Nagendra - 6 in Hindi Fiction Stories by anita bashal books and stories PDF | नागेंद्र - भाग 6

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नागेंद्र - भाग 6

अवनी अपने बॉस बलराज सोलंकी से मिलती है और होटल के 25वीं एनिवर्सरी पर ग्रैंड पार्टी का ऑर्गेनाइजेशन करती है। लेकिन उसके पहले उन्हें न्यू ईयर की पार्टी के बारे में सोचा था इसलिए अवनी अपने केबिन में चली गई थी कि तभी गायत्री जी ने फोन पर गजेंद्र सिंह वाली पूरी बात बता दी। 
अवनी ने कड़क चाय का ऑर्डर देकर अपनी कुर्सी में बैठ गई कि तभी किसी ने दरवाजे पर नॉक किया। उसका सर पहले ही दर्द कर रहा था इसलिए उसने अंदर आने को कहा तो अंदर आने वाली लड़की अवनी की एक दोस्त राजश्री थी। अवनी और राजश्री एक साथ ही पढ़ते थे और काम भी दोनों ने एक साथ ही यहां पर शुरू किया था। 
राजश्री फ्लोर मैनेजर थी और अवनी की एक अच्छी दोस्त। सिर्फ राजश्री ही थी जिसके साथ अवनी खुलकर बात करती थी। अंदर आते हुए राजश्री ने एक फाइल को टेबल में रखा और सामने की कुर्सी में बैठते हुए पूछा।
" क्या हुआ तेरे चेहरे के 12 क्यों बजे हैं?"
अवनी ने अपने सर पर उंगली से मसाज करते हुए कहा।
" क्या बताऊं यह गजेंद्र अंकल हर दिन कोई ना कोई मुसीबत लाते रहते हैं।"
राजश्री कुर्सी पर आराम से बैठते हुए कहने लगी।
" जब तक तेरी लाइफ में वह पनौती बैठा है ना तब तक कुछ तो कुछ परेशानी तो आती रहेगी। तू सबसे पहले उसे अपनी लाइफ से निकाल फिर देख तेरी लाइफ की गाड़ी कौन सी पटरी पर बढ़ती है।"
अवनी ने आंखें तरेर कर उसकी तरफ देखा। अवनी को पता था कि राजश्री किसकी बात कर रही है। राजश्री को नागेंद्र बिल्कुल पसंद नहीं था। उसे लगता था कि अवनी उससे बेटर इंसान डिजर्व करती है। राजश्री ने देखा की अवनी उसे आंखें बना कर देख रही है तो उसने अपनी उंगलियों को हिलाते हुए कहा।
" मानती हूं मानती हूं वह तेरा पति है लेकिन मान जा वह किसी काम का नहीं है। जब वह गजेंद्र तेरे घर पर आया और उसने इतनी सारी बातें बताई वह भी तो मोजुद था ना वहां पर। क्या उसका काम नहीं था कि वह उसे रोके? तू बता मैं कोई गलत बात कर रही हूं क्या?"
अवनी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था क्योंकि एक तरह से तो राजश्री ठीक ही कह रही थी। गजेंद्र ने नागेंद्र के सामने यह सारी बातें कही थी और यहां तक की यह भी कहा कि अवनी की शादी उसके बेटे के साथ कर देनी चाहिए थी लेकिन फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। राजश्री अपनी कुर्सी से थोड़ा आगे झुकी और टेबल पर अपने हाथ को टिका कर कहने लगी।
" देख गलत मत समझना लेकिन मुझे तो पहले दिन से वह आदमी पसंद नहीं था। मिल तो समझ में नहीं आ रहा कीसावित्री जी इतनी डीसेंट है फिर भी उन्होंने तुम्हारी शादी उसके साथ क्यों करवा दी।"
अवनी एक सेकंड के लिए चुप रही और फिर उसने कहा।
" तुझे पता है ना की गजेंद्र अंकल मेरी शादी जबरदस्ती करवा रहे थे। उसे दिन मां मुझे वहां से तेजी से लेकर जा रही थी और ऐसे में हमारी टक्कर नागेंद्र से हो गई थी। हमारी कार के टकराने के कारण उसके सर में काफी गहरी चोट आ गई थी। वह ठीक तो जल्दी हो गया था लेकिन उसे मेरे साथ देखकर गजेंद्र अंकल को लगा था की मां ने मेरी शादी उसके साथ करवा दी और वह यह कह कर चला गया कि वो इस बात का बदला लेगा। बस तभी से हम दोनों सिर्फ ऑफिशियल पति-पत्नी है।"
राजश्री थोड़ी बहुत बातें जानती थी लेकिन अवनी की आखिरी लाइन में उसे हैरान कर दिया। उसने अवनी के और नजदीक जाते हुए पूछा।
" ऑफिशियल पति पत्नी? तेरे कहने का मतलब है तुम दोनों के बीच में पति-पत्नी जैसा कुछ नहीं है?"
अवनी ने अपनी गर्दन हल्के से ना में हिलाते हुए कहा।
" नहीं हम लोग सिर्फ नाम के पति पत्नी है। सच बात तो यह कि मैं तुमसे ठीक से देखा तक नहीं है और नाही उसने मुझे। साथ में कमरा तो छोड़ हम लोग तो आसपास बैठकर खाना तक नहीं खाते।"
राजश्री वापस अपनी जगह पर बैठ गई और उसने सोचते हुए पूछा।
" अवनी तेरी परेशानी तो मैं समझता हूं लेकिन वह ऐसे क्यों रह रहा है? मेरे कहने का मतलब यह तुम लोग उसके बारे में कुछ जानते भी हो या नहीं?"
अवनी ने अपनी पीठ कुर्सी पर टिकाते हुए कहा।
" जब पिताजी ने पूछा तो उसने कहा कि उसे सिर्फ यह याद है कि उसका नाम नागेंद्र है उसके सिवा उसे कुछ भी याद नहीं है।"
वह दोनों सहेलियां बातें कर रही थी लेकिन कोई दरवाजा के बाहर खड़ा होकर यह सब कुछ सुन रहा था। वह उनका ऑफिस वही था जो चाय देने के लिए आया था लेकिन यह सारी बातें सुनकर वहीं रुक गया था। चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट लिए हुए वह वहां से तुरंत बलराज सोलंकी के केबिन में चला गया।
वहां दूसरी तरफ गजेंद्र की कर बिना ड्राइवर के इधर से उधर जा रही थी। गजेंद्र ने देखा तो वह कर अब गहरी खाई की तरफ जा रही थी। यह सोचकर कि कुछ ही सेकंड में वह भगवान को प्यार हो जाएगा गजेंद्र अपनी सीट पर ही बेहोश हो गया। गजेंद्र बेहोश हो गया था लेकिन कर अभी भी बेकाबू सी आगे बढ़ रही थी।
पल पल वह कर खाई के पास पहुंच रही थी। धीरे-धीरे वह कर खाई के एकदम नजदीक पहुंच गई और सामने के टायर आगे निकल गए लेकिन वह कर वही अटक गई। गजेंद्र बेहोश हो चुका था कि तभी ड्राइविंग करके खिड़की में से एक बड़ा सांप बाहर आया। 
वह 8 से 9 फीट जितना लंबा था। बाहर आकर उसने कर की तरफ देखा और फिर कर के पीछे की तरफ देखा। कर के पीछे एक बड़ा सा नाग बैठा था जिसकी पूछ उसे कर के नीचे थी। दरअसल उसे बड़े से सांप ने अपनी पूछ से कर को रोक दिया था।
वह सांप कोई मामूली सांप नहीं बल्कि एक विशाल पांच फन वाला सांप था। उसने मुझे कर को वापस खींच और फिर एक नॉर्मल साइज के सांप में बदल गया। देखते ही देखते उसने एक इंसान का रूप ले लिया। वह सांप जो कर के खिड़की से बाहर आया था वह अब उसके सामने आया और वह भी एक इंसान में बदल गया।
वह सब कोई और नहीं नागेंद्र था। नागेंद्र की आंखें झुकी हुई थी और उसके चेहरे पर परेशानी और गुस्से के मिले-जुले भाव दिखाई दे रहे थे। वह परेशान था कि वह उनके नाग गुरु को क्या जवाब देगा वही वह इस बात से गुस्सा था कि वह इंसान बच गया था जिसे वह मारने की कोशिश कर रहा था।
" चक्र ये आप क्या करने का प्रयास कर रहे थे? जब आप मनुष्य लोग आना चाहते थे उसी वक्त हमने आपको यह सूचना दे दी थी कि आप किसी भी मनुष्य का वध नहीं करेंगे।"
नागेंद्र ने गहरी सांस ली और अपने हाथ जोड़ते हुए कहा।
" माफ करना गुरुजी लेकिन हमेशा करना नहीं चाहता था। आपको नहीं पता इसलिए क्या-क्या कहा था फिर भी मैंने कोई गुस्सा नहीं किया। लेकिन इसने चाऊमीन के बारे में बोला वह मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ।"
नागेंद्र की इस तरह की बात सुनकर उनके गुरु ने गुस्सा होते हुए कहा।
" चक्र आप जानते हैं ना कि हमने आपको नागेंद्र नाम क्यों दिया है? आप नागों में श्रेष्ठ है और इसीलिए हमने आपको नागेंद्र नाम दिया है परंतु मुझे लगता है कि आप इन सब सांसारिक बातों में अपना मूल उद्देश्य भूल गए हैं।"
नागेंद्र का असली नाम चक्र था और वह नागलोक में इसी नाम से जाना जाता था। उनकी लोक में सर्व नागों में श्रेष्ठ होने की वजह से उन्हें नागों में इंद्र यानी कि नागेंद्र नाम दिया गया था। नागेंद्र अपने गुरु की बात सुनकर चुप हो जाता है। उसे चुप देखकर उनके गुरु ने कहा।
" चक्र आपको सर्वप्रथम अपने उसे कार्य को समाप्त करना है तत्पश्चात आपको क्या करना है या आपको ज्ञात है ना?"
नगेंद्र ने सिर्फ अपना सर हां में हिलाया। गुरुजी ने उसे कर में सोए हुए गजेंद्र की तरफ देखा और फिर नागेंद्र की तरफ देखकर कहा।
" इस पुरुष को अपने स्थान पर रखकर आओ। आपकी वजह से किसी को भी आपकी सक्षमताओं के बारे में पता नहीं चलना चाहिए। अन्यथा जिस कार्य के लिए आपको नियुक्त किया गया है वह कार्य अपूर्ण ही रह जाएगा।"
नगेंद्र ने फिर से सिर्फ अपना सर ही हिलाया। इतना कहकर गुरुदेव ने अपने पास से एक नीले रंग का डायमंड निकाला और उसे नागेंद्र के हाथ में देते हुए कहा।
" जिस कार्य को करने में आपको विलंब हो रहा है उसमें तुम्हारी सहायता हमारा नागवंश के अनुयाई कर सकते हैं। ‌ उन्हें इस मणि के दर्शन करा देना और वह तुम्हारी सहायता करेंगे।"
नगेंद्र ने उसे डायमंड को अपने हाथ में लिया और उसे घुमा घुमा कर देखने लगा। वो नीले रंग का डायमंड का आकार मुश्किल से 3 से 4 इंच का होगा। उसे देखकर ही लग रहा था कि उसमें कुछ तो खास बात है। उसमें एक अजीब सा आकर्षक दिखाई दे रहा था। उसे देखने के बाद नगेंद्र ने गुरुदेव की तरफ देखा और पूछा।
" लेकिन मैं उन अनुयायियों को ढूंढुंगा कैसे?"
गुरुदेव ने उसे डायमंड की तरफ इशारा करते हुए कहा।
" चक्र यह एक नीलमणि है और यही आपकी सहायता करेगा। परंतु अभी उसमेंसमय शेष है जब भी समय आएगा यह नीलमणि आपको सूचित कर देगा। इस समय आप इस मनुष्य को अपने स्थान पर रख कर आ जाइए अन्यथा आप मुसीबत में आ सकते हैं।"
गुरुदेव इतना कहकर वहां से चले गए लेकिन नागेंद्र अभी भी वहीं खड़ा था। उसने उसे नीलमणि को अपने पास रखा और उस कर की तरफ देखा। उसका दिल कर रहा था कि वह उसे कर को नीचे धकेल दे लेकिन जैसा कि गुरुदेव ने कहा था वह किसी को मार नहीं सकता था। मारना तो छोड़ो किसी के ऊपर गुस्सा भी नहीं कर सकता था नहीं तो उसकी शक्तियां बाहर आ जाएगी।
अखिर नागेंद्र यहां पर किस काम के लिए आया था? नागवंश के अनुयाई आखिर है कौन और वह नागेंद्र की मदद कैसे करेंगे? बलराज को जब पता चलेगा कि अवनी और उसके पति के बीच में कोई संबंध नहीं है तो क्या वह कुछ गलत करेगा?