Woh Yaadgar Lamhe, woh sachchi Dosti in Hindi Short Stories by R. B. Chavda books and stories PDF | वो यादगार लम्हे, वो सच्ची दोस्ती

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वो यादगार लम्हे, वो सच्ची दोस्ती

यह कहानी है बचपन की एक ऐसी दोस्ती की, जो मासूमियत और सच्चे विश्वास के धागों से बंधी हुई थी। एक ऐसी दोस्ती, जो आज भी यादों के रूप में दिल में धड़कती है, भले ही वक्त ने उनके रास्ते जुदा कर दिए हों।

रूही की पहली कक्षा का पहला दिन था। नई किताबें, नई ड्रेस, नए शिक्षक, और नए दोस्त। क्लास में एक लड़की पर उसकी नज़र पड़ी, उसका नाम था हीर। दोनों के बीच शुरुआत में कोई खास बातचीत नहीं हुई थी। वे सिर्फ सहपाठी थीं – एक-दूसरे के लिए सामान्य रूप से मौजूद। लेकिन वक्त के साथ-साथ, जैसे ही मासूमियत और बचपन का रंग गहराने लगा, वैसे ही उनकी दोस्ती की नींव मजबूत होती गई।

“कुछ रिश्ते लफ्जों से बंधे नहीं होते,
उनमें सिर्फ दिल की आवाज़ होती है।
हर कदम पे साथ निभाने का वादा नहीं,
पर हर एहसास में बस वही खास होती है।”

तीसरी कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते, हीर और रूही एक-दूसरे की सबसे प्यारी सहेलियाँ बन गई थीं। रोज स्कूल के बाद हीर के दादा जी उसे लेने आते, और रूही के पिता उसे। मगर रूही के पास घर तक जाने के लिए कोई वाहन नहीं था, उसे पैदल ही घर लौटना पड़ता था। हीर को कभी उसके दादा जी, कभी उसके पापा, या कभी काका स्कूटर से लेने आते थे। लेकिन हीर इतनी पक्की दोस्त थी कि वो हर बार अपने दादा जी से कहती, "मैं रूही के साथ पैदल ही घर जाऊंगी।" उसका यह मासूम सा अनुरोध यह बताने के लिए काफी था कि इस दोस्ती की गहराई कितनी बड़ी है। दोनों सहेलियाँ हंसी-मजाक करते हुए, बातों में डूबी, रास्ते भर अपने मासूम सपनों की दुनिया में खोई हुई घर की ओर बढ़तीं।

जैसे-जैसे वे बड़े हुए, दोस्ती भी गहरी होती गई। चौथी कक्षा में आकर उनकी दोस्ती और भी मजबूत हो गई। मगर उसी समय रूही के घर की परिस्थितियाँ कुछ खास अच्छी नहीं थीं। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उसके पास किताबें खरीदने तक के लिए पैसे नहीं थे। रूही को यह चिंता खाए जा रही थी कि वह बिना किताबों के कैसे पढ़ेगी। जब यह बात हीर को पता चली, तो उसने बिना कुछ सोचे अपनी बचत के पैसों से उसके लिए किताबें खरीदीं और उन किताबों में खुद ही निबंध, कविताएं और नोट्स लिख दिए ताकि रूही को लिखने का झंझट न करना पड़े।

"सच्ची दोस्ती वो है, जो हर दर्द समझे,
बिना कहे हर जरूरत का हल ढूंढे।
वो जिसके दिल में हो अपनेपन का एहसास,
बिना किसी स्वार्थ के, बिन किसी प्रयास।”

हीर की दोस्ती सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं थी; वह रूही के लिए हर वक्त खड़ी रहती। वह उसे पेन, पेंसिल, कॉपी और यहाँ तक कि अपने लंच में से भी कुछ न कुछ देती ताकि रूही भूखी न रहे। यह उसकी दोस्ती का एक सच्चा और गहरा रूप था, जो सिर्फ मदद करना नहीं, बल्कि पूरी तरह से समर्पित होना था। स्कूल से घर जाते समय वे दोनों एक-दूसरे के हर छोटे-बड़े राज़ शेयर करतीं, मानो उनके बीच कोई दीवार नहीं थी। एक दिन तो ऐसा हुआ कि उनके स्कूल का साइंस प्रोजेक्ट बनाने के लिए हीर ने पूरा दिन रूही के घर पर बिताया। उस दिन दोनों ने मिलकर एक प्रोजेक्ट तैयार किया, और खूब मस्ती भी की। वे बचपन की नादानी में हंसी-मजाक करते हुए अपने छोटे-छोटे सपनों और इच्छाओं के बारे में बातें करतीं, जैसे कि उनके पास पूरी दुनिया का समय हो।

जहाँ पहले वे "साधारण" विद्यार्थी मानी जाती थीं, वहीं पाँचवीं कक्षा में उनकी मेहनत ने उन्हें अच्छे अंकों तक पहुंचाया। अब उन्हें "होशियार विद्यार्थियों" की श्रेणी में गिना जाने लगा। उनकी दोस्ती में अब एक गर्व और सम्मान की भावना भी जुड़ गई थी।

छठी कक्षा में एक नई सहेली बीजल उनकी जिंदगी में आई। हीर और रूही का रिश्ता इतना गहरा था कि बीजल को अकसर ऐसा महसूस होता कि वह उनके बीच में आ गई है। वह मजाक में कहती, "हीर मेरी दोस्त है, रूही तुमने उसे मुझसे छीन लिया।" हीर भी कभी-कभी बीजल के साथ समय बिताती तो रूही को नहीं बुलाती, और कभी रूही के साथ होती तो बीजल को। इन छोटी-छोटी बातों से तीनों के बीच हल्की खटास आती, मगर वह दोस्ती का प्यार और बचपन की मासूमियत ऐसी थी कि वे एक-दूसरे से रूठते-मानते रहते।

“कुछ रंजिशें दोस्ती का रंग नहीं बदलतीं,
थोड़ी-बहुत खट्टी-मीठी बातें हैं जरूरी।
सच्चे दोस्त वो होते हैं जो रूठकर भी,
मुस्कुराते हुए फिर से कहते हैं, ‘तू ही मेरी मंजूरी।’”

जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, यह नोंकझोंक सातवीं और आठवीं कक्षा में भी जारी रही। उनकी हंसी-ठिठोली, उनकी छोटी-छोटी लड़ाइयाँ, और उनके पल-पल बदलते भाव यह बताते थे कि यह दोस्ती गहरी जरूर है, मगर हर बचपन की तरह इसमें थोड़ी-बहुत ईर्ष्या भी थी। अब हाई स्कूल का समय आ गया था, और उनके रोल नंबर के हिसाब से बैठने की व्यवस्था की गई थी। रूही और बीजल एक ही बेंच पर बैठीं और हीर पीछे की बेंच पर।

समय के साथ, धीरे-धीरे रूही और बीजल की दोस्ती गहरी होती गई, जबकि हीर से थोड़ी दूरी बनती गई। इस बदलाव से रिश्तों में एक खटास आ गई थी। दसवीं कक्षा में रूही का जन्मदिन आया, लेकिन इस बार हीर ने उसे विश नहीं किया। रूही को यह बात बुरी लगी और उसने हीर को उसके जन्मदिन पर विश नहीं किया। मगर शायद उनके बीच की दोस्ती इतनी गहरी थी कि इन बातों का असर ज्यादा देर तक नहीं रहा। एक दिन हीर स्कूल नहीं आई थी, लेकिन उसने सभी दोस्तों से कहा था कि उस दिन रूही का जन्मदिन है और उन्होंने रूही को विश किया। इस छोटी सी बात ने रूही को एहसास कराया कि हीर की दोस्ती में भले ही अब वह पुरानी गर्माहट न हो, पर उसके दिल में अब भी सच्चाई और दोस्ती का अटूट प्यार है।

“वो दोस्ती ही क्या जिसमें शिकवे-गिले न हों,
पर वो प्यार भी क्या जिसमें फासले न हों।
कुछ बातों से ये दिल भी झुलसता है कभी,
पर वो दोस्ती फिर से फूलों-सी खिलती है कभी।”

ग्यारहवीं कक्षा में, हीर को पढ़ाई के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा, और उनके बीच का संपर्क धीरे-धीरे टूट गया। दोनों अपने-अपने रास्तों पर आगे बढ़ गईं। लेकिन कुछ साल बाद हीर अचानक एक दिन रूही से मिलने उसके घर आई। वह पुरानी यादें और उनके साथ बिताए अनमोल पल लेकर आई थी। उस मुलाकात में दोनों ने एक-दूसरे से खूब बातें कीं, हंसते-हंसते अपने बीते दिनों को याद किया। रूही भी बाद में हीर के घर उससे मिलने गई, और कुछ वक्त के लिए दोनों की जिंदगी फिर से पुराने दिनों में लौट आई। अब वे सोशल मीडिया के जरिए जुड़ी हुई हैं, भले ही बहुत बातचीत नहीं होती।

रूही को आज भी वह दिन याद आता है, जब चौथी या पांचवीं कक्षा में वे दोनों स्कूल से घर लौट रही थीं। उस दिन रूही ने एक खबर का जिक्र किया था, जिसमें उसने पढ़ा था कि एक लड़की ने दूसरी लड़की से शादी की। इस पर हीर ने मुस्कुराते हुए कहा, "तो फिर मैं भी तुमसे शादी कर लूंगी ताकि हम कभी जुदा न हों।" दोनों हंस पड़ीं, मगर उस वक्त की मासूमियत और वह बेतहाशा दोस्ती आज भी दिल में बसी हुई है।

“वक्त बदलता है, यादें नहीं बदलतीं,
कुछ दोस्त साथ नहीं, पर यादें खत्म नहीं होतीं।
वो पल, वो बातें दिल में यूँ ही रह जाती हैं,
कभी हंसी, कभी आंसू बनकर लौट आती हैं।”

आज भी जब रूही पुरानी यादों में खोती है, तो उसे एहसास होता है कि हीर के बिना उसका बचपन अधूरा है। दोस्ती का वह बेफिक्र और मासूम रूप शायद अब वापस नहीं आएगा, मगर उनके दिलों में हमेशा के लिए एक कोना उन दिनों के नाम रहेगा।