I can see you - 41 in Hindi Love Stories by Aisha Diwan books and stories PDF | आई कैन सी यू - 41

Featured Books
Categories
Share

आई कैन सी यू - 41

अब तक हम ने पढ़ा की शादी शुदा जोड़े लूसी के मायके आए थे जहां रात के समय कमरे में झुमकी आई थी और वो उन दोनो के साथ सो रही थी के वहां कमेला भी आई जब उसने लूसी को ज़िंदा देखा तो ताज्जुब में पड़ गई। उसने फिर से लूसी को मारने की कोशिश की झुमकी के शरीर में प्रवेश कर के लेकिन उसके जिस्म में हावी नहीं हो पाई तब उसे पता चला के वो भी एक रूह है। अभी वो गुस्से में आकर लूसी और रोवन को सुकून से सोते देख ही रही थी के कोई हवा की रफ्तार में आया और उसका गला दबोच कर कमरे से बाहर खींच कर ले गया। 

बड़ी तेज़ी से उसे घर के बाहर ले जा कर पटक दिया। जब कमेला ज़मीन से तैश में उठी तो उसने देखा उसके सामने दुलाल खड़ा है। 
वो दुलाल को नहीं जानती थी लेकिन इतना समझ गई थी के ये भी किसी का हमज़ाद है। 
उसने आंखें निकाल कर उसे घूरते हुए कहा :" क्या तुम उस लूसी के मरे हुए आशिक हो जो अब भी उसकी जान बचा रहे हो? तुम्हें मालूम भी है की तुम कितनी बड़ी गलती कर रहे हो?

दुलाल ने साफ सुथरे शब्दो में कहा :" मैं लूसी की नहीं डॉक्टर रोवन पार्कर की मदद कर रहा हूं! अगर तुम ने उनकी पत्नी को चोट पहुंचाने की कोशिश की तो तुम्हें मेरा भी सामना करना पड़ेगा!"

कमेला उसकी बातें सुन कर पहले मुस्कुराई और फिर हंसने लगी। उसकी हंसी में मज़ाक उड़ाने का भाव देखा जा सकता था। दुलाल उसे बस घूर रहा था। कमेला ने हंसी रोकते हुए कहा :" अफसोस की तुम अभी बच्चे हो!...तुम ये नहीं जानते की अपने हमज़ाद के अलावा अगर तुम ने लगातार पांच बार किसी और इंसान की मदद किया तो तुम्हें यहां से उठा लिया जायेगा!...क्यों के तुम गार्डियन एंजल बनने की कोशिश कर रहे हो! तुम बहुत जल्द हवा बन कर ऊपर चले जाओगे फिर कौन बचाएगा तुम्हारे रोवन पार्कर के प्यार को मुझसे हां?....बेचारे! ईश्वर तुम्हें इसके लिए सजा देंगे!"

दुलाल को ये जानकारी नहीं थी। वो कुछ देर सोच में पड़ गया और मन ही मन उसने कितनी बार लूसी और रोवन की मदद की थी इसकी गिनती करने लगा। " एक बार मैने रोवन पार्कर को हॉस्पिटल पहुंचाने में मदद की थी दूसरी बार उनके जिस्म से शैतान को बाहर निकाला था और तीसरी बार अभी उनकी पत्नी पर हमला होने से बचाया! ये तीन बार तो हो गया लेकिन क्या वो सब भी मदद में शामिल होगा जो जानकारियां मैंने लूसी को दी थी?...जो भी हो अभी पांच बार हुआ नही है इस लिए मैं अब तक यहां हूं!"

उसने सोचने के बाद कमेला को जवाब दिया :" ठीक है अगर मुझे मदद करने के लिए सजा मिलेगी तो मुझे खुशी खुशी मंजूर होगी क्यों के मैंने कानून तोड़ कर अच्छाई की मदद की बुराई की नहीं!...मेरी सज़ा जल्द खत्म हो जायेगी शैतान की सज़ा कभी खत्म नहीं होगी! तुम अपनी चिंता करो मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा!"

अब कमेला के पास कोई जवाब नही था इस लिए वो तैवरी चढ़ा कर वहां से धुवां बन कर उड़ गई। 

सुबह सवेरे जब घर के कुछ ही लोग जागे थे रोवन उठ कर तैयार हो गया। लूसी अभी आराम से सो रही थी। झुमकी भी उठ कर बैठी रोवन को देख रही थी जो लूसी के बगल में बैठा उसे तक रहा था। दोनों उसके अगल बगल बैठे थे लेकिन रोवन झुमकी को देख नहीं सकता था। 
झुमकी रोवन को देखते देखते लूसी को उठाने लगी। लूसी हड़बड़ा कर उठी तो उसने बड़ी ही मीठी आवाज़ में कहा :" दीदी आपको जीजू कब से उठाना चाहते हैं लेकिन वो बस आपके अपने आप उठने का इंतज़ार कर रहे थे!"

रोवन ने उसे जागते देख कहा :" उठ गई तुम? अब जल्दी से तैयार हो जाओ हमे यहां से निकलना है!"

लूसी बिस्तर से उठ कर बैठी। आधी बंद आंखों से देखते हुए बोली :" आपको इतनी हड़बड़ी क्यों है?....आपको पता नहीं है मम्मी बिना नाश्ते के जाने नहीं देगी!...अभी से तैयार हो कर बैठ गए!"

ये कह कर लूसी वाशरूम जाने लगी। रोवन ने आवाज़ लगा कर कहा :" कॉलेज टाइम से पहुंचना है फिर हमे फुलवारी भी तो जाना है! वो काफी दूर है जाने में रात हो जायेगी!"

लूसी वाशरूम से ब्रश करते हुए तोतला कर बोली :" कोई बात नहीं! समय से पहले कुछ नहीं होता!"

झुमकी ने रोवन की ओर देखते हुए कहा :" क्या मैं भी आप दोनों के साथ जाऊंगी?"

लेकिन रोवन तो उसे सुन ही नहीं सकता था। उसके लिए तो कमरे में सिर्फ वो दो लोग ही थे। 

झुमकी ने फिर से मासूमियत से कहा :" जीजू बताइए ना, क्या मैं भी जाऊंगी?"

फिर उसे याद आया के रोवन उसे न देख सकता है ना सुन सकता है। उसने उदास हो कर मुंह लटका लिया।

जब वो लोग घर से जाने लगे तो कियान ने अचानक कहा :" मैं भी जाऊंगा तुम्हारे साथ!"

लूसी ताज्जुब से बोली :" क्या! आप हमारे घर जाना चाहते हैं या कोई और काम है?"

कियान ने हिचकते हुए कहा :" हां वो तुम्हारा असल घर तो मैने देखा ही नहीं! हम तो तुम्हारी ननद के यहां गए थे न!....मैं शाम की ट्रेन से वापस आ जाऊंगा!"

रोवन :" अच्छी बात है! चलिए फिर हमे देर हो रही है।"

रोवन कार ड्राइव करने लगा। आगे कियान और बैक सीट में झुमकी लूसी के साथ बैठी। 

रास्ते भर कियान रोवन के परिवार के बारे में कुछ न कुछ सवाल करता रहा और वो एक एक कर के जवाब देता रहा। 

किशनगंज पहुंच कर रोवन अपने ऑफिस चला गया। कियान ने कहा के वो इधर उधर घूमने जायेगा खास कर रहमान कॉलोनी जहां रोवन का असली घर है। उसे विदा कर के लूसी क्लासेस अटेंड करने चली गई। झुमकी उसके साथ ही रही। 

कियान रोवन की कार चलाते हुए रहमान कॉलोनी पहुंचा। उसका इरादा सिर्फ लूसी का ससुराल देखना ही नहीं बल्कि वहां पास ही रौशनी के घर का चक्कर लगाना भी है। 

रोवन के घर के सामने जा कर रुका। कार से बाहर आ कर उसने पूरे हवेली जैसे मकान पर नज़र डाली। उसी के आसपास रोवन के दोनो चाचाओं का घर था। सामने वाले घर के बरामदे पर बैठे एक अधेड़ आदमी ने कियान को वहां खड़ा देखा तो उसने आवाज़ लगा कर कहा :" अरे वो भाई साहब! किसी को ढूंढ रहे हो का?

कियान ने मुड़ कर कहा :" नहीं बस देखने आया था!"

उस आदमी को कियान के जवाब में कोई लज़्जत नहीं मिली तो उसने फिर से कहा :" ये लोग घर बेच रहे हैं क्या जो देखने आए हो?"

कियान ने उकताहट में कहा :" अरे नही चचा बहन का घर है इस लिए देखने आया हूं!"

अब उस चाचा को और बातें करने की इच्छा सातवे आसमान में थी। उन्होंने कियान को अपने पास बुलाया :" अरे भाई इधर आओ! आओ ज़रा बाते करनी है!"

कियान थोड़ा झुंझलाया सही लेकिन उसे भी इच्छा हुई के आखिर ये आदमी क्या बात करना चाहता है। इस लिए वो चलकर उस आदमी के सामने गया। 

आदमी ने उसे वहां बिछे चौकी पर बैठने के लिए कहा। कियान ने कहा :" नहीं मैं खड़ा ही ठीक हूं! आप क्या कह रहे थे?

उस चाचा ने पूछा :" बहन से क्या मतलब? इस घर में तो कोई बहन नहीं रहती!"

कियान ने बताया :" इस घर के बेटे से मेरी बहन की शादी हुई है। वो लोग अलग जगह रहते हैं लेकिन असली घर तो यही है!"

उस आदमी ने जैसे ही ये बात सुनी अचंभे से आंखे बड़ी बड़ी कर ली और मुंह पर हाथ धर लिया। बहुत ही ज़्यादा हैरत जताते हुए कहा :" इस घर के लड़के से बहन की शादी कराई है?...क्या बात है भाई साहब बहन से प्यार नहीं है क्या?"

चचा के चहरे का भाव देख कर कियान का मन एक दम तिलमिला उठा। 

To be Continued.......