Yaado ki Asarfiya - 19 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 19 - कनक टीचर का सामाजिक विज्ञान

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यादों की अशर्फियाँ - 19 - कनक टीचर का सामाजिक विज्ञान


कनक टीचर का सामाजिक विज्ञान 


कनक टीचर मेना टीचर की तरह स्कूल में भी आते थे और ट्यूशन में भी। फर्क सिर्फ इतना था की वह स्कूल में हमे नहीं पढ़ाते और इसलिए हमारे लिए थोड़ा नया था। हमको कभी भी कनक टीचर ने पढ़ाया इस लिए हम एक तरफ से उत्साह में भी थे और चिंता में भी। चिंता इस बात की थी कनक टीचर मेना टीचर के बेस्ट फ्रेंड थे और इसलिए वह डांटने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। कनक टीचर की भी तारीफ हमने सुनी थी पर वह भरोसेमंद नही थी क्योंकि जैसे हमे मेना टीचर को प्रसन्न रखने के लिए उसकी जूठ - मुठ की तारीफ उनके सामने करते है वैसे ही हो सकता था की सब कनक टीवेहर की भी इसी तरह तारीफ करते होंगे। हमने उनका गुस्सा और डांट का तो वैसे भी अनुभव किया था पर उनकी पढ़ाई का कोई अनुभव नहीं था और यहीं पढ़ाई की तारीफ सुनी थी और आज अनुभव करने का मौका मिला था या शायद सजा।
 
      मणिक सर और उसके बाद मेहुल सर का लेक्चर भरने के बाद कनक टीचर आधे घंटे के लिए सामाजिक विज्ञान पढ़ाने के लिए आते थे। वह टीचर के साथ ट्यूशन का संचालन भी करते थे मतलब ट्यूशन की फीस लेना, लेक्चर का टाइम टेबल बनाना और अटेंडेस लेना। हालांकि उन्होंने अटेंडेस का कार्य तो मुझे दे रखी था और मैंने अपने दोस्तों को क्योंकि में स्कूल में तो यह काम करती थी अब ट्यूशन में भी में ही करू? कनक टीचर का मेना टीचर की तरह कोई दवा नहीं था की वह कोई भी सब्जेक्ट पढ़ा देंगे परंतु वह सिर्फ सामाजिक विज्ञान पढ़ाते थे इसलिए ट्यूशन में यह सब्जेक्ट भी शामिल कर दिया गया। 

 पहले दिन तो काफी देर तक कनक टीचर ने बाते ही की। अपने प्राइवेट ट्यूशन की बात, अपने रूल्स की बात और खास अपने डांट की बात। उसका फेवरिट डायलॉग था “ अगर बात की है तो ऐसी मार पड़ेगी की गिरनार की दूसरी ओर गिरोगे।” फिलहाल तो वह अच्छे टीवेहर बनकर आए थे। मेरे साथ और मेरे दोदतो के साथ बहुत अच्छी तरह से बात की। 

  उन्होंने आखिर सामाजिक विज्ञान पढ़ाना शुरू किया। हमे सचमुच बहुत मज़ा आने लगा। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की वह कनक टीचर है और खास कर मेना टीचर के फ्रेंड। थोड़ा पढ़ने के बाद खुद रुक जाते और हमे पाठयपुस्तक में से खुद प्रश्न बनाकर उसके जवाब लिखने के लिए कहते। इसमें भी हम अपना मज़ा ढूंढ लेते। हम सब इस रेस में होते थे की कौन जल्दी लिख ले। और लिखने के बाद टीचर को बताने पर वह तारीफ जो करते थे हमारी। दूसरा कारण था की जल्दी लिखने की वजह से हम जल्दी फ्री हो जाते थे और अपना मन पसंद काम कर सकते थे हालांकि गेम तो नहीं खेल सकते थे पर धीरे धीरे बात जरूर करते थे इतने में लेक्चर खत्म हो जाता था।


 हम सब उनकी बातों में खो जाते पर धीरे धीरे वह पॉलिटिक्स के ओर सरक जाते और आ जाते भाजप - कांग्रेस के बीच। हर दिन किसी भी टॉपिक से चाहे इतिहास हो, भूगोल हो या नागरिक शास्त्र हो वह पॉलिक्टिक्स में ही पहुंच जाते और फिर आता है हमे कंटाला। हम घड़ी की और देखते की कब छूटी पड़े। फिर हम निकल पड़ते क्लास की बहार , मेरा ठिकाना होता था स्कूलबस, जिसमे में छोटे से बच्चो के साथ घर जाती थी। माही को उनके पापा लेने आते थे। धुलू अपनी साइकल में और बाकी सब चलके। खुशाली का घर तो पास में ही था। 

    फिर भी घर जाकर कोई थकान नहीं होती थी होती थी तो सिर्फ मुस्कान।