वाजिद हुसैन सिद्दीकी की कहानीवह एम.एस.सी, पी.एच.डी थी पर अपने को हाई स्कूल बताकर इस दूर दराज़ के कॉलेज में लैब गर्ल की नौकरी कर रही थी। बेचारी माधुरी! अगर कोई समय पर मदद कर देता तो वह भी इस डिग्री कालेज में प्रोफेसर होती। होने को तो अब भी हो सकती है पर समाज को पता चल जाएगा, वह रेप विक्टिम है। उसकी छवि दाग़दार हो जाएगी। कॉलेज का स्टाफ और स्टूडेंटस उस पर, फिकरे कसेंगे, बे सिर-पैर की बातें करेंगे। उसकी परिस्थिति उस मेंढक जैसी हो जाएगी जिसके बारे में गांधी जी ने कहा है, 'ओनली दी टोड नोज़ व्हेयर दि हैरो पिंचेज़।' यानी जब खेत में हल चलता है तो केवल मिट्टी के नीचे रहने वाला मेंढक ही जानता है, उसे हल कहां पर चुभता है। अपने ही हाल पर सवाल भी करती जवाब भी देती और फिर लंबी सांस खींचकर दार्शनिक की तरह सोचती, 'मोबाइल पर पोर्न मूवीज़ देखने के बाद पुरूष के लिए स्त्री हवस मिटाने का साधन भर रह जाती है। अतः स्त्री कहीं भी सुरक्षित नहीं है, न घर में न बाहर। सोचिए, इसमें रेप पीड़िता का क्या क़सूर है? कब समाज बलात्कार को हादसा मानकर विक्टिम को नॉर्मल जीवन जीने का अधिकार देगा! और सफाई करते हाथों की गति बढ़ा देती। फिलहाल माधुरी को एक ही बात का सुकून था कि आने वाली पीढ़ी को अपने सामने तैयार होते देख रही थी। यह सब यहां से पढ़कर जाएंगे और खूब पैसे कमाएंगे। कल को उनके बच्चे आकर पढ़ेंगे, क्या तब तक वह सफाई ही करती रहेगी। विभाग के लोग उसकी तारीफ के पुल बांधते तो वह सोचती वह जो भी काम करें, पूरे मन से ही करेगी। फिर सफाई ही क्यूं न हो। उसकी यह आशाएं पलभर टिकतीं और फिर अगले ही पल अपनी ज़रूरतों और घर चलाने की प्राथमिकता के चलते वह कुछ और सोच भी नहीं सकती थी। चाक और डस्टर की उड़ती धूल गले के नीचे उतर जाती और अनगिनत शब्दों से भरे बोर्ड चितरे हुए दिखाई देते। भाषा विहीन होठों के अक्षर आकार लेते। पंख फैलाते उसके हाथ वह करना चाहते जो लैक्चर थेटर में रोज़ होता। थेटर में बिताईं यह घड़ियां उसकी अपनी होतीं। वैसे भी इस समय तक केमिस्ट्री लैब को छोड़कर सारी कक्षाएं खाली हो जाती थी। अपने मनपसंद समय के टुकड़े को भीतर गहरे तक उतारती। माधुरी उन पलों में प्रोफेसर बन जाती। सामने की ख़ाली कुर्सियों पर उसे हलचल दिखाई देती। कैंपस में घूमते छात्र वहां बैठे दिखाई देते। उससे सवाल करते और वह जवाब देती, पोडियम पर हाथ टिकाकर अगले सवाल की प्रतीक्षा करती। यह रोज़ का सिलसिला था। इन क्षणों की वह बेसब्री से प्रतीक्षा करती जब लैक्चर रूम को साफ करते हुए वह पढ़ाने का अभिनय करती। तब उसके बिखरे बाल तह किए हुए सलीके से जूड़े में बंधे होते। सफाई के लिए पहना अपना एप्रिन निकाल कर रख देती। धुले साफ कपड़ों से व्यक्तित्व पर गरिमा होती। वह कलाई घड़ी की ओर देखती, प्रोफेसर शशिकांत का घर जाने का समय हो जाता, तब कहीं जाकर वह उन कक्षाओं से बाहर निकल पाती। किसी जटिल पहेली में उलझी वह, निराशा के घने बादलों से बचते- बचाते वह केमिस्ट्री लैब की और चली जाती। केमिस्ट्री लैब उसके भीतर बस गई थी। साल भर से शिक्षण संस्थान के इसी विभाग में उसकी ड्यूटी एक लैब गर्ल की थी। डिपार्टमेंट में कई लोग आए और चले गए। माधुरी की पोस्टिंग वही रही। कई प्रोफेसर उसे जानते थे। उन सब में उसके पसंदीदा थे, प्रोफेसर शशिकांत। विनम्र और शिष्ट। कभी कैंटीन में तो कभी गैलरी में हाय-हलो हो जाता - 'कैसी हो माधुरी?' इतनी मीठी उनकी आवाज़ जैसे शक्कर घुली हो। माधुरी भी उस मिठास को क़ायम रखने की कोशिश करती 'मैं ठीक हूं, धन्यवाद। आप कैसे हैं?' बस इतनी- सी बात होती। ज़्यादा से ज़्यादा कभी- कभार मौसम के बारे में बात हो जाती- ठंड बढ़ने लगी है।' 'है न कभी-कभी तीखी हवाएं भी मौसम को ठंडा कर देती है। हैव ए गुड डे।' 'यू टू।' वह केमिस्ट्री लैब के बाहर जड़ खडी होकर प्रतीक्षा करती जब तक शशिकांत स्प्रिट लैम्प बुझाते और प्रयोग की आबसरवेशन डायरी पर नोट करते। वह बेख़बर थे कि माधुरी प्रयोग समाप्त होने तक उनकी प्रतिक्षा करती रहती है। वह बेख्याली में स्कूटर स्टार्ट करते और चले जाते। उन्हें पता चला जब सफाई सुपरवाइजर सुरेश कुमार ने उनसे कहा, 'सर प्लीज़ अपना काम थोड़ी जल्दी बंद कर दिया कीजिए, माधुरी लैब के बाहर खड़ी आपका इंतजार करती रहती है। आपके जाने के बाद वह अकेली शाम तक लैब का मेंटीनेंस करती है। मुझे डर है कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाए।' अगले दिन जल्दी काम निबटा के वह घर पहुंच गए। बहुत दिन के बिजी शेड्यूल से वह थक चुके थे, मन भी बोझिल था। उन्होंने अपनी मंगेतर को फोन लगाया जो एक धनी व्यापारी की इकलौती लड़की थी। उससे कहा, 'आज शाम को तुम बिज़ी तो नहीं हो।' 'जी नहीं, फुर्सत में हूं।' 'शाम को तैयार रहना, फिल्म देखने के लिए चलते हैं। सड़क पर जाम के कारण शशिकांत देर से पहुंचे। उन्होंने शीला से साथ चलने को कहा। शीला ने कहा, 'शुरू की फिल्म निकल गई होगी, अब जाने से क्या लाभ? शशिकांत ने कहा, 'आउटिंग हो जाएगी।' वह चलने के लिए उसे मनाने लगे। तभी उस व्यापारी की पत्नी आ गई और अपने भावी दामाद को खरी- खोटी सुनाने लगी। बेटी शीला को प्यार और शादी के बारे में इतना ही पता था, जितना उसकी मां ने उसे बताया था। उसने बात को संभालने के बदले मां के सुर में सुर मिलाया। बात बढ़ती गई और मंगनी टूटने के बाद ही समाप्त हुई। बिस्तर पर करवटें बदलते शशिकांत सोच रहे थे, कितनी अलग है दो औरतें, 'शीला मेरी मंगेतर है, लेट होने पर जहरीले वाण छोड़ने लगी। माधुरी ग़ैर है, लेट होने पर उफ भी नहीं करती है। अगले दिन माधुरी केमिस्ट्री लैब के बाहर खड़ी स्प्रिट लैम्प बुझने की प्रतिक्षा कर रही थी। शशिकांत ने उसे इशारे से अंदर बुलाया और कहा, 'माधुरी तुम दरवाज़े के बाहर खड़ी एक्सपेरिमेंट पूरा होने की प्रतिक्षा करती रहती हो, तुम ऐसा क्यों करती हो?' माधुरी कह न पाई नाजाने क्यों आपके सपनों को साकार होते देखकर उसे खुशी मिलती है। फिर उसके मन में आया, कह डाले, 'जब वह पी.एच.डी कर रही थी, लैब ब्याय के हड़कंप मचाने से उसके कई प्रयोग विफल हो गए थे। उसने मुस्कुरा कर कहां, 'मैं पकवान बनाती हूं और कोई जल्दबाजी करता है तो पकवान बिगड़ जाता है। शशिकांत ने कहा, 'मोहतर्मा, मैं पकवान नहीं बनाता हूं, पी.एच.डी करता हूं। माधुरी हंस पड़ी और वह अपलक उसके मोती जैसे दांत देखते रहे । कुछ दिनों बाद शशिकांत ने माधुरी को अपनी थिसिस दिखाई और कहा, ' राइटिंग वर्क पूरा हो गया बस जमा करना बाकी है।' फिर कहा, 'माधुरी में समय पर पी.एच.डी पूरी होने का श्रेय तुम्हें देता हूं। उसने कहा, 'आपको इसका श्रेय अपनी माता को देना चाहिए।' उन्होंने गमगीन लहजे में कहा,' मैंने तो अपने माता-पिता को बचपन में ही खो दिया था, अनाथालय में रहकर यहां तक पहुंचा हूं।' माधुरी ने गमगीन लहजे में कहा, 'आई एम सॉरी।' तभी दो गुंडे आए और शशिकांत सेे थीसिस छीनने लगे। छीना-झपटी में शशिकांत घायल हो गए। गुंडो ने उनसे थिसिस छीन ली। प्रयोगशाला में बर्फ तोड़ने का एक हैमर था जिससे माधुरी बर्फ तोड़ कर स्टूडेंटस को दिया करती थी। उसने हैमर से गुंडो पर प्रहार किया और उनसे थीसिस छीन ली। शोर- शराबा सुनकर सफाई कर्मचारी आ पहुंचे और गुंडो को भागना पड़ा। माधुरी घायल हो गई थी। अधिक ख़ून के रिसाव के कारण बेहोश हो गई थी। क्रीटीकल कंडीशन में उसे अस्पताल ले जाया गया। पुलिस ने उसके घर के पते पर संपर्क किया। पता फर्जी था। पुलिस उसका सही पता जानना चाहती थी। अतः कॉलेज के प्रधानाचार्य और मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसके कमरे की तलाशी ली गई। सभी स्तब्ध रह गए, जब तलाशी में उसकी एम.एस.सी की डिग्री और पी.एच.डी की थिसिज़ मिली। उसकी डायरी से पता चला उसके साथ बलात्कार हुआ था। इस राज़ को छुपाने के लिए उसने अपने को हाई स्कूल बताकर लैब गर्ल की नौकरी की थी। अस्पताल पहुंचकर पता चला माधुरी के सिर में चोट लगी है डॉक्टर उसे होश में लाने का प्रयास कर रहे थे। अस्पताल में कई दिन तक उसकी देखभाल के लिए लेक्चरर्स और स्टूडेंटस आते रहे। धीरे-धीरे वह अकेली होती गई। शशिकांत उसकी तीमारदारी करते थे। वह ग़मगीन हो गए, जब होश आने पर उसने उन्हें प्रोफेसर सर कहकर संबोधित किया।' डॉक्टर ने उनसे कहा, ' इन्हें शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस हुआ है लगभग पिछले एक साल का वह सब कुछ भूल चुकी हैं। यही वह समय था जब उनकी उससे मुलाकात हुई थी। वह फिर से काम पर आने लगी थी। एक दिन शशिकांत को किसी एक्सपेरिमेंट के लिए टूटे हुए बर्फ की ज़रूरत थी। हालांकि बर्फ तोड़ना लैब गर्ल का काम होता है फिर भी उन्होंने उससे बर्फ तोड़ने को नहीं कहा। वह स्वयं हैमर से बर्फ तोड़ने लगे। उनकी उंगली में हैमर लग गया और खून बहने लगा। बहते हुए खून ने माधुरी को शशिकांत के साथ घटित पिछली घटना की याद दिला दी जिससे उसकी याद्दाश्त वापस आ गई। उसने अपनी साड़ी से एक पट्टी फाड़कंर उनकी उंगली पर बांध दी और खून बहने से रोक दिया। शशिकांत समझ गए, इसकी याद्दाश्त वापस आ गई है। उसके मस्तिष्क पर दबाव डालना उचित नहीं है। अतः अंजान से बने रहे, थैंक यू कहा और अपने काम में लग गए। कॉलेज की छुट्टी के बाद माधुरी लैब की सफाई -सुतुराई में लग गई। शशिकांत अपनी कुर्सी पर बैठे एक प्रश्न पर निरंतर विचार कर रहे थे।, 'कॉलेज में सभी लोग जान चुके हैं, 'माधुरी के साथ बलात्कार हुआ है। उसकी याद्दाश्त वापस आने के बाद लोग उसके घाव कुरेदेंगे तो फिर से उसकी याद्दाश्त जा सकती है या वह आत्महत्या जैसा क़दम उठा सकती है...।' यदि ऐसा हुआ तो उसका जिम्मेदार कौन है?' उनके ज़मीर ने कहा, 'शशिकांत तुम ज़िम्मेदार हो। तुम्हें बचाने के चक्कर में उसकी आइडेंटी डिस्क्लोज हुई। उनके मन में विचार आया। माधुरी सुंदर है सुशील है क्यों न वह उससे विवाह कर ले...?' अगले पल उनके अंदर का आदमी उन्हें डराता है, 'शशिकांत, क्या गारंटी है, विवाह के बाद समाज उसे रुसवा नहीं करेगा?' जिसके फल स्वरुप वह आत्मघाती कदम नहीं उठाएगी?' वह सहम गए। उनकी अंतरात्मा ने उनसे कहा, 'यह मर्द का इम्तिहान है।' पास हो गए तो मर्द कहलाओगे फेल हो गए तो नामर्द कहलाओगे। उन्होंने हिम्मत जुटाई फिर चहल कदमी करते हुए माधुरी के पास गए। उससे कहा, 'माधुरी, तुमने जिस तरह मेरी रक्षा की, ऐसा कोई पत्नी ही कर सकती है। मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं, क्या तुम मेरी पत्नी बनना स्वीकार करोगी?' माधुरी ने लजाते हुए कहा, 'मोहब्बत तो मैं भी आपसे करती हूं। फिर भी शादी नहीं कर सकती।' 'क्यों।'माधुरी ने कहा, 'मैं रेप पीड़िता हूं। क्या आप में रेप पीड़िता को अपनी पत्नी बनाकर समाज का दंश झेलने का साहस है। शशिकांत ने कहा, 'मेरे विचार में तुमने न कोई अपराध किया न पाप किया है। तुम्हें मुंह छुपाने की ज़रूरत नहीं है। दरअसल उसे मुंह छुपाने की जरूरत है जिसने यह घ्रड़ित अपराध किया है। तुम्हें समान्य जीवन जीने का अधिकार है। हमारे समाज में वह एहसास कब पैदा होगा? ऐसे जड़ बुद्धि लोगों के दंश से विचलित नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को न धिक्कारना न इंर्पोटेंस देना चाहिए। हमें अपने काम से काम रखना चाहिए, अपनी और देश की तरक्की के लिए प्रयास करना चाहिए। मैं समझता हूं तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। यदि तुम मेरे विचारों से सहमत हो तो मेरी पत्नी बनना स्वीकार करो। माधुरी के चेहरे पर वह मुस्कुराहट आई जिसे वह भूल चुकी थी। शशिकांत ने उसके हाथ अपने हाथों में लिए और उसका माथा चूम लिया। वह उसे लेकर मंदिर गए। उन्होंने भगवान की मूर्ति के सामने एक दूसरे को पति पत्नी स्वीकार कर लिया। उनके विवाह की पार्टी में कॉलेज के प्रिंसिपल ने अपने भाषण में कहा, 'प्रोफेसर श्रीकांत ने माधुरी से विवाह करके सराहनीय कार्य किया है। वह हमारे रोल मॉडल हैं। उन्होंने स्टाफ और स्टूडेंटस से पूछा, 'माधुरी ने बहुत सफर किया है। मैंने उसे प्रवक्ता की नौकरी पर रखकर, शादी का उपहार देने का निर्णय लिया है, क्या आप मेरे मत से सहमत हैं?' तालियों की गड़गड़ाहट ने उनके प्रश्न का उत्तर दे दिया। माधुरी ने पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। 348 ए, फाईक एंक्लेव, फेज़ 2, पीलीभीत बाईपास बरेली (उ प्र) 243006, मो : 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com