Public Toilets in Hindi Short Stories by LOTUS books and stories PDF | सार्वजनिक शौचालय

The Author
Featured Books
Categories
Share

सार्वजनिक शौचालय

नमस्कार ! मैं एक टॉयलेट बोल रहा हूँ। जी हाँ, वही टॉयलेट जिसे संडास, पाखाना और शिष्ट भाषा में शौचालय के नाम से जाना जाता है, मैं वही चार दीवारों वाला शौचालय बोल रहा हूँ। वैसे मेरी जीवनकथा इतनी रोचक तो नहीं है लेकिन फिर भी मेरी महत्ता को आप लोग अनदेखा नहीं कर सकते। मेरे नाम पर तो "टॉयलेट- एक प्रेमकथा" नामक फिल्म भी बन चुकी है। वैसे तो आप लोग जो साबुन, परफ्यूम और सौंदर्य बढ़ाने वाली वस्तुओं का उपयोग करते हो, उन्हें भी टॉयलेट प्रिपरेशन ही कहा जाता है। हड़प्पा के प्राचीन समय से लेकर अर्वाचीन समय तक मेरा बोलबाला रहा है। वैसे बीच में मेरा अस्तित्व गाँवों में विलुप्त होने लगा था लेकिन मैं अब वापस से उन क्षेत्रों में भी प्रिय होने लगा हूँ। मैं मनुष्यों की निजी क्रियाओं की गोपनीयता का संरक्षक, मनुष्यों के विष स्वरूप मल को अपने अंदर समाहित करने वाला मलकंठ, समाज में स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ाने वाला उद्दीपक वही शौचालय बोल रहा हूँ। कभी-कभी मुझे मेरे इस नाम से दुःख होता है। आलय का अर्थ होता है निवासस्थान। जहाँ छात्र रहते हो उसे छात्रालय कहते है, जहाँ वस्तुओं का संग्रह हो उसे संग्रहालय कहते है, जहाँ दूध रहता हो उसे दुग्धालय कहते है परंतु मैं तो शौच का निकास द्वार हूँ, मैं शौच का परिवहन करता हूँ, उसे रखता थोड़ी ही हूँ जो मुझे शौचालय कहते है!? कुछ विद्वानों का मानना है कि नवीन और उच्चतम विचारों के लिए मुझ से उत्तम स्थान और कोई नहीं, उन्हें मेरे अंदर बैठकर ही क्रांतिकारी विचार आते हैं, तो फिर मेरा नाम

" सोचालय " होना चाहिए था, है न! लेकिन खैर, मनुष्य स्वयं अपना नाम नहीं रख पाता, दूसरों के द्वारा दिए गए नाम से ही जाना जाता है तो मैं तो फिर भी एक शौचालय हूँ। वैसे मैं मूलतः देसी और विदेशी प्रकार में पाया जाता हूँ मगर वर्तमान समय में ड्यूल फ्लश, कंपोस्टिंग, इलेक्ट्रिक, पोर्टेबल, बायोडिग्रेडेबल आदि स्वरूपों में मिलता हूँ। गाँव में करोड़ों के खेत रूपी शौचालय से लेकर शहरों में चार दीवारों रूपी लाखों में कीमत होती है मेरी। लेकिन मैं एक शुद्ध देसी शौचालय बोल रहा हूँ।


* निर्मल भारत अभियान" के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा चलाए गए "स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर की एक बस्ती के बीच तकरीबन दस साल पहले मेरा निर्माण हुआ था। मेरे निर्माण से पहले बस्तीवाले खुले में ही शौच करते थे। वैसे तो सुबह की गुलाबी ठंड में प्रकृति का आनंद लेते हुए खुले आकाश के नीचे मुक्ति का आनंद लेने वाली यह क्रिया सुखदाई तो होती है लेकिन इस से गंदगी भी बढ़ती है और स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। तो इसीलिए बस्ती को स्वच्छ करने हेतु मेरा निर्माण किया गया था। मेरे निर्माण के बाद कुछ महीनों तक मैं वैसे ही बंद पड़ा रहा क्यों कि एक स्थानिक विधायक द्वारा मेरा उद्घाटन समारोह होना था और वह व्यस्त थे। मेरी मरजी चलती तो मैं स्वयं ही अपने द्वार खोलकर अपना कर्म शुरू कर देता लेकिन मैं विवश था और बस्ती के लोगों को खुले

शौच करते देख दुःखी होता रहता। लेकिन आखिर ईश्वर की कृपा हुई और चुनावो के आते ही मेरा उद्घाटन तुरंत ही हो गया।


मेरा उद्घाटन होने के बाद में मनुष्यों के विष रूपी शौच को ग्रहण करने के हेतु लालायित था, मेरा शुल्क भी एकदम ना के बराबर था परंतु प्राकृतिक आनंद लेने वाले वे लोग पता नहीं क्यों मुझ से दूर ही रहते थे? सरकार द्वारा चलाए गए जागृति कार्यक्रम, स्थानिक जागृत लोगों और सेलेब्रिटी लोगों की कही बातें सुनकर उन्हें मेरा महत्व समझ आने लगा था और धीरे-धीरे कर के ज्यादातर बस्ती के लोग मेरा उपयोग करने लगे थे। मेरे अंदर स्त्री और पुरुष दोनों के लिए अलग विभाग बनाए गए थे। सुबह होते ही मेरे द्वार के आगे बस्ती के लोगों की लाइन लग जाती। उस समय मुझे ऐसा प्रतीत होता कि जैसे मैं एक तीर्थस्थान हूँ और ये सब भक्तगण मेरे अंदर आकर शुद्ध निर्मल होकर जाते हैं। वे लोग मेरे अंदर आते, आराम से बैठते और अपना वजन हल्का कर के जाते और मैं उनका चढ़ाया हुआ भोग ग्रहण कर लेता। उनके मुख पर संतोष देख मुझे बड़ी खुशी होती। अपने इस कार्य से मैं काफ़ी प्रसन्न था और इस पर गर्व भी करता था कि मैं समाज में से गंदगी हटाने के अभियान में पूरे हृदय से योगदान कर रहा हूँ।


एक बार बस्ती में एक शादी थी। शादी में खाने में थोड़ी गड़बड़ी हुई

लोगों का हाजमा बिगड़ गया। उस समय मेरे भीतर आने के लिए लोग तड़प रहे थे। मेरा सब से अधिक महत्व बस्तीवालो को उस समय समझ में आया। उस दिन मैंने बिना रुके उनकी सेवा की। वह दिन मेरी ज़िंदगी का सब से बड़ा खुशी का दिन था और उस दिन मुझे भी अलग-अलग पकवान रूप भोग का स्वाद मिला था! उस दिन के बाद सब बस्तीवाले मेरा उपयोग करने लगे थे।


कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि अगर मेरा अविष्कार ना हुआ होता तो क्या होता? गाँव में तो लोग खेतों में चले जाते मगर शहरों का क्या होता? फिर शहरों में सभ्य सोसायटी में शौचक्रिया के लिए अलग से मलभूमि बनानी पड़ती या फिर फूलदान, पीकदान की तरह मलदान के गमले आते! नहीं, मैं अभिमान नहीं कर रहा हूँ, मैं विनोद कर रहा हूँ ताकि आप लोग मुझसे घृणा ना करें क्यों कि जिस वस्तु का में भोग करता हूँ उसे देखकर ही लोग नाक चढ़ा देते हैं। मेरा काम घिनौना नहीं परंतु सराहनीय है। वैसे मनुष्य अपनी गलती और मल तो सह लेता है लेकिन दूसरों के विषय में हमेशा घृणा करता है! परंतु में तो सब कुछ ही अपने अंदर पचा लेता हूँ।


मैं अपना कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करता था। अपना कर्म करते हुए कभी मैंने कोई भेदभाव नहीं किया। मेरा उपयोग करने वाला व्यक्ति चाहे

किसी भी रंग, जाति, धर्म, वर्ग या देश का ही क्यों न हो, मैंने हमेशा निश्चल और समान मन से उसकी सेवा की। अपना कार्य करते हुए मैंने देखा कि मनुष्य चाहे कोई भी हो और कुछ भी खाता हो लेकिन उसका मल-मूत्र तो एक ही जैसा होता। मैंने कभी केसरी रंग का मूत्र या हरे रंग का मल नहीं देखा। अगर कोई बीमारी लगी हो तो बात अलग है! लेकिन मेरी समझ में आ गया था कि इन मनुष्यों को बनानेवाला एक ही है लेकिन फिर भी ये क्यों एक-दूसरे से लड़ते रहते यह मेरी समझ से बाहर था।


एक बार की बात है। एक बूढ़े दादा ने मेरे शुल्क को लेकर मेरे कर्मचारी से झगड़ा कर दिया और बोलने लगे कि, " एक तो हम अपना सामान भी दे और पैसे भी दे?" तो मेरे कर्मचारी ने भी बोल दिया कि, " तो रखो अपना सामान अपने अंदर, माँग कौन रहा है?" उस बात पर मुझे बहुत हँसी आई थी। मनुष्यों द्वारा त्याग किए हुए सामान को मैं अपनी गटर रूपी धमनियों से एक बड़ी गटर में पहुँचा देता। मेरे जैसे मेरे कई भाइयों द्वारा वहन हुआ वह भार एक बड़ी गटर में आता और अंत में समुद्र में मिल जाता। मेरा यह कर्मपथ जान कर मुझे" एको अहं, द्वितीयो नास्ति" का सत्य समझ में आया कि अंत में जो कुछ भी है सब एक ही में मिल जाना है तो फिर मिथ्या विवाद में क्यों पड़ना? अलग-अलग मार्ग से की जानेवाली प्रार्थना भी एक ही जगह जाती है। परंतु यह बात मेरे अंदर आ

वाला मनुष्य नहीं समझ पाया। खैर, मुझे क्या? मैं तो वैसे भी एक शौचालय ही हूँ।


एक कहावत है कि" नया नया नौ दिन। " मेरे लिए भी यह सच साबित हुई। समय परिवर्तनशील होता है। जैसे-जैसे समय बीता, वैसे-वैसे लोग मेरी स्वच्छता के लिए उदासीन होते गए। वे स्वयं तो स्वच्छ हो जाते लेकिन मेरी दरकार कम करने लगे। पहले जो लोग मुझे स्वच्छ रखते थे अब वही लोग मुझे गंदा करने लगे। इसके कारण मेरा कार्य भी बढ़ गया। पहले मैं केवल शौचालय था। लेकिन बाद में मैं डाकिया भी बना। कुछ लोग मेरी दीवारों पर संदेश लिख जाते कि" पूजा, आई लव यू", जैसे कि पूजा वहाँ आकर पढ़ने वाली है! कुछ लोग झगड़ा होने पर गुस्से होकर मेरी दीवारों पर गाली लिख देते। फिर उसे पढ़ने वाला उसके नीचे एक और गाली लिख देता। कई बार मैंने विज्ञापन भी किया। कभी-कभी कुछ निस्वार्थ सज्जन लोग गुप्त रोगों के इलाज के लिए और मसाज पार्लर के लिए मेरी दीवार पर मोबाइल नंबर लिख जाते। कई लोगों को मैंने इसका उपयोग करते हुए भी देखा है। मेरा शरीर भले मैला हो रहा हो मगर मेरे कारण किसी और का भला हो रहा है यह देखकर मैं अपना दुःख भूल जाता।


लेकिन मेरी तबियत भी समय के चलते ठीक नहीं रहती थी। बहुत सा

गुज़र चुके थे। कई बार बरसात के दिनों में में उल्टी करने लगता। तब मैं अपना कर्म ठीक से नहीं निभा पाता और मुझे उसका दुःख होता। मेरा सफ़ाई कर्मचारी मेरा इलाज करता परंतु वह भी अकेला क्या कर सकता? कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि अगर ये सफ़ाई कर्मचारी ना होते तो स्वयं को ऊँचा समझनेवाले ये सभ्य समाज के लोग अपने घर में रह न पाते !


ऐसे ही एक बार की बरसात का समय था। शहर में पानी भर चुका था और गटर भी अब अपना पानी उगलने लगी थी। तभी एक शराबी आया और मेरे एक विभाग में अपना वजन कम करने हेतु बैठ गया। उस समय गटर में से पानी निकलते हुए एक कीड़ा निकल आया और उसने शराबी की तशरीफ को फल समझकर काट लिया। मगर शराबी साँप साँप चिल्लाता हुआ बाहर भाग गया। शराबी की इस अफ़वाह के चलते अब लोग मेरा उपयोग करने से डरने लगे थे। धीरे-धीरे सब लोगो ने मेरा तिरस्कार कर दिया और आख़िर में मैं अकेला रह गया। बताइए शराब ना पीते हुए भी शराब के कारण मेरा नुकसान हो गया!


आज बस्ती के ज्यादातर घरों में मेरे छोटे शौचालय भाई बन गए हैं उसकी मुझे खुशी है लेकिन में अब जर्जरित हो गया हूँ। मेरी दीवारों में दरारें पड़ गई हैं. कई दरवाजे टूट गए हैं, मेरा रंग उखड़ चुका है, दस साल पहले चमकता हुआ

आज किसी पुराने खंडर के जैसा लग रहा हूँ और कबूतरों के अलावा अब मेरे भीतर कोई नहीं आता। बस कभी कोई शराबी लोग शराब पीने और जुआ खेलने के लिए मेरा उपयोग कर लेते है और मुझे इस से दुःख होता है। लेकिन मैं फिर भी अपना शौच-सफ़ाई कर्म करने के लिए उत्साहित हूँ। मेरी यह कहानी अगर आप प्रधानमंत्रीजी के मन की बात तक पहुँचा दे तो मुझे बड़ी खुशी होगी ताकि मैं एक बार फिर से " स्वच्छ भारत अभियान" में अपना योगदान दे सकूँ।