सर्द सुबह का मौसम था। कमरे में हल्की सी ठंडक थी, लेकिन दिल में एक गर्मी थी, जो उसे याद करने से पैदा हो रही थी। सूरज की हल्की किरणें खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थीं, पर मेरे दिल का कोना हमेशा उसी एक चेहरे से रोशन था। उसकी यादें—मेरी हर सुबह और हर रात का हिस्सा बन चुकी थीं। पहली बार उसे देखा था, और यकीन मानो, वो पल मेरे दिल पर ऐसे छा गया था जैसे कोई हल्की सी धुंध छा जाती है, जो धीरे-धीरे मिटती नहीं है, बस बनी रहती है।
वो किताबों में खोई हुई थी, और उसकी आँखों में एक अजीब सा आकर्षण था। उसके चेहरे पर वो मासूमियत थी, जो हर किसी को अपनी ओर खींच लेती। पहली बार जब मैंने उससे बात की थी, तो उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा सुकून था, जो मेरे भीतर एक गहरी शांति छोड़ गया। उसकी बातें छोटी थीं, पर उनमें एक गहरी सोच और समझ थी, जैसे हर शब्द के पीछे कोई गहरी कहानी हो। मुझे वो छोटी-छोटी बातें इतनी प्यारी लगने लगीं कि उन्हें हर दिन सुनने का मन करता था।
"क्या ये सीट खाली है?" मैंने धीरे से पूछा, डर था कि कहीं वो मुझे अजीब न लगे।
वो मुस्काई और कहा, "हां, बैठो।" उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था, जो सीधे मेरे दिल में उतर गया। वही मुस्कान थी, जो अब तक मेरी यादों का हिस्सा बन चुकी है। उसकी मुस्कान में वो सादगी थी, जो दिल को छू जाती थी।
उसकी आँखों में वो गहराई थी, जिसमें मैं बार-बार खो जाता। उसकी हर बात, उसकी खामोशी, उसकी मुस्कान—सब कुछ जैसे एक अनकहा सा राज़ था। जब वो कुछ सोचती थी, तो उसकी नजरें कहीं दूर तक खो जाती थीं। मुझे हमेशा यह जानने की इच्छा होती थी कि वो क्या सोच रही थी, क्या देख रही थी? क्या वह अपनी कोई अधूरी ख्वाहिश के बारे में सोच रही थी, या किसी पुराने ख्वाब को फिर से महसूस कर रही थी?
"तुम क्या सोच रही हो?" मैंने एक दिन उससे पूछा, जब वह कुछ ज्यादा ही चुप थी।
उसने धीरे से सिर झुकाया और फिर हल्के से मुस्कराई, "कुछ नहीं, बस कुछ पुराने ख्वाब।"
उसकी बातों में वह रहस्य था, जो मुझे और भी ज्यादा खींचता था। फिर भी, मैं हमेशा उसे समझने की कोशिश करता रहा। एक दिन मैंने उससे पूछा, "क्या तुम कभी महसूस करती हो कि कोई तुम्हें बहुत चाहता है?"
वो चुप हो गई, उसकी आँखों में एक सवाल था, एक अनकहा डर। फिर उसने धीरे से कहा, "कभी-कभी लगता है, लेकिन क्या फर्क पड़ता है?" उसकी बातों में एक अजीब सा उदासी थी, जैसे वो खुद भी अपनी भावना को पूरी तरह समझ नहीं पा रही थी।
फिर एक दिन, उसकी आँखों में वो बेचैनी देखी, जो अब तक मेरे दिल में समाई हुई है। उसने कहा कि उसे दूसरे शहर जाना है, और मुझे वो पल आज भी याद है। मेरी धड़कनें थम सी गईं। मैं चाहता था कि उसे रोक लूँ, उसे बताऊँ कि मैं उसे कितना चाहता हूँ, लेकिन मैं कुछ भी नहीं कह सका। शायद डर था कि वह मुझे समझेगी नहीं, या फिर शायद मुझे लगता था कि उसकी ज़िंदगी में पहले से कोई था, जो उससे कहीं ज्यादा जरूरी था।
"तुम जा रही हो?" मैंने धीरे से पूछा, और मेरी आवाज़ कांप रही थी।
वो चुप रही, फिर सिर झुकाया और धीरे से कहा, "हां, मुझे जाना पड़ेगा।"
वो चली गई, और मैं खाली हाथ रह गया। लेकिन उसकी यादें अब भी मेरे साथ हैं। उसकी हँसी, उसकी बातें, उसका किताबों में खो जाना—ये सब कुछ अब मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। कभी-कभी सोचता हूँ, क्या उसने कभी महसूस किया कि मैं उसे कितना चाहता था? शायद नहीं, शायद वह कभी मेरे दिल की गहराई तक नहीं पहुँच सकी। लेकिन सच कहूँ, मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। उसकी यादें ही मेरे लिए अब सबसे बड़ी हकीकत हैं।
"क्या तुमने कभी सोचा है कि कोई तुम्हें इतने करीब से चाह सकता है?" मैंने एक दिन अपने आप से पूछा, और फिर सिर झुका लिया। मैं जानता था, शायद कभी उसे यह समझ नहीं आएगा, लेकिन फिर भी उसकी यादों में खो कर जीने का तरीका मैंने अपना लिया था।
उसके लिए मैंने एक किताब लिखी। एक ऐसी किताब, जिसमें उसकी हर एक छोटी सी बात, हर मुस्कान, हर एहसास को मैंने अपने शब्दों में समेटने की कोशिश की। किताब का नाम भी मैंने खास रखा, ताकि उसे पढ़ते वक्त वो महसूस कर सके कि ये सब उसके लिए है, कि मेरी हर सांस, हर ख्वाब, हर पल उसकी यादों में बसा है। शायद वह कभी इसे पढ़े और समझे कि वो मेरे लिए कितनी खास है, कि मैं उसे अपनी जिंदगी के हर हिस्से में महसूस करता हूँ।
वो किसी कविता की तरह थी, जिसे मैंने हर दिन महसूस किया। हर बार उसकी यादें ताजगी देती थीं, जैसे किसी नये ख्वाब की शुरुआत। उसकी मासूमियत, उसकी सादगी—ये सब कुछ मुझे बहुत खास लगता था। वह हमेशा से ही किसी किताब की तरह थी, जिसे जितना पढ़ो, उतना ही कुछ नया समझ आता था। और शायद यही वजह थी कि मैं उसे भूलने की कोशिश नहीं कर पा रहा था।
अब भी हर सुबह उठते ही उसकी यादों का अहसास होता है। वह कभी दूर नहीं गई। जब भी सूरज डूबता है, तो लगता है जैसे वह कहीं पास हो, किसी रूप में। मैं जानता हूँ कि शायद वह कभी नहीं जान पाएगी कि किसी ने उसे इतनी गहराई से चाहा, लेकिन फिर भी, उसकी यादों के सहारे मैं अपनी जिंदगी को जी रहा हूँ।
और अब, जब भी मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ, उसकी यादों की एक तस्वीर मेरे सामने आ जाती है। वो तस्वीर, जो कभी धुंधली नहीं होती, हर रोज़ और भी साफ़ होती जाती है। उसकी मुस्कान, उसकी बातें, उसकी खामोशियाँ—सब कुछ जैसे एक फोटो फ्रेम में कैद हो गया हो।
ज़िंदगी ने हमें अलग कर दिया, लेकिन उसकी यादें कभी मुझे अकेला महसूस नहीं होने देतीं। ये यादें अब मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। कभी, जब मैं सोचता हूँ कि क्या वह कभी समझ पाएगी कि मैंने उसे कितना चाहा, तो दिल में एक हल्की सी उम्मीद जाग उठती है—शायद कभी वह इस तस्वीर को देखेगी और समझेगी कि उसकी यादें मेरी दुनिया का सबसे खूबसूरत हिस्सा हैं।
और फिर, उसी तस्वीर के सामने मैं हमेशा यही सोचता हूँ—क्या कभी वो दिन आएगा जब उसकी यादों की ये तस्वीर पूरी होगी? या फिर ये अधूरी तस्वीर हमेशा मेरी आँखों के सामने यूँ ही रहेगी, जैसे एक अनकहा ख्वाब, जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता।
पर एक बात सच है, उसकी यादों की यह तस्वीर कभी धुंधली नहीं पड़ेगी, क्योंकि यह अब मेरे दिल का हिस्सा बन चुकी है।