HAR SAAS KI EK HI AAS - SARVGUNSAMPANN BAHU in Hindi Short Stories by उषा जरवाल books and stories PDF | हर सास की एक ही आस - सर्वगुण संपन्न बहू

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हर सास की एक ही आस - सर्वगुण संपन्न बहू

शहर के बाज़ार में एक बहुत बड़ी इमारत थी, उसमें एक भव्य समारोह का आयोजन किया था | जिस पर लिखा था - “यहाँ से आप अपनी पसंद के अनुसार ‘बहू’ चुन सकती हैं |”

देखते ही देखते औरतों का एक हुजूम वहाँ जमा होने लगा | सभी जल्दी से जल्दी उस इमारत में दाख़िल होने के लिए बेचैन थीं | लंबी क़तारें लग गई, धक्का – मुक्की करते, एक – दूसरे पर गिरते सब इमारत के अंदर जाने की कोशिश में लग गई |  इमारत के मेन गेट पर लिखा था -

“बहू चुनने के लिए निम्न शर्ते लागू” 👇👇👇

1. इस इमारत में कोई भी महिला केवल एक बार ही प्रवेश कर सकती है |

2. अपने साथ आधार कार्ड लाना आवश्यक है |

3. इस इमारत की कुल 6 मंज़िले हैं और प्रत्येक मंजिल पर बहुओं के प्रकार के बारे में लिखा है |

4. बहू चुनने की इच्छुक महिला किसी भी मंजिल से अपनी बहू चुन सकती है |

5. अंतिम एवं मुख्य शर्त – कोई भी महिला एक बार ऊपर की ओर जाने के बाद दोबारा नीचे नहीं आ सकती, केवल बाहर की तरफ़ ही जा सकती हैं |

सबके मन में केवल एक ही सवाल था ............ कौन – सी बहू चुनूँ ........ ?

एक महिला ख़ुशी से उछलते हुए जल्दी से इमारत में दाख़िल हुई |

पहली मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था - “इस मंजिल की बहुएँ कम पढ़ी – लिखी हैं लेकिन घर के कामकाज में कुशल हैं  |" महिला आगे बढ़ी |

दूसरी मंजिल दरवाज़े पर पर लिखा था - “इस मंजिल की बहुएँ अच्छे रोज़गार वाली हैं, नेक हैं लेकिन घर के कामकाज करना नहीं जानती |” महिला फिर आगे बढ़ी |

तीसरी मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था - “इस मंजिल की बहुएँ अच्छे रोज़गार रोज़गार वाली हैं, नेक हैं और खूबसूरत भी हैं और घर के कामों में थोड़ा – बहुत हाथ भी बँटा लेती हैं |”

यह पढ़कर महिला कुछ देर के लिए रुक गई मगर यह सोचकर कि चलो ऊपर की मंजिल पर भी जाकर देखते हैं, हो सकता है वहाँ और अच्छी बहू हो | वह फिर से आगे बढ़ी |

चौथी मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था - “इस मंजिल की बहुएँ अच्छे रोज़गार रोज़गार वाली हैं, नेक हैं, खूबसूरत भी हैं और घर के सारे कामकाज भी कर लेती हैं |”

यह पढ़कर महिला को चक्कर आने लगे और सोचने लगी “क्या ऐसी बहुएँ अब भी इस दुनिया में होती हैं ?

यहीं से एक बहू चुन लेती हूँ...लेकिन दिल ना माना तो एक और मंजिल ऊपर चली गई |

पाँचवी मंजिल पर लिखा था - “इस मंजिल की बहुएँ अच्छे रोज़गार रोज़गार वाली हैं, नेक हैं और खूबसूरत भी हैं और घर के सारे कामकाज भी कर लेती हैं और अपनी सास को माँ के समान मानती है | ये परिवार को जोड़े रखने में विश्वास रखती हैं |”

अब उस महिला की अक़ल जवाब देने लगी वो सोचने लगी इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता मगर फिर भी लालसावश उसका दिल नहीं माना और वह आखिरी मंज़िल की तरफ़ कदम  बढ़ाने लगी |

आखिरी मंज़िल के दरवाज़े पर लिखा था  - “आप इस मंजिल पर आने वाली 3339 वीं महिला हैं, इस मंज़िल पर कोई भी बहू नहीं है, ये मंज़िल केवल इसलिए बनाई गई है ताकि इस बात का सबूत सुप्रीम कोर्ट को दिया जा सके कि एक सास को पूर्णत: संतुष्ट करना नामुमकिन है |

इस भव्य समारोह में पधारने के लिए आप सभी का धन्यवाद !  बाँई ओर सीढ़ियाँ हैं जो बाहर की तरफ़ जाती हैं |