Jungle - 15 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 15

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जंगल - भाग 15

                       जंगल (15)

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कोट की तारीख़ अगले महीने की बीस डली थी, अक्टूबर का महीना था, हल्की बरसात.... पहाड़ो की उच्ची कतारे... कुछ गिरा हो जैसे कार पे... रुकी एक दम से, बर्फ पड़नी शुरू थी... शिमले का चित्र था, सड़को पर चरवाहा बकरिओ को चार रहा था। नीचे खायी थी भरपूर मात्रा मे... गहरी इतनी... पूछो मत।

वही गाड़ी रोक कर उची पहाड़ी को देखने लगा था, कभी बहुत मन खिलता था, आज नहीं, पता नहीं कया हो गया था राहुल को। कुछ भी अच्छा नहीं लगा था उसे।

खूब रोने को मन था, आँखे सुखी हुई रेगिस्तान बनी थी। दुख दर्द के इलावा कुछ भी पास नहीं था।

जॉन सगीना (माधुरी ) के पास उसके फ्लेट मे था। कोई बात दो दिन  मे नहीं थी, फ़िक्र था, इतनी बड़ी इमारत कल नीलाम हो जाएगी। राहुल शिमले था।

"दादा जी के कहा था," सेठ दौलत चद के पास जाना, ज़ब जरूरत पड़े, मेरे उस पर इतने आसान थे, चार करोड़ मेरा और भी कुछ तुझे वो देगा। एक सकरी सी गली मे वो घर पुछ रहा था, वो भी  उसके बेटे " निज़ाम " से। वो उसे आपनी हवेली नुमा घर मे ले आया था।

" बैठो अक्ल " निज़ाम ने हल्के से कहा था। चाये बन रही थी। बड़ी तोद वाला एक आदमी पेश हुआ, रोशनी कम थी घर मे, हर साहूलियत थी।

"कौन हो बेटा -------" किधर से आ रहे हो " 

राहुल ने पहली दफा रूआसी सी खमोशी थी चेहरे पे।

निज़ाम को ऊपर भेज दिया था। सबी कुछ विस्तार से बताने के बाद, दौलत चद ने आँखे पूछ के कहा, "रुको बेटा। "

                      " ---मैंने  सुना है तुम्हारे विषय मे, एक जयादा देदुगा। "

" एक फोटो देख लेना " राहुल गंभीर स्वर मे बोला, " देखा दो, अक्ल.... आप भी मेरे दादें जैसे ही है " राहुल ने फोटो देख के कहा, " कौन है... ये " दौलत  चद चुप था। ये रिश्ते मे भांजा है " चुप हो गया, "चदन की लकड़ी मे जो आज इससे मैंने तीन करोड़ लेना है "और वो चुप था।" शहर बम्बे मे शिप खरीद लिया, वही का हो गया.... " दौलत चद कहता हुआ रो पड़ा। 

"---घबराये नहीं अक्ल, आप मेरे दादे समान है " राहुल ने पक्का हौसले से कहा, ", आपके पास ले आऊ, कया।" राहुल ने पूछा। बेटा ऐसा हो, तो कर दो,। तुम 2 करोड़ तो अब ले लो, बेटा। "बाकी 3 करोड़ इसके लाने पे देदुगा।" दौलतचद ने एक तरा से भय मे कहा।

पर "दादा जी आपके पास चार करोड़ कहा था।" राहुल ने हैरानी मे कहा। "हाँ बेटा दोनों का ही ये चुना ला गया।" दौलत चद ने मासूमियत से कहा।

                     "---बात कब की है " राहुल ने विस्तार जानना चाहा। दौलत चद ने कहा, "बात को पांच जा सात साल हो गए हो गए होंगे।"

"ओह " सुना था राहुल ने, ऐसे बंदे कम ही मिलते है। 

दौलत चद से दो करोड़ तो लो, बाद मे इसकी चुस्ती जहाँ से चली है वही मरुँगा। थैले मे 500 की थदिया बैग मे भर लिए थे। जानभूझ के रिवाल्वर की गोलिया उसने दौलत चद के आगे निकली थी। बेटा रात रह लेते , "नहीं बिजनेस ही ऐसा है, जाना होगा " दौलत चद से उसका नाम पूछा,  उसने परदेसी चंद लहोरी  बताया "

"सच मे -----" दौलतचद से एक बार आँखो मे आँखे डाल के बात की। "मैं कयो झूठ बोलूगा।" 

चलो... ठीक है, जल्दी मिलेंगे, राहुल अब जा चूका था।

----------------------"चलदा "---------------