Apradh hi Apradh - 16 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 16

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अपराध ही अपराध - भाग 16

 अध्याय 16

 

“फिर इसे?”

“इसे किस मंदिर में से चोरी किया था, उस मंदिर में जाकर रखना है।”

“ओह यही दूसरा असाइनमेंट है क्या?”

“रख रहे हैं यह बिना मालूम हुए रखना है।”

“रखना बिना मालूम हुए मतलब?”

“चोरी करने जा रहे हैं ऐसे ही जाना है। परंतु चोरी करने नहीं रखने के लिए।”

“समझ में आ रहा है मैडम। इसे सीधे दो तो पुलिस कैद कर लेगी। दंड मिलेगा। इसीलिए किसने चोरी की है पता नहीं चलना चाहिए। ऐसा ही है ना?”

“ऐसा ही है। अप्पा दंड से नहीं डर रहे हैं। जेल में चले जाएं तो आगे के परिहार वह नहीं कर सकते इसीलिए वे हिचक रहें हैं।”

“फिर ऐसे लगातार कई असाइनमेंट है क्या?”

“हां, मेरा एक बड़ा भैया है। परंतु वह कहां है नहीं मालूम। उसे ढूंढना है।”

“बचपन में ही छोटी उम्र में भाग गए क्या?”

“नहीं। पैदा होते ही उन्हें कचरे के डिब्बे में फैंक दिया था।” 

“क्या कह रहे हो मैडम?”

“मेरे अप्पा अपने पास काम करने वाले स्टेनोग्राफर से उनका संबंध था। उनके, संबंध से पैदा हुआ था वह लड़का।उसे अप्पा ने  मारपीट कर भगा दिया । उसने अपने पैदा किये बच्चों को कचरे के डिब्बे में डालकर रेल के आगे आकर आत्महत्या कर ली” बड़े ही भावुक स्वर में कार्तिका बोली। उसका गला रूंध गया।

“ओ, ऐसा सब भी हुआ था क्या?”

“हां। इन सच्चाइयों को अप्पा ने मुझे बोलकर रो दिये । तब मैं इसे हजम नहीं कर पाई। ‘मुझे अपने क्यों बक्श दिया?’ मैंने पूछा। उनसे जवाब नहीं दिया गया।”

कार्तिक के आंखों से आंसू बहने लगे। एक तरह से धनराज स्तंभित हो गया।

“क्यों धना, क्यों इस नौकरी में ज्वाइन किया ऐसा लग रहा है क्या?” उसके पूछते ही वह कुछ भी बोल नहीं पाया।

“कोई भी प्रॉब्लम नहीं है। अभी आप चाहे तो अलग हो सकते हैं। एक ही निवेदन है। मेरे अप्पा के बारे में आप किसी को भी ना बताएं यही मेरे लिए बहुत है” बड़े ही दयनीय स्वर में कार्तिका ने कहा।

कुछ क्षण मौन रहने के बाद, “मैडम मैंने जिन पैरों को आगे रखा है अब पीछे नहीं रखूंगा।

“अब हम इस ‘असाइनमेंट’ को कैसे करेंगे ? फैसला करें। उसके बारे में बात करें?” ऐसा ऐसा दृढ़ता से धनंजयन ने कहा।

कार्थिका कुछ आश्वस्त हुई।

वैसे ही मुड़कर कुछ नटराज की मूर्ति के पास गई, “यह पुराने कीरनूर शिवजी के मंदिर से चुराई मूर्ति है। इसे फिर से वहां रखना है।” कार्तिका बोली।

“एक गत्ते के डिब्बे में रखकर पार्सल जैसे बनाकर ले जाकर रख कर वापस नहीं आ सकते?” धनंजयन ने पूछा।

“एक सेकंड भी बिना सोचे आपने जवाब दे दिया…ऐसे मैं सोच नहीं सकती थी क्या?” बदले में कार्तिका ने पूछा।

“क्यों उसमें क्या कष्ट है?”

“विवेक नाम के विलन को भूल गए क्या?”

“ओह, वह बीच में आएगा क्या?

“आएगा क्या?” इसके लिए कई करोड़ रूपया कीमत लगाकर उसे विदेश में देने के लिए वह तड़प रहा है। यहां हमारे घर के अंदर सेटअप मूर्तियां रखी हुई है यह बात मुझे अप्पा और अभी आपके सिवाय किसी को भी नहीं पता है।

“इसे किसी तरह मंदिर में वापस दे देंगे उसे पता है। वैसे दे देंगे तो बाहर लोगों को पता लगे बिना मंदिर को दे दें तो मंदिर में ही कई लोग विवेक को देने के लिए हैं।

“इसीलिए यह किसी को नहीं मालूम हो ऐसे मंदिर में जाकर जमा करना है। और एक बात यह काम हमी लोग जाकर दे रहे हैं यह भी पता नहीं चलना चाहिए।” इस तरह समस्याओं के कारणों को कार्तिका ने बताया।

धनंजयन ने सोचना शुरू कर दिया। आगे पढ़िए….