Apradh hi Apradh - 19 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 19

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अपराध ही अपराध - भाग 19

अध्याय 19

 

पिछला सारांश-

कीरानूर मंदिर से कृष्ण राज ने पहले पहले चुराई हुई मूर्ति को उसी जगह पहुंचाने के लिए धनंजयन में प्रयत्न कर रहा था।

कार्तिक इंडस्ट्रीज के दूसरा हिस्सेदारी दामोदरन का लड़का विवेक ने बहुत प्रयत्न किया कि किसी तरह धनंराजन उनकी तरफ आ जाए। कई बार फोन में बात करने के बावजूद धनंजयन उसको मना कर देता था।

धनंजयन को डराने के लिए उसकी छोटी बहनों को मदद करने जैसे नाटक, विवेक ने किया । मेरी बात नहीं मानो तो धनंजय के परिवार को मैं परेशानी में डाल दूंगा ऐसा विवेक ने धमकी दी।

कुमार के घर के सामने जाकर कर खड़ी हुई तो वह धनंजयन का इंतजार कर रहा था।

“आओ बेटा धनंजय तुम्हें नौकरी मिल गई बताया?” कुमार की अम्मा  अन्नपूर्णी ने पूछा।

“हां अम्मा मुझे आशीर्वाद दीजिए” कहकर झुक कर उनके पैरों को धनंजयन ने छुआ।

“अच्छी तरह रहो। और वैसे ही अपने मित्र के ऊपर भी थोड़ा ध्यान दो,”अन्नपूर्णी ने कहा।

“निश्चित रूप से अम्मा आपको खाने की जरूरत ही नहीं है।”

“मैं काफी बनाकर ला रही हूं।”

“रहने दीजिएगा अम्मा मैं अभी रवाना होते समय ही पीकर आ रहा हूं” धनंजयन बोला।

“हां तो तुम कीरन्नूर जा रहे हो बताया?”

“हां अम्मा”

“मेरा बड़ा भैया वही रहता है। गांव में उनका बहुत रुतबा है। वहां जो शिवजी का मंदिर है उनके सभी कर्ताधर्ता है” अन्नपूर्णी बोली बोलीं।

शिवाजी के मंदिर के बारे में बोलते हैं धनंराजन को अच्छा लगा। हम जी मंदिर के भगवान के दर्शन करने जा रहे हैं कोई सामने ही आ गए ऐसा लगा।

“हां तो उस गांव क्यों जा रहे हो?”

“ऑफिस के काम से अम्मा।”

“अबे! तेरा ऑफिस तो एक कारपोरेट है। और कीननूर एक गांव है। क्या काम है रे तुझे?” बीच में बोला कुमार।

“कर में जाते समय बोलूंगा अब हम चलें?” धना बोला।

“मैं तो तैयार हूं। अम्मा मैं जाकर आता हूं” कुमार बोला।

“मां से मैं अगले महीने आऊंगी बोल देना” अन्नपूर्णी बोली।

“ठीक है अम्मा”

बात करते हुए दोनों कार में चढ़कर रवाना हुए। धनंजयन गाड़ी चला रहा था।

“क्यों रे गाड़ी चलाने वाले ने ड्राइवर नहीं दिया?” कुमार ने पूछा।

“दिया। परंतु भाई ड्राइवर मुझे पसंद नहीं” धना बोला।

“फिर तुम ही चलाते रहोगे क्या?”

“पूछ रहा हूं करके गलत मत समझो तुम ड्राइवर बन कर आओगे?” धना ने पूछा।

आश्चर्य से “अबे मैं…ड्राइवर की नौकरी के लिए?” कुमार बोला।

“तत्कालीन रूप से ही कुमार। मुझे विश्वसनीय एक आदमी की जरूरत है। सिर्फ थोड़े दिन के लिए उसके बाद मैं तुम्हें कार्तिका इंडस्ट्रीज में ही एक बड़ी नौकरी दिलवाऊंगा” बोला।

“मैं तुझे एक अच्छा ड्राइवर ढूंढ कर देता हूं। उसे बड़ी नौकरी को अभी मुझे लेकर दो” कुमार बोला।

“नहीं कुमार, मुझे हमेशा मेरे साथ रहने के लिए तुम्हारे जैसे एक विश्वसनीय आदमी की ही जरूरत है। तुम उसके लिए ठीक रहोगे इसीलिए पूछ रहा हूं। तुम तुम ड्राइवर का यूनिफॉर्म पहनोगे पर तुम्हारा वेतन का एक ऑफिसर जैसे होगी” धना बोला।

“तू ही अभी नौकरी पर लगा है। परंतु कार्तिका इंडस्ट्रीज के एम.डी. जैसे बात कर रहा है। मुझे आश्चर्य हो रहा है” कुमार बोला।

“कुमार मुझे बहुत मत कुरेदो । मैं मैं कुछ कर्तव्य को किसी तरह पूरा करने के स्थिति में हूं। उसे मैं अकेला ही से करना मुश्किल है । बहुत से शत्रु भी है। इसीलिए मैं तुझे ड्राइवर भेष धारण करने को कह रहा हूं” धना बोला।

“अब तुम इतना कह रहे हो तो मैं मना करूंगा क्या? अच्छा ऐसा क्या कर्तव्य है। कौन वह विरोधी है?” कुमार ने पूछा।

“सॉरी…. सब कुछ मैं तुमको अभी नहीं बता सकता। मिलिट्री में रहने वाले मेजर, अपने रहस्य को अपनी पत्नी से भी शेयर नहीं करते हैं। मैं भी अभी उसे मेजर जैसा ही हूं ऐसे सोच लेना” धना बोला।

“तुम्हारी बातचीत, तुम्हारा हैंग सेन सभी मुझे बहुत आश्चर्य में डाल रहा है। तुम्हारी जिंदगी ही ऊपर से नीचे एकदम बदल गई है ऐसा मुझे लगता है” कुमार ने कहा।

“बिल्कुल सही, तुम कह रहे हो। मैं अभी जो पढ़ाई की, बीच के वर्ग से रहने वाला आदमी नहीं हूं।सी.बी.आई. के ऑफिसर्स ऐसे सोचो”वह बोला।

“सी.बी.आई., ऑफिसर…. क्या बोल रहा है?” कुमार का मुंह खुला का खुला रह गया।

“हां रे…करीब करीब ऐसा ही” धना बोला।

“तुम्हारे एम.डी. के तुम पर्सनल सेक्रेटरी हो ऐसा ही तो मैंने सुना था?”

“पर्सनल सेक्रेटरी भी। अब इससे ज्यादा मुझे मत कुरेदो। इसके अलावा एक बहुत ही जरूरी बात है, हम जो बात कर रहे हैं वह कभी भी बाहर किसी को भी मालूम नहीं होना चाहिए।

“इन सब बातों के लिए तू राजी है तो मेरे साथ ज्वाइन करो। नहीं तो तुम्हारी जैसी इच्छा है करो। मैं तुम्हें जबरदस्ती करना नहीं चाहता” धनंजयन ने कहा।

“ऐसा ऐसा सब कुछ रहस्य में ढंग से बातें करें तो कैसे?” असम मंजेश के साथ कुमार ने पूछा।

“मेरी हालत ऐसी है कुमार…” धना बोला।

“ठीक है रे, तुम्हारी इच्छा जैसे ही मैं रहूंगा। बस ?”

“बाय दी बाय …तुम्हारा ड्राइवर का यूनिफॉर्म होगा। दूसरा रास्ता नहीं है; तुम्हें वह पहनना पड़ेगा। उसके बाद विवेक नाम का एक आदमी तुम्हें खरीदने के लिए प्रयत्न करेगा। तुम्हें नहीं जाना है” धना बोला।

“अरे क्रूरता ऐसी भी होती है क्या रे?”

“होता है। पक्के इरादे से, धोखा नहीं देकर तुम्हें रहना है।”

“वह ठीक है, कौन है वह विवेक?”

“हर दृष्टि से हमारे एम.डी. का विरोधी है। इसीलिए वह मेरा विरोधी है।”

“पेशे का विरोधी है?”

“नहीं, पूरे कुटुंब का ही विरोधी है।”

“फिर यह तुम्हारे एम.डी. की अपनी निजी समस्या है। उसे तुम क्यों अपनी समस्या सोच रहे हो?”

आगे पढ़िये .....