अध्याय 26
“ धना मूर्ति को तो वह उठा कर ले गया फिर हम क्यों कीरंनूर जा रहे हैं?” कुमार ने पूछा।
“बताता हूं तुम थोड़ी देर शांति से रहो। मैडम कार में फर्स्ट एड बॉक्स है क्या?”
“उस– बोर्ड को खोल कर देखो। एक बाक्स है” कार्तिका के कहते ही कार के आगे की तरफ डैशबोर्ड को खोला।
अंदर लाल रंग के डिब्बा जिस पर सारे इंस्ट्रक्शंस लिखे हुए थे दिखाई दिया। वैसे ही पास में बैठकर कुमार के सिर में लगे हुए घाव पर धना दवाई लगाना शुरू किया।
“धना…मेरे प्रश्न का तुमने जवाब नहीं दिया किरंनूर को जाने से क्या फायदा?”
“ बोलने से ज्यादा काम करके दिखाओ तो बेटर है ना?”
“करके…. कैसे करके दिखाओगे? मेरे समझ में नहीं आया….”
“चुपचाप आओ… करूंगा! आगे आगे समझ में आएगा तुम्हें।”
“कुमार के मुंह को बंद करने के बाद कीरन्नूर आ गया। उसके बाद उसका रास्ता दिखाते हुए मंदिर के पीछे जो सांप की बांबी थी उस जगह जाकर गाड़ी खड़ी हुई।
तीनों कार में से उतर कर हेडलाइट के प्रकाश से बांबी के ऊपर रोशनी दिखाई दी।
कार के डिक्की को कार्तिका ने खोला। पीछे एक बोरी रखी थी।
बोरी को मुश्किल से बाहर निकाल कर बांबी तक धना लेकर गया।
उसके अंदर एक सुंदर सी नटराज की मूर्ति थी।
कुमार को जबरदस्त पसीना आ गया।
“धना…. यह क्या दूसरी मूर्ति?”
कुमार को एकदम पसीना-पसीना हो गया।
“यह दूसरी मूर्ति नहीं है। यही चोरी की हुई ओरिजिनल मूर्ति है।”
“फिर उस वेन में से विवेक जो ले गया वह?”
“प्लास्टर ऑफपेरिस से बनाया गई एक मूर्ति!”
“ओह…वह बीच में आकर रुकावट डालेगा यही सोच कर उसे उसके बीच में ना पड़कर उसे धोखा दे दिया?”
“दूसरा रास्ता…. जो जैसा करेगा उसके साथ वैसा ही तो करना पड़ेगा?”
“उसकी सच्चाई का पता चलें तब?”
“ उसे कैसे पता नहीं चलेगा? परंतु कोई फायदा नहीं।अभी तुम अपने मामा को फोन कर दो। वह जाकर उस मूर्ति को देख लें बस! अब हम कौन हैं किसी की आंखों में आए बिना हम एस्केप हो जाएंगे।”
“जाते समय सभी टीवी चैनलों को सूचना दे दो। सवेरे होते ही पूरे गांव वाले इस जगह पर होंगे। सब लोग इसे देख लें, फिर टीवी वाले आ जाए फिर कोई समस्या नहीं रहेगी।” बड़े हिम्मत के साथ धना ने कही।
मामा सदाशिवम को कुमार ने फोन किया।
“मामा…. सांप के बांबी के पास, जो चोरी चला गया था वह नटराज की मूर्ति वहां रखा है सुना? अभी मुझे किसी ने फोन करके बताया। पब्लिक बूथ में से फोन किया था इसलिए नंबर का पता नहीं चला। आप जाकर देखिएगा मामा” ऐसी बात करके कुमार ने फोन काट दिया।
अगले दसवें मिनट में अपनी मोटरसाइकिल पर मंदिर के पुजारी के साथ रवाना होकर मामा सदाशिवम मंदिर पहुंच गए। गंभीर नटराज की मूर्ति को देखते ही दोनों साष्टांग प्रणाम किया। अंदर से नाग आकर मूर्ति पर फन निकले बैठा हुआ था।
उन लोगों के आने को जानकर छुपकर उन्हें देख रहे कार्तिका धनंजयन और कुमार तीनों के आंखों में आनंद के आंसू बहने लगे।
समाचार जल्दी से चारों तरफ फैलने से पूरे गांव वाले आने लगे, तो कार्तिका ने कार को स्टार्ट कर रवाना हो हुए। कार के अंदर धनंजय और कुमार बड़े रिलैक्स होकर बैठे हुए थे।
“धना…. ‘थैंक यू सो मच!’एक बड़े काम को हम लोगों ने अच्छी तरह से संपन्न कर दिया। अब विवेक से कुछ नहीं करते बनेगा।”
“हां मैडम, उसे हमने अच्छी तरह से दूसरी दिशा में बदल दिया। फिर भी ‘री अटैक’ कर सकता है।”
“ऐसा करें तो उसे कैसे संभालोगे?”
“अभी कैसे संभाला वैसे ही। अभी से हमें उसे सोचकर फिक्र करने की जरूरत नहीं है मैडम” ऐसे कहते ही धना के मोबाइल पर घंटी बजी। करने वाला विवेक था।
“अबे धना…. नकली मूर्ति को रखकर हमारी दिशा बदल दिया तूने? तुझे हम नहीं छोड़ेंगे।”
“वह मुझे मालूम है विवेक। मैं भी उसके लिए तैयार हूं।”
“ओ हो हो…तुममें इतनी हिम्मत?”
“मुझे जो लाखों रुपए वेतन मिल रहा है इसी के लिए तो है?”
“तेरी हिम्मत पर मैं अभी अटैक वाला हूं । तब तुझे पता चलेगा मैं कौन हूं….” बुरी तरह से बौखलाने लगा विवेक।
कार्तिका के पेट में एसिड उत्पन्न होना शुरू हो गया।
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