अध्याय 24
धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्राइवर के ड्रेस में कुमार ने प्रवेश किया।
उसको देखते ही धना के अम्मा, अक्का और दूसरी बहनों के मुंह आश्चर्य से खुले रह गए।
“अन्ना यह क्या वेष बना लिया तुमने?” छोटी बहनों ने पूछा।
“यह वेष नहीं है…. अब से मैं ही तुम्हारे अन्ना का ड्राइवर हूं।”
“क्या इसी के लिए पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़े हो?” अब अक्का शांति ने पूछा।
“कंप्यूटर के डिप्लोमा को छोड़ दिया तुमने?”
“टाइप रेटिंग, शॉर्टेंं हैंड उसे भी हम नहीं भूले। इतना पढ़कर इस काम के लिए क्यों आए?”
“ऐसी बात कर रही हो जैसे मेरे लिए कोई रेड कारपेट बिछा कर मेरा स्वागत कर रहे हैं… ऐसे कितने बड़े कंपनी में भी चले जाओ,₹30000 से अधिक देने के लिए कोई तैयार नहीं। जो नौकरी मिल रही है उसको क्यों छोड़े इसीलिए मैं इसमें आ गया।”
“वेतन दे दो तो कुछ भी करोगे?”
“इसमें क्या बुराई है शांति? जूता सीने वाला भी जनाधिपति (राष्ट्रपति) हो गए हैं। उन पुस्तकों को लेकर पढ़ों तब पता चलेगा।”
“अच्छी तरह अपने को संभाल रहे हो अन्ना! मेरा अन्ना भी एक तरह से हमें एक सदमा दिया। अब आप इस तरह का एक सदमा हमें दे रहे हो। समथिंग इस राॅग…. ऐसा हमें लग रहा है।” श्रुति और कीर्ति दोनों ने एक ही साथ बोलीं।
जींस पैंट टी-शर्ट पहनकर कमरे से बाहर आकर धनंजयन “चलें…” बोला।
“अरे, अरे देखो तुम्हारी छोटी बहनें मुझे ड्राइवर मान ही नहीं रहीं हैं” ऐसा कहकर कुमार दुखी होने का सॉन्ग रचने लगा।
“इन्होंने मुझे भी ऑफिसर अभी तक नहीं माना। इनके बारे में बेकार बात कर रहे हो। चलो देर हो गई चलते हैं।”
“पूछ रहीं हूं इसे गलत मत समझो धना! इतनी रात में दोनों कहां चल दिए?” अम्मा ने बीच में पूछा।
“सेकंड शो सिनेमा के लिए अम्मा।”
“अरे वाह!.. फिर तो हम भी चलेंगे….” कहकर दोनों बहने उठने लगी।
“यह ‘एडल्ट ओनली’ पिक्चर है जाकर पढ़ने का काम करो” ऐसा कहकर धना ने दोनों बहनों को संभाल लिया।
बड़े ध्यान से दोनों को बाहर जाते देखते हुए शांति अक्का ने दीर्घ स्वांस छोड़ा।
“ऐसा दीर्घ स्वांस क्यों छोड़ रही है?” अम्मा ने पूछा।
“कुछ गलत हो रहा है अम्मा?”
“क्यों क्या कह रही हो?”
“जो मेरे मन में लगा बोल दिया।”
“ फिर धना अभी सिनेमा नहीं जा रहा है क्या?”
“निश्चित रूप से नहीं।”
“फिर कहां जा रहा है?”
“मालूम नहीं फिर भी निश्चित रूप से कुछ गलत हो रहा है” ऐसा कहकर शांति ने मां को उसने भयभीत कर दिया।
रात के 10:00 बजे!
कार्तिका के बंगले के अंदर एक कार प्रवेश करती है। धना और कुमार कार से उतरकर बंगले के पास ही के स्टोर रूम में दोनों गए। वहां पर 5 फीट के एक पुट्ठे के डब्बा तैयार रखा था।
उसको उठाकर बाहर आए तो वहां तैयार खड़े एक मेडिकल वैन में उसको रखा।
“इस डिब्बे में ही वह मूर्ति है क्या?” इशारों में कुमार ने पूछा।
“हां।”
“कार में जाएं तो शत्रु को पता चल जाएगा और वह फॉलो करेंगे इसीलिए मेडिकल वैन ?”
“एक्जेक्टली”
“हां यह किसका बांगला है?”
“जाते समय बताऊंगा। गाड़ी निकालो”
ड्राइवर के सीट में बैठकर कुमार ने गाड़ी स्टार्ट की। जल्दी से गाड़ी में धना बैठ गया।
“अब सीधे कीरून्रूर को जा रहे हैं। डिब्बे में जो मूर्ति है उसे सांप के बांबी के पास रख देंगे। वैसे ही तुम्हारे मामा सदाशिवम को फोन करके उन्हें बाम्बी के पास आने के लिए कहेंगे वे आकर हमें देखें इसके पहले हम वह जगह हम खाली कर देंगे वही हमारा प्लान है।”
तेजी से वेन आधी रात्रि के समय कीरूनूरू , के 10 किलोमीटर पहले रास्ते के मोड पर मोड़ते समय कहीं से आए एक बंदूक की गोली से टायर पंचर होने से गाड़ी
एक पेड़ पर जाकर टकराई ।
उसे पेड़ की थोड़ी दूर हटकर एक बड़ी गाड़ी वहां खड़ी हुई थी।
उसमें विवेक!
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