Manasvi - 9 in Hindi Anything by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | मनस्वी - भाग 9

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मनस्वी - भाग 9

अनुच्छेद-नौ
                         अब तंग नहीं करूँगी माँ

             शाम का समय। नर्स अभी मनु के पास से गई है। मनु से पूछा भी था उसने, 'अब तो तुम ठीक हो न' । 'हाँ' मनु ने उत्तर दिया। मनु कुछ अधिक प्रफुल्लित है आज। उसे लगता है कि वह स्वस्थ हो जाएगी। माता-पिता भी आशान्वित हैं। माँ आज प्रसन्न दिखती है। मनु कहती रहती है, 'माँ खुश रहो। मुझे स्वस्थ होने में अब समय नहीं लगेगा। रामजी देख रहे हैं न ? वे नंगे पाँव चल कर रावण की सेना को हरा देते हैं। क्या हमारे इस रोग को नहीं हरा पाएँगे ? नहीं माँ, वे जरूर अपना तीर छोड़ देंगे और फिर रोग का कहीं पता नहीं चलेगा। लोग सोचते होंगे कि रामजी तीर क्यों छोड़ेगे? उनको हम बताएंगे कि हम बच्चों के लिए रामजी तीर जरूर छोड़ेंगे। रामजी, रामजी हैं न ?
                उनके भी दो छोटे-छोटे बच्चे थे कुश और लव। कितने बहादुर थे माँ? उन्होंने हनुमानजी को बाँध लिया था। रामजी थोड़ी मदद कर दें तो मैं भी रोग को बाँध लूँगी। कहाँ जाएगा यह भागकर ? चुपके से मेरे शरीर में घुस आया है। एक ही तीर में इसका काम तमाम कर दूँगी मैं। बस रामजी मुझे तीर चलाना सिखा दें न । जरूर सिखा देंगे वे। उनकों छुट्टी नहीं होगी तो सीता माँ से सीख लूँगीं। उन्होंने अपने बच्चों को सिखाया था न ? माँ तुम मेरे सामने बैठी रहोगी तब भी सीख लूँगी मैं। तू सीताजी है न। हर माँ सीता माँ ही होती है। क्या पापा भी रामजी होते हैं? हाँ माँ, मुझे तो यही लगता है। सभी पापा रामजी होते हैं।
            ‌‌ माँ, मेरा मन उड़ रहा है। एक चिड़िया की तरह मैं आसमान में उड़ती जा रही हूँ। अपने घोंसले से बहुत दूर जैसे कोई चिड़िया पहुँच जाती है वैसे ही मैं भी अपने घर से बहुत दूर आ गई हूँ। माँ तू ही तो कहती है कि जिस घर में नाल गड़ी होती है वह भुलाए नहीं भूलता। क्या लोग घर को भूल जाते हैं माँ? कभी-कभी लोग घर को याद नहीं करते। मैं आसमान में उड़ रही हूँ माँ, पर मुझे घर बहुत याद आता है? मुझे तो यही लगता है माँ। मैं घर से दूर हूँ। मन आसमान में उड़ रहा है और घर बार-बार याद आता है। अमरूद और शरीफा का वह पेड़, टपककर गिरते हुऐ बेल। आँवला भी तो अगली फसल की तैयारी कर रहा है। चाँदनी का वह पौधा फूलों से लद गया होगा माँ। बाबा के साथ हमने कई रंगों के गुलाब क्यारियों में लगाए थे। कोको कोला से लेकर सफेद, नारंगी और पीले गुलाब तक। गुलाबी गुलाब तो था ही। वे सब बुला रहे होंगे। मन आसमान में और यादें घर की। जितनी ऊँचाई पर उड़ो घर उतनी ही गहराई से याद आता है माँ। आसमान में उड़ता हुआ मन और ऊपर उड़ता है। लगता है धरती से सम्बंध कट जाएगा पर ऐसा कहाँ हो पाता है माँ? आसमान में उड़ते हुए भी मेरे दिमाग में घर, उसके पौधे, उसकी दीवालें, दरवाजे सब याद आते हैं माँ। बाबा सबेरे बरामदे में बैठे होंगे, लिखते-पढ़ते या बोलकर लिखाते हुए। मैं एक गिलास पानी लाऊँगी। उनके सामने रख दूँगी। वे अपने काम में मग्न हैं। उन्हें याद दिलाना पड़ता है- बाबा पानी पी लो। इस समय बाबा को बहुत तकलीफ होती होगी। उन्हें कौन याद दिलाएगा, बाबा पानी पी लो। कितनी देर से रखा है। इस घर में मेरा रहना कितना जरूरी है माँ? कितना अच्छा घर है खूब हवादार? जिधर से भी चाहो घुस जाओ, जिधर से चाहो निकल जाओ। बिल्ली मौसी तो कभी आ ही नहीं पाती। खिड़की-दरवाजे सब पर जालियाँ लगी हैं। छिपी छिपान खेलने के लिए बहुत अच्छा घर है माँ। मैं आसमान में और ऊँचाई पर आ गई हूँ पर मन घर में ही लगा है। माँ, तुझे भी घर याद आता होगा। घर से इतनी दूर तू भी आकर बैठ गई है। घर भी बाट जोहता है। चाहता है घर वाले लौट कर आएँ। कुछ दिया बाती करें। माँ, बाबा की एक कविता पढ़ती थी मैं- 'दिया-बाती का समय है घर चलें।' घर भी दुखी होता होगा माँ, जब उसके रहने वाले लौट कर नहीं आते होंगे। सूनापन उसे काट खाता होगा। बिना बच्चों के घर कहाँ होता है माँ? तू ही तो कहती है, बच्चे ही घर की शोभा हैं। तू इतना सब कैसे जान जाती है माँ? मैं तो अभी बहुत कुछ नहीं जान पाती। क्या जानने के लिए बड़ा होना जरूरी होता है? तभी तो बड़े लोग बहुत चीजें जानते हैं। अधिक जानने से बड़े लोग परेशान भी रहते हैं। है न माँ? हम लोग बहुत कुछ नहीं जानते तो खुश भी रहते हैं। तू तो कहती है कि जानना ही काफी नहीं है, उसे समझना भी चाहिए। क्या समझना ही जानना होता है माँ? अगर कोई समझ न पाए तो क्या जानेगा माँ? यह समझ कहाँ से आती है? बच्चे हर चीज क्यों नहीं समझ पाते? हमारी एक सहेली बहुत कम समझती थी। उसे पता ही नहीं रहता था कि क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। माँ-बाप जो कपड़ा पहना देते, पहन लेती, जो खाना खिला देते खा लेती। उसे यह भी नहीं पता था कि साँप जहरीला होता है। एक बार वह साँप को पकड़ने के लिए दौड़ गई थी। वह तो कहो मैंने दौड़कर उसे पकड़ लिया था। वह भोली सी बच्चे हँस पड़ी थी माँ। वह साँप को खिलौना समझ रही थी। साँप काट लेता तो क्या होता? जहर उसके शरीर में फैल जाता न ? बहुत मुश्किल हो जाता उसे बचाना तब। मेरी मैम कहती थीं कि सांप आदमी से दूर भागते हैं। जब उन्हें कोई संकट दिखाई पड़ता है तभी काटने दौड़ते हैं। क्या यह सच है माँ? साँप को दूध क्यों पिलाया जाता है माँ ? एक बार मैंने पढ़ा था कि एक छोटा सा मेढक भी साँप निगल ले तो तीन चार महीने उसे कुछ खाने की जरूरत नहीं होगी। तब तो साल में तीन छोटे मेढक ही उनके लिए पर्याप्त हैं। तू तो सुनाती थी कि साँप और नेवले की भी लड़ाई होती है। मैंने साँप भी देखा है और नेवला भी। पर दोनों को लड़ते हुए नहीं देखा है। तूने देखा है माँ ? साँप और नेवले क्यों लड़ते हैं। क्या लड़ना जरूरी है? हम बच्चे भी तो आपस में कभी-कभी झगड़ लेते हैं। तू ही सुलह कराती है। बच्चे तनिक सी बात पर खुट्टटी कर लेते हैं। बोलचाल बंद। पर तनिक सी देर में खुट्टी खत्म, बोलचाल शुरू। क्या यही बचपना है माँ? तेरा दुःखी चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता। मन अब भी आसमान में उड़ रहा है और घर उतना ही अधिक याद आ रहा है। हम सब घर लौटेंगे न? अब बहुत तकलीफ नहीं दूँगी मैं। कोई भी बच्ची माँ को तकलीफ क्यों देना चाहेगी? मेरा मन और ऊँचाई पर पहुँच गया है माँ। क्या बहुत ऊँचाई पर भगवानजी रहते हैं? किसी के मरने पर लोग कहते हैं, वे ऊपर चले गए हैं। इसका क्या अर्थ होता है माँ? ऊपर जाना ही क्या मर जाना होता है ? मौत क्या जीव को बहुत ऊपर ले जाती है। मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ माँ। मेरे दिमाग में उल्टे-पुल्टे सवाल बहुत आते हैं। इन सवालों से मैं तुझे तंग करती हूँ, सोचती हूँ तुझे तंग न करती तो कितना अच्छा होता....? तंग नहीं करूँगी माँ...। अब तंग नहीं करूँगी तुझे ।'