जीवन का अंतिम सत्य
भगवान राम जानते थे कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है उसे मरना ही पड़ता है। यही जीवन चक्र है। और मनुष्य देह की सीमा और विवशता भी यही है। उन्होंने कहा... “यम को मुझ तक आने दो। बैकुंठ धाम जाने का समय अब आ गया है” मृत्यु के देवता यम स्वयं अयोध्या में घुसने से डरते थे। क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था। उन्हें पता था कि हनुमानजी के रहते यह सब आसान नहीं। भगवान श्रीराम इस बात को अच्छी तरह से समझ गए थे कि उनकी मृत्यु को अंजनी पुत्र कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, और वो रौद्र रूप में आ गए, तो समस्त धरती कांप उठेगी। उन्होंने सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा से इस विषय मे बात की। और अपने मृत्यु के सत्य से अवगत कराने के लिए राम जी ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया! और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। हनुमान ने स्वयं का स्वरुप छोटा करते हुए बिल्कुल भंवरे जैसा आकार बना लिया...और अंगूठी को तलाशने के लिये उस छोटे से छेद में प्रवेश कर गए। वह छेद केवल छेद नहीं था, बल्कि एक सुरंग का रास्ता था, जो पाताल लोक के नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया। वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए, जहाँ पर ढेर सारी अंगूठियों का ढेर लगा था। वहाँ पर अंगूठियों का जैसे पहाड़ लगा हुआ था।
“यहां देखिए, आपको श्री राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी” वासुकी ने कहा।
हनुमानजी सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे? यह भूसे में सुई ढूंढने जैसा था। लेकिन उन्हें राम जी की आज्ञा का पालन करना ही था। तो राम जी का नाम लेकर उन्होंने अंगूठी को ढूंढना शुरू किया। सौभाग्य कहें या राम जी का आशीर्वाद या कहें हनुमान जी की भक्ति... उन्होंने जो पहली अंगूठी उठाई, वो राम जी की ही अंगूठी थी। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वो अंगूठी लेकर जाने को हुए, तब उन्हें सामने दिख रही एक और अंगूठी जानी पहचानी सी लगी। पास जाकर देखा तो वे आश्चर्य से भर गए! दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम जी की ही अंगूठी थी। इसके बाद तो वो एक के बाद एक अंगूठीयाँ उठाते गए, और हर अंगूठी श्री राम की ही निकलती रही। उनकी आँखों से अश्रु धारा फूट पड़ी!' वासुकी यह प्रभु की कैसी माया है ? यह क्या हो रहा है? प्रभु क्या चाहते हैं?
वासुकी मुस्कुराए और बोले, “जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। जो निश्चित है। जो अवश्यम्भावी है। इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। हर बार कल्प के दूसरे युग मे अर्थात त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है... यहाँ आता है और हर बार पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसलिए यह सैकड़ों हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। सभी श्री राम की ही है। अंगूठियां गिरती रहीं है... और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां पर्याप्त स्थान है”।
हनुमान एकदम शांत हो गए। और तुरन्त समझ गए कि, उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात्कार कोई आकस्मिक घटी घटना नहीं थी। बल्कि यह प्रभु राम का उनको समझाने का मार्ग था कि, मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकता। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे ही। पर राम वापस आएंगे... यह सब फिर दोहराया जाएगा। यही सृष्टि का नियम है, हम सभी बंधे हैं इस नियम से। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे।
प्रभु राम आएंगे... उन्हें आना ही है... उन्हें आना ही होगा।