अब तक हम ने पढ़ा की लूसी रोवन और झुमकी कब्रिस्तान वाले बाबा से मिलने फुलवारी जा रहे थे। जाते जाते काफी देर रात हो गई थी। रात की शरसराती ठंडी हवाएं जिस्म को छू रही थी। आसपास घनघोर सन्नाटा पसरा हुआ था। दूर में एक गांव बसा था जहां से टिमटिमाती रौशनी दिखाई दे रही थी। उस रौशनी को देख कर दिल में साहस की एक लॉ जल उठी थी भले ही वो चंद घर बड़ी दूर में बसे थे। जहां इनकी आवाज़ तक नहीं पहुंच पाएगी।
तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर कब्रिस्तान के पुराने से जंग लगे लोहे के दरवाज़े को ठंडी सांस लेकर देख रहे थे कि झुमकी अचानक देखते देखते कांपने लगी और उसकी आंखों में आंसू डगमगाने लगे जिनमे उसके दर्द भरे दिल की कई गहराइयां देखी जा सकती थी। उसने बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए कहना शुरू किया :" ये वोही जगह है! ये वोही जगह है।"
उसे ऐसे कहते हुए सुन कर लूसी ने उसकी तरफ हैरत में देखा तो उसका दिल थर्रा उठा। उसने बेचैनी में कई सवाल पूछ डाले :" झुमकी क्या हो गया तुम्हें? कौन सी जगह? क्या मतलब है तुम्हारा ? तुम इस जगह को कैसे जानती हो? साफ साफ बताओ!"
रोवन ने अभी दरवाज़े को खोलने के लिए उसके धूल भरे कुंडी पर हाथ रखा ही था के लूसी को ये सब पूछते सुन कर रुक गया और असमंजस में बोला :" क्या बात है लूसी! कोई प्रॉब्लम है?
" मैं झुमकी से बात कर के बताती हूँ!"
लूसी ने जवाब दिया और झुमकी से पूछने लगी :" झुमकी पहले शांत हो जाओ और मुझे विस्तार से बताओ तुम जो भी जानती हो!"
झुमकी घबराहट में कांपते हुए बोली :" मुझे बस इतना याद है कि मैं ने अपने मरे हुए जिस्म को यहां देखा था।...उसके बाद...उसके बाद!"
आगे वो कह नहीं पाई जैसे उसके मन का दरिया बाहर आने के लिए बेचैन हो और किसी ने बांध लगा दिया हो।
झुमकी अब बहुत ही बेचैन हो गई क्यों के उसे अपने हमज़ाद के साथ हुए बेरहमी याद आने लगी जो उसके दिल को दीमक की तरह खोखला कर के खाए जा रहा था। उसमें अब कुछ कहने और सुनने की कूवत न रही और बस फ़ुफ़र फुफर कर रोने लगी।
रोवन ये जानने के इंतज़ार में था के उसने क्या बताया। लूसी ने परेशान आंखों से देखते हुए कहा :" झुमकी कह रही है कि उसने अपने मरे हुए जिस्म को यहां देखा था। आगे कुछ बोल नहीं पा रही है!...ये बहुत डरी सहमी हुई है। है तो एक बच्ची ही!"
ये बात सुन कर रोवन के चहरे पर अब परेशानी और घबराहट की बूंदे भी उभर आई थी। उसने कुछ सोचने के बाद कहा :" ये कब्रिस्तान है तो शायद इस लिए झुमकी को यहां लाया गया होगा! चलो चलकर देखते है तांत्रिक बाबा यहां है भी या नहीं!"
रोवन ने धीरे से दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा सीटी जैसी आवाज़ निकालते हुए आधा अधूरा खुला। हाथ में गन लिए रोवन आगे बढ़ा। लूसी ने देखा के झुमकी सर हिला कर जाने से इंकार कर रही है। उसने झुमकी को गले लगा कर उसके पीठ को सहलाया फिर कार के पास ले जा कर बोली :" तुम्हें जाने से डर लग रहा है न तो तुम गाड़ी में ही बैठो हम बाबा जी से मिल कर आते हैं!"
उसने झुमकी को वहां बैठा दिया और रोवन के साथ आगे बढ़ी। अंदर कदम रखते ही उन दोनों के रोंगटे खड़े होने लगे। एक दो कदम आगे चलते ही अजीब अजीब आवाज़ें आने लगीं और ऐसा लगने लगा जैसे सर के ऊपर से बार बार कोई बड़ा सा परिंदा उड़ कर गुज़र रहा है जिसे दोनों ही मुंह आसमान की ओर उठा कर देखते लेकिन फिर कुछ नहीं दिखता। रोवन लूसी से पूछता के तुम्हें कुछ दिख रहा है क्या लेकिन लूसी को भी अब तक कुछ नहीं दिख रहा था। कुछ आगे जाने पर उन दोनों के सामने अचानक कोई बड़ा सा मुंह फाड़ कर आ गया जैसे बच्चे कोने में से अचानक निकल कर डराने की कोशिश करते हैं ठीक वैसे ही गंदी सी आवाज़ निकाल कर उसने लूसी और रोवन को डराने की कोशिश की लेकिन लूसी कहां डरने वाली थी और रोवन को न उसकी आवाज़ सुनाई दी न वो गंदा सा दिखने वाला भूत नज़र आया। उसे बस ऐसा लगा जैसे एक हवा का झोंका उसके जिस्म से टकरा कर चला गया जिस वजह से उसके बदन में सिहरन पैदा हो गई थी।
जब भूत ने देखा के इन दोनों को उसके डराने से कोई फ़र्क नहीं पड़ा तो वो और भी कोशिशें करने लगा। कभी लूसी के बाल खींच लेता तो कभी रोवन के शर्ट का बटन खोल देता। कभी कोई पत्थर उठा कर मारता तो कभी सूखे पत्तों को तेज़ हवा में उड़ाने लगता।
इन सब से तंग आ कर लूसी ने रोवन के हाथ से गन लिया और उस भूत पर अचानक गोली चला दी। गोली लगते ही उसकी आंखें निकल पड़ी और चीखते हुए हवा में घुल गया। गन में साइलेंसर लगा हुआ था इस लिए आवाज़ नहीं गूंजी।
उसे अचानक ऐसा करते देख रोवन ने पूछा :" क्या तुम ने कमेला पर गोली चलाई?....वो हमारे साथ है क्या?
लूसी ने वापस उसे गन देते हुए जवाब दिया :" नहीं कमेला नहीं थी कोई घिनौना सा भूत था! कुछ देर के लिए वह गायब रहेगा! आगे बढ़ते हैं!"
आगे चल कर उन्हें एक पुरानी सी झोपड़ी दिखाई दी जो लगभग गिरने वाली थी। ऐसा लग रहा था के बस एक लात मार कर इस झोपड़ी को गिराया जा सकता है। उसके सामने एक लालटेन लटक रहा था जिसकी मंद सी रौशनी में वो झोपडी दिख रहा था। फूस का एक टूटा फूटा दरवाज़ा लगा हुआ था। रोवन ने लूसी का हाथ कस कर पकड़ा और बाहर से आवाज़ लगाई :" हेलो कोई है?....कोई है यहां?
आवाज़ देते ही अंदर से जवाब आया :" अंदर आ जाओ!"
वो आवाज़ किसी वृद्ध महिला की थी। रोवन ने उसकी आवाज़ सुन कर लूसी को देखते हुए कहा :" ये तो बाबा नहीं बाबी निकली!"
" अंदर चलकर तो देखें कौन है!"
लूसी मंद हंसी कर बोली।
दोनो ने फूस के दरवाज़े को घसका कर अंदर कदम रखा। देखा तो एक अधेड़ आदमी बैठ कर पत्ते से बने थाली में खाना खा रहा है। उसने सिर्फ एक लूंगी पहन रखा है जिसे उसने मोड़ कर घुटने तक समेत रखा है। उसके बदन में घुंघराले बालों का जंगल लगा हुआ है और दाढ़ी मूंछों से मुंह का आधा हिस्सा ढका हुआ है। उसने अपने लंबे बालों की छोटी बना रखी है।
जब उसने इन दोनों को देखा तो रोवन और लूसी का दिल सहम उठा क्यों के उसकी आंखें किसी जानवर जैसी लाल थी और आंखों के नीचे काले घेरे बने हुए थे। पहले तो वो कुछ देर तक देखता रहा फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बोला :" हमको पता है तुम लोग मदद के लिए आया है नहीं तो इस भयंकर जगह में कौन आने की जुर्रत करेगा!...बताओ हम क्या मदद कर सकते हैं तुम्हारा?"
रोवन ने हिचकते हुए कहा :" जी बाबा जी ऐसा ही है! दरअसल हम बहुत परेशान है इस लिए आप के पास आए हैं!"
बाबा ने कहा :" हां हां हम मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा! एक दम सही जगह आए हो बच्चा!"
लूसी ने हर कोने में नज़र दौड़ाई उसे कहीं भी वो औरत नज़र नहीं आई जिसने अंदर आने को कहा था।
To be continued........