अब तक उनके माता-पिता केवल उनका तिरस्कार करते थे, लेकिन अब यह उनके लिए बहुत बुरा मोड़ ले चुका था क्योंकि उन्हें उनकी अपनी माँ ने अपने लोंगो से उन्हें अगवा करवा लिया था और उन्हें भूखा रखा और बुरी तरह पीटा। वे आज्ञाकारी थे लेकिन एक दिन उनके अपहरणकर्ताओं में से एक ने दूसरे अत्याचारी अपहरणकर्ता, कृष को मार डाला और उन्हें ठंड के मौसम में नंगे पैर सड़कों पर दौड़ने के लिए मजबूर कर दिया, जहाँ उन्हें एक टैक्सी ने टक्कर मार दी। अब आगे,
"मैं दौड़ रहा था, चल रहा था, खुद को घसीट रहा था, बमुश्किल होश था। सब कुछ धुँधला था। आखिरी बात जो मुझे याद रह गयी, अचानक एक कार धुंध को चीरते हुए आई और मुझसे टक्करा गई। यह ज़्यादा ज़ोरदार नहीं था, एक वयस्क के लिए यह बस एक मामूली टक्कर थी...", हमारी शक्ल देखकर, "नहीं! वह एक काले रंग की टैक्सी थी, उसमें से पचास वर्ष की आयु के एक बुजुर्ग दम्पति बाहर निकले। उस आदमी ने मुझे भयभीत होकर अपने हाथों में पकड़ रखा था, मैं अभी भी उनका भयभीत चेहरा अच्छी तरह याद है, उन्हें लगा जैसे उन्होंने किसी की हत्या कर दी हो। वह मुझसे माफी माँग रहे थे और मुझे अस्पताल ले जाने की कोशिश कर रहे थे।
उस समय मुझे नहीं पता कि मैंने क्यों पूछा लेकिन मैंने उनसे तारीख और समय पूछा। मुझे अपने साथ ले जाने की कोशिश करते हुए दादी जी ने कहा कि सात सितम्बर की सुबह के तीन बज रहे हैं। मुझे अच्छी तरह याद है, अमम्मा ने भविष्य में मुझे, हर जन्मदिन पर मंदिर जाने को कहा था। मैंने पहली ही बार में अपना वादा तोड़ दिया। उनके मरने के बाद मैं पहली बार रोया। मैं अपनी चेतना छोड़ते समय उन्हें बहुत याद कर रहा था, मैं उनसे मिलना चाहता था, भले ही इसकी कीमत मेरी मृत्यु ही क्यों ना थी, मैं बस उनसे माफी माँगने चाहता था। मुझे सब पता था। मैंने उनकी बातचीत सुनी कि कैसे तुम्हारे परिवार को फंसाया जा रहा था। मैंने जल्दी मरने की कोशिश की ताकि यह सब जल्दी खत्म हो जाए। पर...
(लेकिन यह मेरी नासमझी थी। यह सबसे बुरे दौर की शुरुआत थी।)
मैंने मरने की कोशिश की, लेकिन पच्चीस दिन के कोमा के बाद अस्पताल में एक मज़ाक की तरह उठा।
मैं डरा हुआ, डॉक्टरों और अंगरक्षकों से घिरा हुआ था। वे पहले कुछ सप्ताह तक मुझसे मिलने नहीं आए और जब आए तो उन्होंने मुझे धमकाया कि मैं रेड्डी अंकल का नाम लूँ और बाकी काम वे संभाल लेंगे। मैं छोटा था लेकिन मुझे यह अंदेशा था कि अगर मैंने उनका या तुम्हारा या राज का ज़रा भी ज़िक्र किया तो कुछ ऐसा होगा जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं करी हो। मैंने पहले तो सिर हिलाया और जब पुलिस मेरा बयान लेने आई तो मैंने सारा दोष कृष पर मढ़ दिया जो मान्या के बहुत करीब था, उसे चेतावनी देने के लिए की वो मुझसे आगे और शिकार नहीं बना सकती। इसके बाद गुस्से में आकर उन्होंने मेरा इलाज बँद कर दिया और मुझे घर में ही नजरबंद कर दिया और धमकी दी कि वे मेरे लिए डरे हुए हैं। मुझे पता है कि यह मूर्खतापूर्ण था और मुझे, मेरी अति चतुराई का स्वाद मिल गया था।
कुछ दिनों के बाद मेरी तबीयत और खराब हो गई, मुझे लगा कि मेरा अंत निकट है इसलिए मैंने ढेर सारे पत्र लिखे कि मेरे साथ क्या हुआ और कैसे उन्होंने अंकल को फँसाने कि कोशिश की और उन्हें कमरे के हर कोने छिपा दिया था और एक अपने पास रख लिया, ताकि अगर वे मुझे पोस्टमार्टम के लिए ले जाएँ तो वो लोग सच जान सके। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ और अपराध बोध के कारण मैं तुमसे कभी मिल नहीं सका। मेरी तरफ से बस इतना ही। कहानी ख़त्म!",
वृषा ने चीजों को ख़त्म करने की कोशिश की लेकिन शिवम जी की अलग ही योजना थी, उन्होंने वृषा के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें रोकाकर धमकाया, "क्या तुम फिर पिटना चाहते हो?",
वे फिर से बैठ गए और अपनी कहानी वापस आ गए। शिवम जी ने उनकी ओर घूरकर देखा, "ठीक है! यह इतना आसान नहीं था। यहाँ से सब हिंसक होने वाला है... वृषाली, सुहासिनी, दिव्या अगर तुम चाहो तो अभी जा सकती हो। खासकर वृषाली, बच्चे तुम।",
हम कहानी में इतने अंदर थे कि हमने एक सेकंड के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, फिर दी ने कहा, "यह मेरे परिवार के बारे में है और मुझे यह जानने का हक है।",
दिव्या ने कहा, "मैंने इससे भी बुरा देखा है।",
मैंने बस उनके साथ सिर हिलाया। मैं कोई आवाज़ नहीं निकाल सकी लेकिन सच कहूँ तो मैं बदतर परिस्थितियों से निकल चुकी थी।
वृषा ने मुझे चिंतित दृष्टि से देखा और फिर आगे कहा, "जैसा कि मैंने कहा, मैं मौत के कगार पर था पर मैं तब भी नहीं मरा, और जब उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की तब भी नहीं। मैं मोटी चमड़ी का था। पर कुछ दिनों में कवच वाले लक्षण लेकर बाहर आने लगे। उनके बेल्ट से लेकर चाबुक, कोड़े के निशान कुछ दिनों से घंटो में भरने लगे और मेरी ऊर्जा असहनीय थी जैसे मेरी शक्ति में महाशक्ति की ऊर्जा भी शामिल थी। यह घटना मेरे अपहरण के ठीक बाद की थी, बाहरी दुनिया से कोई नाता नहीं जिससे चीजें और भी बदतर हो गईं।",
(वैसे कौन सी अपनी मदद कर लेते?)- वृषाली। वह अपने ही विचारों पर उलझन में थी।
"वहाँ से समीर की संलिप्तता ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। जो लोग मेरी निगरानी कर रहे थे, वे एक दिन भाप की तरह हवा में गायब हो गए और हर सुबह उन्हें एक-एक करके मेरे बिस्तर के सामने लटकते हुए पाया! उन सभी को बेरहमी से पीटकर मारा गया था। सभी के हाथ-पैर बँधे थे। उनके चेहरे पिटाई से सूज गए थे। कुछ के दाँत या आँख या उँगलियाँ या हाथ गायब थे। पहली बार जब मैंने उन्हें देखा तो मैं डर के मारे आधा मर गया था। मैं घबरा गया और एक लड़की की तरह चिल्लाया और उनका गला घुटने से बचाने के लिए उनके पैर पकड़ लिए। जब मैंने उन्हें छुआ तो उनमें जीवन का कोई चिह्न नहीं था। वे मानव त्वचा वाले पुतलों जैसे थे। मैंने दरवाज़े और खिड़कियाँ खोलने कि कोशिश की लेकिन वे बाहर से बँद और सीलबंद थे। कोई रास्ता नहीं था और मैं उस शरीर के साथ अकेला था। जैसे ही सूरज चढ़ता गया, वह सड़ने लगा। दोपहर हो चुकी थी, समीर आया और उस सड़ते हुए शरीर को वहाँ से ले गया। मैंने खुद को बाथरूम में छिपा रखा था। उसने मुझे बाथरूम में छिपने के लिए शर्मिंदा किया था।
फिर अगले दिन वही हुआ, इस बार बाथरूम बँद था और मुझे लाशों के साथ उसी कमरे में रहने के लिए मज़बूर किया गया। बदबू से मैंने कई बार उल्टी की, उल्टी और सड़ती हुई लाश की गंध वास्तव में नरक थी। दोपहर आते-आते सबसे मैं बेहोश हो गया और जब मैं उठा तो मेरे सामने एक और लाश पड़ी हुई थी। ताज़ा! उसकी खोई हुई उँगलियों, मुँह, कान और घाव से खून टपक रहा था। मैं अभी भी डरा हुआ था लेकिन इतना नहीं। जैसे-जैसे दिन बीतते गए मुझे उनकी आदत होती गई लेकिन मुझे अभी भी इस सब के पीछे उनका मकसद नहीं पता था। एक-एक कर उन्हें मरता देख मुझे एक बात समझ आ गई, मैं जीवनभर अकेले रहने के बाध्य था। अगर मैं किसी के करीब जाता तो यही उनकी नियति होगी। उसके बाद मैंने खुद को दुनिया से अलग कर लिया और उनके साथ गुलामी का अनुबंध कर लिया। उसी के बाद मैंने सूर्य की पहली किरण आधे साल बाद देखी। यही कारण है कि मैं तुमसे वापस वही दोस्ती नहीं रख सका। जब आर्य भी मेरे पास आया तब मैंने भी उसे भगाने कि कोशिश की पर वो मुझसे ज़्यादा मोटी चमड़ी निकला। उसे सुरक्षित रखने के लिए मुझे उसके साथ और तुम्हें सुरक्षित रखने के लिए तुम्ह,आरे साथ व्यापारिक संबंध बनाने पड़े, जिससे वह, किसी को भी नुकसान ना पहुँचा सके।
यह मेरे सोने का पिंजरा है। यहाँ और कंपनी ही एकमात्र जगह है जहाँ मुझे जाने की अनुमति है, जब तक कि उन्होंने मुझे अपना व्यक्तिगत कार्य नहीं दिया। इसीलिए मैं कह रहा हूँ, सब वापस पहले जैसा नहीं हो सकता। शिवम, तुम अपना घर बसाने जा रहे हो, तुम्हारी पहली प्राथमिकता हमारी खोई हुई दोस्ती नहीं, तुम्हारी अर्धांगिनी होनी चाहिए। प्लीज़ तुम समझने कि कोशिश करो।", उनकी आँखों में दर्द साफ दिखाई दे रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे छोटा भाई अपने बड़े भाई को समझाने की कोशिश कर रहा हो।
शिवम उठे और वृषा के कंधे पर हाथ रख कहा, "मैं समझ गया और...", उन्होंने नम आँखो से पूछा, "तुम मेरे लिए राज जैसे हो। परसो तुम्हारा सत्ताईसवाँ जन्मदिन है, क्या आखिरी बार मैं तुम्हारे साथ तुम्हारा जन्मदिन मना सकता हूँ?", जिस पर अनिच्छा से सहमति जताते हुए कहा, "बस इस बार। यह आखिरी बार होगा।"
सभी लोग बिना कुछ बोले कमरे से बाहर चले गए। पहले वृषा, फिर शिवम और दी, फिर आर्या और दिव्या फिर भैय्या भी जीवन जी के साथ चले गए। मैं वहीं फोन के साथ रह गयी थी जिसमें ना केवल जीवन जी का कबूलनामा बल्कि वृषा के अपहरण और यातना की बातें भी रिकॉर्डिंग थी। मैं वहीं बेसुध बैठी रही, और पहेली मुझे चाट रही थी। मैंने वह सब मुझे ईमेल (वह ईमेल जो वृषा ने दिया था) तथा अपने ईमेल पर भी ईमेल कर दिया और उसे पेनड्राइव में कॉपी कर लिया। मैंने उसे अपनी जेब में रख लिया और पहेली को शांत करने के लिए उसे गले लगा लिया।
ऊपर अतिथि कक्ष में,
खुराना दम्पति जो कुछ भी उनके सामने आया उससे वे अचंभित रह गए। उनके अनुसार, उन्होंने कभी किसी बच्चे के साथ ऐसा कुछ होते नहीं देखा और उसने अब तक सब कैसे कुछ छुपाकर रखा था और शिकायत तक नहीं की? वे सभी इतने भ्रमित थे कि वे अपने विचारों को समझ नहीं पा रहे थे।
जिस कमरे में रेड्डी दम्पति रह रहे थे वहाँ, वे सब इस बात से बहुत दुखी थे। वे किसी भी चीज़ को संसाधित नहीं कर पा रहे थे। सुहासिनी अब कवच पर गुस्सा नहीं हो सकती, लेकिन अभी भी वह उसे अपने परिवार के लिए माफ नहीं कर सकती। जबकि उसका पति दुखी था, उसने उसके दुख को महसूस किया और जब तक वह शांत नहीं हुआ, तब तक वह उसके साथ रही।
हमारे कवच और महाशक्ति अंततः अपने जन्म के बाद एक हो रहे थे और पहले वाली महाशक्ति को अंततः अपना पद छोड़ना पड़ेगा। कई हत्याओं के पीछे जो लोग हैं, उन्हें दंडित किया जाएगा। दफन अतीत जल्द ही सामने आने वाला है और मौत की गंध घर में मौजूद हर एक व्यक्ति को घेरने वाली है और जो कुछ लोग बाहर रहने के लिए मजबूर थे, वे सभी अंततः अपने तरीके से पीड़ित होंगे। लालच, अकेलापन, डर, शक्ति, वासना, क्रोध, अंधापन सब कुछ उन्हें जल्द ही हरा देगा। अब मैं उनके जीवन को संभाल लूँगी। यदि वे अच्छा व्यवहार करेंगे तो उन्हें मेरा समर्थन मिलेगा, अन्यथा मैं ही उनका विनाश बनऊँगी! उनके अस्तित्व का स्रोत, मैं ही परमशक्ति हूँ! वही जो पूरे समय महाशक्ति से बात करती रही थी।