अध्याय 14
“ बोले तो अब ही सर, मैं आपको बहुत ही सम्मान देता हूं।”
“मैं जो रुपए और बंगला तुम्हें दे रहा हूं इसलिए ऐसे बोलते कह रहे हो क्या धनंजयन?”
“कसम से नहीं सर।”
“धनंजयन, मेरे बारे में तुम्हें पूरा कार्तिका ने नहीं बताया। तुम्हें सब मालूम होने पर तुम ही नहीं, कोई भी मुझे एक मनुष्य भी नहीं समझेगा।”
“ऐसा नहीं है सर…गलती करने से भी, उसके लिए परिहार करने की इच्छा रखने वाला एक आदमी श्रेष्ठ है। ये बहुत अच्छी बात है सर। इसके लिए धैर्य अच्छी बुद्धि चाहिए। जो आपके पास है फिर दूसरे किसी के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है सर।”
“थैंक यू जेंटलमैन। भगवान ने हीं तुम्हें मेरे पास भेजा है ऐसा मैं विश्वास करता हूं।”
“मुझे भी सब लोग जैसे काम करते हैं वैसे ही काम करने की इच्छा नहीं है सर। चुनौती पूर्ण काम को ही मैं भी करना पसंद करता हूं सर।”
“बहुत-बहुत खुशी की बात है। तुम्हारे लिए नौकरी का आदेश पत्र, बंगला और कार की चाबी सब कुछ तैयार है। इस पर हस्ताक्षर करके अपने ड्यूटी में ज्वाइन करो।”
“यस सर…. वह दूसरा असाइनमेंट क्या है मालूम कर सकता हूं?”
“वह भी एक मंदिर से संबंधित ही है।”
“वह क्या है बोलिए सर।’
“कार्तिका बोलेगी। पहले नौकरी में ज्वाइन करो। एच.आर. सांबशिवम से जाकर मिलो। जब मेरे पास एक अच्छे बदलाव आया है, तब से ही सब कुछ ही कानून के जैसा ही होना चाहिए ऐसा मैंने कह दिया। उसके आगे कोई भी काम किसी को नहीं करना चाहिए इस बात से मैं डिटरमाइंड डिटरमिंड हूं। तुम्हारे समझ में आ रहा है मुझे लगता है…..”
“मुझे भी ऐसा ही है सर।”
“वह बस है मेरे लिए…. अब मेरे जिंदगी में जानकर कोई छोटी गलती भी नहीं होना चाहिए ऐसा मैं चाहता हूं। मेरा जीवन बरसो तक का नहीं है…सिर्फ महीना तक है डॉक्टर ने कह दिया। वह 3 महीना नहीं तो 6 महीने? उसी को पता है।”
एक दीघा विश्वास लेकर दोनों हाथों को ऊपर करके कृष्णराज ने दिखाया। इसे सुनकर कार्तिका के आंखों में आंसू आ गए।
“मैंने थोड़ा पुण्य भी किया है। वहीं पुण्य के कारण मुझे एक लड़की पैदा हुई। इसको अकेले छोड़कर जाने के लिए ही मैं बहुत बहुत ही दुखी हो रहा हूं….” वे बोले।
“सर, आप धैर्य रखिए। कुछ भी नेगेटिव मत सोचिए” उनको कुछ धैर्य धनंजय ने दिया।
इस समय उनके शरीर को साफ करके दवाई लगाने के लिए हाथ में ग्लाॅ।ज और मुंह में मास्क और शरीर पर डिस्पोजेबल कपड़ों के साथ दीवार के पास मेडिकल सहायक खड़े थे।
उन्हें देखते ही दोनों लोग कमरे से बाहर हो गए। कमरे में घुसते ही उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया।
“मैडम वह दूसरा असाइनमेंट?” धनंजयन शुरू हुआ।
“बताती हूं, पहले जाकर ऑफिस में एच.आर. से जाकर मिलिए….एच.आर., हेड सांबशिवम आपका इंतजार कर रहे हैं,” कार्तिका बोली।
“अच्छा है मैडम, फिर मैं रवाना होता हूं,”थोड़ी दूर जाने वाले को “धना 1 मिनट” उसने रोका । उसने भी मुड़ कर देखा।
“तुम्हारे मां-बाप के आप एक ही लड़के हो?” पूछा।
अपने आगे की भौंहों को को सिकुड़ कर, “अप्पा नहीं है मर गए। अम्मा अक्का दो छोटी बहनें और मैं।”
“ओह, फिर आप अकेले ही नहीं?”
“क्यों मैडम, क्यों पूछ रही हैं?”
“वैसे ही पूछा।’
“नहीं मैडम मुझे ऐसा नहीं लग रहा।”
वह धीरे वापस आना शुरू किया। उसके पास भी एक भारी मौन।
“क्या है मैडम आप मौन हो गए?”
“नहीं…आपकी गरीबी को हम काम में लें रहें हैं ऐसा एक अपराधी भावना मुझ में आ रही है,” वह बोली।
“क्यों, ऐसा सब सोचती हैं। मैं चाह कर ही तो नौकरी में आया हूं।”
“ठीक ठीक, आप रवाना हो।”
एक गहरी निगाह डालकर वहां से रवाना हुआ धनंजयन।
नई अपार्टमेंट घर, मार्बल के पत्थरों से बना हुआ था। वहां के गेट के अंदर घुसते ही श्रुति और कीर्ति दोनों बहुत ही उत्साहित थीं।
चेन्नई नगर के बीच में अटरवाल के बीच में घनी आबादी में भी ऐसी एक जगह! ऐसा दोनों को बहुत ही आश्चर्य हो रहा था!
“क्या बात है बच्चों…कैसा है? अब तो जो मैंने कहा वह सब सच है विश्वास करते हो?” कहकर हंसने लगा धनंजयन।
“भैया अब यह घर अपना ही है?” उनका संदेह काम नहीं हुआ धीमी आवाज में कीर्ति ने पूछा।
“मैं जब तक इस नौकरी में हूं तब तक यह हमारा है। समझ में आ रहा है?”
“नौकरी है तो वेतन ही तो देंगे। ऐसा घर, कार देते हैं क्या?’ कीर्ति और श्रुति पूरे घर पर घूमते हुए आपस में बात कर रहीऊ थीं।
खिड़की को खोलकर धनंजय ने बाहर देखा।
सामने कई मंजिलें इमारतें ही खड़ी थीं, बिल्कुल ऊपर छत पर सिंटेक्स टंकियां पानी की दिखाई दे रही थी। उसके एक टंकी के ऊपर सहारा लेकर एक आदमी बिनोक्युलर से धनंजय को देख रहा , दिखाई दिया!
थोड़ा घबराए धनंजयन।
आगे पढें…