सुरज ने अपनी दिनचर्या में बदलाव लाना शुरू कर दिया था। अब वह हर रोज़ अपनी सुबह की शुरुआत अनामिका की किताबों से करता था। पहले जो लड़का बहुत कम बोलता था, अब वही लड़का अपनी माँ और बहन को अनामिका की कविताएँ सुनाता था। सुरज की माँ और बहन, तारा, उसे देखकर हैरान हो गईं थीं। तारा हमेशा अपने भाई के चेहरे पर एक गहरी उदासी देखती थी, लेकिन अब उसने सुरज को एक अलग ही उत्साह और खुशी के साथ देखा।
एक दिन, जब सुरज अपनी माँ और बहन के साथ बैठकर अनामिका की एक कविता पढ़ रहा था, तारा ने मुस्कुराते हुए कहा, "भाई, ये तू कविताएँ कहाँ से सीख रहा है? कौन है जो तुझे ये सब सिखा रहा है?" सुरज ने अपनी माँ और बहन की तरफ देखा और फिर दृढ़ स्वर में जवाब दिया, "यह कोई लेखक है, जिनकी कविताएँ मेरे दिल की गहराइयों तक पहुँच रही हैं। अगर मैं उसकी किताब ना पढ़ूं, तो मेरा दिन ही नहीं गुजरता। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मुझे उससे बिना मिले ही प्यार हो गया है।"
तारा हैरान होते हुए बोली, "भाई, अगर यह अनामिका कोई मम्मी की उम्र की महिला होगी, तो?" सुरज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "नहीं, यह कोई मम्मी की उम्र वाली महिला नहीं है, यह एक लड़की ही है, और मेरी उम्र की ही होगी।" तारा ने फिर मजाक करते हुए पूछा, "और अगर वह लड़का हो तो?" जिसने अनामिका नाम से लिख दिया?" सुरज थोड़ा चुप हो गया, लेकिन फिर उसने कहा, "नहीं, वह लड़का नहीं हो सकता। उसकी लिखावट में कुछ ऐसा है, जो सिर्फ एक लड़की ही लिख सकती है। उसकी सोच, उसके विचार, सब कुछ एक लड़की जैसे ही हैं।"
माँ ने प्यार से कहा, "अगर तुम्हें यह लड़की इतनी पसंद है तो, क्या तुम कभी उससे मिलोगे?" सुरज के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, लेकिन उसके दिल में एक छिपी हुई चाहत भी थी। उसने जवाब दिया, "मुझे पता है कि कभी ना कभी मैं उससे ज़रूर मिलूँगा। अभी नहीं, लेकिन एक दिन हम ज़रूर आमने-सामने आएँगे।"
सुरज की ज़िन्दगी में अनामिका की किताबों ने एक नया मोड़ लिया था। उसकी किताबों में एक अलग ही दुनिया छुपी थी, एक ऐसी दुनिया जिसमें सुरज ने अपने आप को समझा और अपने जज़बात को महसूस किया। अनामिका की हर कविता में कुछ ऐसा था, जो सुरज को अपनी ज़िन्दगी से जोड़ता था। उसकी किताबों को पढ़कर सुरज को लगता था जैसे वह अपनी जिन्दगी का एक नया पहलू देख रहा हो।
एक दिन सुरज ने अपनी माँ और बहन को एक कविता सुनाई, जो उसे अनामिका की किताब से मिली थी। यह कविता उसके दिल की गहराइयों को छूने वाली थी:
"मन की परछाई"
सूरज की तरह चमकते हुए,
छिपे रहते हैं मन के अंदर,
जो बातें कहने से डरते हैं,
वो कभी नहीं निकल पातीं बाहर।
परछाई सी, अपने साथ,
हर रोज़ मैं उसे महसूस करता हूँ,
गहरे अंधेरों में खुद को खोकर,
उसके पास जाने की तम्मना करता हूँ।
शब्दों के भीतर जो ग़म हैं,
उनसे एक छोटी सी बात निकलती है,
कभी डर से, कभी हिम्मत से,
हमारी खामोश बातें सब कह जाती हैं।
इस परछाई में बसी रहती हैं,
कितनी अनकही दुआएं, कितनी हसरतें,
जो कभी पूरी नहीं होतीं,
पर दिल में हमेशा रहती हैं, अनकही सी।
सुरज की माँ और बहन दोनों ही इस कविता से गहरे प्रभाव में आ गईं। तारा बोली, "भाई, यह कविता तो बहुत गहरी है। लगता है, तुमने अपनी दिल की बात कह दी है।" सुरज मुस्कुराया और कहा, "हां, ये कविता मेरे दिल की परछाई है, जिसे मैं अब तक छुपाकर रखता था। अनामिका की कविताएँ मुझे समझाती हैं कि हमें अपनी भावनाओं को छुपाकर नहीं रखना चाहिए, हमें उन्हें बाहर लाकर दुनिया से साझा करना चाहिए।"
सुरज की ज़िन्दगी में एक अलग तरह का उत्साह था। अब वह रोज़ अनामिका की किताबों को पढ़ता और उनके अंदर छुपी गहरी बातें समझने की कोशिश करता था। उसकी बहन तारा, जो पहले सुरज के इस नए शौक को नहीं समझ पाती थी, अब उसे अक्सर अनामिका के बारे में पूछती थी। सुरज का चेहरा अब पहले से ज्यादा खिल चुका था और उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। वह जानता था कि वह अनामिका से कभी न कभी जरूर मिलेगा।
एक दिन, सुरज ने अपनी माँ से कहा, "माँ, मुझे लगता है कि अनामिका की जो किताबें मैं पढ़ रहा हूँ, वे मुझे एक दिन उस तक ले जाएँगी। मैं उससे जरूर मिलूँगा, क्योंकि उसकी कविताएँ मेरे दिल की बात कह रही हैं।" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "बिलकुल बेटा, जो तुम्हें अपनी ज़िन्दगी में अच्छा लगे, वही रास्ता अपनाओ। कभी न कभी तुम उसे जरूर मिलोगे।"
सुरज को अब अपने जज़बात पर विश्वास था। उसे लगता था कि अनामिका का जो सफर है, वह एक दिन उसे उसकी मंज़िल तक जरूर ले जाएगा। और जब वह मंज़िल मिलेगी, तो वह अपने दिल की बात अनामिका तक जरूर पहुँचाएगा।
सुरज का दिल अब पूरी तरह से अनामिका की कविताओं में बसा हुआ था। उसका हर पल, हर ख्वाब, अब उन्हीं शब्दों से गूंजता था। वह जानता था कि यह सिर्फ किताबें नहीं हैं, बल्कि ये कविताएँ उसकी आत्मा से जुड़ी हुई हैं। अनामिका के शब्दों ने उसे अपनी ज़िन्दगी और अपनी भावनाओं को नए तरीके से देखने की ताकत दी थी।
लेकिन क्या सच में वह अनामिका से कभी मिलेगा? क्या वह अपने दिल की बात उसे कह पाएगा? क्या यह सफर सच में उसे उसकी मंज़िल तक ले जाएगा? यह सवाल अब सुरज के मन में और भी गहरे हो गए थे।
अनामिका की किताबों में छिपे जादू और सुरज की बढ़ती जिज्ञासा ने उसे एक नई दिशा दे दी थी। अब उसका जीवन सिर्फ कविता और किताबों तक सीमित नहीं था, वह एक नए सफर की शुरुआत की ओर बढ़ रहा था। लेकिन यह सफर कब खत्म होगा? क्या वह दिन कभी आएगा, जब सुरज और अनामिका एक दूसरे से मिलेंगे?
सूरज और अनामिका का यह अनदेखा रिश्ता क्या कभी असल जिंदगी में कोई मोड़ लेगा? क्या सूरज अपनी भावनाएं अनामिका तक पहुंचा पाएगा? या यह जुड़ाव केवल शब्दों की दुनिया तक सीमित रहेगा? कहानी अभी बाकी है...
कहानी का अगला भाग, क्या अनामिका और सुरज के रास्ते कभी मिलेंगे? क्या वह दिन आएगा, जब सुरज अपनी दिल की बात अनामिका से कह पाएगा ?