------( फैसला होके रहेगा )
कहानी सगरे मे एक मर्मिक कहानी बेपरवाह कितने हो तुम, आज इसका ही फैसला ही होगा।
कच्चेरियो के चक्र काट काट कर बहुत केस बोलते ही रह जाते हैँ, लेकिन सुनवाई कभी नहीं होती हैँ, तो तरीख पे तारीख मिल जानी सबाविक हैँ। बहुत दुख देती हैँ गरीब की पुकार कभी कभी... उलटे पैर मुड़ना उसकी दरगाह तक आवाज़ -----पुहच ही जाती हैँ।
अमूली की पुकार बस उस परमात्मा राधे शाम तक ही थी। और नहीं.... दूर तक नहीं... कहचरी के वकील की कौन सुनता था... ये केस ही ऐसा था। खमोश,भनक किसी को नहीं... जो बाते लोग करते थे, वो नबाब के साथ चक्र की थी, कयो राजी हुई... उसकी शादी बच्चे भूल गयी थी। अब उसका केस हक़ बन गया था... कयो उसने आपना सब कुछ उसे सौंप दिया था। उसने कयो उसे कहा था " शादी " तुम से करुँगा।
आज भी अमोली को चाहता था, तो फिर उसका हाथ कयो नहीं थामता था। उसके बाप ने जहर खा लिया... हॉस्पिटल मे उपचार आधीन था। अमोली को वक़ील पैसे लेने को जोर दें रहा था... वो आपने वजूद की कीमत पैसा लगाएगी?? नहीं... उसने हमेशा कहा नहीं.... पैसे नहीं हक़ दवादो... "नहीं अमोली नहीं। " तेरे बापू ने आपने खेत को गिरवी रखा, नबाब के पास... छुड़ाने के लिए उसने तुम को आगे किया, बुरा मत मानना। " ---"झूठ हैँ ✓ " अमोली ने कहा " ऐसा होता, तो बाप मेरा ज़हर न खाता। " अमोली चुप, खमोश थी फिर उसने खींझ के कहा " वक़ील तुम मेरे हो, जा उसके, मुझे हक़ चाइये... नबाब से। नहीं तो फांसी तो हैँ। " वक़ील चुप कर गया। " तुम शादी चाहती हो उससे, और कुछ। " वक़ील ने जोर देकर कहा....
बेपरवाह होकर अमोली ने कहा, " उसने मुझे शादी का वचन क्यों दिया था फिर "
तभी नबाब ऑफिस मे अचानक दाखल हुआ " वकील ने कुर्सी छोड़ते हुए हाथ जोड़े, जनाब धनभाग हमारे !"
"बैठो जनाब बैठो " नबाब ने कहा। " अमोली कोई गवाह हैँ तुम्हारे पास " नबाब ने बड़ा जोर देकर कहा।
" जो कुछ मेरे से किया, इस मे गवाह होना चाहिए था... आँखो को पुझते हुए कहा उसने, " आपने पर जब बनती हैँ नबाब साहब, तो कया बात करते हो, अच्छा गरीब से मजाक हुआ हैँ " अमोली ने कहा। अश्क़ रुकते नहीं थे। " जज भी आपका हैँ, वकील भी आपके हैँ, ये बलात्कार ---हाहाहा " वो जैसे सदा के लिए चुप कर गयी। नबाब जल्दी से ऑफिस से निकल गया।
अमोली को वक़ील ने कहा, " सोचो अमोली, अगर तुम्हे वो पांच लाख दें तो ले लो गी कया। "
अमोली चुप फिर वो खीज कर बोली " मै कोठे वाली दिखती हुँ कया। मेरी आबरू लूटी हैँ नबाब ने " फिर वो चुप कर गयी.... और वकील को नमस्ते कह के चले गयी।
घर जा कर फंदा लगा, और एक सास भी नहीं लिया था, सदा के लिए संसार छोड़ गयी। पीछे था नबाब का उच्ची रोना, " कभी माफ़ नहीं कर सकूंगा। " एक नहीं मोते दो होई थी। एक बाप की।
अगले दिन तारीख..... सबमिट केस खत्म..... नबाब सदा के लिए चुप कर गया था। डॉ कह रहे थे, " आघात लगने से अब ये कभी बोल नहीं पायेगा। " शायद डलहोजी ले जाओ, घूमने से कुछ फर्क पड़े।
पर नहीं, कभी नहीं.... आघात जीवन भर फैसला मांगता रहा।
चलदा..............
----------------------------------------- नीरज शर्मा
शहकोट, जालंधर