------खैर हो ----
चलती का नाम गाड़ी है। बेशर्म लोग कुछ नहीं समझ सकते। बस कही भी पैसे बचते है, छोड़ते नहीं है, भोजन फ्री का....
चावल इतना खा गए, उस वक़्त, कि पूछो मत। चलना दुर्लभ हो गया। कड़ी चावल कही भी दिख जाए, जम कर खाये। शुदाई हो जाते है, कया करे। भंडारा चले तो खाना तो बने ही... हम जैसे नहीं खाये, तो फिर कौन खाये ---बस यही सोच के हम खा लेते है। भंडारा जो होये, हम लोगों के लिए विशेष होता है। कया समझें हो, हम कुलीन ब्राह्मण है.. कोई बुरे नहीं।
याद है एक रोज, खूब खा लिया था, किसी की पूजा के बाद... बस फिर कया वही थोड़ी दूर लिट गए, और आँख लग गयी। ठंडी हवा ने शरीर तोड़ दिया। बस निडाल से थे और कया।
घर आये। मुँह हाथ किया... बस.. घर पर पडतान क्रोध मे थी। शायद भूखी... हाँ मंदिर का एक सेर देसी घी का प्रसाद घर पर ही था... सब सुसरी खा गयी थी। फिर मुँह फुलाए थी। " कया हुआ, ---" थोड़ा पूछे। पता नहीं कया कुछ सुना गयी। मैं तो सो गया.. मेरे नुथने फुले तो जैसे धमाका हो कोई.. वो चिड़चिड़ा सी हो गयी थी।
हाथ मे पहले जैसे मदिर की पाठ पूजा नहीं था। कया करे, वक़्त बदल गया लगे। नाग निकले था तो मुहल्ला इकठा होवें था, अब तो कोई नहीं आवत जावत.. न इकठे होते है। पता नहीं कौनसी शताब्दी की दुनिया मानो ट्रेन सी लागे हमको तो... बदल गया सब कुछ देखो देखी।
हाँ पता है साल 2034 है, तो अब सब ससकर सूली पे टगो गे। चलो हमें कया... कट गयी आधी, आधी ही नहीं कट रही।
कोई विचार ही नहीं करता। बिल्ली राह काट गयी तो कोई रुके ही नहीं, खिसयानी बिल्ली ही रुक जाती है।
कया कहु, कोई विचारक नहीं है कया, मंदिर की घंटी का कोई मतलब नहीं जिंदगी मे किसी के भी, कोई हाथ आता ही नहीं। भंडारा चले, तो खा लेते है, वैसे जो जोड़ा है, वो खा लेते है।
-----------------" पकड़ो आज वही चोर है " खूब भीड़ कूट रही थी। " इतनी भीड़ काहे " किसी ने कहा चोर पंडित जी, " पंडित कैसे चोर, बोलना सीखा नहीं कया "
पंडित जी," आप को नहीं, बड़ा जुगाडी है चोर --" पंडित ने नीचे झुकते ही उच्ची देना कहा " छोड़ो कमबख्तो, ये हरिया है " बड़ी मुश्किल से छुड़ा के लोगों ने छोड़ा , "हरिया ओ हरिया " पंडित चिला के बोला।
" कोई उठा के साथ हॉस्पिटल चलो "
एक युवक आया " विचारा ये तो आपका साला है, चोर भाग गया, गुसा इस पे लोगों का निकल गया। "
" बोल नहीं सकता था कया। " युवक ने सहारा देते कहा। " गूंगा है " पंडित ने खींझ ते हुए कहा। मुँह लथपथ था, पेट पीठ कमर पे एक एक घुसन जनता का प्रतिशोध प्रतीकार, गोरमिंट ऐसे पीस रही है नवयुवको। रोज भुखमरी मार रही है, रोज पल पल निकल रहा है, उनका ----कोई धयान ही नहीं देता ।
" खैर हो " बस साला बच जाये। हालत डॉ ने काफ़ी किरिटीकल बताई है। बहुत दुखदायी हालत की, कमीनो ने, पंडित रो रहा था।
( चलदा ) नीरज शर्मा,
शहकोट, जलधर ।