I can see you - 46 in Hindi Love Stories by Aisha Diwan books and stories PDF | आई कैन सी यू - 46

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आई कैन सी यू - 46

कहानी में अब झुमकी कब्रिस्तान को देख कर बेहद डर जाती है और वहां अंदर जाने से इंकार कर देती है तो उसे कार में बैठा कर लूसी और रोवन तांत्रिक बाबा से मिलने अंदर चले जाते हैं। एक टूटी फूटी झोंपड़ी मिलती है जहां से किसी औरत की आवाज़ आती है जो अंदर आने को कहती है। लेकिन अंदर जाने के बाद सिर्फ तांत्रिक बाबा मिले वो औरत नहीं दिखी। इस बात से थोड़ी सी सतर्क हुई जासूसी नज़र से लूसी ने इधर उधर देखते हुए बाबा से पूछा जिसे रोवन कमेला के बारे में बता रहा था। उनके बात के बीच लूसी ने पूछ डाला :" बाबा जी हमे किसी औरत ने अंदर आने को कहा लेकिन कमरे में सिर्फ आप ही हैं! वो औरत कहां चली गई?

बाबा ने लूसी की बात को काटते हुए कहा :" बेटी तुम्हारे पति ने जो बताया वह काम हम बहुत आसानी से कर सकते हैं तुम बस ये बताओ के क्या तुमको वो दिखती है?

लूसी ने ताज्जुब से रोवन की ओर देखा लेकिन हैरानी की बात ये थी के रोवन ने बाबा को ये नहीं बताया था कि लूसी भूतों को देख सकती है। लूसी जवाब देने से हिचक रही थी तो रोवन ने तपाक से कहा :" आप को ऐसा क्यों लग रहा है कि लूसी ने उस रूह को देखा होगा? 

बाबा ने हंस कर जवाब दिया जैसे वो हर बात बड़े सोच समझ कर कह रहे हों :" साहब आप श्रापित हैं और श्राप कभी कभी दिखता है बस इस लिए मेरा जानना ज़रूरी है कि आप दोनों को क्या क्या परेशानी है।"

रोवन :" मैं ने हमारी सारी परेशानी आप को बता दी है बस अब आप उस रूह को कैद कर सकते हैं तो कीजिए इस के लिए हम आपको कोई भी रकम देने से पीछे नहीं हटेंगे!"

बाबा ने अपने एक कपड़े के झोले में हाथ डालते हुए कहा :" नहीं हमको क़ीमत नहीं चाहिए! बस एक ज़िन्दगी चाहिए!"

इस बात से लूसी और रोवन को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। धीरे धीरे उनके आंखों और चेहरों की चमक फीकी पड़ रही थी। लूसी ने फौरन पूछ डाला :" ज़िन्दगी चाहिए मतलब? किस की ज़िन्दगी चाहिए?

तब तक बाबा ने झोले में से एक छोटी सी पोटली निकाली जिसे खोलते हुए उन्होंने जवाब दिया :" अरे उस रूह की ज़िन्दगी! हम यही तो करते हैं भटकते रूहों को कैदी बनाते हैं। ताकी वो आप जैसे भले आम लोगों को परेशान न करे!"

ये कह कर उन्होंने पोटली में से कुछ राख जैसी चीज़ हवा में छिट दिया। उनके ऐसा करते ही लूसी के मुंह से आह निकल पड़ी। उसका हाथ उसके पेट के निशान पर लगा था। रोवन अचानक परेशान हो गया और घबराहट में लूसी को थाम कर पूछने लगा :" क्या हो गया तुम्हें?....बाबा आप ने क्या किया?

लूसी ने बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए कहा :" मेरे निशान में टिश जैसा दर्द हुआ!"

बाबा ने एक दबी दबी मुस्कान मुस्कुराते हुए कहा :" हम तो बस यहां के हवा को सुध कर रहे थे साहब!....क्या हुआ बेटी को?

लूसी ने खुद को संभालते हुए कहा :" कुछ नहीं मै ठीक हूं! मुझे एक प्रॉब्लम है इस लिए कभी कभी दर्द होता है। आप ये बताइए कि उसे कब्जे में कैसे करना है?"

बाबा एक जगह पलथी मार कर बैठ गए और रोवन की ओर देखते हुए कहा :" झोंपड़ी के पीछे एक कुआं है। आप को उस कुएं का पानी लाना होगा! चूंकि आप श्रापित हैं और आपके हाथों से लाया हुआ पानी का ही काम है उस रूह को पकड़ने के लिए!...ये लीजिए घड़ा!"

एक छोटा सा मिट्ठी का लोटा जैसा घड़ा दे कर कहा।

लूसी झट से बोली :" मैं भी चलती हूं आपके साथ!"

इतने में बाबा जी ने भी जल्दी में कहा :" नहीं बेटी तुम नहीं जा सकती! यहां तुम्हारा काम है। तुम्हें यहां बैठना होगा!"

बाबा जी ने जल्दी से ज़मीन पर चाकू के नोक से एक त्रिकोण खींचा और लूसी को देखते हुए कहा :" इस त्रिकोण के ठीक बीच में अपने बाएं हाथ की उंगली रखो हम अब उस रूह को बुलाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। आप जा कर जल्दी से पानी लाइए साहब!"

रोवन थोड़ा सा असमंजस में था। उसका दिल नहीं चाह रहा था के लूसी को यहां अकेले बाबा जी के साथ बैठा कर जाए लेकिन किसी भी तरह से लूसी की जान महफूज़ करनी थी इस लिए उसने ये रिस्क लेना ज़रूरी समझा।
एक हाथ में टॉर्च और एक हाथ में घड़ा लिए झोंपड़ी के पीछे जाने लगा। वहां एक बहुत ही पुराना सा कुआं दिखा जिसमें कजली पड़ चुकी थी। किनारे में रस्सी और डोल रखा हुआ था। वहां खड़े होने पर रोवन को कुछ कुछ महसूस होने लगा जैसे किसी के पत्तों पर चलने की आहट और एक बेचैन सी सांसों की आवाज़ ऐसा लग रहा था के कोई उसे कुछ कहना चाहता हो। रोवन समझने और सुनने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे कुछ भी साफ तरीके से न दिख रहा था न सुनाई दे रहा था। 
दरअसल उसे जो महसूस हो रहा था वो बिलकुल सही था वहां पर दुलाल था जो रोवन को चिल्ला चिल्ला कर ये बताने की कोशिश कर रहा था के " सर यहां से चले जाइए! लूसी खतरे में है मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए सर! मैं झोंपड़ी के अंदर नहीं जा पा रहा हूं कोई तिलस्म या मंत्र मुझे अंदर जाने से रोक रही है। आपको मेरी बात समझनी होगी!"

दुलाल की बातें रोवन के कानों तक पहुंच नहीं रही थी और इसी दौरान उसने जैसे ही कुएं की रस्सी पर हाथ लगाया रस्सी एक झटके में नीचे की ओर सरक गई। हवा की रफ्तार में कमेला वहां आई और साथ में रोवन को कुएं में धक्का मार दिया। उसे धकेल कर उसने एक शैतानी मुस्कान से देखते हुए कहा " जब श्राप फीकी पड़ने लगे और खत्म होने के कगार पर पहुंच जाए तो श्रापित को ही खत्म कर देना चाहिए!...अलविदा रोवन पार्कर!"

दुलाल ने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर कमेला के सर पर दे मारा जिस से वो गुर्राते हुए गायब हो गई। 
कुएं में गिरने की वजह से रस्सी और डोल के खड़खड़ाने की आवाज़ लूसी के कानों पर पड़ी। वो हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और रोवन कह कर बाहर की ओर भागने के लिए मुड़ी के इतने में कहीं से हवा में रस्सियां आई और उसके पैरों को जकड़ लिया और खींच कर बाबा जी के सामने रख दिया। वो ज़मीन पर गिर पड़ी थी। 

बाहर में दुलाल अंदर आने के लिए छटपटा रहा था लेकिन बार बार झोंपड़ी से टकरा कर दूर जा गिरता। 

लूसी गुस्से और जज़्बात से चीख उठी :" ये क्या कर रहे हो हमारे साथ?....ये क्या मज़ाक है।"

बाबा ने ठहाके लगाते हुए कहा :" मैने कहा था न मुझे ज़िन्दगी चाहिए!.... मेरी ख़ज़ाने की चाबी मेरे सामने पड़ी है।"

बाबा लूसी को ललचाई नज़रों से देखते हुए खुशी के मारे ज़ोर ज़ोर से हंस रहा था।


To be continued......