Apradh hi Apradh - 6 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 6

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अपराध ही अपराध - भाग 6

अध्याय 6

 

“ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच’ सच बोलो, यह 3 लाख रुपए 1 महीने का या 1 साल का?” अपनी बातों को टाॅन्टिग में लेकर और नकल उतारते हुए श्रुति बोली।

‘मेरी जिंदगी के लिए है यह रुपए इनको कैसे बताऊं?’

अपनी अक्लमंद छोटी बहन को मौन होकर घूरते समय ही उसका मोबाइल बजा।

“क्यों मिस्टर धनंजयन…कृष्ण राज के पी.ए., बनने को राजी हो गए लगता है?” कान के अंदर एक रहस्यमय आवाज आई।

अपने सिर के ऊपर एक छिपकली गिरी जैसे उसे महसूस हुआ ” आप कौन?” धनंजयन ने पूछा।

“क्यों तिरुपति यात्रा ही है, पहला असाइनमेंट?”

बिना रुके धनंजयन ने पूछा “तुम विवेक के आदमी हो ना?”

“विवेक का आदमी…मैं ही विवेक हूं भाई!”

“ऐसा…आपसे बात करने में बहुत खुशी हुई” ऐसा कहते हुए बाहर की तरफ धनंजयन निकल गया।

“ शॉक लगा क्या…. नहीं?” एक रहस्य की आवाज देकर विवेक से दूसरा प्रश्न।

“इंतजार करते रहने पर कैसे शॉक लग सकता है? आप ही बताइए, मैं उसे नौकरी में ज्वाइन करके, उनके कहे हुए कोई भी काम नहीं करूं?”

“अबे…तुम बहुत, ‘शार्प एंड शॉर्ट ‘ हो। बहुत ज्यादा घुमा फिरा कर बोले बगैर सीधे ही विषय पर आ गए तुम?”

“आप 4 लाख देते हो बोलो। फिर आपकी बात को मानता हूं।”

“अचार पापड़ बेचने वाले क्या तुम इस तरह की डिमांड कर रहे हो?”

“कोई भी दावत हो यह तो होना ही चाहिए मिस्टर विवेक। यह नहीं हो तो बहुत से लोग खाना ही नहीं खा पाएंगे।”

“अरे हाय…बहुत बढ़िया यह काउंटर अटैक…एक पी.ए. को चार लाख रुपए। हम बेवकूफ नहीं है। जाने दो, कृष्णराज के बारे में तुम्हें कुछ मालूम है?”

“आगे आगे पता चलेगा ना।”

“ऐसे मालूम होने पर, उन पर थूंकोगे…वे इतने घटिया आदमी हैं।”

“फिर आप उसके हिस्सेदार हो इसलिए पूछा।” 

“अफॅकोर्स…सच है, सत्य, धर्म, न्याय के बारे में मानने वालों सबको मैं भी सही इस कृष्णा राज भी सही बहुत ही घटिया हैं।”

“आपके घटिया बातों को मैं क्यों सुनूं?”

“अच्छा प्रश्न….. उसे घटिया कृष्णराज के साथ भी काम मत करना। वह बहुत ही आपत्तिजनक है।”

“तीन लाख वेतन है, अपार्टमेंट और कार भी, यह सब एक एकेडमिक डिग्री पढ़े हुए को बड़े आराम से नहीं मिलेगा यह मुझे मालूम है।” 

“शुरू में तो तुम बड़े शार्प जवाब दे रहे थे अब तो लंबी-लंबी हांक रहे हो…तुम्हें वह आदमी तिरुपति क्यों भेज रहा है पता है?”

“आपको यह भी नहीं मालूम फिर भी आप मुझे धमका रहे हो?”

“स्टूपिड…बड़ी होशियारी से बात कर रहे हो ऐसा सोच रहे हो तुम? वह आदमी अपनी छोटी उम्र में एक चलती गाड़ी से तिरुपति ले जा रहे दान की उसने चोरी की। यही उसकी पहले चोरी थी।

“फिर वह बढ़ता चला गया घर में घुसकर चोरी करना। मंदिर में भगवान की मूर्तियों को चुराकर, उसे विदेश में ले जाकर बेचना यह ‘डेवलप’ हुआ। और भी बहुत कुछ है। बोले तो तुम सहन नहीं कर पाओगे।

“संक्षिप्त में बताएं तो वह बहुत बड़ा पुराना कैपमारी है। अब है बहुत बड़ा व्यापारी है…” विवेक बहुत गुस्से में इन शब्दों को बोलने से धनंजयन थोड़ा स्तंभित हो रहा था ।

“मिस्टर विवेक…आज बहुत से व्यापारियों की शुरुआत इसी तरह ही तो की है। नियम और ढंग से किसने जायदाद उत्पन्न की?”

“तुम्हें छोड़ना पड़ेगा…नहीं तो अपने जीवन को ही तुम्हें त्यागना पड़ सकता है। मैं बहुत बड़ा विलेन हूं। मानता हूं। परंतु तुम ‘हीरो’ नहीं हो। इसे समझो।”

“इसका फैसला अभी से करें तो कैसे?”

“फिर तुम नौकरी नहीं छोड़ोगे…. ऐसा ही है?”

“मुझे कुछ भी ना देकर, नौकरी छोड़ दो बोलें तो कैसे होगा बॉस ?”

धनंजयन का टोन ऐसे ही बदलने लगा।

“ओ हो…तुम ऐसे रास्ते पर आ रहें हो?”

“आप कैसे विलेन हैं…ऐसे ट्यूबलाइट जैसे ?”

“मैं आग हूं, इस तरह से मुझे हल्के में मत लो। तुम्हें कितना चाहिए मांगो?”

“पूरी जिंदगी खाना देने वाले काम को छोड़ने को बोल रहे हो। उसके लिए उसके भरपाई करने वाला कंपनसेशन दोगे तो ही तो ठीक रहेगा।”

“तू तो बहुत बड़ा खिलाड़ी ही है…. ठीक है कितना चाहिए?”

“आप बताइए बाॅस!”

“वह कृष्ण राज तुम्हें एक करोड़ रूपया देगा। उसमें आधे को लेकर आधे को मुझे दे दो, एक प्लॉट लेकर खुशी से रहो।”

“हो…आप अपने हाथ से कुछ भी नहीं दोगे बाॅस…. दूसरों के पैसे से भोग लगाओगे भगवान को?”

“उसमें आधा करोड़ हमारा है…. हम इक्वल पार्टनर्स हैं।”

“ठीक है बाॅस…मुझे थोड़ा टाइम दीजिए, सोच कर बताता हूं।”

“मुझसे टाइम मांग कर दूसरी तरफ काम मत करना मेरा आदमी हमेशा तुम्हें देखता रहता है, उसे भी मत भूलना।”

विवेक नाम के उसे रहस्यमय आदमी की आवाज कट गई। बिना शर्ट के बनियान और पेंट के साथ गली में कई दूर तक आने के बाद ही धनंजयन ने महसूस किया।

कार्तिका ने जो आफ़त वाला काम है बोला था,उसका अर्थ अब उसे समझ में आने लगा। मोबाइल फोन को जेब के अंदर डालते हुए उसने चारों तरफ देखा। गली के आने जाने वाले सभी लोग उसे देख रहे हैं ऐसा उसे लगा ।इसमें से कौन विवेक का आदमी है?

ठोड़ी को सहलाते हुए वापस आने लगा। सामने वाले घर के चारों लोग उसे घूर रहे थे। इस समय दोबारा का फोन बजा।

हिचकिचाहट के साथ उसने कान से लगाया। वह?

आगे पढ़िए…