Tamas Jyoti - 60 - Last Part in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 60 (अंतिम भाग)

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तमस ज्योति - 60 (अंतिम भाग)

प्रकरण - ६०

स्टूडियो में बैठे रोशनकुमारने कहा, "अपनी आंखों की रोशनी वापस आने से मैं उस दिन बहुत ही खुश हुआ था।"

अब अमिताने एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, "रोशनजी! आपकी आंखों की रोशनी वापस आने के बाद आपका सबसे पहला स्टेज परफॉर्मेंस कैसा था? वह अनुभव कैसा था? कृपया हमारे दर्शकों को इस बारे में थोड़ा विस्तार से बताएं।" 

अमिता के इस सवाल का जवाब देते हुए रोशन कुमारने कहा, "मेरे जीवन में समय के साथ साथ मुझे सब कुछ एक बार फिर मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा मिल रहा था। जब मैं अपनी आंखों की रोशनी लौटने के बाद अपना पहला स्टेज शो कर रहा था तब मैं अपने दर्शकों के सामने जो प्रदर्शन कर रहा था उससे मुझे जो ख़ुशी मिली उसे मैं कभी बयान नहीं कर सकता! मेरे सामने अनगिनत लोग मेरी ख़ुशी में शामिल थे! अब तक मैंने सिर्फ अपने नाम की चीखें ही सुनी और महसूस की थी, लेकिन आज जब मैं इसे प्रत्यक्ष देख सका तो दर्शकों का मेरे प्रति प्यार देखकर मैं बहुत ही खुश हुआ। मैंने सबके प्यार का भरपूर लुत्फ उठाया। मैंने उनकी आशाओं के साथ न्याय दिया और बहुत अच्छा परफॉर्म किया।

लोग मेरा ऑटोग्राफ लेने के लिए इतने उत्सुक थे कि उस दिन उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस की मौजूदगी की जरूरत पड़ गई थी। लोगों का प्यार मुझे महसूस हुआ लेकिन इसे प्रत्यक्ष देखकर मेरी अंतरात्मा को बहुत ही खुशी का अनुभव हुआ। इसका मजा ही कुछ अलग था जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता!

अमिता बोली, "हाँ रोशनजी! वही ख़ुशी और चमक आज भी आपकी आँखों में दिखाई देती है।"

मैंने कहा, "ये आपने बिल्कुल सही कहा है अमिताजी! यह मेरी खुशी सिर्फ उस एक पल की ही नहीं बल्कि इस दो घंटे के वक्त में मैने अपनी सारी एक बार फिर से जी ली। 

मैं एकबार फिर से अपने जीवन का बचपन, हमारे तीनो भाई-बहनों के बीच का मासूम प्यार, वह दर्द जिसने मेरे जीवन को तमस से भर दिया, मेरे भाई रईश के वो सांत्वना से भरे शब्द, पापा से विरासत में मिले संगीत के कारण मेरा संगीत की दुनिया में प्रवेश। मेरे जीवन में फातिमा का आगमन, मेरे जीवन में तमस के साथ मेरा संघर्ष, ज्योति की एक किरण के कारण इस तरह मेरा नाम पूरी दुनिया में फैलना और रईश का आंखो पर रिसर्च से लेकर डॉक्टर प्रकाशने किया हुआ मेरी आंखों का ऑपरेशन और इस ऑपरेशन से मेरी आंखों में ज्योति का पुन:प्रवेश। यह सब बाते आज मुझे याद आ रही है। आज मैं इन सभी भावनाओं के साथ एक बार फिर से जी उठा हूं। आपसे बात करके ऐसा लगा जैसे मैंने अपनी पूरी जिंदगी एक बार फिर से जी ली हो। इतना कहते हुए स्टूडियो में बैठे रोशन कुमार थोड़े भावुक हो गए। उनकी आंखें भर आईं।

अमिता बोली, "अरे रोशनजी! आप इस बीते हुए समय को अपनी ताकत बनाएं, इस साक्षात्कार के माध्यम से हमारा उद्देश्य यह प्रेरणा देना था कि प्रकृति आपके जीवन में चाहे कितना भी तमस फैला दे, अगर परिवार का सहयोग और प्रकृति के प्रति आपकी आस्था बरकरार है तो आप तमस से ज्योति की ओर जा सकते है। अमिताने अपने इंटरव्यू को ध्यान में रखते हुए एक बेहद प्रेरणादायक बात कही।

मैंने कहा, "हा! अमिताजी! सच कहा आपने। मेरा जीवन हमेशा से ही कई लोगों को प्रेरित करता है। मुझे अपने परिवार से भी बहुत सहयोग मिला। मेरे परिवार की वजह से ही फातिमा मेरी जिंदगी में आ सकी। फातिमा का मेरी जिंदगी में प्रवेश भी मेरे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण था। पहली बार जब फातिमाने मुझे छुआ तो उसके स्पर्शने मेरी भागदौड़ भरी जिंदगी में करियर जैसी चमक बिखेर दी, कि मैं एक सेलिब्रिटी की जिंदगी जीने में सफल हो गया।

फातिमा के मेरी जिंदगी में हमसफर बनकर आने के बाद भी उसने मेरा बहुत साथ दिया है। निषाद मेहता के साथ मेरा कोन्ट्राक्ट समाप्त हो गया था, लेकिन फातिमा के समर्थन और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद से, मैंने अपना खुद का सरगम नामक एक संस्थान खोला था, जो अब भी चालू है जहाँ मैं उन लोगों को संगीत सिखाया करता हूं जो संगीत में रुचि रखते है। मैं कई देश-विदेश में कार्यक्रम भी कर रहा था। हिंदी और गुजराती तो ठीक थीं, लेकिन मेरा संगीत अंग्रेजी फिल्मों में भी आने लगा। मेरी जिंदगी इतनी व्यस्त थी कि इस व्यस्तता में फातिमा के प्यार की गर्माहट ने मुझे इतनी हिम्मत दी।

जैसे ही मेरा पेशेवर जीवन फला-फूला, वैसे ही हमारे प्यार के प्रतीकरूप फातिमाने एक खूबसूरत बच्चे का पिता बनने की खुशी मुझे देकर मेरा सारा जीवन खुशियों से भर दिया था। जब मेरे बच्चे का जन्म हुआ और जब मैंने उसे अपनी बाहों में लिया तो मुझे जो खुशी महसूस हुई वह अवर्णनीय है। मैं अब एक बेटे का पिता बन गया था। हमने अपने उस बेटे का नाम वंश रखा था।

जिस तरह से मेरा जीवन फलता-फूलता गया, वैसे ही मेरी बहन दर्शिनी का जीवन भी विकसित होता गया। दर्शिनी और समीर भी अब एक दूसरे को पाकर बहुत खुश थे। वे दोनों अब राजकोट में जाकर ही बस गये थे। समीर की आर्थिक स्थिति में भी अब काफी सुधार हो गया था। शादी के तुरंत बाद समीरने अपना नया ग्राफिक डिजाइनिंग का बिजनेस भी शुरू किया था और दर्शिनी भी उसके साथ उसके इस बिजनेस में शामिल हो गई थी।

दर्शिनी शादी की निमंत्रण पत्रिका आदि डिजाइन करती थी और समीर उन्हें डिजिटल रूप में बदल देता था। इन सबके बावजूद अभी भी समीर विद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाने जा रहा था। वह पार्ट टाइम विद्यालय जाता था। ममतादेवी भी समीर के काम से बहुत खुश थी। बस! यही मेरी अब तक की कहानी है।"

अमिता बोली, "जी रोशनजी! यूं तो मैं कई लोगों का इंटरव्यू लेती हूं। यहां हमारे स्टूडियो में अक्सर मशहूर हस्तियां हमसे मिलने आती है लेकिन आपसे बात करने की यह यात्रा एक अनोखा अनुभव था जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगी। जब मैं यहां से घर जाऊंगी तो अपने साथ बेहतरीन यादें लेकर जाऊंगी। मुझे आशा है कि हमारे दर्शकों को आपसे बात करके उतना ही आनंद आया होगा जितना मुझे आपसे बात करके आया। चलो अभी! रोशनजी! अब हमारे दर्शकों को अलविदा कहने का समय आ गया है। लेकिन जाने से पहले हमारे पास आपके लिए एक सरप्राइज है। इस स्टूडियो में हमारे साथ आपका पूरा परिवार भी मौजूद है। कृपया! सभी लोग मंच पर आ जाए।"

अमिता का ये कहते ही रोशनकुमार का पूरा परिवार जिसमें उनके मम्मी पापा, फातिमा और उनका बेटा वंश, रईश और नीलिमा अपनी बेटी अरमानी के साथ, समीर और दर्शिनी ये सभी स्टूडियो के उस मंच पर आ गए।

उसे देखकर रोशन कुमार काफी भावुक हो गये। अमिता और उनकी टीमने रोशनजी और उनके पूरे परिवार के साथ फोटो ली। स्टूडियो में एक बोर्ड भी लगा था जिस पर रोशनकुमार को ऑटोग्राफ देने के लिए कहा गया। रोशनकुमारने बोर्ड पर अपना संदेश लिखा और उस पर हस्ताक्षर किये।

चार दिन बाद उनका पूरा इंटरव्यू टीवी पर प्रसारित किया गया। जिसने चैनल के अब तक के हाईएस्ट टी. आर. पी. के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।

(समाप्त)

बिदाई के इस अवसर पर,

मेरे प्यारे पाठको, 

मेरी कहानी तमस ज्योति को आपकी ओर से जो शानदार प्रतिक्रिया मिली है, उसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहती हूं। कई पाठकोंने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया देकर मुझे प्रोत्साहित किया है।

आज जब यह कहानी से बिदाई लेने का समय आ गया है तो मैं यही कहना चाहूंगी कि मेरी यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है लेकिन इस कहानी का आधार एक सत्यघटना है। 

एक आदमी प्रयोगशाला में प्रयोग करते समय अपनी आंखों की रोशनी खो देता है और उसका भाई फैसला करता है कि मैं आंखों पर रिसर्च करूंगा। इतना ही! यही एकमात्र जानकारी मेरे पास थी और यही वह जानकारी है जिसे मैंने अपनी कल्पना को शब्दों में पिरोया है और आप सभी पाठको के सामने प्रस्तुत किया है।

मुझे उम्मीद है कि आपको मेरी ये कहानी पसंद आयी होगी। आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और सुझावों का सदैव स्वागत है। 

(विशेष नोट: रिसर्च के बारे में अधिकतर जानकारी गूगल से ली गई है। यदि कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करे।)