Apradh hi Apradh - 22 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 22

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अपराध ही अपराध - भाग 22

अध्याय 22

 

“क्या बोल रहे हैं?”

“जिसके लिए आया था वह खत्म हो गया। जाते समय विस्तार से बताऊंगा। अब हम मंदिर जाकर स्वामी का दर्शन करें?” धनंजयन बोला।

“आई मैं ही आपको लेकर चलता हूं” कहकर सदाशिव मामा उठे।

मंदिर बहुत बड़ा और बहुत ही गंभीर था।

पुराने समय का मंदिर, सीमेंट, पोक लाइनर, ऐसा कुछ भी नहीं था उसे समय वह छूने का मिले मिलकर बनाया हुआ मंदिर था। हरएक खंबे पर मूर्तियां थीं। मंडप के ऊपर भी कारीगरी करी हुई थी। अपने मोबाइल फोन पर उनकी फोटो लेते हुए भगवान के गृह में जाते समय घबराते हुए अंदर आए वहां के पुजारी।

“क्यों स्वामी क्यों घबरा रहे हो?”

“स्वामी के पूजा गृह में देखिए सांप जो है लिंग के ऊपर फन उठाए हुए खड़ा है…. सांप आते समय चुपचाप नहीं आया। एक बेल के पत्ते को मुंह में रखकर आया। मेरा पूरा शरीर पुलकित हो गया और कांपने लगा।” पुजारी बोले।

उसके कहते ही मंदिर ग्रह के अंदर धनंजय दौड़ कर गया। उसके पीछे ही कुमार भी दौड़ा। लिंग के ऊपर थोड़ी देर पहले जिम सर्प को देखा था वही नाग था।

धनंजय और कुमार दोनों सदाशिव मां के कही हुई बात को पूरी तरह से विश्वास करना शुरू किया।

अपने मोबाइल में उस दृश्य की फोटो धनंजयन ने ली। दूसरे ही क्षण वह नाग लिंग को छोड़कर उनके सामने ही फर्श पर रेंगना शुरू कर दिया।

धनंजय ने उसे छोड़े बिना उसके पीछे-पीछे जाकर उसकी फोटो लेता रहा तो वह मंदिर का पिछवाड़ा आ गया था। वहां पर खुले में एक पेड़ के नीचे बहुत सारे सांप के बिल थे वह नाग वहां जाकर अंदर चला गया।

“आप बहुत अच्छे समय आए। आपको भगवान ने दो बार दर्शन दे दिए। आपने उसकी फोटो भी ले ली। अपने शहर जाकर आप इसे यूट्यूब में डाल दीजिएगा। फिर इस मंदिर को ढूंढ कर कई भक्त लोग आएंगे। इस तरह हमारा गांव की अच्छी तरक्की होगी” सदा शिवम मामा ने कहा।

जवाब में उन्हें उनके अर्थ की पुष्टि करता हुआ देखकर “आपने सोचा उससे ज्यादा आपका गांव प्रसिद्ध होगा। आगे आगे आप उसे देखेंगे” धनंजयन ने कहा।

कर से वापस आते समय “उनके सामने मैं एक ड्राइवर जैसे ही रहा। अब मैं एक दोस्त के हैसियत से बात कर रहा हूं, तुम इस गांव को क्यों आए हो पता ही नहीं लगा। पूछूं तो कहते हो आया हुआ काम पूरा हो गया” कुमार ने पूछा।

“हां कुमार….. मैं जिसके लिए आया था वह काम खत्म हुआ।”

“मेरे साथ आकर मामा के घर गए। वहां से मंदिर गए। वीडियो लिया तुमने। उसके लिए आए थे?”

“हां, और शाम के बारे में तुम क्या सोचते हो?”

“मुझे क्या कहना चाहिए समझ में नहीं आ रहा। तुम बोलो। स्वामी जी, सांप सांप उसी के बीच में घूम रहे हैं?”

“विश्वास नहीं हो रहा है ना?”

“कसम से विश्वास नहीं हो रहा। सांप बड़े स्वतंत्रता से घूम रहा है। उसको नमस्कार कर करके उसके दर को उन्होंने खत्म कर दिया। उससे आगे सोचने के बारे में मुझे समझ में नहीं आ रहा।”

“लिंग के ऊपर वह फन फैलाए खड़ा था ना?”

“मंदिर के अंदर नारियल फल सब था। उसे चोरी करने चूहा आएंगे। ऐसे आने वाले चूहों के लिए नाग आया होगा।”

“फिर फिर तुम उसे नाग को स्वामी जी नहीं मान रहे हो?”

“तुम मान रहे हो क्या?”

“मुझे भी ऐसा नहीं सोचा जाता। परंतु तुम्हारे मामा ने जो दो बातें कही वह सत्य है।”“वह सचमुच में गल गए कुमार….”धना बोला। उसको सुनते ही कर को ब्रेक लगाकर रोककर, “क्या कह रहा है?” कुमार ने पूछा।

“हां रे गल गए। वह चोर और वह मूर्ति कहां है मुझे पता है। वह फिर से आ जाएगा उन्होंने बोला था ना?” धनंजय के बोले हुए पर सिर हिलाकर कुमार ने हामी भरी।

“वैसे ही वह वापस आएगा। वह भी आज ही रात को।”

“समझने लायक बोलोगे क्या…. मेरा सर घूम रहा है” कुमार बोला।

“समझ नहीं लायक मैं तुझसे बात नहीं कर सकता। उसे मूर्ति के साथ आज रात को ही हम वापस आ रहे हैं। सवेरे होने के पहले उस सांपों के बिलों के पास उसे रख देंगे” वह बोला।

“धना धना क्या कह रहे हो?” कुमार बोला।

“हां कुमार। इसके लिए तुम मेरे साथ रहो बस बहुत है” कुमार के चेहरे पर आश्चर्य दिखाई दिया।

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