(अध्याय 7)
पिछला सारांश-
कार्तिका इंडस्ट्रीज में नौकरी लगी है और तनख्वाह 3 लाख रुपया है ऐसा अपनी मां अम्मा और बहनों को धनंजयन ने बताया। इस पर विश्वास न करके उन लोगों ने प्रश्न के ऊपर प्रश्न पूछा उनके परिवार के लोगों ने।
इसी समय धनंजयन को इंडस्ट्री के हिस्सेदार के लड़के विवेक का फोन आता है। कार्तिका ने जैसे बताया वैसे वैसे एक करोड रुपए को दान पेटी में नहीं डालना क्योंकि कार्तिका के अप्पा एक धोखा देने वाला आदमी है। इसीलिए इस नौकरी से अलग हो जाओ ऐसा कहता है विवेक।
इस बार मोबाइल में कार्तिका का बोल रही थी।
“हेलो मिस्टर धनां…. मैं कार्तिका….
“कल सुबह 2:00 बजे तिरुपति रवाना हो रहें हैं बोले थे?”
“यस मैडम!”
“उसमें कोई बदलाव तो नहीं है?”
“क्यों मैडम ऐसा पूछ रही हो?”
“कंफर्म करने के लिए ही पूछा। आपके घर के पते को गूगल कर दीजिएगा। मैं अपनी गाड़ी में ही आ जाऊंगी। हां आप कार चलाते हो ना?”
“चलाता हूं मैडम…. कोई काम नहीं मिले तो ‘ओला, उबर’की टैक्सी ही चलाऊंगा सोच कर मैंने चलाना सीखा।
“गुड…. आप और मैं ही कार चलाएंगे। मेरे ड्राइवर को भी हम तिरुपति जा रहे हैं नहीं मालूम।”
“समझ रहा हूं मैडम। अभी आप बात कर रहें हो इसलिए बोल रहा हूं। आपने बताया था वह दामोदरन का लड़का विवेक थोड़ी देर पहले ही उसने मुझे फोन किया था।”
“अरे…जासूसी करके बात भी करने लगा?”
“हां मैडम…आप बोले जैसे ही मेरी कीमत लगाने लगा। सोच कर बताऊंगा कहकर मैंने उससे इंतजार करवाया।”
“फिर आप उसे कंसीडर करने वाले हो?”
“बिल्कुल नहीं मैडम। कितने भी करोड़ दे दें मैं ऐसे एक कैरेक्टर के साथ में एडजस्ट नहीं हो सकता। बहुत अच्छी बात है उसको हमारे तिरुपति जाने का प्लान के बारे में पता नहीं है। उसके बारे में उसने कुछ नहीं पूछा। फिर भी मेरे फोन नंबर को मालूम करके वह मुझसे बात की यह निश्चित ही बड़े आश्चर्य की बात है।”
“इंटरव्यू के कमरे में हम बात कर रहे थे वह विषय उसके पास पहुंचा है वह कैसे समझ में नहीं आया?”
“वहीं नहीं है मैडम…मुझे एक आदमी निरीक्षण कर रहा है यह भी उसने कहा। अभी मैं अपने घर के बाहर सीढ़ी में खड़ा होकर बात कर रहा हूं। मुझ पर कोई निगरानी रख रहा है ऐसा मालूम हो रहा है।”
“देखा आपने वही उसकी लोमड़ी पना है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है…. इस नौकरी को नहीं चाहिए सोचो तो, आप छोड़ दीजिएगा। हमारी वजह से आपका परिवार परेशान नहीं होना चाहिए….” कार्तिका बोली।
फिर क्या बोलना है सोच कर जैसे ही उसने गर्दन ऊंची की, पलक बंद करने को भूलकर उसने देखा तो उसका परिवार खड़ा था।
वह भी उसे थोड़ा परेशान हुआ। फिर भी वह अपने को संभालते हुए,”जब आप हमारे कुटुंब ,परिवार के बारे में चिंता से बात कर रहें हो तभी मैंने आपके साथी सहयोगी बनकर आपकी मदद करने की मैंने सोच लिया मैडम।”
“रात में आपके कार से हमारे घर आने की जरूरत नहीं है। सत्यम थियेटर के बाहर ठीक 1:30 बजे आप आ जाइए। मैं सेकंड शो देख कर आ रहा हूं जैसे आपकी गाड़ी में चढ़ जाऊंगा।
“पैसों को लेकर आते समय थोड़े सावधानी से लेकर आईएगा। बीच में आपको पुलिस यदि तलाशी ली तो आप उन आधारों को बताने के लिए तैयार रहिए। बाकी बातें हम कार में कर लेंगे।” और उसने अपने फोन को बंद कर दिया।
धनंजयन को आंखें फाड़ कर देख रही थी उसकी अम्मा।
“क्या है धना…किससे ऐसी बातें कर रहे हो?” दीदी शांति ने पूछा।
“नौकरी पर लग गया हूं ना…जे.म.डी., से ही।”
“उसे घर में बैठकर ही बात कर सकते हो ना….. ऐसा बनियान को पहने पूरे गली वाले देखे जैसे चलते हुए बात करना?”
“ऑफिस की बात थी…मुझे पर्सनल बात करने की इच्छा जाहिर की।”
“नौकरी में आज ही तो ज्वाइन किया है…. इतनी जल्दी पर्सनल बात करने के लिए क्या विषय है?”
“क्यों शांति, ऐसा घुमा फिरा कर पूछ रही हो। ऑफिस का विषय है बोल दिया तुम छोड़कर अपने काम को देखो मुझे क्यों संदेह से देख रही हो?”
“अच्छा ! पूछा…. पापड़ और अचार बेचने वाले को 3 लाख रुपए, एक बंगला, कार….. किसे संदेह नहीं होगा? उसमें भी, पहले दिन घर के अंदर घुसकर काम के बारे में बात करने के लिए फोन भी….
“आते ही कुछ-कुछ बात करते हुए तुम बिना शर्ट पहने हुए गली में चले गए। हमें डर लग रहा है….”
अभी तक बिना बोल रहे अम्मा अपनी भावनाओं को बड़े ही भावुकता से कहने लगी।
अम्मा के प्रश्न का उत्तर ना दे पाने के कारण, धनंजयन कुछ पल मौन हो गया।
“बोल रे…. क्यों मौन हो गया?” अक्का शांति ने उकसाया।
“यह देखो…. यह मेरे लिए बहुत ही अच्छा काम है, थोड़ा मुश्किल काम है। मैंने कष्ट पाना है सोच कर फैसला कर लिया। मेरे जैसे लोगों को एक अच्छी तनख्वाह में राज्य की नौकरी या दूसरी नौकरी मिलना मुश्किल है…
“कष्ट होने से ज्यादा यह सब मिलेगा ही नहीं बोल सकते हैं। इसके अलावा प्राइवेट कंपनी में काम मिले तो भी बीस हज़ार रुपए मिलेगा वह भी बहुत ज्यादा होगा।
“हां आज दीवार की पुताई करने वाला भी हजार रुपया वेतन के बगैर काम नहीं करता। इसके लिए मैं पुताई नहीं कर सकता। मैं तो सरकार के बारे में बता रहा हूं।”
“भैया…. देख लो…..” स्मृति और कीर्ति के बोलते ही उसे कुछ कुछ होने लगा।
आधी रात को 1:30 बजे सत्यम थियेटर पर….
धनंजयन का मोबाइल फोन बजा।
“मैं बाहर ही खड़ी हूं। व्हाइट कलर की बी. एम.डब्ल्यू कार…” कार्तिका बोली।
पर्दे पर क्लाइमैक्स के आखिरी सीन देख रहे समय बाहर निकाल कर धनंजयन आ गया।
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