अध्याय 13
पिछला सारांश-
कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्णा राज के मनौती को पूरा करके, उनकी लड़की और उनके सहायक धनंजयन के साथ वापस आ रही, एक करोड रुपए को दान पेटी में डालने के बाद।
उसे इंडस्ट्री के हिस्सेदार दामोदरन और उसके लड़के विवेक, कृष्णराज को, उनकी लड़की कार्तिक को धमकाते हुए आए इस समय धनंजयन को भी उन्होंने धमकी दी।
दामोदरन और कृष्णा राज दोनों में किस बात की लड़ाई है। ऐसा कार्तिका से धनंजयन ने पूछा तो उसने दामोदरन के अपने पापा के शुरुआती जीवन में किए गए गलत अपराधिक कामों के बारे में बताया। जिसकी वजह से दामोदरन उनको धमकी देता है और इसी में उसकी मां ने आत्महत्या कर लिया ऐसा कार्तिका ने बताया।
अपने मां की आत्महत्या के बारे में कार्तिका ने जब बोला और फूट फूट कर रोने लगी। उसी समय उसके आंसुओं को पोंछने और उसे गले लगाने की उसने सोची। परंतु उसका स्थान तो एक मालिक का है जिसने उसे ऐसा करने से रोका।
उसी ने थोड़ी देर में अपने आप को आश्वासन देकर , “आई एम सॉरी धना….” बोली।
उसके बाद दोनों एक शब्द भी आपस में बात नहीं की।
तिरुपति पहाड़ी के नीचे आने के बाद, जनता के भीड़ के बीच में गाड़ी धीरे-धीरे चलते समय धनंजयन का मोबाइल बजा।
कार को चलाते हुए ‘ब्लूटूथ लिंक’ “हेलो धना हियर…” बोला।
“क्यों हीरो, तिरुपति के उस पहले असाइनमेंट को अच्छी तरह से करवा दिया लगता है…” ऐसी एक विवेक की आवाज को कार्तिका ने भी सुना।
“अरे वाह…मुझे फॉलो करते आ रहे हो विवेक। तुम चुपचाप जहां खुशी हो उनके काम में जा सकते हो,” बड़े आराम से धनंजयन ने जवाब दिया।
“तुम्हें जो मिला है वह अच्छा काम नहीं है धनंजयन; वह एक लोहे का पिंजरा है।”
“ नौकरी, नौकरी गा रहे हो, विवेक…ज्यादा पिक्चर देखते हो क्या?”
“सोच समझ कर बात करो धनंजयन. तुम ‘मिडिल क्लास’ के हो मैं मिलेनियम हूं।”
“मैंने कब आपसे बात की? तुम ही तो मुझसे बार-बार बात करते रहते हो…. इसमें मिडिल क्लास और मिलेनियम का वर्णन अलग!”
“वह वर्णन नहीं है। वह सच! तुम्हारी कोई समस्या हो तो तुम पुलिस या वकील किसी के पास भी नहीं जा सकते। मेरी बात को मानो तो तुम अच्छा रहोगे। नहीं तो तुम्हारा एक-एक मिनट भी नरक होगा।
“ये, मैं तुम्हें दे रहा हूं आखिरी मौका। इसका उपयोग न करोगे तो तुम बहुत कष्ट पाओगे…
“मैं जो बोल रहा हूं उसे कार्तिका भी सुन रही है मुझे पता है। कार को रोक कर होशियारी इसी में है तुम उतर कर जाते रहो। तो तुम अच्छा रहोगे। नहीं तो मैं तुम्हें जाने के लिए मजबूर कर दूंगा।”
वह मोबाइल का कॉल इसी समय बंद हो गया। धनंजयन को कार्तिका ने घूर कर देखा।
“क्या है मैडम अब मैं क्या करनें वाला हूं यही देख रहे हो?”
“मुझसे अब यही तो करना हो सकता है धना?”
“फिक्र मत करिए। उसकी धमकियों से डर कर मैं नहीं जाऊंगा। अच्छा हो या बुरा आपके साथ ही खड़े होना है इसका मैंने फैसला कर लिया है।”
इस जवाब के साथ कार के एक्सीलेटर को धनंजयन ने जोर से दबाया।
लड्डू प्रसाद के साथ घर के अंदर घुसे धनंजयन, अचार के लिए नींबू को काटती हुई अम्मा ने मुड़कर देखा।
गीले कपड़ों को सुखाते हुए मुड़ी शांति दीदी को प्रसाद के थैले को दिया धनंजयन ने, “तिरुपति का दर्शन अच्छी तरह हो गया अम्मा…” बोला।
“मंदिर तक जाने लायक इतनी आस्तिक कब से हो गया भैया?”पूछते हुए बहन श्रुति आई।
“नौकरी मिल जाए तो पैदल आऊंगा ऐसा बोला था वही” कर संभाला धना।
“फिर पैदल चलकर ही पहाड़ पर चढ़ा?” विश्वास ना करते हुए दूसरी बहन कीर्ति ने पूछा।
“हां।”
“हमें भी लेकर जा सकते थे ना?” कीर्ति के पूछते ही एक छोटा सी हिचकिचाहट धनंजयन को हुई।
“हां बेटा…सब लोग जा सकते थे। अचानक तुम अकेले जाकर आ गए” अम्मा बोली।
“उसके लिए क्या है अम्मा …. वह तो कार आने वाला है ना, अब कभी भी जाकर आ जाए तो हो जाएगा” उसके बोलते ही उस पर विश्वास न कर सकते जैसे श्रुति ने देखा।
“क्या देख रही हो…मुझे यह काम मिला है अभी भी तुमको इस पर विश्वास नहीं हुआ?”
“हां अन्ना कल से तुम जो कुछ कह रहे हो हमें विश्वास नहीं हो रहा है।बंगला, कार, तिरुपति…. ऐसा वैसा तुम बोल रहे हो सब कुछ ही, तुम हमें धोखा दे रहे हो ऐसा लगता है” कहते हुए कैलेंडर को देखने लगी श्रुति। उसमें उसे दिन का तारीख मार्च 31 लिखा था।
तिरुपति लडडू का एक टुकड़ा, कृष्णा राज के मुंह में डालकर, “इतना ही है आपका कोटा। आपको शक्कर के शब्द को भी नहीं बोलना चाहिए डॉक्टर ने कहा है उसे याद रखो” कार्तिका बोली।
इस समय उनके सामने “गुड मॉर्निंग सर….”कहते हुए धनराजन खड़ा हुआ।
उसे घूर कर अपने गीले आंखों से कृष्णराज जी ने देखा।
“क्यों आपकी आंखें गीली हो रही है? वह तो सब कुछ अच्छी तरह हो गया ना?”
“सही है। परंतु वह विवेक तुम्हें लगातार धमका रहा है?”
“हां, सर। परंतु इसके लिए मैं डरने वाला नहीं।”
“तुम्हारी हिम्मत कि मैं दाद देता हूं। तुम्हारी यह हिम्मत आगे भी चलती रहें इस पर सब कुछ निर्भर है।”
“आगे भी चलेगा सर विश्वास कीजिए।’
“उसे छोड़ो मुझसे तुम कैसे प्रेम कर पा रहे हो? कृष्णराज ने पूछा।
“क्यों सर आप ऐसे क्यों पूछ रहे हो?”
“मैं तो बहुत बड़ा पापी हूं ना!”
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