दीवारों के पार: सूरजपुर की नई सुबह in Hindi Short Stories by pinki books and stories PDF | दीवारों के पार: सूरजपुर की नई सुबह

The Author
Featured Books
  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

  • आई कैन सी यू - 51

    कहानी में अब तक हम ने देखा के रोवन लूसी को अस्पताल ले गया था...

Categories
Share

दीवारों के पार: सूरजपुर की नई सुबह


सूरजपुर गाँव, जहाँ जाति व्यवस्था ने लोगों की सोच और रिश्तों पर गहरी छाप छोड़ी थी। गाँव के अधिकांश लोग एससी समुदाय के थे, लेकिन समुदाय के भीतर भी कई जातियों का वर्गीकरण था। इस वर्गीकरण ने गाँव के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर बना दिया था।

रामलाल, गोंड जाति का एक साधारण किसान था। वह मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसकी जाति के कारण गाँव में उसे हमेशा नीचा दिखाया जाता था। दूसरी ओर, मेना जाति के लोग, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से थोड़ा सशक्त थे, गाँव की सत्ता पर काबिज थे।

मुखिया शंकर, मेना जाति का था। वह गाँव का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति था, जिसकी बातें पंचायत से लेकर सरकारी दफ्तरों तक सुनी जाती थीं। शंकर का मानना था कि मेना जाति को गाँव में सर्वोच्च स्थान मिलना चाहिए।

रामलाल का बेटा दीपक पढ़ाई में बहुत होशियार था। उसने जिला स्तर की परीक्षा में टॉप किया, लेकिन जब उसे सरकारी छात्रवृत्ति देने की बात आई, तो स्कूल के मेना जाति के मास्टर ने यह कहकर मना कर दिया कि "यह छात्रवृत्ति मेना जाति के बच्चों के लिए है।"

रामलाल यह सुनकर आहत हुआ। उसने पंचायत में अपनी बात रखने का प्रयास किया, लेकिन मुखिया शंकर और उसके साथी उसे अपमानित कर वहाँ से भगा देते हैं। यह घटना रामलाल के लिए निर्णायक बन गई। उसने मन ही मन ठान लिया कि अब वह अपने बेटे के भविष्य और अपनी जाति के सम्मान के लिए लड़ेगा।

मुखिया शंकर की बेटी सुमन पढ़ी-लिखी और जागरूक थी। वह अपने पिता की सत्ता और उसके भेदभावपूर्ण रवैये से परेशान रहती थी। रामलाल और उसके परिवार के संघर्षों को देखकर सुमन का मन बदलने लगा। उसने महसूस किया कि जाति के भीतर यह विभाजन न केवल गलत है, बल्कि सामाजिक विकास में बाधा भी है।

सुमन ने चुपचाप रामलाल के बेटे दीपक को पढ़ाने में मदद करनी शुरू कर दी। वह उसे किताबें और नोट्स देती, ताकि वह अपनी पढ़ाई जारी रख सके।


इसी बीच, पंचायत चुनाव की घोषणा हुई। रामलाल ने मुखिया पद के लिए अपना नामांकन भर दिया। यह खबर पूरे गाँव में आग की तरह फैल गई। शंकर ने इसे अपनी सत्ता के लिए खतरा समझा। उसने रामलाल को चुनाव से हटने के लिए धमकी दी, लेकिन रामलाल ने हार मानने से इनकार कर दिया।


शंकर ने रामलाल को बदनाम करने और डराने के लिए अपने गुंडों का सहारा लिया। रामलाल के खेतों में आग लगा दी गई, और उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत करने की कोशिश की गई। सुमन को जब इन साजिशों का पता चला, तो उसने रामलाल की मदद करने का फैसला किया।

सुमन ने गाँव की महिलाओं को संगठित किया और रामलाल के पक्ष में प्रचार शुरू कर दिया। उसने पंचायत में अपने पिता की भेदभावपूर्ण नीतियों का खुलासा किया। धीरे-धीरे, गाँव के लोग भी रामलाल के साथ खड़े होने लगे।



चुनाव के दिन, शंकर ने अपने गुंडों के जरिए मतपेटियों में धांधली करने की योजना बनाई। सुमन और दीपक ने इस साजिश का भंडाफोड़ किया। उन्होंने गुप्त रूप से धांधली का वीडियो रिकॉर्ड किया और गाँव वालों के सामने पेश किया। यह देखकर लोग मुखिया शंकर के खिलाफ हो गए।



रामलाल भारी मतों से चुनाव जीत गया। यह पहली बार था जब गाँव की गोंड जाति के किसी व्यक्ति ने पंचायत की कमान संभाली। रामलाल ने सबसे पहला फैसला लिया कि गाँव में जाति भीतर जाति के भेदभाव को समाप्त किया जाएगा। उसने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए।


सूरजपुर गाँव ने एक नई दिशा में कदम रखा। सुमन और दीपक की दोस्ती ने यह साबित कर दिया कि बदलाव की शुरुआत एक छोटी कोशिश से हो सकती है। जाति भीतर जाति का भेदभाव मिटाने की यह गाथा सूरजपुर के साथ-साथ अन्य गाँवों के लिए भी प्रेरणा बन गई।