अनुच्छेद-आठ
मैं देर से सो रही हूँ पापा ?
दोपहर का समय। मनु सो गई है। चेहरा दीप्त। सुघर बड़ी आँखें बंद हैं। धनुषाकार भौंहें। सपने में वह घर पहुँच जाती है। बाबा के साथ परिसर में घूम रही है।
'बाबा.....'
'कहो ।'
'कपड़ा खरीदने के लिए....।'
'रूपये चाहिए ?'
'हाँ ।'
'बैंक से निकाल लूँ। फिर ले लेना।'
खुश हो जाती है वह ।
'बाबा...।'
'किताब भी खरीदना है, कापियाँ भी।'
'खरीद लेना ।'
'बाबा, एक बात कहूँ।'
'कहो...।'
'घर की पुताई हो जाय तो घर अच्छा लगेगा।'
'पुताई हो जाय?'
'हाँ बाबा।'
'बरसात के बाद ।'
'ठीक है। बाबा रूपया कम हो तो बाहर बाहर ही पुताई करा दीजिए।'
'बरसात बाद अन्दर-बाहर सभी की पुताई करा देना।'
'ठीक है। बाबा आम कितने दिन में फल देता है?'
'चार-पाँच वर्ष में।'
'आम का पेड़ बीच लान में उग आया है। इसे बचा दिया जाय।'
'बचा लो। खाद-पानी भी देना होगा।'
'दे लूँगीं बाबा। पढ़ाई से छुट्टी पाते ही थोड़ी देर के लिए इसी में काम कर लूँगी। बिना कुछ किए पौधे कैसे चलेंगे? बाबा, बेल भी काला पड़ जाता है।। इसकी भी दवा करनी होगी।'
'वह तो करनी ही पड़ेगी।'
'बाबा, मैंने फूल का दो पौधा और लगाया है। अपने स्कूल के माली से माँग कर लाई हूँ। देखा है आपने ?'
'अभी तो नहीं देखा।'
'वह देखो क्यारी के मेढ़ पर।'
'हाँ देखा।'
'बाबा, बहुत सुन्दर फूल होता है इसका। बाबा अपनी रातरानी रात में बहुत महकती है। मेरे कमरे की खिड़की खुली रहती है। इसकी महक कमरे में भर जाती है। फूल देखो कितने छोटे-छोटे हैं पर महक....।'
'पर ये फूल रात में ही महकते हैं।'
'हाँ बाबा । .... बाबा पपीता का पेड़ और लगवा दो। मोसम्मी का भी पेड़ लगवाओ बाबा। चुलबुल अंशुल के यहाँ मोसम्मी का पेड़ है। खूब फलता है।' 'पौधा मिले तो लगवा दिया जायगा ।'
'अनार का भी बाबा। घर में ही तोड़कर अनार का रस पियो। इमली का पेड़ लगाओ बाबा। स्कूल के नजदीक एक इमली का पेड़ है। उससे हम लोग इमली तोड़ते हैं। कितने दिन में इमली का पौधा फल देता है बाबा?'
'इमली का पौधा कई वर्ष बाद फल देता है। गांव में लोग कहावत कहते हैं-
पाँचे आम पचीसे महुआ।
तीस बरस पर इमली फौहा।
'तो क्या इमली तीस बरस बाद फलती है?'
'हाँ लम्बा समय लेती है। पन्द्रह-बीस वर्ष तो लग ही जाते हैं।'
इसी बीच हिमानी आ जाती है। मनु दौड़ कर उससे मिलती है। दोनों खेलने के लिए हरी पत्तियाँ तोड़ती हैं। कुछ चांदनी के सफेद फूल भी इकट्ठा करती हैं। तख्ते पर बैठकर दोनों खेलने में मग्न ।
स्वप्न देखते मनु का चेहरा खिला हुआ। अन्दर जो रील चल रही है, चेहरे पर उसकी छाप । ओंठ भी कभी कभी फरफराते। आँखें अब भी बंद । पिता बैठे मनु का चेहरा निहारते हुए। ग्लूकोज की बोतल में कुछ दवाइयाँ भी मिला दी गई हैं। एक एक बूँद बोतल से गिरता नली से मनु के शरीर में जाता हुआ। पिता बोतल से बूँद बूँद गिरना देखते हैं। मनु का चेहरा बताता है कि अन्दर कुछ चल रहा है। एक सुखकर परिदृश्य। मनु के शरीर में थोड़ी गति । धीरे धीरे आँख खुलती है। फिर बन्द होती है। धीरे धीरे फिर खुल जाती है। मनु पिता को देखती है। पूछ बैठती है, 'मैं देर से सो रही हूँ पापा?'