आज काजल बहुत गुस्से में ऑफिस से निकली थी। गुस्से का कारण कुछ ऐसा था कि जिससे उसे अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने का भ्रम हो रहा था। मुंबई की लोकल ट्रेन के लेडीज कोच में खड़ी-खड़ी वह आज की घटना के बारे में सोच रही थी।
हुआ यह था कि ऑफिस में उसने प्रतीक को सात बार फोन किया था, लेकिन हर बार उसे एक ही जवाब मिला "अभी मीटिंग में व्यस्त हूं, बाद में फोन करूंगा।" लेकिन शाम हो जाने के बाद भी प्रतीक का कोई फोन नहीं आया। काजल और प्रतीक की शादी को अभी सिर्फ तीन महीने ही हुए थे। वे दोनों मुंबई में अलग-अलग जगहों पर नौकरी करते थे। काजल को एक ही शिकायत रहती थी कि दिनभर प्रतीक उसे नज़रअंदाज़ करता है, और सिर्फ शाम को घर आकर ही प्यार जताता है। उसे लगता था कि दिनभर कस्टमर्स को जवाब देने का समय मिल जाता है, लेकिन अपनी पत्नी से बात करने का नहीं।
प्रतीक भी दिनभर की सारी गलतफहमियां शाम को घर आकर सुलझा लेता और काजल को मना लेता। लेकिन आज काजल ने ठान लिया था कि वह प्रतीक को आसानी से माफ नहीं करेगी। आज वह सबकुछ साफ-साफ कहकर रहेगी। गुस्से में उसने अपना फोन भी स्विच ऑफ कर दिया।
सांताक्रूज स्टेशन पर उतरकर वह बाहर की ओर चलने लगी। उसका गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था। घर की ओर जाते हुए वह मन ही मन बड़बड़ाती जा रही थी। चलते-चलते उसकी नज़र अचानक एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ी। वे दोनों हाथ में आइसक्रीम लिए मज़ाक करते और हंसते हुए चल रहे थे। उन्हें देखकर काजल दो पल के लिए सोच में पड़ गई कि इतनी उम्र में भी वे कितनी खुशी-खुशी जी रहे हैं। उसने अपने विचारों पर काबू पाया और कदम तेज कर दिए।
घर के पास पहुंचते ही उसकी कजिन स्मिता ने उसे आवाज़ दी। स्मिता का घर काजल के घर के काफी करीब था।
“अरे काजल, इतनी जल्दी में क्यों भाग रही हो?”
“ओह, हाई स्मिता। कैसी हो?” काजल स्मिता के घर की ओर बढ़ी। चलते हुए उसने मूड बदलने की कोशिश की, जो इतना आसान नहीं था।
“आओ, अंदर आओ,” स्मिता ने उसे स्वागत करते हुए कहा। “क्या हुआ? आज बहुत गुस्से में लग रही हो,” उसने काजल के चेहरे के भाव देखकर पूछा।
“कुछ नहीं यार, आज ऑफिस में बहुत काम था और बॉस से लड़ाई हो गई, इसलिए थोड़ा मूड खराब है। बोलो, तुम्हारा क्या चल रहा है?” काजल ने असली बात छिपाने की कोशिश की।
“कुछ नहीं, बस तुम्हारे सामने हूं। एक मिनट रुको,” स्मिता कुछ कहने ही वाली थी कि उसका फोन बजने लगा। उसने फोन उठाया और करीब एक मिनट बाद रखकर हंसते हुए बोली, “साहब को अभी याद आया मेरा दोपहर का फोन, और वह भी यह बताने के लिए कि आज देर से आएंगे।” स्मिता अपने पति को प्यार से “साहब” कहती थी।
“ओह...” काजल ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस एक शब्द में ही जवाब दे दिया, क्योंकि उसकी स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी, हालांकि थोड़ी अलग। उसे तो फोन भी नहीं आया था।
“और यह रोज़ होता है। मेरी नौकरी बैंक में है, तो मेरा लंच ब्रेक चलता है, लेकिन उनका लंच ब्रेक खत्म हो चुका होता है। ऐसे में दिनभर ढंग से बात ही नहीं हो पाती,” स्मिता ने फोन को साइड में रखते हुए कहा।
“तो फिर दिनभर बात ही नहीं होती?” काजल ने हैरानी से पूछा।
“अरे, दोनों का ऐसा कोई इरादा नहीं होता, लेकिन हां, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पूरे दिन बात ही न हो पाए,” स्मिता ने जवाब दिया।
“तो फिर?”
“फिर क्या, हालात ऐसे हों तो कोई क्या कर सकता है? और वह भी मुंबई में!” स्मिता हंस पड़ी और आंखें मटकाते हुए बोली, “कभी-कभी सोने या हीरे की अंगूठी की डिमांड रख देनी चाहिए।” यह सुनकर काजल भी हंस पड़ी। दोनों बातें करते-करते समय का ध्यान ही नहीं रहा।
“चलो, अब मैं निकलती हूं,” कहकर काजल अपने घर की ओर बढ़ने लगी। चलते-चलते वह अपने घर पहुंची और दरवाज़ा खोलने के लिए पर्स से चाबी निकालने लगी। तभी उसके बगल वाले घर के पास एक टैक्सी आकर रुकी, और उसमें से एक आर्मी ऑफिसर उतरे। वह सीधे अपने आंगन में खड़ी अपनी पत्नी से मिलने पहुंचे। “पूरे छह महीने और दस दिन,” उनकी पत्नी बोली और वे दोनों घर के अंदर चले गए।
काजल यह सब देखती रह गई। घर के अंदर जाते हुए वह आर्मी ऑफिसर की पत्नी के बारे में सोचने लगी। वह छह महीने बाद अपने पति से मिली थीं, और वह भी इतनी खुशी-खुशी। जबकि वह केवल छह घंटे में बात न होने पर इतनी गुस्से में थी। अब उसे महसूस हुआ कि समस्या प्रतीक में नहीं, बल्कि उसमें थी।
काजल को पता था कि मल्टीनेशनल कंपनी के हेड ऑफिस में मैनेजर के पद पर काम करने वाले उसके पति का व्यस्त रहना स्वाभाविक था। अपनी यह ज़िद कि प्रतीक उसे बार-बार फोन करे, बिल्कुल जायज़ नहीं थी।
उसने अपना फोन चेक किया, जो स्विच ऑफ था। फोन ऑन करते ही देखा कि प्रतीक के 15 मिस्ड कॉल्स थे और एक मैसेज भी था:
“सॉरी काजू, आज सच में बहुत व्यस्त था। तुम्हारा फोन क्यों बंद आ रहा है? घर पहुंचकर कॉल कर देना। मैं आज जल्दी घर आ जाऊंगा, डिनर के लिए बाहर चलेंगे। लव यू :)”
यह मैसेज पढ़ते ही काजल का गुस्सा जैसे गायब हो गया। उसे एहसास हुआ कि अगर प्रतीक उसे फोन नहीं करता, तो क्या हुआ? वह उसका कितना ध्यान रखता है। उसका सारा गुस्सा जैसे प्यार में बदल गया।
अब वह प्रतीक का इंतज़ार कर रही थी, लेकिन झगड़ा करने के लिए नहीं, बल्कि उससे मिलने के लिए। डोरबेल बजी तो वह दौड़कर दरवाज़ा खोलने गई और प्रतीक से लिपट गई।
“आई लव यू, प्रतीक। और सॉरी फॉर मिसबिहेव,” काजल बोली।
प्रतीक यह सुनकर हैरान रह गया। “लव यू टू, काजू। लेकिन अचानक क्या हुआ?”
“श्श्श...!” काजल ने उसे चुप करा दिया।
“तो फिर बाहर जाने का प्लान कैंसल?” प्रतीक ने जानबूझकर पूछा।
“ना बाबा!” काजल ने तुरंत जवाब दिया और दोनों हंसने लगे।
अक्सर हमें पता होता है कि जो हम चाहते हैं, वह पूरी तरह संभव नहीं है। फिर भी हम अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं। हमें कितना भी अच्छा मिल जाए, लेकिन अगर वह हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं होता, तो हमारा अहंकार आहत हो जाता है। ऐसे में हम भगवान से भी शिकायत करने लगते हैं।
असल में, हमारे पास जो है, उसकी अहमियत हमें तब समझ आती है, जब हम उन लोगों को देखते हैं, जिनके पास वह नहीं है। छोटी-छोटी बातों को लेकर हम इतने गंभीर हो जाते हैं कि अपना साधारण जीवन खुद ही उलझा देते हैं। और इसकी वजह बस एक होती है – हमारा "छोटा सा अहंकार।"