Swayamvadhu - 28 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 28

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स्वयंवधू - 28

विनाशकारी जन्मदिन- भाग1

सभी लोग कवच को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देकर रोमांचित थे। कमाल की बात है, दशकों बाद भी मनुष्य हमेशा की तरह चापलूस और निर्बल हैं, हमेशा उस व्यक्ति की प्रशंसा करना जिसके पास शक्ति है, और हमेशा उनके जूते चाटते रहते। उन्होंने जन्मदिन की हर शुभकामनाओं को पूरे दिल से स्वीकारा, भले ही यह उसके लिए बहुत अलग था। समीर ने उसे, उसके जन्मदिन पर हमेशा अपने पास ही रखा है।
दूसरी जगह, सुरक्षा के लिए, सरयू अपने आदमियों के साथ किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार था। आर्य, शिवम, दिव्या, सुहासिनी, साक्षी, अंजलि, अंडरकवर प्रांजलि सब दोंनो को शुभकामनाएँ देने आए जबकि बाकियों ने उसे नज़रअंदाज कर दिया। वह जानती थी कि यह अपरिहार्य था क्योंकि वह एक करोड़पति है और वह इस घर में एक और अज्ञात व्यक्ति थी लेकिन वह फिर भी थोड़ा उदास थी, लेकिन यह तब कम हो गया जब पहेली म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई उसके पास पहुँची और उसके चेहरे को चाटने लगी तथा वृषा की ठोड़ी पर मुक्के मारी जैसे वह शिकायत कर रही हो कि 'तुम मेरे दोस्त के साथ सबके सामने ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हो?' इन सबमे वो अपने भावना की सच्ची निकली।
उन्होंने उसे अनदेखा कर दिया और सोने चले गए। साक्षी ने माफी माँगनी चाही, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। अंततः सुहासिनी ने उसे कसकर गले लगाया, उसके बाद दिव्या और साक्षी ने भी उसे गले लगाया और आर्य तथा उसके जीजू शिवम ने भी उसे बधाई दी।
जन्मदिन की बधाई का क्या फायदा? जब ये लोग इतने बड़े होने के बावजूद भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के काबिल नहीं है।
वृषाली: (बस करो! बस करो! बस करो! मेरे अंग होकर मुझे नीचा दिखा रहे हो?!)
मैं, यानी परमशक्ति: (ऊपस्! लगता है मैं फिर से तुम्हारे सिर में बात कर रही थी। मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है।)
वृषाली: (तुम मेरे सिर से निकलो!)
मैं: (नहीं निकल सकती। तुम्हारा माला खाली है। खुद को थोड़ा मज़बूत करके देखो!)
वृषाली: (मुझे उस कमरे में जाना ही नहीं चाहिए था।)
ये उसकी गलती थी कि उसका दृढ़निश्चय इतना कमज़ोर था जिसकी वजह से मैं, अब तक आकार नहीं ले सकी। मुझे उन्हें भविष्य के लिए प्रशिक्षित करना था क्योंकि उनका मूल कार्य देश की रक्षा करना है। हालाँकि यह आजकल ऐसा कुछ नहीं है इसलिए परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पिछली शक्ति और कवच उन्हें प्रशिक्षित करते लेकिन जब उनकी करनी से वे सोख ले गए तो मुझे उनके शिक्षक की भूमिका निभानी पड़ी लेकिन समस्या यह थी कि ना तो मेरा कवच और ना ही मेरी महाशक्ति रक्षक बनने के लिए तैयार थे और त्रासदी बस सामने ही थी। तथापि,
(अब यह देखने का समय है कि वे एक दूसरे के कितने अनुकूल हैं।)

अगली सुबह
उन्होंने उन्हें लगभग पाँच बजे जगाया और मंदिर जाने के लिए पहनने के लिए उनके कपड़े दिए। वे उनसे सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहे थे। वृषाली, जिनकी उपस्थिति को मान्यता नहीं मिलती और वृषा, जिसका जीवन अपने पिता के लिए एक तुच्छ से नौकर के रूप में प्रताड़ित होकर गुज़ारा, उनके लिए यह बहुत बड़ी बात थी।
वृषाली ने पीला सूट पहना था जबकि कवच ने सफेद कुर्ता पायजामा पहना था। उन्होंने एक-दूसरे को देखा और कवच ने तुरंत पोशाक बदलने की कोशिश की, लेकिन शिवम ने उसे रोक दिया और कहा कि यह उसकी पसंद है। कवच को लगा कि उसके ठगा गया, लेकिन कायल को पीले लहंगे में देखकर उसे थोड़ी शांति मिली। हमारी प्रणाली में, एक लड़की और एक लड़का इस पोशाक को तब पहनते हैं जब वे अपनी नियति से मिलते हैं और एक दूसरे के साथ घर बसाने के लिए तैयार होते हैं। यही कारण है कि कवच पोशाक बदलना चाहता था और उन्होंने उन्हें बिना उनकी मर्ज़ी के इसमें शामिल कर लिया।
होता यह है,
पीला रंग शक्ति समाज में तब उस लड़की को पहनाया जाता है जब उसे उसकी नियती मिल गयी हो और जब उनकी शादी हो रही हो। वृषाली के दुपट्टे में चाँदी का गोटा है जो उसके नियती के ऊर्जा से रंग बदलता है। कवच के कुर्ते में चाँदी के तीन बटन होते है जो उसकी नियती के ऊर्जा से सुनहरे हो जाते है। उनकी अंगूठी और लॉकेट के रत्न उनके दिल का हाल बताते है जिसे कवच ने अपनी शक्ति से अपने कमीने दोस्तों से ढक रखा था।

वृषाली के साथ कवच को भी अजीब से बेचैनी लग रही थी इसलिए सबकी सुरक्षा के लिए कवच, आर्य, दिव्या कायल, अंजलि को अपने साथ ले गया जबकि वृषाली को उसके परिवार के साथ छोड़ दिया। सरयू भी उसके साथ था। कवच उन्हें फिर वही मंदिर ले गया जहाँ उसने वृषाली को स्वयंवधू के पहले चरण के दौरान ले गया था। यह वही मंदिर था जहाँ उसकी दादी उसे ले जाती थी। शहर में भी पर शहर से अलग बिल्कुल एकांत। इस मंदिर को आमलिका ने अपने परिवार के लिए खोजा था। हर साल की तरह वो यहाँ आया, पर आज उसके साथ उसका भावी परिवार था।

सब एक-एक कर मंदिर के अंदर गए। बड़ो का मान रखते हुए पहले शिवम और उसकी शक्ति सुहासिनी गए, फिर आर्य और उसकी शक्ति दिव्या गए। जब कवच की पारी आई तो पंडित जी ने उसे रोका और उसकी भार्या को पूछा। कायल उसके बाई तरफ खड़ी थी पर पंडित जी ने उसे उसके सहायक सक्षम के साथ खड़ा होने को कहा। जैसे ही उसने ये सुना, उसने वहाँ तमाशा खड़ा करना चाहा पर अपनी इज्ज़त के लिए रुक गयी और बिना पूजा किए उनके सामने हाथ जोड़कर बाहर चली गयी। चलो, इसे भी बचाया जा सकता है।
ओह! अगर समझ नहीं आया तो मैं ये साफ कर दूँ कि मैं अभी उन्हें छाँट रही हूँ जिसमे थोड़ी-बहुत तो तमीज़ बची हो। आगे जो होने वाला है उसके लिए मुझे मेरे किरदार का चयन करना है।
पंडित जी ने उसे उसके पति के पास ना खड़े होने के लिए डाँटा और अपनी पत्नी को अन्य महिलाओं के साथ अकेले छोड़ने के लिए कवच को डाँटा। पहले तो उन्होंने समझाने की कोशिश की लेकिन अंततः अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण हार मान ली, माफी माँगी और वही किया जो उनसे कहा गया था। उन्होंने जोड़े की तरह पूजा की और पंडित जी से आशीर्वाद लिया, जब पंडित जी ने उन्हें बड़े जोड़े से आशीर्वाद लेने के लिए कहा, जो उस समय शिवम और सुहासिनी थे और हमारे आरोग्यदाता यानी आर्य खुराना और दिव्या खुराना को प्रणाम करने को कहा। वृषाली समझ नहीं पाई बस करती गयी। समारोह शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए। जब वे वापस जा रहे थे तब पंडित जी ने उसे सिंदूर और एक पोटली दी, और कहा, "इस सिंदूर को अपने माँग और मंगलसूत्र पर अपने पति से लगवाना और कभी अपने माँग और गले को सूना मत छोड़ना और इस कड़े को अभी पहनो।", उन्होंने उसे दो कड़े दिए दोंनो हाथ में पहनने को दिए। उसे पहनने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी तो कवच को उसकी मदद करनी पड़ी।
पोटली पर इशारा कर पंडित जी ने कहा, "जब तुम्हें कठिनाइयों में इसकी याद आए तो इसे खोल देना। तुम्हें उत्तर आप ही आप मिल जाएगा।", उसने आस्था से उन्हें अपने साथ रख लिया।

आस्था का असली टेस्ट तभी था जब सुहासिनी इनकी खबर ली। उसने दोनों को लाइन में खड़ा किया और पूछा, "तुम दोनों ने इंकार क्यों नहीं किया?",
वृषाली ने सिर झुकाकर उदासीनता से कहा, "हमने पहले प्रयास किया लेकिन हमें केवल बुरी तरह से डाँटा गया। हमने हार मान ली जब पिछली बार भी ऐसा ही हुआ और इस बार भी..",
उसने तिरछी नज़र से उसकी अभिव्यक्ति देखा। वो अपनी बहन की हरकतो से हार मान चुकी थी। गहरी साँस ले, "हाह! किसीकी गलतफहमी का हम कुछ नहीं कर सकते। चलो चलते है।", उसने चलने का इशारा किया।
कवच ने वषाली से कहा, "अच्छा तो मैं अब चलता हूँ।",
हैरान, उसने पूछा, "कहाँ?",
आर्य ने बीच में आकर कहा,"कल तुम ही ने तो फरमान जारी किया था।",
कवच ने उसे बगल सरकाकर कहा, "तुम भी सही थी। मैं इसे टाल नहीं सकता था। मैं शाम तक का आ जाऊँगा।", कह वो बाइक सर्टाट करने लगा, "छह बजे से पहले आ जाना! वर्ना...", आर्य ने मस्ती में चिल्लाकर कहा।
कवच निकल गया। वृषाली थोड़ा उदास थी।
वापस घर जाकर सब अपने काम में लग गए और उसे नीचे बिठा दिया।

"हम सब उनके बड़े दिन के लिए तैयार हैं।", शिवम ने बड़े उत्साह से कहा,
"हाँ! अब बस यही देखना बाकी है कि रंग बदला है या नहीं।", सुहासिनी ने थोड़ा घबराते हुए कहा,
"सब ठीक रहेगा।", उसने उसका हाथ पकड़कर आश्वस्त करते हुए कहा,
"ओह, हो! क्या कमरा तैयार करवा दूँ?", दिव्या ने उसे छेड़ते हुए कहा,
"यह ठीक हो जाएगा लेकिन शिवम, राज कहाँ है? जिस दिन से वह आया है वह हमारे साथ कभी नहीं रहा।", आर्य ने पूछा,
"वो-", अब शिवम बेचारा क्या कहे? जब से वो यहाँ आया था उसकी साली का ताड़े जा रहा था और एक मौके बस एक मौके की तलाश कर रहा था।
(पता नहीं वृषाली के लेकर उसकी सनक कब और कैसे खत्म होगी?) तभी शिवम को याद आया राज ने क्या कहा था जब उसने पहली बार उसपर अपना हाथ डाला था।
"तुम एक ऐसी लड़की का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश कैसे कर सकते हो जिससे तुम कभी मिले तक नहीं! वो भी बीच बाजार में!", वापस आते समय कार में उसे डाँटना,
वह बस मुस्कुराया और कहा, "वह अंत तक मेरा आउटलेट रहेगी। तुम इसे क्रोध कहो, हताशा कहो, वासना कहो या बदला, वह अंत तक मेरा अंतिम आउटलेट और लक्ष्य रहेगी। वह महाशक्ति है, हमारे जैसे शक्ति के लिए आनंद का खिलौना। इससे दूर रहो।",
(और आज वह अनौपचारिक रूप से महाशक्ति बन जाएगी। नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं! यह नहीं हो सकता!)
वह दौड़कर नीचे आया और देखा कि लैपटॉप टुकड़ों में बिखरा पड़ा था और खून के निशान थे।

साढ़े तीन बजे-
"मैं उनसे माफ़ी माँगना चाहती हूँ लेकिन मुझे डर लग रहा है। मुझे क्या करना चाहिए?", वृषाली ने विषय से पूछा,
"तुमलोग परिवार हो, तुम ठीक करोगी। बस बात करों।", विषय ने कहा,
दोंनो लेपटॉप में वीडियो कॉल से काम के बाद बात कर रहे थे।
"लेकिन...", वो हिचकिचाकर,
"मुझे पता है। वो तुम्हारे बड़ी बहन का मंगेतर है, उसके भाई ने तुम्हारा र*प करने की कोशिश की, पर वो तो सज्जन है। तुम उनसे तो बात कर सकती हो।", उसने सुझाव दिया,
"पर उन्हें देख मुझे हमेशा उसी दिन की याद आती रहती है। डर, घिन पता नहीं क्या?", उसने डरते हुए कहा,
हैरान होकर, "ये मत कहना तुमने अभी तक बात नहीं की?",
उसने हाँ में सिर हिलाया।
"ये लड़की! हमारा स्वभाव एक जैसा मै इसलिए कह रहा हूँ-", उसने स्क्रीन के पीछे राज को उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए देखा। उसके हाथ में पट्टी जैसी कुछ चीज़ थी। उसके चेहरे पर हवस साफ दिखाई दे रहा था, "वृषाली पीछे! बचो! भाग-", वृषाली इससे पहले कुछ समझ पाती उसने उसे लेपटॉप पर गिरा दिया।
"अक!", जिससे लेपटॉप के काँच उसके बाहो में घुस गए।
उसने यथाशीघ्र उठने की कोशिश की लेकिन उसने उसे ज़बरदस्ती नीचे दबा लिया, उसने संघर्ष किया और मदद के लिए पुकारने की कोशिश की लेकिन उसने अपने हाथ में पकड़े कपड़े के टुकड़े से उसका हाथ बाँध दिया और उसका मुँह अपनी बड़ी ऊंगलियों से खोली। वह घुट रही थी, साँस लेने के लिए संघर्ष कर रही थी, लेकिन उसके पास कोई ऊर्जा नहीं थी क्योंकि मैंने उसे अनौपचारिक महाशक्ति के रूप में पुनर्जीवित करने के लिए उसकी हर उर्जा को चूस लिया था। उसने उसे काले कागज फूल के रस को निगलने के लिए मज़बूर किया ताकि कुछ समय के लिए उसकी आवाज़ को मिटाया जा सके, जैसे कि उस पर कोई श्राप डाल रहा हो। पहेली ने उस बोतल को ज़मीन पर पटक दिया और उसे पूरी तरह बर्बाद कर दिया। उसने उसे नोचने कि कोशिश की।
उसने बिल्ली को एक तरफ फेंक दिया और उसे अपने साथ बाहर जिम में ले गया। जिम में प्रवेश करते ही उसने दरवाज़ा बँद कर दिया। यह एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे केवल चाबी से ही खोला जा सकता था, अंदर कोई कुंडी नहीं थी। उसने वृषाली के जेब में रखी चाबी का इस्तेमाल किया।
उसने उसे जिम को बेंच पर पटका। वो बँधे हाथ-पैर से भी बिना रुके संघर्ष करे जा रही थी। उसके आँखो से आँसू बिना रुके गिरे जा रहे थे। बांहो पर लगे काँच से बहता पीले सूट को लाल कर रहे थे। उसका चेहरा डर, पसीने और आँसुओं से लथपथ था, वह उस पर हँसा जैसे वह उसका मज़ाक उड़ा रहा हो। उसने चिल्लाने कि कोशिश की।
उसने उसके बाह से एक काँच को अंदर धकेला फिर अचानक से बाहर खींच लिया। वह दर्द से तड़पती रह गयी। उसके ऊपर हँसकर,
"तुम्हारे लिए तो एक घूंट ही काफी थी।", फिर उसने उसका पिन किया हुआ दुपट्टा चीर दिया और उसके पूरे कुर्ते के चिथड़े उड़ा दिए। जिससे उसका ऊपरी हिस्सा उजागर हो गया। फिर अपनी शर्ट उतारी। उसने अपने बँधे हुए हाथों से भरपूर विरोध करने की कोशिश की, उसने उसे दूर धकेलने की कोशिश की लेकिन वह उससे अधिक शक्तिशाली था। उसने उसके साथ जबरदस्ती की, उसके होठों को काटा, उसके कानों को चाटा, उसकी कमर को टटोला और अपने हाथों को उसके पजामे पर घुमाते हुए उसे खोलने की कोशिश की। उसने आखिरी बार चिल्लाकर मदद माँगने की कोशिश की पर की पर कोई आवाज़ नहीं। उसने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया और अपनी आँखें बँद करके अपने साथ घटने वाली भयावह घटना का इंतज़ार करने लगी।

-ये तो विनाश कि झलक है असली विनाश आने की तैयारी कर रहा है...