका विज्ञान और खास तौर से स्टेम सेल टेक्नालजी और क्लोनिंग मे वो निर्विवाद रूप से विश्व का महानतम वैज्ञानिक था। अब वह अपनी उस ज़िंदगी को बहुत पीछे छोड़ चुका था और अब भारत की राजधानी दिल्ली के तटवर्ती क्षेत्र मेरठ में गंगा के किनारे पौराणिक स्थल हस्तिनापुर वन क्षेत्र मे रह रहा था। जिस जगह वो रहता था वो कभी कोई बड़ा सरकारी आवास रहा होगा। सूर्या ने इस आवास को सही हालत में व्यवस्थित किया हुआ था।

हजारो वर्ग मील के इस जंगल मे वो अब एक घने और बियाबान जंगल में बदल चुका था। दिल्ली के पश्चिमी किनारे पर एक मानव बस्ती थी। बाकी उत्तर भारत में तीन और ऐसी मानव बस्तियाँ थी। पूरे भारत में कुल 15 बस्तियाँ थी। इन बस्तियों को शेल्टर डोम या आश्रय-कलश का नाम दिया गया था। दक्षिण भारत का पठार अब पूरी तरह मानव विहीन था और वहाँ सिर्फ प्रकृति का वास था।

दुनिया के लगभग हर शहर की हालत सन 2230 में लगभग ऐसी ही हो गयी थी। हर शहर में इमारतें जंगल में बदल चुकी थी। जंगलो को काटकर जिन शहरो को खड़ा करने में मानव को सैंकड़ों-हजारो वर्ष लगे, प्रकृति ने उन शहरो को 20 - 25 वर्ष में ही घने जंगल में बदल दिया था।

पूरे विश्व में जो बची-कूची मानव आबादी थी वो दुनिया भर के 150 आश्रय-कलश मे रह रही थी। सभी देशो की सीमाएं और उनके विवाद खत्म हो गए थे। बल्कि मानव समाज भूल गया था कि वो किस देश का नागरिक है या था?

बहुत से लोग थे जो सूर्या की तरह नवनिर्मित आवासस्थल (आश्रय कलश) को छोड़कर दुनिया भर में घूम रहे थे। कोई बस खो जाता था तो कोई बचे-कूचे मानव समाज को दुनिया के बदले स्वरूप से रुबरु करवा रहा था।

दुनिया की मानव जनसंख्या अब केवल 17 करोड़ बताई जा रही थी। इतने लोगो के लिए ये दुनिया बहुत बड़ी थी। पूरे विश्व में कुछ खास जगहो को चिन्हित करके ये आश्रय कलश बनाये गए थे। इन्हे मानव बस्ती कहिए या फिर प्रयोगशालाएँ, कोई भिन्नता नहीं है। लुप्त होती मानव सभ्यता को बचाने के अंतिम प्रयास इन प्रयोगशालाओं में किए जा रहे थे।

सूर्या विचारों में खोया ही था कि उसे एक गूंज सुनाई दी और उसने देखा एक होवरकोप्टर वहाँ उतरा है।

होवरकोप्टर “पार्टीकिल फ़ाईनेल्टी इंजीन” से चलने वाला एक वायु यान था। जो इंटरा प्लनेट ट्रांसपोर्ट मे उपयोग होता था। “पार्टीकिल फ़ाईनेल्टी इंजीन” नाभिकीय ऊर्जा का एक चरम बिन्दु था। जहाँ किसी भी पार्टीकिल को पूरी तरह ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया जाता था। इस परिवर्तन मे द्रव्य का कोई अंश शेष नहीं रहता था बल्कि समस्त द्रव्यमान ऊर्जा मे परिवर्तित हो जाता था।

जहाँ वो होवरकोप्टर उतरा था, वहाँ की सारी वनस्पति उसने एकदम से सूखा कर हवा कर दी। सूर्या किसी आगंतुक के आने से बिलकुल भी उत्साहित नहीं दिखा, बल्कि उसका ध्यान तो उन खत्म हुए पेड़-पौधो पर था। उसे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगा।

 

दूसरा चरण - आशाएं

होवरकोप्टर में से दो व्यक्ति निकले, जो सूर्या की ही आयु के लग रहे थे। वो सूर्या के पास आए और उनमे से एक ने गर्मजोशी से सूर्या का अभिवादन किया।
सूर्या खड़ा हो गया और उन दोनों की तरफ़ देखते हुए बोला “क्या हाल हैं वू”

“वू वांगपो” का जन्म तिब्बती बोन समुदाय में हुआ था, ये भी एक वैज्ञानिक ही था। विश्व में इस महामारी का प्रसार कुछ इस तरह हुआ कि भारत उपमहाद्वीप का बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में सबसे बाद में आया। इसका सबसे बड़ा कारण भारत के कुछ विशेष समुदायों का शाकाहारी होना माना गया तो कुछ विद्वानो का मानना था कि आयुर्वेद और योग ने भारत के इन समुदायों को इससे बचाकर रखा। जिस कारण विश्व भर में आयुर्वेद, योग व अन्य भारतीय ग्रन्थो की लोकप्रियता बहुत ही अधिक हो गयी थी। सभी इस महामारी से बचाव तलाशने के लिए इन ग्रन्थो का अध्ययन कर रहे थे। जिस कारण संस्कृत व अन्य भारतीय स्थानीय भाषाओं विशेष रूप से हिन्दी का प्रचार भी विश्व भर में हो गया था। लगभग सभी विशेष लोग जो इस महामारी से छूटकारा पाने के लिए प्रयासरत थे वो हिन्दी और संस्कृत के माहिर बन गए थे। किसी तिब्बती और श्रीलंका के नागरिक के द्वारा हिन्दी मे वार्तालाप बिलकुल भी विशेष नहीं रह गया था।

वू ने आगे बढ़कर सूर्या का आलिंगन किया और बोला “तुम मुझसे भी युवा लग रहे हो, जबकि तुम्हारी आयु मुझसे कुछ अधिक ही है”
सूर्या ने कटाक्ष करते हुए कहा “ये सब इन पेड़ो की स्वच्छ हवा के कारण है जिन्हे अभी तुम्हारी इस एयर कार ने नष्ट कर दिया”
वू ने देखा कि जहाँ उसका होवरकोप्टर उतरा था वहाँ का धरातल एकदम सफ़ेद हो गया था और वहाँ पर उगे हुए विशाल पेड़ और अन्य वनस्पति का कोई चिन्ह अब नहीं था।

वू ने गर्दन झटकते हुए कहा “दुनिया भर मे अब मात्र ये वन और वनचर पशु ही तो बचे हैं सूर्या, मेरा ध्यान हमारे अस्तित्व पर है जो अब नष्ट होने ही वाला है"
सूर्या ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए उसके साथ आए दूसरे व्यक्ति की तरफ हाथ करते हुए पूछा “ये कौन है?”

वू ने एकदम से अचकचाते हुए उत्तर दिया “ओ परिचय करवाना तो भूल ही गया, सूर्या ये हैं जोर्स कोलह्यो, ये एक प्रतिभाशाली कोशा विज्ञानी और हयूमनोइड वैज्ञानिक हैं। वैसे अल्बिनियन है, लेकिन अभी अयोध्या कलश में रहकर हमारे साथ काम कर रहें हैं”
वू 58 वर्षीय वैज्ञानिक था और जोर्स भी लगभग 60 वर्ष का था।

सूर्या आगे बढ़कर जोर्स से गले मिला, जोर्स को सूर्या के पसीने की दुर्गंध अच्छी नहीं लगी। लेकिन उसने चेहरे पर एक छद्म मुस्कान लाकर सूर्या का अभिवादन किया।


सूर्या ने वू को अपने साथ अंदर चलने का इशारा किया. और वो तीनों भीतर की और चल दिये।
चलते हुए सूर्या ने कहा “वर्तमान में मात्र अयोध्या कलश पर ही मानव प्रजनन पुनरुद्धार कार्यक्रम चल रहा है?"
वू के चेहरे पर एक उदासी छा गयी, वू ने कहा “सूर्या... दर्श अब नहीं रहे। हमने अथक प्रयास किया लेकिन अंग प्रत्यारोपण से लेकर रिजुवीनेलिटी ट्रीटमेंट किसी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा”

सूर्या ने मन ही मन दर्श की आत्मा की शान्ति के लिए श्लोक पढ़ा और फिर वू को उस बरामदे मे बिछाई गयी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया। वू और जोर्स दोनों कुर्सियों पर बैठ गए। सूर्या एक मिट्टी के बर्तन की तरफ बढ़ा और उसमें से पानी निकालने लगा।

ये देखकर जोर्स ने कहा "हमे प्यास नहीं है"
सूर्या मुस्करा पड़ा और बोला “ओ हाइजीन, स्वच्छता... आप लोग अपनी नरिसिंग पिल्स ले चुके हैं। लेकिन कभी प्राकृतिक पानी का स्वाद लेकर देखो, आनंद के चरम पर पहुँच जाओगे”
जोर्स ने एक फीकी सी मुस्कान से उत्तर दिया।

सूर्या भी नीचे बैठते हुए बोला “तो विश्व के सबसे महान और उम्रदराज प्रजनन और भ्रूण विज्ञानी हमारे मध्य नहीं रहे”
फिर कुछ देर मौन के बाद सूर्या ने कहा “वैसे पदम तो अभी है ना”
वू ने उदासी प्रकट करते हुए कहा “हम सब जानतें हैं कि पदम एक वैज्ञानिक से अधिक एक राजनेता है, बल्कि मुझे संदेह है कि उसे वैज्ञानिक कहना उचित होगा क्या? उसे तो मात्र मरस्रा (Mankind Revival Scientific Research Authority) पर अपने नियंत्रण की अधिक चिंता रहती है और वो समस्त प्रयास भी इसके लिए ही करता रहता है”
सूर्या ने एक ठहाका लगाया और बोला “अपने अस्तित्व के अंतिम चरण पर भी मानव अपने लालच और महत्वाकांक्षाओं का दास बना हुआ है। लोग सोच रहें हैं कि राष्ट्र या साम्राज्य का विचार अब समाप्त हो गया, इनके लिए होने वाली राजनीति और सत्ता के लिए होने वाले युद्ध भी समाप्त हो गए, लेकिन यहाँ अभी भी सत्ता पर नियंत्रण का युद्ध चल रहा है”

वू ने उत्तर दिया “अब जो भी हो, हमे तो अपना कर्तव्य निभाना है”
सूर्या एक उच्छ्वास के बाद बोला “तो अब मरस्रा की सारी आशाएँ खत्म हो चुकी हैं, कमाल है ना गली-गली मे हयूमनोइड मेकिंग, ह्यूमन क्लोनिंग और जीन-रिकोम्बिनेसन वर्कशॉप होने के बाद भी आज हम कितने लाचार हो चूकें हैं”

वू ने सूर्या की तरफ देखते हुए कहा “आशाएँ अभी खत्म नहीं हुईं हैं, लेकिन अब अंतिम आशा की किरण तुम बचे हो”

सूर्या एकदम से हसने लगा और प्रश्न किया “क्या लगता है कितने वर्ष और बचे हैं बचे हुए मानवों के मर जाने में? वू तुमसे कम आयु के कितने लोग हैं अब?”
वू ने उदासी के साथ अपना सर नीचे झुका लिया और बोला सबसे युवा महिला की उम्र 52 वर्ष और पुरुष की उम्र भी 52 वर्ष ही है। यदि कुछ नहीं किया तो अगले 25 से 30 वर्ष में सारी मानव सभ्यता नष्ट हो जाएगी”

फिर वू ने आशा भरी दृष्टी से सूर्या को देखते हुए कहा “सूर्या तुम कुछ कर सकते हो?”
सूर्या ने एक फीकी सी मुस्कान के साथ उत्तर दिया “वू ये संकट सन 2155 में प्रारम्भ हुआ था”
वू ने बात काटते हुए कहा “2185”
सूर्या ने वू की तरफ देखा और कहा “2185 में हमने स्वीकार किया था, बल्कि ये दिनाँक भी सिविल वार के बाद में हमने पंजीकृत की, नहीं तो 2155 से ही ये सब प्रारम्भ हो गया था”

वू ने सूर्या के घुटनो हाथ रखते हुए पर याचना करने के अंदाज़ में कहा “सूर्या इस महामारी से तुम बचा सकते हो”
सूर्या ने वू की तरफ देखा और कहा “ये महामारी नहीं है, बल्कि प्रकृति के द्वारा सुनिश्चित एक व्यवस्थित प्रक्रिया है”
वू ने झल्लाते हुए कहा “सूर्या अपने अवसाद से बाहर निकलो और कुछ करो”
सूर्या उठकर अंदर बने एक कक्ष की तरफ चल दिया और भूतकाल की यादों मे विचरण करने लगा।

 

तीसरा चरण - आशाएँ

सूर्या पुरानी यादों मे सोचने लगा कि कैसे ये दुनिया बदल गयी थी?
ये संकट 2150 में ही प्रतीत होने लगा था। 2170 आते-आते इस संकट ने भयानक रूप ले लिया। विश्व मानव जनसंख्या जो 2170 में 20 अरब थी वो अब घटकर मात्र 17 करोड़ 25 लाख 12 हज़ार 7 बची थी।

2170 में जब मानव सभ्यता उन्नति के शिखर पर थी और मानव समाज मान चुका था कि वह प्रकाश की गति की सीमा से आगे जाने के प्रयास में भी सफल हो सकता है। स्टेम सेल तकनीक से मानव शरीर के अंगो को विकसित किया जा रहा था। जिन्हे मानव शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता था। मानव चिरयुवा बनने की क्षमता प्राप्त कर चुका था। मृत शरीर को पुन: जीवन प्रदान कर पाना संभव हो गया था। किसी दुर्घटना मे कट-फट चुके किसी शरीर के एक किसी छोटे टुकड़े से भी क्लोनिंग तकनीक के द्वारा नया शरीर बहुत तेज़ी से कुछ महीने मे विकसित करके उस मस्तिष्क मे पुराने शरीर के मस्तिष्क की संवेदनाएं और यादें प्रत्यारोपित कर दी जातीं थी।

जीन रिकोम्बिनेसन तकनीक के द्वारा जोड़े मनचाही संताने प्राप्त कर रहे थे। और उसके लिए भी महिलाओ को गर्भवती होने की आवश्यकता नहीं थी। यौन संबंध पूरी तरह मात्र आनंद का एक माध्यम रह गए थे।

लेकिन इस सब तकनीकी दक्षता का लाभ बस वो ही उठा सकता था जिसके पास अपार धन हो। जो विश्व की आबादी के 1 प्रतिशत हिस्से के पास ही था। बाकी 5% आबादी भी इतनी सक्षम थी कि बहुत सी तकनिकों का लाभ ले पा रही थी। बाकी बची आबादी के लिए सिर्फ मनोरंजन के माध्यम सुलभ थे।

प्रत्येक मानव शरीर मे जन्म के साथ ही नैनो ट्रैकर लगा दिये जाते थे। सरकार के द्वारा जो फ्री ट्रैकर लगाए जाते थे वो सिर्फ सर्विलान्स का काम करते थे। लेकिन धनवान लोग इस तरह के ट्रैकर लगवाते थे जो उनके शरीर की पूरी रचना का आंकलन करते रहते थे। जिस कारण किसी भी रोग की पूर्व सूचना वो देने में सक्षम थे। ये सब एक बड़ा व्यापार बन चुका था।

मंगल और चाँद पर मानव रह रहा था, और इससे आगे जाने के लिए उत्साहित था। लेकिन तभी ये महामारी आई और सब बदल गया।

......

सूर्या अंदर से अपने साथ एक छोटा सा हुक्का लेकर आया।

वू ने देखकर कहा “ओ हुक़्क़ा”

वू ने फिर कहा “अब जो भी हो हम भूत काल की घटनाओं पर बहस करके कोई निराकरण पर नहीं जा पाएंगे। हमें अभी से गंभीर प्रयास करने होंगे और तुम्हें अपने अवसाद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना होगा”

सूर्या को वू के उत्तर पर एक ज़ोर की हसी आई और वो बोला “अवसाद में मैं नहीं, तुम लोग हो”

सूर्या ने हुक्के मे एक कश खींचा

वू ने हाथ बढ़ाते हुए एक कश खींचने की इच्छा प्रकट की लेकिन सूर्या ने इंकार कर दिया और बोला “रहने दो वू धसका सह नहीं पाओगे”

फिर सूर्या ने कुछ और कश खींचे, ये देखकर जोर्स अब थोड़ा झल्लाने लगा था।

सूर्या ने वू से कहा “विश्व जनसंख्या आंकड़े देखकर स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि ये समस्या 2150 में ही प्रारम्भ हो गयी थी। तब से ही हमारी क्लोनिंग तकनीक, निषेचन प्रयोगशालाओं, अंग पृत्यारोपन, जुवानिलिटी ट्रीटमेंट और पुनर्जीवित करने की तकनीक ने काम करना बंद कर दिया था। उनसे कोई परिणाम नहीं मिल रहा था। और तो और मानव समाज मे प्राकृतिक निषेचन भी नहीं हो रहा था। निम्न और मध्यम वर्ग मे भी प्राकृतिक गर्भाधान बंद हो गया था। विश्व की सभी  महिलाओ के अंडाणु और पृरुषों के शुक्राणु एकदम से मृत हो गए थे। यदि जीवित भी थे तो उनमे निषेचन की क्षमता खत्म हो गयी थी। प्रयोगशालाओ में भी निषेचन नहीं हो पा रहा था। क्लोनिंग जो एक आम बात हो चुकी थी, वो भी एकदम से होनी बंद हो गयी। हमारी सभी तकनीके काम कर रहीं थी, लेकिन कोई भी वो तकनीक जो मानव जीवन को बढ़ा सकती हो या मानव को पुनर्जीवित कर सकती हो या किसी नए मानव शिशु को जन्म देने मे सक्षम हो वो सब एकदम से बेकार हो गई। हम कुछ भी सृजित करने की क्षमता पा चुके थे परंतु एक मानव शरीर को सृजित करने की क्षमता खो चुके थे, प्राकृतिक रुप भी ये बंद हो गया था और तकनीकी रूप से भी हम ये नहीं कर पा रहे थे”

सूर्या ये सब बातें बिना रुके बोलता चला गया था, फिर एक अल्पविराम लेकर सूर्या ने वू को देखते हुए कहा “तुम समझ रहे हो वू?”

वू ने सूर्या की आँखों मे देखते हुए कहा “इसपर हम पहले भी वार्तालाप कर चूकें हैं”

सूर्या ने कहा “लेकिन समझना या स्वीकार करना नहीं चाह रहे, वू प्रकृति ने एकदम से शटडाउन प्रोसेस चालू कर दिया था। वो भी तब, जब हम प्रकृति को अपना खिलौना मान चुके थे और इस धरती पर से लगभग समस्त प्राकृतिक रचनाओं को अपनी इच्छा से बदल या नष्ट कर चुके थे।“

वू ने थोड़ा सा झल्लाहट में कहा “2180 के बाद तक भी भारत, अमेज़ोन और अफ्रीका में बच्चो के जन्म हुए हैं”

सूर्या ने कहा “सभी प्राकृतिक तरीके से, वो भी प्रकृति के निकट रहने वाले मानव समुदायों मे। अमेज़ोन और अफ्रीकन कबीलो में भी बच्चे हो रहे थे और शायद प्रकृति हमे कोई संदेश देना चाहती थी। लेकिन हमने फिर अनसुना किया”

सूर्या ने रुककर हुक्के के दो-तीन कश जल्दी से खींचे और आगे बोलना शुरू किया “हमने क्या किया? पहले तो हमने समस्या को स्वीकार ही नहीं किया। फिर स्वीकार किया भी तो पूंजीपति व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिए बाज़ार बनाने को ही किया। हर देश की सरकार पहले ही पूँजीपतियों के हाथो की कठपुतली बन चुकी थीं। पूंजीपति घराने इस समस्या से छुटकारे के नाम पर अपने नए-नए अनुसंधानो को बेच रहे थे। लेकिन परिणाम शून्य रहा”

सूर्या ने हुक्के में एक कश और खींचा और हुक्के नीचे रखते हुए कहा “फिर लोगो को लगने लगा कि सरकारों ने अपने किसी वेक्सिनेसन अभियान के माध्यम से बढ़ती जनसंख्या को कम करने के लिए ये सब किया है। उसके बाद एक बड़ी ग्लोबल सिविल वार शुरू हो गयी। दुनिया भर में आग और तबाही मच गयी, सेनाओ मे विद्रोह हो गया। अपनी आधी से अधिक जनसंख्या तो हमने स्वयं अपने शस्त्रों से ही नष्ट कर दी। हमारे विनाशक शस्त्रों से जो बचे वो भूख और बीमारी से मरे। वू तुम्हें तो याद भी नहीं होगा, आज तुम, जोर्स और मुझ जैसे लोग जो दुनिया में हैं, जानते हो क्या विलक्षण है हमारे साथ?”

 

चौथा चरण - प्रकृति

“वू तुम्हें तो याद भी नहीं होगा, आज तुम, जोर्स और मुझ जैसे लोग जो दुनिया में हैं, जानते हो क्या विलक्षण है हमारे साथ?” सूर्या ने कहा।

 “हमारा जन्म इस महामारी के शुरू होने के बाद हुआ है, तब जब ये महामारी लगभग विश्व भर में फैल चुकी थी” जोर्स ने अपनी धुन मे ये बात कही।

सूर्या ने जोर्स की आँखों में देखा। अब जोर्स को सूर्या की बातों मे दिलचस्पी जाग गयी थी।

सूर्या ने कहा “हम सभी किसी ना किसी वनवासी समाज से हैं। और जो  समाज प्रकृति का सम्मान कर रहे थे, जो प्रकृति से छीन नहीं रहे थे बल्कि जितना उन्हे प्रकृति दे रही थी उतना ही ले रहे थे। उनमे तब भी बच्चे पैदा हो रहे थे। लेकिन सिविल वार के बाद वैश्विक सरकार का गठन हुआ। और एक केंद्रीय अनुसंधान संस्था "मरस्रा (Mankind Revival Scientific Research Authority)" का गठन हुआ। तीन वर्ष में ही मरस्रा के प्रमुख "अरुष" ने मरस्रा और विश्व सरकार दोनों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। फ़िर उसने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। इन वनवासियों की महिलाओ को और पुरुषों को उठाकर लाया गया। अपने हिसाब से उनमे निषेचन प्रक्रिया को करवाया गया। अमीर और ताकतवर लोग अपना वंश चलाने को इन वनवासियों की युवतियों और महिलाओं को ख़रीद रहे थे। जब कुछ नहीं हुआ तो सारी सीमाएं पार की गईं और 14 से 16 साल तक की तरुण युवतियों को, जिनको महावरी शुरू ही हुई हो, उनको उठाकर उनके साथ ज़बरदस्ती यौनाचार किया गया। टेस्टट्यूब बेबी, जवान मर्दो के द्वारा जबरन यौन संबंध वो भी बार-बार, एक से ज़्यादा बल्कि कई-कई पुरुषो के द्वारा एक ही लड़की के साथ लगातार यौन संबंध बनवाए गए। लेकिन देखो एक भी शिशु का जन्म नहीं हुआ”

वू सूर्या की बातें ध्यान से सुन रहा था।  

सूर्या ने फिर कहा “वू सोचो मरस्रा के वनवासियों पर चलाये गए प्रोयोगों के बाद क्या हुआ?”

वू ने सूर्या को देखते हुए कहा “उनके समाज मे भी जन्मदर शून्य हो गयी”

सूर्या ने कहा "वू हमारी सारी तकनिके बेकार हो गयी थीं, नए बच्चे जन्म नहीं ले रहे थे, मानव शरीर को युवा बनाना या दुबारा जीवित करने की हमारी दशको से काम कर रही तकनिके एकदम से बेकार हो गयी थीं। तूमने ध्यान दिया हम तब से एक भी व्यक्ति को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित, अंग प्रत्यारोपण, या किसी को दुबारा युवा नहीं बना पाये हैं"

अबकी बार जोर्स बोला “आप कहना क्या चाहते हैं?”

सूर्या ने चमकती आंखो से जोर्स की आँखों मे गहराई तक झाँका और आगे बोलना शुरू किया “ये प्रकृति जिसे हम कुछ भौतिक, रसायनिक और जैववैज्ञानिक नियमो से बंधी एक व्यवस्था समझते हैं, वो इससे कहीं ज़्यादा है बल्कि हमारी समझ से भी बहुत गहरी”

जोर्स ने भी दार्शनिक अंदाज़ में कहा “जी ये सही कहा ये आपने, प्रकृति बहुत गहरी और रहस्यमयी हैं”

सूर्या ने सर हिलाते हुए निराशा जताई, वो जोर्स के आंकलन से प्रसन्न नहीं था। फिर सूर्या ने कहा “प्रकृति एक संवेदनशील प्राणी है, एक बहुत ही एडवांस क्रिएचर। बल्कि ये कहो कि वो क्रिएचर जो अपने मे सब समाहित किए हुए हैं। जिन विज्ञान के नियमो और बंधनो को हम जानते या मानते हैं, प्रकृति अपनी आवश्यकता के अनुसार उन्हे बनाने या बदलने की शक्ति रखती है”

वू और जोर्स अभी भी कुछ संशय में थे। सूर्या इस स्थिति को समझ रहा था

सूर्या ने फिर कहा “प्रकृति की भी हमारी तरह अपनी इंटेलिजेन्स हैं, प्रकृति की संवेदनायें हैं। वो स्थितियों पर दृष्टि बनाए रखती है और उसके अनुरूप निर्णय लेती हैं और जब जैसे आवश्यकता होती है वो अपने नियमो को बदल देती हैं। वो कुछ भी कर सकती है… अर्थात तुम समझो प्रकृति हमारी तरह एक प्राणी है, बस वो हमसे बहुत अधिक उन्नत है। एक ऐसा प्राणी जो शायद हर आयाम मे विचार सकता हो, लेकिन ये इतना साधारण भी नहीं है क्योंकि वो इस व्यवस्था को नियंत्रित करता है। या हो सकता है हर आयाम के लिए कोई अलग प्राणी हो। हम देख नहीं पा रहें हैं, हो सकता है प्रत्येक ब्रह्माण्ड की अलग व्यवस्था हो, लेकिन कोई एक संवेदनशील और मानसिक रूप से सशक्त प्राणी है जो देखता है, समझता है, निर्णय लेता है, और जो करना होता है कर देता है”

एक अल्पविराम के बाद सूर्य ने कहा “शायद कोई एक अलग दुनिया है जहाँ से हमे नियंत्रित किया जा रहा है, और उनके पास हमारा पूर्ण नियंत्रण है। सनातन पद्धति जो ब्रह्मा विष्णु और महेश की व्याख्या करती है ये बिलकुल वैसा हो सकता है या नहीं भी। हो सकता है प्रकृति एक स्वतंत्र  इकाई हो, जिसे आपकी किसी प्रार्थना या आस्था की आवश्यकता ही नहीं। वो तो बस अपनी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए ही उत्तरदायी है”

जोर्स जहाँ उत्सुक दिखाई दे रहा था वहीं वू झल्लाने लगा था।

वू ने कहा “सूर्या विज्ञान ने कई मिथक तोड़े और बाकी भी ध्वस्त हो जाएंगे। तुम्हारा ये मिथक भी ध्वस्त हो जाएगा।“

सूर्या ने आँखें बंद करके अपना सर पीछे को करते हुए निराशा का प्रदर्शन किया और बोला “कौन से मिथक तोड़े? हम चंद और मंगल पर बस्तियाँ बसा रहे थे लेकिन सोचो अपनी धरती पर माउंट कैलाश के ऊपर कदम नहीं रख पाये। मैंने पढ़ा है दो बार प्रयास किये गए लेकिन संभव नहीं हो पाया। पहले प्रयास मे जब चीन को इस उपलब्धि को प्राप्त करने की जिद हो गयी थी तो कोशिश करने से पहले ही चीन बर्बाद हो गया। बाद में भी जब तिब्बत की स्वायत्त सरकार से अमेरिकन अथॉरिटी ने परमिसन लेकर वहाँ अपना रिसर्च सेंटर खोला तो वो पूरा रिसर्च सेंटर तबाह हो गया। और तिब्बत मे प्रकृतिक आपदाओ का एक दौर शुरू हो गया, तिब्बत भी तबाह हो गया। वू तुम्हारे पूर्वज उन कुछ खुशनसीब लोगो मे से थे जो बच गए”

वू ने कहा “खाली बैठे हुए तुम ये ही सब कहानियां रच रहे थे सूर्या, वो सब प्रकृतिक आपदायें या राजनैतिक घटनाएँ थी, भूगर्भीय उथल-पुथल ने पुरे हिमालय को उलट-पलट कर रख दिया”

सूर्या ने झटके से कहा “लेकिन माउंट कैलाश आज भी वैसा ही है, उसकी रचना में लेशमात्र भी परिवर्तन नहीं आया है”

वू ने सूर्या के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “सूर्या इसके लिए एक बड़ा सर्वे करने की आवश्यकता होगी। जब हम इस महामारी से छुटकारा पा लेंगे तब हम ये भी करेंगे”

वू को लग रहा था कि वो जिस उद्देश्य से सूर्या के पास आया है वो सब इस वार्तालाप मे पीछे छूट रहा है। उसे ये सब वार्तालाप समय की बर्बादी लग रहा था।

 

पाँचवा चरण - न्याय

सूर्या ने कुछ रुककर फिर कहा “वू मानव समाज प्रकृति की हर रचना को नष्ट कर चुका था, हम मान बैठे थे कि ये प्रकृति हमारे नियंत्रण में है। तब प्रकृति को लगा कि मानव एक बीमारी बन चुका है, तो प्रकृति ने निर्णय लिया कि अब कोई नया मानव जन्म नही लेगा, प्रकृति के द्वारा मानव अस्तित्व का एक 'सिस्टेमेटिक शटडाउन प्रोसैस' शुरू हो गया था। प्रकृति ने हमारे साथ कोई क्रूरता नहीं दिखाई, प्रकृति हमें किसी आपदा, महामारी या बीमारी से एक झटके में भी समाप्त कर सकती थी। लेकिन उसने सबसे कम क्रूरतम तरीका आपनाया”

सूर्या ने आगे कहा “वू क्या है, कैसा है? नहीं समझ पाया हूँ, लेकिन ये समझ चुका हूँ कि प्रकृति एक हाइली इंटेलिजेंट एंटीटी है”

सूर्या की सब बातों पर वू और जोर्स सहमत थे लेकिन ये अंतिम बात उनके समझ नहीं आ रही थी।

सूर्या ने एक हाथ का इशारा किया और वर्चुवल टैबलेट स्क्रीन सामने खुल गयी। सूर्या स्क्रीन पर कुछ दिखाते हुए बोला “हाथी, बाघ, सारस, कंगारू पता नहीं कितनी प्रजातियाँ पूरी तरह से समाप्त हो गयी थी, लेकिन देखो”

सूर्या ने कुछ वीडियो दिखाये जो घुमंतू लोगो ने बनाए थे, उनमें अधिकतर लुप्त मान लिए गए प्राणी दिखाई दे रहे थे।

फिर सूर्या ने एक और वीडियो दिखाई और बोलने लगा “देखो एक हथिनी एक बार में एक ही बच्चे को जन्म देती थी, लेकिन यहाँ एक साथ चार-चार बच्चे जन्म ले रहें हैं, गर्भाधान समय भी कम हो गया है। बहुत सी वीडियो मैंने खुद बनाई हैं और लगातार इनको देखा है। लगभग हर प्राणी में जन्मदर तेज़ी से बढ़ी हैं। मानवीय कारणों से लुप्त हो चुकी हर प्रजाति आज फिर से धरती पर घूम रही है। बहुत सी ऐसी नयी प्रजातियाँ भी है जिन्हे हमने मानव इतिहास के प्रारम्भ में ही समाप्त कर दिया था, जिस कारण उनका कोई अधिक विवरण ही हमारे पास नहीं था। वो बहुत समय पहले अर्लि मॉडर्न इरा में खत्म कर दी गयी होंगी, लेकिन आज वो भी हैं। तस्मानियन हाइना, डोडो, व्हाइट राइनों, एलीफेंट बर्ड, सी काऊ... आज हर उस प्रजाति का जीव है, जिसे मानव ने नष्ट किया था। जो 500 साल पहले भी विलुप्त हो गईं थी और पिछले 500 वर्ष में कभी नहीं देखि गईं वो भी आज हैं और बड़ी संख्या में हैं”

वू ने कहा “सूर्या तो क्या हम 20 या 30 साल में खत्म हो जाएंगे, प्रकृति हर जीव का संरक्षण कर रही है लेकिन हमे खत्म कर रही है।“

सूर्या ने कहा “क्योंकि हम बीमारी बन चुके हैं”

वू और जोर्स ने खड़े होते हुए कहा “जो भी हो हम प्रयास नहीं छोड़ेंगे, तुम अपना निर्णय बताओ सूर्या?”

सूर्या ने कहा “मेरा निर्णय तुम्हें पता नहीं लगा क्या? मैं जान चुका हूँ कि हम कुछ नहीं कर सकते”

तभी वू ने कहा “सूर्या मानव प्रकृति की सबसे अनुपम रचना है। ये समाप्त हुई तो प्रकृति का सबसे सुंदर हिस्सा समाप्त हो जाएगा”

सूर्या ने वू की आँखों मे झाँकते हुए कहा “ये निर्णय प्रकृति ही करेगी कि मानव का अस्तित्व बचेगा या समाप्त होगा। हम और तुम... चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते”

वू ने निराशा के साथ कहा “सूर्या तुम सेंटेनल प्रोजेक्ट के अवसाद से आज भी नहीं निकल पाये हो”

 

छठा चरण - विप्लव 

सेंटीनल प्रोजेक्ट की बात सुनते ही सूर्या की आँखों मे पानी आ गया। सूर्या अतीत की यादों में खो गया।

30 वर्ष पहले जब सूर्या युवा था और मरस्रा में वैज्ञानिक था, तब सूर्या वनवासी महिलाओ पर हुए सेक्स एक्सपेरीमेंट्स से निराश होकर अलग हो गया था। लेकिन फिर नए मरस्रा प्रमुख पदम के कहने पर सूर्या मरस्रा से फिर से जुड़ गया और तब सूर्या ने “प्रोजेक्ट सेंटीनल” शुरू किया।

भारत के दक्षिण-पूर्वी छोर पर बंगाल कि खाड़ी मे स्थित उत्तर सेंटीनल द्वीप, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा था। इस छोटे से द्वीप पर सेंटीनल जनजाति रहती थी। लेकिन इस समय तक भी वो जनजाति बाकी मानव समाज से एकदम अलग-थलग रही थी। तब तक भी यदि किसी ने उनके द्वीप पर जाने का प्रयास किया तो उन्होने उसे मार दिया। ये जनजातीय समाज बाकी दुनिया से एकदम अलग और बाकी दुनिया के लिए एक रहस्य था।

सूर्या ने सेंटीनल द्वीप का सर्विलान्स किया था। उसे वहाँ हर आयु के बच्चे दिखाई दिये कुछ तो नवजात भी थे। सूर्या का मानना था कि सेंटीनल जनजाति को प्रकृति ने मानव जाती के संरक्षण हेतु चुना है। और मरस्रा को उनके जीवन में कोई छेड़-छाड़ ना करते हुए इस द्वीप का और इस जनजाति का संरक्षण करना चाहिए। सूर्या ने एक वृहद योजना बनाई थी। जिसके अनुसार अंडमान के निर्जन हो चुके बाकी द्वीपो तक सेंटीनल द्वीप कि पहुँच बनाई जाये। ताकि इस तरह इस जनजाति को अतिरिक्त स्थान और संसाधन प्राप्त हो सकें। लेकिन ये सब इस प्रकार हो कि सेंटीनल जनजाती की गोपनीयता बिलकुल भी भंग ना हो।

सूर्या ये मान चुका था कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं। जो करना है प्रकृति को करना है। प्रकृति मानव प्रजाति का भी संरक्षण कर रही है, लेकिन वो मात्र सेंटीनल्स हैं। इसलिए इस हिस्से मे कोई दाखल ना करते हुए मरस्रा को भी इनका संरक्षण करना चाहिए।

सूर्या ने एक जीवन शैली का प्रारूप भी बनाया था, एक प्रकृति प्रेमी जीवन शैली। सूर्या की योजना थी कि बाकी बचा हुआ मानव समाज इन कलशों से निकल कर, तकनीक से अलग एक सामान्य जनजातीय जीवन जीना शुरू करे। शायद प्रकृति की जो मानव जाती के विलुप्तिकरण की प्रक्रिया चल रही है, वो परिवर्तित हो जाये। यादी ये नहीं भी हुआ तो भी सेंटीनल जनजाति के रूप में मानव प्रजाति पुन: इस गृह पर मानव जाती का प्रसार करेगी।   

सूर्या ने अपनी सारी योजना मरस्रा प्रमुख पदम को बताई। तब मरस्रा ने सूर्या के साथ बड़ा धोखा किया और सेंटीनल पर एक आर्मी ओप्रेसन करके सेंटीनल बच्चो और औरतों को अगवा करने की कोशिश की। मरस्रा इन औरतों और बच्चो पर अपनी प्रयोगशालाओ में आधुनिक मानव समाज के बच्चे पैदा करना चाहती थी। क्योंकि मरस्रा का मानना था कि यदि सूर्या की योजना पर अमल किया गया तो मानव जाती अपनी समस्त वैज्ञानिक और तकनीकी दक्षता खोकर आदिम युग में पहुँच जाएगी।

 

सातवाँ चरण - यात्रा

मरस्रा का सेंटीनल द्वीप पर किया गया आर्मी ओप्रेसन अत्यंत जघन्य सामूहिक हत्याकांड मे बदल गया। सेंटेनल द्वीप के लोगो ने समर्पण नहीं किया, किसी ने खुद को छूने भी नहीं दिया। यदि फोर्स किसी को ट्रांकुलाइज़ कर भी देती तो कबीले का दूसरा व्यक्ति अपने ही साथी को तुरंत मार देता था। वो सोच चुके थे कि जीवित इनके हाथ नहीं लगेंगे।

सेना के हाथ कुछ नहीं लगा, सैंकड़ों बच्चो, बड़ो और जवानो को मौत के घाट उतार दिया गया।

सूर्या ने इस बात का विरोध किया लेकिन उसे जेल मे डाल दिया गया। सूर्या के क्षमा मांगने पर 2 साल बाद उसे छोड़ा गया। छूटते ही सूर्या सबसे पहले सेंटेनल द्वीप गया। वहाँ अभी भी कुछ कंकाल उसे दिखाई दिये लेकिन वहाँ किसी भी जीवित सेंटेनल व्यक्ति का कोई चिन्ह नहीं था। लेकिन फिर उसने देखा कि एक कंकाल कुछ अलग लग रहा है।

...

सूर्या एक दम से अपनी यादों से वापस आया। वू ने कहा “सूर्या अब कुछ हो सकता है तो कलश मे ही हो सकता है, तुम हमारे साथ हो या नहीं?”

सूर्या ने एक सांस छोड़ते हुए कहा “नहीं अब मैं प्रकृति के निर्णय को जान चुका हूँ, और ये भी जानता हूँ कि उसे बदलने की क्षमता हम लोगो मे नहीं। वो हमसे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली प्राणी है”

वू और जोर्स उसे छोड़कर चले गए।

उन दोनों के जाने के बाद सूर्या किसी तैयारी मे लग गया। उसने अपने आवास मे अंदर जाकर अपनी एक छोटी सी लैब मे एक पोशन अपने भीतर इंजेक्ट किया। फिर एक यंत्र को अपनी जांघ पर लगाया। उस यंत्र से एक माइक्रो सिरिन्ज निकली और उसने हरे रंग का एक द्रव्य सूर्या के शरीर मे से खींच लिया।

ये नैनो ट्रैकर थे। जिन्हे सूर्या ने अपने शरीर बाहर निकाल दिया था। फिर सूर्या ने ये ट्रैकर पिंजरे मे बंद एक बंदर के भीतर इंजेक्ट किए। उस बंदर को सूर्या पिछले लंबे समय से खास ट्रीटमेंट दे रहा था ताकि नैनो ट्रैकर उस बंदर के शरीर को सूर्या के शरीर के रूप मे ही स्वीकार कर लें। फिर सूर्या ने आगे ट्रैक हो सकने वाले अपने हर फुट प्रिंट को ब्लॉक किया। सूर्या रात को लंबे समय तक अपनी निजी प्रयोगशाला मे किसी तैयारी लगा हुआ था।

वैसे ये सब तैयारियां सूर्या पहली बार नहीं कर रहा था।

अगली सुबह सूर्या किसी लंबी यात्रा के लिए लगभग तैयार था। उसने अपनी एक पुरानी बैटरी बाइक से अपनी यात्रा शुरू की। उसके पास ऐसा कोई भी यंत्र नहीं था जो अपने किसी भी तरह के डिजिटल चिन्ह पीछे छोड़े या जिसे ट्रैक किया जा सके। इसलिए उसने पुरानी तकनीक के यंत्र अपने साथ लिए थे जिनमे किसी भी तरह की वायरलेस कनेक्टिविटी संभव ना हो सके।

वो एक पुरानी बैट्री बाइक का उपयोग कर रहा था, इस बाइक मे सूर्या ने अपनी आवश्यकता के अनुसार बहुत से बदलाव किए थे।

उसकी सबसे बड़ी चिंता बस एक ही थी कि उसे किसी भी तरह ट्रैक ना किया जा सके। उसके नैनो ट्रैकर एक बंदर के शरीर मे थे। बंदर को उसने इसलिए चुना था क्योंकि बंदर के शरीर को ही इस लायक बना पाया था कि नैनो ट्रैकर उसको सूर्या के शरीर के रूप मे चिन्हित करें। बंदर इस जगह के आस-पास ही घूमता रहेगा। और मरस्रा की सर्विलान्स टीम को लगेगा कि सूर्या कहीं नहीं गया है, यदि सर्विलान्स टीम उसका सर्विलान्स कर रही होगी तो।

सूर्या इस बात को लेकर संशय मे था कि उसका सर्विलान्स गंभीरता से किया जा रहा होगा या नहीं, लेकिन फिर भी वो नहीं चाहता था कि उसकी इस यात्रा की भनक भी मरस्रा को लगे। हालाँकि विश्व की सबसे शक्तिशाली शक्ति मरस्रा जो बचे-कूचे मानव समाज को नियंत्रित कर रही थी उसका अब सूर्या पर ज़्यादा ध्यान नहीं था। वो बस एक कोशिश मे लगे थे की किसी तरह कोई मानव क्लोन तैयार कर सकें। क्योंकि अब दुनिया मे एक भी स्त्री ऐसी नहीं बची थी जो माँ बन सके।

सूर्या की यात्रा की तैयारी पूरी हो गयी थी। वो अपना सामान पैक करके बाइक पर चल दिया। हालांकि पूरी दुनिया जंगल मे बदल चुकी थी और चारो तरफ़ खतरनाक जंगली जानवर थे। पृथ्वी पर प्रदूषण ना के बराबर था। ऑक्सिजन का प्रतिशत बढ़ चुका था। जिस कारण जानवरो और पेड़ों का आकार पहले से अधिक बड़ा हो गया था। इस स्थिति मे बाहर घूमना खतरनाक था, लेकिन सूर्या पिछले 25 वर्षो से इन जंगलो मे रह रहा था। तो वो जनता था कि कब क्या करना है?

और ये सूर्या की पहली यात्रा नहीं थी। जहाँ वो जा रहा था, मरस्रा से अलग होने के बाद वो पहले भी इस स्थान की दो यात्राएं इस तरह ही गुप्त रूप से कर चुका था। ये एक लंबी यात्रा होने वाली है।

लेकिन सूर्या ने इसके लिए एक सुरक्षित मार्ग तलाश रखा था। पहले भी दोनों बार वो इस मार्ग से ही गया था। ये ऐसा मार्ग था जहाँ वो खतरनाक जंगली जानवर और उनसे भी खतरनाक मरस्रा से बचा रह पाता था।  

 

आठवाँ चरण - पुनर्निर्माण

सूर्या एक लंबी यात्रा के लिए चल पड़ा था।

सूर्या पुराने शहरों की स्थिति और रास्ता जानता था। सूर्या अपनी यात्रा के लिए मैगलेव ट्रेन हाइवे का उपयोग करने  वाला था। क्योंकि ये बहुत ही मजबूत बनाए गए थे और अभी भी अच्छी स्थिति मे थे। लेकिन इनके इतनी अच्छी स्थिति मे होने की एक और बड़ी वजह थी, इनका आवरण जो पूर्णतया चुंबकीय क्षेत्र प्रतिरोधी था। इनकी रचना के कारण ही इनके भीतर इतने लंबे समय के बाद भी कोई पेढ या पौधे नहीं उगे थे। जंगली जानवर भी इनके भीतर नहीं जाते थे। ये धरातल से बहुत ऊंचाई पर बने थे। और अब ये बिलकुल भी उपयोग नहीं हो रहे थे, खास तौर से दक्षिण भारत की दिशा में जाने वाले।

दक्षिण भारत का सम्पूर्ण भाग, पूरा दक्कन का पठार अब एक निर्जन और खतरनाक भोगोलिक क्षेत्र था। वैज्ञानिक मानते रहे थे कि हिमालय टेक्टोनिक प्लेटें भारत मे सबसे ज़्यादा अस्थिर हैं।

परंतु इस महामारी के साथ ही दक्षिण भारत के बहुत ही कम सक्रिय पूर्वी धारवाड़ क्रटोन और दक्षिण धारवाड़ क्रटोन बहुत ही अधिक सक्रिय हो गए थे। जिस कारण से दक्कन पठार टूटकर भारत से अलग हो रहा था। वैज्ञानिको का मानना था कि भारत का दक्षिणी हिस्सा, या कहें भारत के मध्य से टूटकर एक अलग हिस्सा बेहद तेज़ी से हिन्द महासागर की तरफ खिसक रहा है। इस गतिविधि के कारण श्रीलंका आधे से अधिक जलमग्न हो गया था।

लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से उत्तर सेंटीनल और अंडमान द्वीप समूह का भू क्षेत्र बढ़ गया था। मरस्रा के सेंटीनल सैन्य अभियान के बाद से उत्तर सेंटीनल द्वीप एक दम निर्जन हो गया था। उस पर कोई वनस्पति या जीवन के चिन्ह शेष नहीं बचे थे। ये द्वीप एक पथरीला ज़मीन का टुकड़ा बन गया था।  आश्चर्यजनक तरीके से इस हिस्से में कोई शैवाल तक भी उगा नहीं दिखाई देता था। जिस कारण से सेंटीनल द्वीप का सर्विलान्स बिकुल भी नहीं किया जा रहा था।

दक्षिण भारत की भूगर्भीय हलचल के कारण गुजरात और मध्य प्रदेश के दक्षिणी छोर से होती हुई छत्तीसगढ़, झारखंड और बंगाल को दो हिस्सो मे बाटती हुई एक गहरी खाई बन गयी थी, जिसे "दक्कन घाटी" का नाम दिया गया था। इस दक्षिण भारतीय भूगर्भीय हलचल को "दक्कन टेक्टोनिक गतिविधि" कहा जाता था। दक्कन घाटी समय के साथ गहरी और चोड़ी होती जा रही थी।

बांग्लादेश और बाकी बचे बंगाल का हिस्सा अब पूरी तरह डेल्टा क्षेत्र बन चुका था। और इस कारण पूर्वी भारत मे अब मानव की कोई पहुँच नहीं थी। पूर्वी भारत का क्षेत्र अब एक सुंदर वनक्षेत्र मे परिवर्तित हो चुका था और प्रकृति के द्वारा निर्मित एक सुंदर वन अभ्यारण्य बन गया था।

विश्व के कई देश अब नक्से पर दिखाई ही नहीं देते थे। तिब्बत अब पूरी तरह बर्बाद हो गया था। 

रूस से लेकर मंगोलिया और चीन का बड़ा क्षेत्र एक निर्जन मरुस्थल मे परिवर्तित हो चुका था। अरब का मरुस्थल अब अत्यंत भयानक हो गया था।

अमेरिका मे बड़ा मरुस्थलीय क्षेत्र बन गया था। और अमेज़ोन क्षेत्र का बड़ा हिस्सा दलदलीय जंगल मे बादल गया था। आधा यूरोप जलमग्न था।

रिफ़्ट वैलि के कारण एथोपियन-केन्यन क्षेत्र टूटकर अफ्रीका से अलग एक द्वीप बन गया था और एक प्राकृतिक वन अभ्यारण्य बन गया था।  कोंगों बेसिन अब एक बड़ा घास का मैदान था जिन जनवरों के लिए अनुकूल था उनका आश्रय स्थल बन गया था।

आस्ट्रेलिया का जो थोड़ा बहुत हरा-भरा क्षेत्र था वो भी अब मरुस्थल मे बदल चुका था। मानव के रहने लायक क्षेत्र अमेरिका, अफ्रीका और उत्तर भारत मे ही थे। जिस कारण सभी कलश इन स्थानो पर ही स्थापित थे। कुछ कलश जो यूरोप, रूस, चीन और आस्ट्रेलिया मे स्थापित थे, अब वहाँ रह रहे नागरिकों को अमेरिका, अफ्रीका और भारत के कलशो मे स्थानांतरित किया जा रहा था। क्योंकि वो जगहें अब अधिक अनुकूल नहीं रह गईं थी।

आश्चर्यजनक रूप से दक्षिण भारत की इतनी बड़ी दक्कन टेक्टोनिक गतिविधि के कारण भी उत्तर भारत अत्यंत स्थिर और अनुकूल था।

लेकिन ईन सब भूगर्भीय और प्रकृतिक हलचलों मे एक योजनाबद्ध व्यवस्था देखने को मिल रही थी। प्रकृति सम्पूर्ण भूभाग को पुनर्निर्मित कर रही थी। जैसे-जैसे मानव जनसंख्या कम हो रही थी तो उनके आश्रय स्थल जिन क्षेत्रों मे थे उन्हे प्रकृति बर्बाद करती जा रही थी। और प्रकृति ने मानव जनसंख्या कम करने की व्यवस्था भी बना दी थी।

आस्ट्रेलिया, अफ्रीका और अमेरिका से टूटकर कई भूभाग बड़े द्वीप के रूप मे अलग हो गए थे। और अलग होने के बाद वो एक सुंदर वनक्षेत्र बन गए थे और विभिन्न पशु-पक्षियों का आश्रय स्थल बन गए थे। 

मानव समाज इसे एक बर्बादी मान रहा था। लेकिन ये सब एक बेहद ही व्यवस्थित तरह से हो रहा था। प्रकृति अपनी रचना को पुनर्व्यवस्थित कर रही थी।  

कैलाश पर्वत के विषय मे सूर्या को अपने अन्वेषण मे एक अत्यंत ही असाधारण बात पता चली थी। कैलाश पर्वत के चारो तरफ का हिस्सा अत्यंत ही सुंदर वन क्षेत्र बन गया था जबकि बाकी तिब्बतऔर चीन जीवन विहीन लगता था। सूर्या ने इस वन क्षेत्र को कैलाश कलश का नाम दिया था। लेकिन इस कलश मे मानव नहीं था।

बल्कि आश्चर्यजनक तरीके से मरस्रा का इस वन क्षेत्र मे जाने का हर प्रयास असफल हुआ था। और हर अभियान मे गए लोग जीवित ही नहीं बचे थे। इस क्षेत्र का सबसे अधिक सर्विलान्स सूर्या ही कर पाया था। और सूर्या ने पाया था कि एक निश्चित समय पर जब इसके चारो तरफ का क्षेत्र भयंकर बर्फीले तूफानो से प्रभावित रहता था, उस समय पर कैलाश कलश से वन्य जीवों की गतिविधि अन्य वन क्षेत्रों की तरफ देखने को मिल रही थी। और ये सभी वो प्राणी थे जो भूतकाल मे मानवीय हस्तक्षेप के कारण विलुप्त हो गए थे।

तो क्या कैलाश पर्वत पर ही ईन विलुप्त प्रजातीयतों का पुनर्सृजन हो रहा था?

अर्थात कैलाश पर्वत वो क्षेत्र था जो मानव के द्वारा समाप्त कर दी गयी प्रजातियों को संरक्षित कर रहा था। और अब उन्हे पुन: सृजित कर रहा था। ये ही कारण था कि चंद्रमा और मंगल पर बस्तियाँ बसा चुका मानव कभी कैलाश पर नहीं जा पाया था। क्योंकि वो क्षेत्र प्रकृति ने इन विलुप्त हो चुके प्राणियों के लिए संरक्षित रखा था और ये क्षेत्र भगवान पशुपतिनाथ के संरक्षण मे था।  

 

नवा चरण - मंदार वलय 

सूर्या अपनी बैटरी बाइक से मैगलेव ट्रेन टनल से होकर जा हा था।

भारत मे कभी इसका ज़ाल हर बड़े शहर को जोड़ता था। पुराने रेल मार्ग और बुलेट ट्रेन की जगह इस तकनीक ने ले ली थी। ये एक सुरंग होती थी जिसमे चुंबकीय क्षेत्र पैदा करके लंबी मैगलेव ट्रेन को चलाया जाता था। चुंबकीय क्षेत्र के कारण ट्रेन हवा मे तैरती हुई लगभग शून्य घर्षण वाले वातावरण मे चलती थी।

ये धरातल से ऊपर उठा कर बानई गयी मजबूत सुरंगो की रचना थी जो अब बिलकुल भी उपयोग मे नहीं थी। इस पूरे ट्रैक पर फोटोसिंथेटिक पावर जैनरेटर लगे हुए थे। जो अब भी पूरी तरह से काम कर रहे थे। ये सोलर पावर जैनरेटर से भिन्न थे और फोटोन की समस्त ऊर्जा को विद्युत प्रवाह मे परिवर्तित कर देते थे। इनके कारण अभी भी इन सुरंगो मे रोशनी थी, और इनमे वायु प्रवाह भी समुचित था। सूर्या को जगह-जगह पर बने स्टेसनों पर अपनी आवश्यकता की वस्तुएं भी उपलब्ध हो जाती थी और उसकी बाइक भी चार्ज हो जाती थी।अब ये स्टेसन सुनसान थे लेकिन इनके भंडार गृह आज भी भरे पड़े थे।

विश्व की जनसंख्या बढ्ने के साथ मानव समाज ने अपनी उत्तपादन क्षमताओ को बेतहासा बढ़ा लिया था। लेकिन जैसे ही ये जनसंख्या इस महामारी से कम होनी प्रारम्भ हुई तो मानव द्वारा निर्मित ये व्यवस्थाएं बहुत अधिक दिखाई देने लगी। आज ऐसी कितनी ही रचनाए यूं ही बेकार पड़ी थीं। शहर समाप्त हो गए थे।   

सूर्या को एक लंबी यात्रा करनी थी, लेकिन उसे इसके लिए एक लंबा सुरक्षित मार्ग मिल गया था। जिसमे वो अपनी अधिकतम गति से यात्रा कर रहा था।

 सूर्या यात्रा करते हुए दक्कन घाटी तक आ गया था। लेकिन उसके अनुमान के विपरीत उसकी पहली बाधा दक्कन घाटी अत्यंत भयानक स्वरूप ले चुकी थी। अब ये घाटी बहुत ज़्यादा गहरी और लगभग 500 मीटर से भी अधिक चौड़ाई वाली एक घाटी बन चुकी थी। कहीं-कहीं तो ये 1 किलोमीटर तक चौड़ी हो गयी थी। इस तरह एक नया और बड़ा द्वीप "दक्षिण भारत" लगभग बनने को तैयार हो रहा था।

लेकिन अब सूर्या के सामने बड़ी समस्या ये थी कि उसे अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए इस घाटी को पार करना था। सूर्या इस समय रांची, झारखंड के आस-पास कहीं था। सूर्या दिल्ली-भुभनेश्वर मैगलेव ट्रेन ट्रैक से भुभनेश्वर पहुँचना चाह रहा था। लेकिन ये बाधा बहुत बड़ी थी। पुरी सुरंग और बाकी मानवीय रचनाएँ पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी। एक हजारो मीटर और आधा किलोमीटर गहरी खाई “दक्कन घाटी” उसके सामने थी।

इस घाटी के कारण भारत का ऋतु चक्र और धरातल भी पूरी तरह बादल गया था।

दक्कन घाटी से आगे लगभग 500 किलोमीटर लंबा एक निर्जन मरुस्थल बन गया था। क्योंकि उत्तर भारत से जाने वाली सभी नदियों का प्रवाह इस दक्कन घाटी में समाकर अवरुद्ध हो गया था। दक्कन घाटी से उठने वाले ज्वालामुखीय बवंडर ने एक दीवार का काम किया था। वो मानसूनी हवाओ को उत्तर भारत तो क्या इस मरुस्थल बने क्षेत्र तक भी आने से पहले ही सूखा देते थे। जिस कारण इस क्षेत्र मे वर्षा अब होती ही नहीं थी।

हिंदमहासागर से आने वाली मानसूनी हवाएँ बाकी बचे दक्षिण भारत के टुकड़े मे बरस जाती  थीं। जिस कारण वो क्षेत्र अत्यंत घने वन मे परिवर्तित हो गया था, लेकिन दक्कन घाटी से आगे का क्षेत्र पूरी तरह मरुस्थल बन चुका था। 

दक्कन घाटी से समय-समय पर ज्वालामुखीय बवंडर उठकर उत्तर भारत के कलशो तक भी पहुँच जाते थे। लेकिन उनको छोड़कर जाने का अभी कोई विकल्प नहीं था मानव समाज के पास। वैसे भी वो अभी कोई बड़ा ख़तरा नहीं बन रहे थे। बल्कि इन ज्वालामुखीय धूल के गुबारों ने उत्तर भारत को अत्यंत उपजाऊ बना दिया था। क्योंकि इनके साथ खनिजीय धूल उत्तर भारत के धरातल पर बरस रही थी। और खास बात ये कि अरब की खाड़ी और बंगाल की घाटी से नयी मानसुनी हवाओ ने अपना रुख उत्तर भारत की तरफ कर लिया था और वो हिमालय से टकरा कर बरसती थीं।   

सूर्या अपने सामने इस गहरी दक्कन घाटी को देखकर थोड़ा हताश होकर एक कोने मे बैठ गया। लेकिन सूर्या के पास एक अन्य योजना पहले से थी क्योंकि इसका उसे पहले से अनुमान था कि दक्कन घाटी उसके मार्ग में अवरोध पैदा करेगी। परन्तु उस योजना में ख़तरा भी था और समय भी अधिक लगने वाला था। 

सूर्या की नयी योजना में वो मंदार वलय पर बने मंदार प्रोजेक्ट क उपयोग करने वाला था। 

सूर्या मंदार प्रोजेक्ट के बारे मे बहुत सी जानकारी रखता था। मंदार पर्वत जिसके विषय में सनातन धार्मिक मान्यता थी कि सागर मंथन के समय मथनी के रूप मे मंदार पर्वत का उपयोग हुआ था। ये झारखंड क्षेत्र मे ही स्थित था, वो स्थान जो वैज्ञानिक मान्यताओ के अनुसार विराट सागर से उभरने वाला पहला धरतलीय स्थल था।

मंदार पर्वत की रचना का रहस्य बहुत बाद मे वैज्ञानिको को पता चला बल्कि पूर्ण रूप से तो पता चल ही नहीं पाया। मंदार पर्वत पृथ्वी के धरातल में सबसे गहराई तक जाने वाली ठोस रचना थी। जिसकी मृदा संरचना भी विलक्षण थी, और उससे भी विलक्षण था मंदार वलय।

मंदार वलय धरती के 4 किलोमीटर गहराई मे एक अत्यंत मजबूत वृत्ताकार रचना थी जो लगभग 400 किलोमीटर व्यास का था। मंदार वलय लगभग 100 मीटर व्यास वाली एक गोलाकार पिण्डिय रचना थी जो अरब सागर, पूर्वी भारत और मध्य भारत में एक वृताकार रचना से फैली हुई थी। जैसे कोई विशाल सर्प कुंडली मारकर बैठा हो। इसकी परिधि के एक बिन्दु पर मंदार पर्वत था। इसकी रसायनिक रचना अत्यंत जटिल थी, जिसे वैज्ञानिक समझ ही नहीं पाये थे। इसमे कई तत्व एसे थे जो इसकी रचना को विलक्षण बनाते थे और जिनसे वैज्ञानिक अनभिज्ञ ही थे। 

ये मंदार वलय वैज्ञानिको के लिए खास बन गया था उनके "एंटि एनर्जी सिंथेसिस प्रोजेक्ट" के लिए। क्योंकि मात्र ये एक रचना ऐसी थी जहाँ वैज्ञानिको के अनुसार ये संभव था। "एंटी एनर्जी", जिसने तब तक की समस्त वैज्ञानिक मान्यताओ को बदल दिया था।

 

दसवां चरण - एंटी एनर्जी

मानव समाज की आवश्यकतायें और प्राथमिकतायें समय के साथ बदली थीं। इस महामारी से बहुत पहले ही प्रकृतिक ऊर्जा संसाधन अपर्याप्त हो चुके थे। मानव को तीव्र गति से यात्रा करनी थी, वो भी पृथ्वी पर नहीं बल्कि अन्तरिक्ष के रहस्यमय कोनो तक।

मानव समाज असीमित ऊर्जा उत्पन्न करने के नए मार्ग ख़ोज रहा था और ये असीमित ऊर्जा ही भविष्य के विध्वंसक प्रक्षेपास्त्रों को बनाने वाली थी। “पार्टीकिल टोटल डिफ्यूजन टू फ़ाइनेल्टी-PTDF” तकनीक से मानव पदार्थ को पूरी तरह ऊर्जा मे परिवर्तित कर लेने की क्षमता प्राप्त कर चुका था। लेकिन इतने भर से मानव की आवश्यकता या कहें महत्वाकांक्षा पूर्ण नहीं हो रही थी। इससे आगे भी कुछ हो सकता है क्या?

ऊर्जा के नए श्रोत की ख़ोज मे मानव समाज का सबसे अधिक ध्यान था “एंटि मैटर” की ख़ोज पर। क्योंकि मानव की सोच थी कि ये ही असीमित और तीव्र ऊर्जा का श्रोत हो सकता है। लेकिन एक नए विचार “एंटी-एनर्जी” ने सब कुछ बदल दिया था।

वैज्ञानिको का एक दल जो "काशी शोध संस्थान" नाम का एक अनुसंधान केंद्र चला रहा था। उस दल की प्रमुख एक जर्मन महिला वैज्ञानिक “ओटली स्क्राइबर” थी। ये दल काशी मे रहकर ही "डॉ सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय" की पुरातन संस्कृत पाण्डुलिपियों का अध्ययन कर रहा था।

ओटली ने ही एंटी एनर्जी का विचार दिया था। वैज्ञानिक सोचते थे कि ब्रह्मांड का निर्माण बिगबैन नाम के धमाके से हुआ है। जिसमे एक कण मे विस्फोट हुआ और उससे समस्त पदार्थ, ऊर्जा, प्रति पदार्थ, डार्क एनर्जी और अन्तरिक्ष के अन्य हिस्सो का निर्माण हुआ। और अब अन्तरिक्ष का अस्तित्व यूं ही बना रहेगा अनंतकाल तक...

ओटली उस सनातन विचार को मान्यता देती थी जिसके अनुसार कल्प समाप्त होते हैं और नए कल्प प्रारम्भ होते हैं और एक समय पर सम्पूर्ण सृष्टि और अन्तरिक्ष एक कण मे समा कर मात्र शून्य बचता है, अर्थात कुछ भी नहीं बचता। और निश्चित समय के पश्चात पुन: एक महा विस्फोट होता है और अन्तरिक्ष का निर्माण होता है।

ओटली के अनुसार एंटीएनर्जी वो तत्व या शक्ति है जो एनर्जी और पदार्थ को शून्य मे परिवर्तित कर देता है। एंटी एनर्जी एक एसा तत्व या शक्ति जो असीमित ऊर्जा को शून्य कर दे, जो समस्त पदार्थ को उसके द्रव्यमान के साथ शून्य कर दे। कुछ ना बचे ना कोई विकिरण और ना कोई द्रव्यमान और ना ही कोई आकर्षण या प्रतिकर्षण बल या अन्य कुछ भी। एक ऐसा माध्यम जहाँ कुछ ना हो समय, प्रकाश और अंधकार भी नहीं और ना ही तापमान। क्योंकि कोई ऊर्जा वहाँ नहीं बचती है, तो वहाँ ना ऊष्मा होगी और ना ही शीतलता... शून्य अर्थात शून्य। 

एंटी एनर्जी ही पदार्थ को एंटी मैटर मे भी बदल सकती है। और पुन: उसे मैटर मे भी बदल सकती है। ओटली के दल ने लार्ज हैड्रोन कोलाइडर मे एंटी एनर्जी को बनाने के लिए कई प्रयोग किए लेकिन वो लगातार असफल रहे।

एक अंतिम प्रयोग के समय पर पूरा “लार्ज हैड्रोन कोलाइडर” तबाह हो गया। फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड के कई शहर भी तबाह हो गए थे। एक बड़ा... बहुत ही बड़ा गड्ढा वहाँ बन गया था। इस तबाही की खास बात ये थी कि इसमे ना ही तो कोई विस्फोट हुआ ना ही कोई आवाज़ हुई और ना ही किसी तरह का कोई कंपन या रोशनी हुई। एक क्षण मे सब समाप्त और विलुप्त हो गया। वहाँ कुछ भी अवशेष के नाम पर नहीं बचा था, या शायद बस एक ही चीज़ बची थी कहीं-कहीं। 

ओटली भी इस हादसे का शिकार हो गयी थी। ओटली के सहकर्मी और प्रेमी भारतीय वैज्ञानिक पलाश ने दुर्घटना की जाँच की तो पाया।
यहाँ जो हुआ वो एंटीएनर्जी के कारण हुआ। अर्थात एंटीएनर्जी बनी थी लेकिन उसे स्मभाल पाने की क्षमता तब के सर्वश्रेष्ट लार्ज हैड्रोन कोलाइडर मे नहीं थी। वहाँ जो एंटीएनर्जी बनी वो बहुत नगण्य मात्रा मे थी। परंतु उसने भी इतना सब एकदम से समाप्त कर दिया वो भी एक ख़ामोशी के साथ। वहाँ कोई विकिरण भी नहीं था।

परंतु पहली बार वहाँ एंटीमैटर प्राप्त हो गया था। जो शायद एंटीएनर्जी की नगण्य मात्रा के कारण बच गया था। ओटली ने वो कर दिखाया था जो आज तक नहीं हुआ था।

पलाश के दल को अब एक ऐसा माध्यम बनाना था जहाँ एंटीएनर्जी को बनाया जा सके और कोई हानी ना हो। एंटीमैटर और एंटीएनर्जी ही ऊर्जा को पदार्थ मे बदलने की क्षमता भी रखते थे। एंटीएनर्जी पर नियंत्रण मानव को वो शक्ति दे देने वाला था जिससे वो किसी भी आकाश गंगा को एक क्षण मे शून्य मे परिवर्तित करके पुन: महाविस्फोट करवा सकता था। इसके समक्ष कोई भी भीषण से भीषण प्रक्षेपास्त्र भी बेकार था। क्योंकि एंटीएनर्जी हर तत्व और ऊर्जा को यहाँ तक की संवेदनाएं, समय और प्रकाश को भी शून्य मे परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। और इससे ही एंटीमैटर भी प्राप्त होता है जो असीमित ऊर्जा का श्रोत है।

पलाश के दल ने गहन अन्वेषण किया परंतु वो ये नहीं समझ पा रहे थे कि वो कौन सी जगह हो सकती है जहाँ ये प्रयोग किया जा सके। पलाश ने पुन: ओटली के शोध और पुरातन सनातन पाण्डुलिपियों का अध्ययन प्रारम्भ किया।

ओटली ने अपने शोध पत्रों में मंदार वलय और मंदार पर्वत का वर्णन किया था। एक भूतल ड्रिलिंग प्रोजेक्ट के दौरान वैज्ञानिको को मंदार वलय और मंदार पर्वत की असीमित गहराई का ज्ञान हुआ। वैज्ञानिको ने पाया कि कोई भी विस्फोटक इस मंदार वलय या मंदार पर्वत की तली पर बेअसर था।

उस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी दस्तावेजो को देखने के बाद पलाश ने जो शोध विश्व के सामने रखा वो बहुत ही असाधारण था। मंदार वलय के रूप मे मानव की खोज पूरी हो रही थी। ये वो माध्यम हो सकता था जहाँ एंटीएनर्जी का शोधन किया जा सकता था।   

 

ग्यारहवां चरण - सागर मंथन

ओटली के दल ने अपने अन्वेषण मे पाया था कि मंदार वलय की रचना बहुत ही जटिल है, जिसे वो समझ ही नहीं पाये थे।

ये एक इस प्रकार का माध्यम है जो हर प्रकार की ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है। और उसके स्वरूप को परिवर्तित कर देने की क्षमता रखता है।

ओटली इसका विस्तृत विश्लेषण करना चाहती थी, लेकिन सरकार से उसे अनुमति नहीं मिली।
क्योंकि तब सरकार की उत्सुकता इसकी रसायनिक रचना को जानने और उन रहस्यमयी तत्वो को प्राप्त करने में थी जिनके कारण इसकी रचना इतनी शक्तिशाली थी। सरकार को तब ओटली के एंटीएनर्जी के विचार पर ही विश्वास नहीं था।

परंतु “लार्ज हैड्रोन कोलाइडर” दुर्घटना स्थल पर मिले एंटीमैटर की अल्प मात्रा ने भी ओटली के अनुसंधान को महत्वपूर्ण बना दिया था।
जिस कारण पलाश के दल को मंदार वलय पर अनुसंधान की अनुमती मिल गयी। पलाश और उसके साथी वैज्ञानिको ने मंदार वलय का गहनता से अन्वेषण किया। उन्हे प्राप्त जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण और सनसनीखेज थी।

मंदार वलय के पुरातन ऊर्जा चिन्हो से पता चल रहा था कि ये कोई प्रकृतिक रचना नहीं बल्कि मंदार पर्वत और मंदार वलय एंटीएनर्जी सिन्थेसाइजर या उससे भी कुछ अधिक है।

इस रचना का उपयोग कभी बड़े स्तर पर हुआ है। इसका उपयोग कुछ खास और नए पदार्थो को प्राप्त करने के लिए  ऊर्जा से परिवर्तित करके उन्हे बनाने के लिए किया गया है।

ये एक ऐसा संयंत्र है जहाँ पदार्थ को शून्य मे परिवर्तित करके बिगबैन जैसी प्रक्रिया को नियंत्रित तरह से किया गया होगा। और ये कुछ नए और खास पदार्थ प्राप्त करने के लिए किया गया होगा।
शायद उस घटना को ही सनातन पौराणिक इतिहास मे "सागर मंथन" का नाम दिया गया हो।

ये एक बेहद ही जटिल संयंत्र है जहाँ पदार्थ को शून्य मे, पदार्थ या ऊर्जा को एंटीएनर्जी या एंटी मैटर मे, ऊर्जा को पदार्थ मे और एंटी मैटर को मैटर मे परिवर्तित किया जा सकता था। पलाश को विश्वास था कि ये संयंत्र आज भी पूरी तरह से सुचारु रूप से कार्य कर सकता है, परंतु इसे कैसे चलाना है ये उन्हे समझना शेष था।

यदि किसी भी अन्य मानव निर्मित संयंत्र मे एंटीएनर्जी सिंथेसिस की प्रक्रिया की जाएगी तो वो उसे नहीं संभाल पाएगा। क्योंकि मंदार वलय की रसायनिक और भौतिक रचना अत्यंत विलक्ष्ण थी। जिस कारण वो एंटीएनर्जी से शून्य मे परिवर्तित नहीं होती थी।

लेकिन पलाश का दल कभी भी मंदार वलय को प्रारम्भ करने की प्रक्रिया नहीं खोज पाये। बाद मे ये महामारी प्रारम्भ हो गयी और सभी सरकारो और अन्य संस्थानो की इस प्रयोग मे कोई उत्सुकता नहीं रही। बिना वित्तीय सहता के ये प्रोजेक्ट बंद हो गया।

... 

एंटी एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए मंदार वलय पर पूरी परिधि मे एक अलग बड़ी टनल का निर्माण किया गया था। जिसके द्वारा पूरे मंदार वलय पर आवागमन किया जा सकता था।

सूर्या को पूरा विश्वास था कि अपनी रचना के कारण मंदार वलय अभी भी सही सलामत होगा और उस पर बनी सुरंग मे लगी मैगलेव मुविंग कैपस्यूल की सहायता से वो भूभ्नेश्वर पहुँच जाएगा। समस्या बस एक थी कि ये मार्ग उसके लिए लंबा रहने वाला था। क्योंकि सुरक्षा कारणों से मैगलेव ट्रेन का एक ही ट्रैक था जो मंदार पर्वत पर मंदार वलय से जुड़ता था। भूभ्नेश्वर मे मंदार वलय से निकल कर भूभ्नेश्वर पोर्ट तक उसे अत्यंत जटिल मरुस्थल को पार करना था। ये वैसे तो छोटा सा ही रास्ता था लेकिन वहाँ सूर्या को एकदम असुरक्षित वातावरण मे यात्रा करनी थी।

सूर्या मंदार पर्वत से एलिवेटर के द्वारा 5 कीलिमीटर गहराई मे मंदार वलय तक पहुँचा। मंदार पर्वत की आधार रचना और मंदार वलय एकदम स्पष्ट और प्रथक दिखाई देने वाली भूगोलीय रचनाएँ थी। सूर्या पहले भी इस स्थान पर आ चुका था। यहाँ पर उसे बहुत ही अलग अनुभव प्राप्त होता था। एक ऐसा संयंत्र जहाँ नए ब्रह्मांड की रचना भी संभव थी, और जिसके द्वारा ब्रह्मांड को नष्ट भी किया जा सकता था। परंतु इस संयंत्र को चलाना कैसे था? ये रहस्य ही रहा।

सूर्या मंदार वलय मे मैगलेव कैपस्यूल मे यात्रा करते हुए बाहर मंदार वलय को ही देख रहा था। सूर्या के मस्तिष्क मे विचार आया “वो रचना जो एंटीएनर्जी के प्रभाव से बेअसर रहती है। इसे एंटीएनर्जी शून्य मे परिवर्तित नहीं कर पाती। तो सनातन ग्रंथो के अनुसार जब समस्त अन्तरिक्ष शून्य मे परिवर्तित हो जाता है तब ये रचना भी शून्य मे ही खो जाती होगी, लेकिन कैसे?”

फिर सूर्या के मस्तिष्क मे एक प्रश्न आया “क्या एंटीएनर्जी के अतिरिक्त कुछ और भी है जो उससे भी अधिक शक्तिशाली है? ये सृष्टि कितनी रहस्यमयी है? सृष्टि के रहस्यों की जितनी भी परते मानव ने खोली हैं, हर परत के बाद ये सृष्टि और भी अधिक रहस्यमयी होती गयी”

सूर्या भूभ्नेश्वर पहुँचने ही वाला था।

 

बारहवां चरण - सेंटिनेल 

सूर्या भूभ्नेश्वर आ गया था, रात होने को थी।

रात भर वो मंदार वलय फेसिलिटी मे ही रुका। अगले दिन प्रात: ही सूर्या वहाँ से पोर्ट पर गया। पोर्ट पर उसको पता था कि उसकी ज़रूरत का सामान कहाँ-कहाँ मिल सकता है। हर बड़ा-छोटा शहर आम जरूरतों के सामानो से भरा हुआ सुनसान पड़ा था। क्योंकि उस सामान को उपयोग करने के लिए कोई अब इन शहरो मे बचा ही नहीं था। अपने साथ वो हर आवश्यक सामग्री लेकर एक मोटर बोट के द्वारा उत्तर सेंटीनेल द्वीप की अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ा।  

सागर अभी शांत था, चारो तरफ पक्षी उड़ रहे थे। सागर मे मछलियाँ अठखेलियाँ कर रहीं थी। सूरज उसके सर पर चढ़ने को तैयार था और और उसकी किरणें तीक्ष्ण थी। लेकिन सागर से उठकर आने वाली हवा के झोंके ठंडक लिए थे। इस हवा मे नमी भी काफी थी।

सूर्या पुरानी यादों मे खो गया।

"सेंटीनेल के सभी लोगो को मरस्रा ने मृत मान लिया था। लेकिन जेल से रिहा होने के बाद जब सूर्या सेंटीनेल गया तो पूरा द्वीप निर्जन था। सेंटीनेल द्वीप जो कभी हर-भरा था अब बंजर धरती मे बदलता जा रहा था। कहीं-कहीं पुराने वृक्ष थे और उसकी कभी की प्राकृतिक सुंदरता का आभास करवा रहे थे। जगह-जगह अभी भी मृत लोगो के कंकाल पड़े हुए थे।

घूमते हुए उसे एक कंकाल पर कुछ पत्ते और फूल मिले, जैसे कोई संस्कार किया गया हो। फिर सूर्या ने उस जगह एक कैमरा छुपाया जो किसी भी वायरलेस डिवाइस से कनेक्ट ना हो सके। जेल से आने के बाद से सूर्या 1980 से 2010 तक उपयोग की गयी तकनीक का ऊपयोग कर रहा था। क्योंकि इसे ट्रैक करना लगभग नामुमकिन था।

सूर्या ने बाद मे उस कैमरे को लेने के लिए गया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि वो कैमरा किसी ने भाले जैसी किसी नौकदार चीज़ से तोड़ दिया था। सूर्या ने उस कैमरे को लाकर उसमे से वीडियो रिकवर की तो उसे अंतिम हिस्सा ही प्राप्त हुआ। जिसमे उसे कुछ पैर दिखाई दे रहे थे। फिर एक बर्छी तेजी से आकर कैमरे को तोड़ देती है।"

सूर्या एक चेतावनी ध्वनि से झटके से यादों से वापस आया, वो सेंटीनेल द्वीप के किनारे आ चुका था। उसकी नाव का ऑफलाइन नेविगेसन सिस्टम उसे आगे निकट ही बड़ा अवरोध होने की चेतावनी देने की ध्वनि दे रहा था।

किनारे पर नाव लगाकर वो द्वीप पर गया। द्वीप अब पूरी तरह पथरीली और बंजर ज़मीन मे बदल चुका था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सेंटीनेल कबीले के समूहिक हत्याकांड से व्यथित होकर इस द्वीप के हर पेड़-पोधे और जीव-जन्तु ने भी आत्महत्या कर ली हो। सेंटीनेल कबीले के लोगो की हत्याओं के बास ये द्वीप भी प्राणहीन हो गया था। सूर्या को अब वहाँ जीवन का कोई भी चिन्ह दिखाई नहीं दे रहा था।

सूर्या उस जगह का अत्यंत गहनता से निरक्षण करने लगा। सूर्या ने इसके लिए अपने उपकरणों का उपयोग किया। लेकिन उस जगह पर जीवन का कोई चिन्ह मौजूद नहीं था। आश्चर्यजनक रूप से इस द्वीप के तट के निकट कोई दो से तीन किलोमीटर की परिधि मे सागर के जल मे उसे मछलियाँ भी नहीं दिखाई दी थी। इस धरातल पर कोई शैवाल या फंगस भी उसे दिखाई नहीं दे रहा था। किट-पतंगा या पक्षी तो दूर की बात है।

जीवन के नाम पर एक भिन्न प्रकार झाड़ीनुमा वनस्पति इस द्वीप के किनारो पर सघनता से उगी हुई थी। जो लगभग एक से दो मीटर ऊंची थी। सूर्या इस घास से दूरी बनाते हुए द्वीप मे घुसा था। क्योंकि इस झाड़ी के फूलो और टहनियों पर उसने बहुत से किट-पतंगो को मृत चिपके पाया था। जो आभास करवा रहे थे कि ये झाड़ी जहरीली हैं।

ये झाड़ियाँ द्वीप को कुछ इस तरह से घेरे हुए थी जैसे कि किट-पतंगो को रोकने के लिए एक व्यवस्थित बाड़बंदी की गयी हो। सूर्या को इस द्वीप पर घूमते हुए पूरा दिन बीत गया। परंतु उसे जीवन का एक भी चिन्ह यहाँ दिखाई नहीं दिया।

सूर्या ने कई बार अंडमान के बाकी द्वीपों को भी अपनी दूरबीन से देखा। खास बात ये थी कि वो द्वीप अब पहले से भी अधिक हरे-भरे हो गए थे। सूर्या के पास अत्यंत उन्नत दूरबीन थी। जो उसे उन द्वीपो का खास नज़ारा दिखा रही थी।

उन द्वीपों के चारो तरफ भी एक काँटेदार झाड़ी की बाड़ उसे दिखाई दे रही थी। जो तीन मीटर से भी अधिक ऊंची थी। इन्हे झाड़ी कहना गलत होगा लेकिन वो एक दूसरे से गूँथी हुई थी। और उस बाड़ पर सूर्या को पक्षियों के बहुत से कंकाल फसे दिखाई दिये थे।

सूर्या ने अपने टैबलेट मे उन झाड़ियों और पेड़ों के फोटो डालकर गहनता से अध्ययन किया परंतु आज तक की किसी भी ज्ञात वनस्पति से इनका कोई मिलान नहीं हो पा रहा था। महामारी के इस दौर मे प्राणियों और वनस्पति की बहुत सी नयी प्रजातियाँ देखने को मिल रहीं थी। ये भी एसी ही कोई नयी प्रजाति थी।

सूर्या को सेंटीनेल द्वीप पर जीवन के या सेंटीनेल कबीले के कोई चिन्ह दिखाई नहीं दिये। लेकिन ये नयी व्यवस्था उसे कुछ अलग होने का एहसास करवा रहीं थी। फिर उसने देखा रात घिर रही है। वो यूं ही बस अपनी नाव कि तरफ चल दिया।

रात होने के साथ इस द्वीप पर सागर का जल स्तर बढ़कर उन झाड़ियों को पार करके सब जगह फैलने लगा था। सूर्या को उत्सुकता हुई और वह नाव से निकल कर द्वीप पर फैले पानी का निरीक्षण करने लगा। इस पानी का रंग कुछ भिन्न था। ये हल्की चमक छोड़ रहा था। और पानी के रंग मे ये परिवर्तन उन झाड़ियों के सपर्क मे आने से हो रहा था। ये ही परिवारतान तट के निकट सागर के पानी मे भी दिखाई देने लगा था। उसने आगे बढ़कर एक परखनाली मे थोड़ा सा पानी भरा। इस दौरान ही पानी ने उसकी एक उंगली को बहुत ही हल्का सा गीला कर दिया, लेकिन सूर्या ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

सूर्या ने जल रोधी जूते पहने हुए थे। सूर्या नाव पर जब चढ़ने लगा तो उसने देखा कि उसकी जो उंगली गीली हुई थी वो गल चुकी है। सूर्या को कोई पीड़ा या एहसास नहीं हुआ और उसकी उंगली की हड्डी तक गल गयी। वो भी एक बूंद से भी बहुत ही कम पानी से जो हल्के से उसकी उंगली को छु भर गया था।

सूर्या घबरा गया। और नाव पर जाते ही उसने सावधानी से अपने गीले जूते और कपड़े उतारे। इस पानी का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। सूर्या ने देखा उसकी उंगली आगे भी सुन्न थी। सूर्या को कुछ नहीं सुझा तो उसने तुरंत चाकू से अपनी पूरी उंगली काट दी। उसे बहुत ही हल्का सा दर्द हुआ था। उस पानी के एक स्पर्श ने उसकी उंगली को आगे तक संक्रमित कर दिया था।

सूर्या समझ गया था कि सेंटीनेल द्वीप पर जीवन के चिन्ह क्यों नहीं हैं? सागर का पानी इस झाड़ी के संपर्क मे आते ही विषाक्त हो जाता है, और रात्रि मे पूरे द्वीप पर फैल कर इस द्वीप से जीवन के हर चिन्ह को मिटा देता है।

सूर्या को ये सब एक व्यवस्थित सुरक्षा चक्र की तरह लग रहा था। उत्तर अंडमान द्वीप पर भी एक ऐसी ही सुरक्षा दीवार बन चुकी थी। लेकिन वो इससे भी ऊंची थी।

 

तेरहवां चरण - शून्य

तबाह हो चुके यूरोप में एक घुमंतू युगल “लार्ज हैड्रोन कोलाइडर खड्ड" पर घूम रहा है। ये एक मशहूर पति-पत्नी की जोड़ी है, जो महामारी के दौर में भी एकदम निश्चिंत होकर दुनिया भर मे बर्बाद हो चुकी मानव सभ्यता को देखते हुए और सोसल मिडया के द्वारा बचे हुए मानव समाज को दिखाने के अपने काम मे मस्त है। हालाँकि “लार्ज हैड्रोन कोलाइडर” दुर्घटना स्थल एक प्रतिबंधित क्षेत्र है लेकिन मरस्रा को इस सब की फुर्सत ही नहीं है।

ये दोनों ही लगभग 60 वर्ष आयु के हैं, लेकिन प्रकृति के निकट ही एक मुश्किल जीवन जी रहें हैं। इस कारण ही आज भी काफी युवा दिखते हैं। महिला का शरीर बलिष्ठ है और उसके सर के बाल गहरे काले और घुँघराले हैं, महिला की आँखें बड़ी और रंग गहरा साँवला है। ये महिला अफ्रीकन मूल की है और बहुत ही सुंदर भी है। पुरुष भारतीय मूल का अमेरिकन है, जिसका रंग गोरा है, ये लंबा और बलिष्ठ शरीर का है। पुरुष के चेहेरे पर कहीं-कहीं से सफ़ेद हो चुकी एक बेतरतीब लंबी दाढ़ी है।

जोड़ी मे से महिला कैमरा ऑन करके बोलना शुरू करती है।

“आज हम आपको दिखाएंगे 'लार्ज हैड्रोन कोलाइडर विस्फोट खड्ड, जो इस समय विश्व की सबसे रहस्यमय जगह है। सब कहते हैं कि ये ओटली प्रोजेक्ट मे तबाह हो गया और अब यहाँ आना जानलेवा हो सकता है, लेकिन हम आज अपने प्राणों को संकट मे डालकर आपको इस क्षेत्र को दिखाएंगे”

तभी कैमरे के सामने महिला का साथी पुरुष आता है और बोलना शुरू करता है “ओटली प्रोजेक्ट, एंटी मैटर और एंटी एनर्जी प्राप्त करने के लिए था, और कहा जाता है कि एंटी एनर्जी बन भी गयी थी लेकिन लार्ज हैड्रोन कोलाइडर उसको संभाल नहीं पाया और तबाह हो गया। हालांकि सरकार के अनुसार न्यूक्लियर बैटरियों मे अस्थिरता के कारण बड़ा विस्फोट हुआ। जबकि ये बात गले से नहीं उतरती। क्योंकि इस विस्फोट ने दो देशो के बड़े क्षेत्र और 80 लाख से अधिक लोगो को मार डाला था। वर्तमान वैश्विक महामारी के बाद हाल के दिनो मे ये भी एक बड़ी महामारी थी।इतना बड़ा विस्फोट कर सके इतना न्यूक्लियर ईंधन वहाँ था ही नहीं। कुछ लोगो का दावा है कि इस दुर्घटना के प्रभाव ने ही मानव समाज की प्रजनन क्षमता को समाप्त कर दिया और ये महामारी शुरू हुई। लेकिन लोग इस दावे का भी खंडन कर देते हैं, ये बात कहते हुए कि ये प्रभाव मानव के अलावा अन्य प्रजाति पर क्यों नहीं पड़ा?

तभी वो महिला बोलना शुरू करती है "कुछ बदलाव पिछले वर्षो में देखने को मिले हैं। इस विराट गड्ढे के केंद्र की कोई भी इमेज या अन्य कोई भी सिग्नल हमारे सेटेलाइट को नहीं मिल रहा है। जो इमेज आ रहीं हैं उनमे केंद्र एक धब्बे के रूप मे दिखाई दे रहा है। सेटेलाइट से भेजे गए न्यूट्रोन सिग्नल भी कहीं इस गड्ढे के केंद्र मे खो जा रहें हैं, इस गड्ढे के केंद्र मे कुछ बदलाव पिछले कुछ तीन वर्षो से हो रहें हैं और वो हमारी किसी भी तकनीक के पकड़ में नहीं आ रहें हैं। मरस्रा इस स्थिति मे नहीं है कि कोई जाँच दल यहाँ  भेज सके"

फिर वो पुरुष बोलता है "चर्चा है कि पिछले वर्ष मरस्रा ने एक हयूमोनोइड दल यहाँ भेजा था अन्वेषण के लिए, लेकिन वो यहाँ आकार खो गया। बैकअप रोबोट भी जब उनको तलाशने के लिए अंदर गया तो वो भी इस गड्ढे में कहाँ समा गया कुछ पता नहीं। और हर बार की तरह ये बात भी छुपा दी गयी "  

फिर वो पुरुष कैमरा चारो तरफ घुमाते हुए कहता है “देखिये सब तरफ कितनी हरियाली है”

और तभी उसे सामने एक बड़ा ढलान दिखाई देता हैं। जिसके आगे कुछ भी नहीं है, बस बंज़र समतल धरती। ये “लार्ज हैड्रोन कोलाइडर” मे हुए विस्फोट के कारण बने हुए गड्ढे की शुरुवात है।

ये दृश्य थोड़ा भयानक है, इसे देखकर पुरुष ने घबरा कर अपनी कार को तुरंत रोक दिया। पुरुष अब कैमरे मे उस दृश्य को कैद करने मे लगा है। फिर वो महिला की तरफ देखता है, महिला के चेहेरे से भय मिश्रित आश्चर्य स्पष्ट झलक रहा है।

पुरुष उससे कहता है “आगे चलना ठीक रहेगा क्या?”

महिला कुछ देर सोचती है फिर कहती है “पीछे भी क्या बचा है अब?”

पुरुष बुदबुदाते हुए बोलता है “विश्व मे तो मानव वैसे भी जल्दी ही समाप्त हो जाएंगे, शायद इसके अंदर की दुनिया कुछ बेहतर हो”

और पुरुष अपनी कार को आगे बढ़ा देता है। महिला मैप नेविगेटर पर कुछ डेटा स्टडी करते हुए बोलती है "इस डेटा और पुरानी सेटेलाइट इमेज और आज की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन बता रहा है कि ये गड्ढा बढ़ता जा रहा है। 

इन दोनों ने कैमरा चालू कर रखा है, लेकिन कोई 40 किलोमीटर आगे निकलने पर इनके कैमरा और कार जो की एक बैटरी कार है वो बंद हो गए। पुरुष ने ध्यान दिया कि हर इलेक्ट्रोनिक उकरण बंद हो चुके है। वो दोनो कार से बाहर आते हैं और देखते हैं कि ये ढालान बढ़ता ही जा रहा है और सामने क्षितिज पर उन्हे दूसरा छोर दिखाई ही नहीं दे रहा है।

वो दोनों पैदल ही आगे बढ़ना शुरू कर देते हैं। इस जगह उन्हे कुछ अज़ीब महसूस हो रहा है। गुरुत्व बल भी कम हो चुका है और एक अजीब सी सनसनाहट उन्हे महसूस हो रही है। उन दोनों का रोयाँ खड़ा हो चुका है। पुरुष को लगता है कि ये शायद उनके डर के कारण हो रहा है लेकिन फिर उसने ध्यान दिया कि उसके सर और दाढ़ी के बाल भी इधर-उधर को फैल कर तन गये हैं। महिला के सर के बाल भी कुछ एसे ही हो रहे थे।

वो तेज चलना शुरू कर देते हैं, लगभग भागते हुए, लेकिन उन्होने ध्यान दिया ना ही तो उनकी सांस फूल रही है और ना ही उनको थकान महसूस हो रही है। तभी वो एकदम से रपटना शुरू हो गए, वो तेजी से लुढ़कते हुए उस खड्डे की तलहटी की तरफ बढ्ने लगे। वो रुकने की भरपूर कोशिश कर रहे थे लेकिन वो रुक नहीं पा रहे थे। उन दोनों ने एकदूसरे के हाथ पकड़ लिए।

वो बहुत देर तक यूं ही लुढ़कते रहे और फिर उन दोनों ने ध्यान दिया कि वो धरातल पर नहीं हैं बल्कि उड़ रहें हैं और चारो तरफ एक अजीब सा वातावरण है जिसके कारण उन्हे आगे का कुछ दिखाई नहीं दे रहा। ये पारदर्शी गैस का एक सघन आवरण था, लेकिन वो दोनों इसमे सांस ले पा रहे थे। फिर उनके शरीर पर दबाव बढ़ना शुरू हो गया। वो तेजी से आगे को उड़ते हुए जा रहे थे।

दोनों ने एकदुसरे को कसकर पकड़ा हुआ था। तभी उनकी संवेदनाए भी शून्य होना शुरू हो गयी थी और वो दोनों उस गड्ढे के केंद्र मे ही कहीं समा गए।   

सृजन

सूर्या ने निर्णय किया कि रात्री मे तो नहीं लेकिन दिन मे वो उत्तर अंडमान पर जाएगा। वो रात भर सो नहीं पाया और सुबह कोई 3 बजे ही वो नाव को उत्तर अंडमान की तरफ लेकर चल दिया।

तभी उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जो समुन्द्र का पानी रातभर सेंटीनेल द्वीप को डुबाये हुए था वो अब बहुत कम हो गया था और सेंटीनेल द्वीप से उत्तर अंडमान के मध्य चट्टानों की शृंखला अब एक पुल के रूप मे स्थापित हो गयी थी। सूर्या ने अपनी दूरबीन से उत्तर अंडमान की तरफ देखा। अंडमान को घेरे हुए झाड़ियों की दीवार मे उस चट्टानों के पुल के मुहाने पर एक मुहाना उन झाड़ियों की दीवार में उसे दिखाई दिया। शायद चट्टानों के कारण उस जगह झाड़ियाँ नहीं उग पायी थी।

सूर्या ने अपनी नाव को उस चट्टानों के पुल के सहारे ही उत्तर अंडमान की तरफ चला दिया और उस मुहाने से होकर उत्तर अंडमान द्वीप मे वो प्रवेश कर गया।

इस द्वीप को इन झाड़ियों ने एक मजबूत किले की तरह बना दिया था। ये झाड़ियां आदमखोर थी, यदि कोई प्राणी इनके दायरे मे आता था तो ये उसे वहीं मार देती थी। सूर्या इनसे एक दूरी बनाकर इनका अध्ययन करने लगा। इनपर बाहर की तरफ बहुत से पक्षी लटके हुए थे जो बस कंकाल बन गए थे।

ये काँटेदार झड़िया थी और इनके कांटे विषैले थे और रक्त चूषक का कार्य करते थे। शायद इन काँटों से विष और पाचक रस जानवर के शरीर मे पहुँच जाते होंगे और फिर इन काँटों से उसे भीतर ही भीतर से चूस लिया जाता था। ये ऊंची झाड़ियाँ प्रकृति की अद्भुत रचना थी।

सूर्या अब अंडमान के घने जंगल मे आ चुका था। वो थोड़ा सजग भी था लेकिन यहाँ भी उसे जंगली जानवर तो दिखे परंतु कोई भी मानव के चिन्ह नहीं मिल रहे थे। इस द्वीप पर एक अलग ही इकोसिस्टम बन गया था। फल दार वृक्षो कि अधिकता थी। एक ऊंची चट्टानों का समुहू द्वीप के मध्य मे स्थित था।

सूर्या उसके ऊपर तक गया, ऊपर उन चट्टानों के मध्य मे एक प्राकृतिक झील थी जो पीने लायक पानी से भरी हुई थी। मानव जीवन के लिए इस द्वीप पर सब कुछ था।

सेंटीनेल द्वीप से बचे हुए सेंटीनेल लोग यहाँ तक आ पाये होंगे क्योंकी एक चट्टानों की पुलनुमा रचना समुन्द्र मे बन गयी थी। लेकिन सूर्या को एक भी चिन्ह यहाँ सेंटीनेल लोगो का या किसी अन्य मानव का नहीं दिखाई दे रहा था। सूर्या पूरे दिन इस द्वीप पर भटकता रहा लेकिन यहाँ कोई सेंटीनेल या कोई मानव हो सकता है इस बात की आशा जागृत करने वाला एक भी चिन्ह उसे नहीं दिखाई दिया।

सूर्या थक चुका था और निराश भी था। वो एक सुरक्षित जगह पर बैठ गया, सूर्या को पता भी नहीं चला कि कब वो गहरी नींद मे समा गया।

कुछ देर बाद सूर्या को अत्यंत तेज़ पीड़ा हुई और उसके मुँह से तेज़ चीख निकल गयी और वो जाग गया। जब वो सोया था तब सुरज ढलने लगा था, लेकिन अब गहरी रात हो चुकी थी।

सूर्या की छाती मे तेज़ दर्द हो रहा था, उसने हाथ से अपनी छाती को टटोला तो एक तीर उसकी छती मे गड़ा हुआ था। सूर्या की छाती से खून की धार बह रही थी।

सूर्या ने अपने आप को संभालते हुए अपनी टॉर्च जलायी, टॉर्च की रोशनी मे सूर्या ने देखा उसके सामने कुछ लोग खड़ें हैं जिनमे औरते और जवान बच्चे भी थे। ये सभी सेंटीनेल लोग ही थे।

सूर्या ने इन लोगो मे नयी आयु के बच्चो को भी देखा। इतनी तेज़ पीड़ा मे भी सूर्या के चहरे पर एक मुस्कान बिखर गयी। सूर्या की छाती से खून बह रहा था लेकिन सूर्या आनंदित था, जैसे उसने अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया था।

सूर्या ने होठ फड़फड़ा कर कहा “प्रकृति ने मानव का भी संरक्षण किया है, ये लोग सुंदर धरती पर एक श्रेष्ठ मानव सभ्यता का निर्माण करेंगे”

तभी उनमे से एक ने आगे बढ़कर सूर्या की गर्दन पर एक छोटा सा काँटा चुभाया और सूर्या एकदम से बेहोश हो गया। उनमे से एक ने सूर्या को अपने कंधे पर लादा बाकी लोगो ने उसके सामान को उठा लिया और वो चल दिये। उनके पालतू कुत्तो ने उस जगह बिखरे खून को चाटकर साफ करना शुरू कर दिया था।

कुछ समय पश्चात वो जगह फिर से पुरानी जैसी हो गयी थी, वहाँ पर मानव का कोई चिन्ह नहीं बचा था ....


प्रथम खंड पूर्ण