(अध्याय 10)
मोबाइल फोन को जेब में रखते हुए धनंजयन ने कार्तिक को देखा।
वह , उसके इतने तेज काम करने को देख कर भ्रमित हुई ।
“क्या बात है मैडम…. ऐसा देख रही हो?”
“एकदम फर्राटे से एक-एक करके फैसला करते हो ।उसे भी बड़ी तीव्र गति से करते हो। हां क्या असली पुलिस उन लोगों को पकड़ लेगी?” कार्तिका ने पूछा।
“जरूर पकड़ेगी। पुलिस वाले बिल्कुल वैसा ही भेष बना लें बिल्कुल सहन नहीं कर सकते।”धनंजयन ने बोला।
“कहीं वे लोग बच गए तो?” कार्तिका ने पूछा।
“हमें पॉजिटिव की सोचना है…. उससे भी बढ़कर यदि वे हमारे पास आ जाएं तो उस सिचुएशन में क्या करना है तो हम वैसे कर लेंगे” बिना किसी डर के उसने जवाब दिया और गाड़ी को तेजी से दौड़ाने लगा।
“मेरी जिंदगी में आज ही मैंने एक खुशी को महसूस किया है। थैंक यू मिस्टर धना” कार्तिका बोली।
“मेरे काम को मैं कर रहा हूं मैडम। उसके लिए आप धन्यवाद क्यों दे रही हैं”
“यह तो सिर्फ एक शुरुआत है मिस्टर धना…. आगे-आगे और ‘असाइनमेंट’ इससे ज्यादा और कठिन होगा। उसे होशियारी और हिम्मत से काम करना होगा।”
“क्या मैडम…. हल्के से मुझे शाॅक देकर देख रही हो क्या?”
“शाॅक नहीं है धना…. बहुत ‘सीरियस’ ही कह रहीं हूं। आपको पता है, मैंने स्वतंत्रता पूर्वक आज ही बाहर की दुनिया को देखा है” उसे एक शाॅक और दिया।
“क्या कह रही हो मैडम?”
“यस यस…अप्पा या किसी एस्कॉर्ट के बिना मैं कहीं भी जा नहीं सकती। मैं ऑफिस को छोड़ती तो बंगले पर…बंगला छोड़ू तो ऑफिस इस तरह ही रहती हूं। ।”
“आप थोड़े समझने लायक बोलेंगी क्या?”
“मैं कहीं भी जाऊं तो वह विवेक मेरे पीछे-पीछे ही आना शुरू कर दिया था। स्वतंत्रता पूर्वक मैं कुछ भी नहीं कर पाती थी। वह कहां से आएगा मुझे पता नहीं…. कार्तिका बोली।
“जोर से थप्पड़ गाल पर लगाना चाहिए था ना?”
“ऐसा एक बार मैंने मारा उसकी वजह से जो मुझे परेशानी हुई वह मैं ही जानती हूं।”
“वैसे उसने क्या किया?”
“लगातार फोन करता रहा। स्विच ऑफ करने पर भी मेरे अप्पा को फोन करके हमारी शादी कब कर रहे हो अंकल पूछना शुरू कर दिया।”
“उन्होंने भी स्विच ऑफ कर दिया। तो वह अपने अप्पा दामोदरन के साथ ही बंगले में ही आ गया। अप्पा बीमारी की हालत में, उनकी बीपी बहुत ज्यादा हो गई। मैं बहुत परेशान हो गई।”
“क्या है मैडम…. आप जो कुछ कह रही हैं बिल्कुल एक सिनेमा में आता है वैसे ही है। ऐसा सब भी कोई करता है…. आप लोग तो बड़े आदमी हो पुलिस कमिश्नर को एक फोन कर देते तो बस हो जाता?”
धनंजयन के प्रश्न के पूछने पर उसकी आंखों से आंसू छलकने लगे। मौन हो गई कार्तिका।
“अरे ! मैडम आप क्यों रो रही हैं?”
“मैं आपके किसी प्रश्न का भी कोई जवाब नहीं दे सकती धना…. संक्षिप्त में बोलूं तो मैं बहुत बड़ी पापी हूं। बस इतना ही बस मैं कह सकती हूं” कार्तिका बोली।
“आप मत रोइए मैडम, सब ठीक हो जाएगा। हम पहले मंदिर में रूपयों को जमा करा देंगे। उस तिरुपति भगवान के जो गरीबों का पालनहार है उसको पूरे मन से विनती करेंगे। आप चाहे तो देख लीजिए अब सब कुछ अच्छी तरह से हो जाएगा” उसको एक विश्वास दिया धनंजयन ने।
दान पेटी में रूपयों की गड्डियों को डालकर वहां के सुरक्षा कर्मियों के सामने ही विशेष दर्शन भी किए । इसी समय उसका मोबाइल बजा।
“मिस्टर धनंजयन आपका इनफॉरमेशन बिल्कुल करेक्ट था। परंतु हमारे ‘टीम’उन्हें पकड़ नहीं पाई। वे बच गए….” सब इंस्पेक्टर बोले।
धनंजय को कुछ चुभा।
“हां ठीक है आपका दर्शन पूरा हो गया क्या?” सब इंस्पेक्टर ने पूछा।
“अभी बाहर आ रहा हूं। उन्हें आप पकड़ लेते तो मैं खुश होता। आपने छोड़ दिया ना सर.” धनंजयन ने बोला।
“आप दुखी मत हो। वे अल्प समय के लिए ही बचे हैं। वे निश्चित रूप से पकड़ लिए जाएंगे।” सब-इंस्पेक्टर बोले।
“उनको पकड़ने के लिए एक रास्ता है। चेन्नई में विवेक नाम का एक आदमी….” धनंजय के शुरू करते ही बहुत ही जल्दी से उसके मुंह को बंद किया कार्तिका ने।
उसके भी समझ में आया।
फोन को उसके हाथ से छीन कर लाइन को कार्तिका ने कट कर दिया।
“क्यों मैडम मना कर रहे हो…. उस चोर पुलिस को पकड़ना नहीं है क्या?” जरा आवेश के साथ धनंजयन ने बोला।
“नो…वह दूसरी तरह से चला जाएगा।”
“दूसरी तरह का मतलब?”
“मिस्टर धना….. मैं तुम्हारी जे.एम.डी., मेरा कहना मानिएगा।” जरा आदेश के स्वर में कार्तिका बोली।
कार्तिका के चेहरे पर धर्म संकट के रेखाएं दिखाई दे रही थी।
उसी समय कुछ लोग वीडियो कैमरा के साथ वहां आए कार्तिका और धनंजय के फोटो लेने की कोशिश में लगें थे।
“आप बड़े डोनर हैं…. कुछ बोलना है तो बोलिए।” वहां के निर्वहन अधिकारी।
“नो सर…पहले कैमरा को वैंड अप करिए। प्लीज मैं आपसे रिक्वेस्ट कर रही हूं,” कहकर कैमरा के डायरेक्शन से दूर जाकर खड़ी हुई कार्तिका।
कैमरा वाले ने अपने कंधे से कैमरे को उतारा।
“किसी तरह की पब्लिसिटी उनको पसंद नहीं। यह रुपए भगवान के लिए एक हमारी तरफ से भेंट है हमें इससे खुशी मिलती है। वह हमारे लिए बहुत है सर…..” वहां के निर्वाहक अधिकारी से धनंजय बोला।
इसी समय उसका मोबाइल फिर से बजा। थोड़ा अलग जाकर उसने कान में लगाया।
“क्यों धनंजयन, रूपयों को दान पेटी में डाल दिया लगता है” विवेक की आवाज थी, धनंजय के कानों में वह आवाज फड़फड़ाने लगी।
“हां मिस्टर विवेक…. एक सेक्रेटरी के नाते अपने कर्तव्य को एक अच्छे कार्य से मैंने शुरू किया है। मुझे आपके बातों को सुनकर वैसे ही चलना नहीं हो सकता । आई एम सॉरी मिस्टर विवेक…” धनंजयन ने बोला।
“तुमने गलती की…. फिर भी, जाने दो कहकर तुम्हें एक मौका और देता हूं। उस काम को छोड़ दो। नहीं तो, निश्चित रूप से तुम्हें अपने जीवन को त्यागना होगा….”
दूसरी तरफ से इस बड़ी चेतावनी के साथ फोन को विवेक ने कट कर दिया।
धनंजयन के चेहरे पर सदमे की रेखाएं चलती हुई दिखाई दी।
अगले अध्याय में आगे …..