Yaado ki Asarfiya - 17 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 17. 2. मणिक सर का लेक्चर

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यादों की अशर्फियाँ - 17. 2. मणिक सर का लेक्चर

2.मणिक सर का लेक्चर

मणिक सर बिलकुल मेहुल सर से अपोजिट पर्सनालिटी के थे। उनकी भी ‘तारीफ’ सुनी थी हा सिर्फ सुनी ही थी क्योंकि हम ने इतने सौभाग्यशाली नहीं थे जिसको 8th में उनका लाभ मिला था। हमारे लिए भी मणिक सर नए थे। उनको हमने उसकी पहली झलक से ही नाप लिया। 
     
       ट्यूशन के हलके मूड में थे सब। स्कूल की, घर की, दोस्तो की बाते कर रहे थे हम। पहला दिन था। नहीं जानते थे किसका पहला लेक्चर होगा पर हमे फिकर किस बात की हम तो अपनी मस्ती की धुन में थे। पर यह धुन तब अटकी जब मणिक सर ने अपने सीरियस चहेरे के साथ क्लास में कदम रखा। सर के हाथ में बड़ा सा बेग था, इतना बड़ा की हम स्टूडेंट्स होकर भी नहीं लाते थे। आ कर ही उन्होंने साइंस की बुक निकली और साथ में अपनी स्पेशल वाली चोक भी। हर क्लास में चोक तो रहती ही थी। ट्यूशन में भी होती थी। मेहुल सर भी उसी चोक से लिखते थे पर मणिक सर ने कुछ अलग चोक निकली। वह डस्टलेस चोक थी मतलब उस चोक से लिखने पर और खास कर मिटने पर कोई चोक की धूल नहीं निकलती थी। आम चोक की धूल से एलर्जी हो जाती है। सर ने अपना इंट्रोडक्शन देना शुरू किया। वह कोई गवर्मेंट स्कूल में साइंस और मैथ्स के टीचर थे और यहां भी वह यही विषय पढ़ाएंगे। जब विषय इतने हार्ड हो और सर इतने सीरियस हो तो जाहिर है की लेक्चर्स मुश्किल से ही कटेंगे।

  जब मणिक सर ने साइंस पढ़ाना शुरू किया तो लगा की लोरी गा रहे है क्योंकि दो पहर का वक्त था। खाना खाकर सब आए थे और ऊपर सिर्फ थियरी जो सीरियस थी कोई मस्ती नहीं, मजाक नहीं। ढाई बजे लेक्चर शुरु होता था और तीन - सवा तीन बजते बजते सबको प्यारी नींद आने लगती। सब लोग झपकी लेने लगते। ऐसा लगता की काश सर को कुछ इमरजेंसी आ जाए और वह चले जाए और हम सो जाए। इसी नींद रात को भी नहीं आती। मेरा सबसे फेवरिट सब्जेक्ट में भी मुझे नींद आने लगती, उस वक्त आंखे खुले रखनी बहुत ही कठिन था। मुझे लगता है की यह हमारी सबसे मुश्किल एक्जाम थी, इस पर हमे ईनाम मिलना चाहिए। सिर्फ टीचर्स सीरियस होने पर ही स्टूडेंट्स को नींद नहीं आती पर स्टूडेंट्स को कुछ समझ नहीं आता इस लिए भी आती है। यह शायद सर भी समझते होंगे की दो पहर को खाने के बाद पढ़ना कितना मुश्किल होता है और वह भी पांच घंटे स्कूल में पढ़ने के बाद। 

    पर मणिक सर क्या कोई भी टीचर सोने नहीं देते। मणिक सर बाकी टीचर्स की तरह गुस्सा नहीं करते थे पर अपनी तेज़ चुटकी बजाकर हम सबको जगा देते थे और वह भी एक एक के कान के पास। किसी अलार्म से कम न थी वह चुटकी। आज भी उसकी आवाज सुनकर जग जाए।

   पर जब सर मैथ्स लेते थे तब कम नींद आती थी क्योंकि उस वक्त सिर्फ श्रोता न बनकर हम राइटर भी बन जाते थे यानी की हम बोर्ड से कॉपी करते थे बुक में। लिखने की वजह से नींद नहीं आती और खास कर सर जब बोर्ड में लिखते थे तब हमे बात करने का मौका भी मिल जाता था। कभी कभी सर बहुत गुस्सा हो जाते और लाल लाल हो जाते। वह बात करने वाले को खड़े भी करते चाहे लड़कियां हो या लड़के। बहुत मुश्किल से मस्ती करने का मौका मिलता था। पर ध्रुवी मौका ढूंढ लेती ही है। वह बेंच में कार्टून ड्रॉ करती थी। बुक मे से बात करते थे। हम भी कुछ कम नहीं थे। हम सोंग्स लिखकर जाते थे और उसे पढ़कर और गुनगुनाकर रिलैक्स हो जाते थे। एक बार तो में पकड़ी भी गई थी पर सर डांट ने के बजाय चुप चाप चले थे। सर हद से ज्यादा हो तो ही डांटते थे वरना मौन रहकर भी बहुत कुछ समझा देते थे। शायद यही टीचर की खासियत होंगी। 

     ऐसा नहीं था की हमने कभी भी मणिक सर के लेक्चर में स्माइल नहीं की पर उनकी एक आदत - खुद को शाबाशी देने की हमे स्माइल करवा देती थी। हमारा जवाब सच हो तो वह हमे अपना हाथ ऊपर उठाकर पीठ को थपथपाने को कहते थे। यह कहते हुए वह भी स्माइल करते थे और हम भी। 
 
    चाहे दूसरे स्टूडेंट्स को वह बोरिंग लगे हो पर मेरे लिए तो वह बेस्ट थे क्योंकि वह मेरे सभी मैथ्स के प्रॉब्लम्स सॉल्व कर देते थे। सर की छोटी सी रिसेस भी में मैथ्स के सम करवा के ले लेती थी। जैसे वह हमारा रिसेस का वक्त ले लेते क्योंकि वह घड़ी में देखते ही नहीं थे और अपनी पढ़ाई शुरू रखते थे। कोई भी स्टूडेंट कैसे कह सकेगा की सर वक्त हो गया है अब जाइए। इसलिए हमने एक तुक्का लगाया था की ध्रुवी थोड़ी ऊंची आवाज़ में पूछती की कितने बजे है ताकि सर को सुनाई दे और वह घड़ी देखे और हम छूटे। खुद मणिक सर की कबूल करते थे की वह स्टूडेंट्स को पढ़ते समय उसे वक्त का ख्याल नहीं रहता। उन्होंने तो मेहुल सर से भी कह रखा था की वह समय पर आ जाए ताकि सर को पता चले की ब्रेक का टाइम हो गया। 

     जब मेहुल सर आते थे तब मानो देवदूत आ गए क्योंकि स्टूडेंट्स को हमेशा ब्रेक बहुत प्यारी होती है और जब ब्रेक में हमारे जैसी मस्ती होती है - एक दूसरे पर पानी फेकना, पूरे क्लासरूम में घूमना, बोर्ड में अपना नाम लिखना और ढेर सारी बाते करना। किसको अच्छी नहीं लगती रिसेस। 

       कुछ भी कहे अगर हम सब मैथ्स में पास हुए तो सिर्फ मणिक सर की कृपा से भले ही वह सीरियस थे पर टैलेंटेड टीचर भी थे।