Jungle - 20 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 20

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जंगल - भाग 20

 -----जंगल  एपिसोड (20) 

                                 " वोटर लिस्ट 2001  मे सेठ दौलत चद थे, पर वो पक्का कश्मीर ही चले गए है। "  उनके इंस्पेक्टर ने जानबुझ कर उच्ची देना "इन्क्वारी शुरू"   ये आवाज दी गयी थी, दिल्ली हेडकुॉक्टर से -----शिकायत गुप्त।

सब झूठ था, ड्रामा था, अगर सच हो जाये तो कया हो।

शिमला मे जांच शुरू हो चुकी थी.... पकड़ मजबूत। निज़ाम को कल यही चाये की दुकान पर देखा गया था। सब जानबूझ  हो रहा था, तुका था, चल गया।

राहुल चाये ही पी रहा था। इंस्पेक्टर जीप मे बैठा था। राहुल चेयर से उठा, चायेवाले के पास गया। पांच सौ का नोट उसकी जेब मे डालते हर किसी की नजर से बच के .... " ये साब " राहुल ने घूरी की। उसका हाथ पकड़ते  हुए कहा," मै सब कुछ गुप्त रखुगा। " आपना नम्बर दो। "सुना है ---कल निज़ाम चाये लेने आया था।"

कान मे फुसफुसे किये....  "साब कल आप को फोन पे बताउगा, भुआ का धंधा है "  कान मे कहा इशारे मे।

"कोई भी उनका यहाँ होगा, तो मै गया,बच्चे रुखसत। "

"इस लिए जाओ."... कान मे उसने जल्दी कहा, जिसे गुफ़्तगू कहते है। आप मेरा हिसा रखे, मैं आप को हर जानकारी दुगा, ज़नाब। वो मान गया।

वो नकली पुलिस के साथ और शिमले के ASI  नेपाली रामू रसोईये के साथ थे।

ये खबर जंगल की आग की तरा फैल गयी.... जो आये थे.. वो कही गुम हो चुके  थे..... खबरनामा.... मे कुछ भी नहीं छपा था। शिमला से उनों ने कीमती गाड़ी छोड़ दी थी, कुछ तो गुम करना ही पड़ता है... बेमिसाल बनने के लिए।

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           रीना, नेपाली रोसोईया , राहुल, माधुरी, एक खरीदा हुआ रीना का कोई खास क्लाईंट जिसको सुपारी पे एक हफ्ते के लिए खरीदा था..... सब एक लोन पे बैठ उच्ची हस रहे थे। आपने कामो पे उने हसी आ रही थी।

राहुल और रीना एक साथ रूफ पर थे... रीना स्पस्ट कह रही थी,"राहुल मैं संतुस्ट नहीं हुँ, टकले से। " 

जोर से हँसा। राहुल फिर चुप कर गया। " कया हुआ "

"बस यही सोच के हसी आ गयी, संतुष्ट होना जीवन है "

"इसके बाद, कोई कुछ गनत्व नहीं.... "  कोई कया कर रहा है, कोई मतलब.... " राहुल ने एक लम्बा  विस्तार पूछा... रीना कुछ सोचने लगी.... "मेरा मतलब तुझे कुछ कहने का इरादा नहीं " राहुल ने दुबारा से कहा।

"शादी की, कुछ नहीं मिला मुझे, सब हसरते जल गयी, 

खाक हो गयी, तुमाहरी बहन ने बहुत बड़ा बलिदान किया, मै बेवकूफ समझा ही नहीं... कया से कया हो गया... परवार ही करती रही वो... मैं समझा ही नहीं।"

सुन कर रीना दहल गयी। "दुख हुआ मन को अटूट... संतुष्टि कब मिली मुझे... नहीं कभी भी नहीं... " ------"

रीना ने बाहे गले मे डाल कहा, " प्रोमिस, हर ख़ुशी दूगी तुझे। " राहुल ने वहा से उनकी बाहो को सहारा सा बना लिया, " जानता  हुँ, तुम मुझे सब दें सकती हो, पर मै ले सकता हुँ। " फिर राहुल रुका, " रीना एक रात संतुष्ट नहीं हुई तुम, मैंने सारा जीवन खाली निकाला है... " रीना चुप थी। राहुल ने कहा "सारी किताबें आज ही पढ़ो गी। आओ चले Dsp के पास...."

'नहीं " तुम जा आना', "हाँ, डिनर पे जॉन को साथ ले जाना।" -----" राहुल निकल गया था।        

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