प्रिया के घर जाने के कुछ घंटे बाद शाम को जब राज आया तो आज उसके साथ एक और आदमी भी था। खिड़की से यह देखते ही प्रिया का माथा ठनका और कई तरह के नकारात्मक ख़्यालों ने उसके दिमाग़ में डेरा डाल दिया। इस समय उसे अल्पा की कही बातें याद आ रही थीं। उसे डर लग रहा था कि यह दूसरा आदमी कौन है और यहाँ क्यों आया है? उसने देखा राज उस आदमी के साथ बातें कर रहा है कुछ देर बात करने के बाद उन दोनों ने हाथ मिलाया और फिर वह आदमी चला गया।
वह दृश्य देखकर प्रिया को ऐसा लगा मानो वह आदमी कुछ सौदा कर रहा था। उसके बाद राज ताला खोलकर घर में चला गया और उसने दरवाज़ा बंद कर लिया।
आज भी अंदर आने के बाद राज ने रोज़ की तरह अपना वही प्रश्न दोहराते हुए अल्पा से पूछा, "बोल तू तैयार है?"
अल्पा ने कहा, "तू मेरी जान भी ले लेगा तो भी तेरे कानों में वही आवाज़ आएगी, नहीं ...कभी नहीं!"
नहीं शब्द सुनते ही राज का पारा चढ़ गया और उसने अल्पा के बाल पकड़ कर खींचते हुए कहा, "अभी कुछ देर में एक आदमी आने वाला है समझी। तू हाँ बोल या ना, वह दोनों ही सूरत में तुझसे निपट लेगा। चल जा नहा ले।"
"मैं नहीं नहाऊंगी, मैं शोर मचाऊंगी, मुझे जाने दे," कहते हुए अल्पा दरवाजे की तरफ़ लपकी।
यह देखते ही राज ने कमर से बेल्ट निकालकर उसे मारना शुरू कर दिया। आज तो राज ने हद से ज़्यादा शराब पी रखी थी। उसने अल्पा को बहुत मारा, मारते-मारते वह ख़ुद भी थक कर हांफ रहा था।
राज नहीं जानता था कि अल्पा के ऊपर वह जो अत्याचार कर रहा है वे सब कैमरे में रिकॉर्ड हो रहे हैं, जो उसके खिलाफ घरेलू हिंसा का पक्का सबूत बनने वाले हैं।
अल्पा को मारते-मारते राज वहीं रखी कुर्सी पर बैठ गया। नशे ने उसे कुछ इस तरह अपनी गिरफ़्त में ले लिया कि वह अपने शरीर का पूरा नियंत्रण खो चुका था। वह कुर्सी से उठने की कोशिश करने लगा लेकिन लड़खड़ा कर वहीं नीचे गिर पड़ा। अब वह उठ सकने की हालत में नहीं था।
वह फ़र्श पर पड़े-पड़े बड़बड़ा रहा था, "अल्पा तुझे अब पता चलेगा जब वह आएगा और तुझे नोच-नोच कर खाएगा। आज यह शुरुआत है उसके बाद मैं रोज़ किसी न किसी को लाऊँगा और मालामाल हो जाऊंगा। बस एक बार सब हो जाने दे फिर ना कह कर भी तू क्या करेगी?"
अल्पा समझ गई थी कि भले ही यह नशे में कहे हुए शब्द थे पर वह सच थे।
राज को जैसे ही नींद आई अल्पा ने ख़ुद ही दरवाज़ा खोला क्योंकि नशे के कारण राज ने अंदर आकर ताला नहीं लगाया था। इसी का फायदा उठाकर अल्पा दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई। उसने बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया।
इसके बाद अल्पा दौड़कर प्रिया के घर आई और दरवाज़ा खटखटाया तो विनोद ने आकर दरवाज़ा खोला। उसने आज तक अल्पा को नहीं देखा था।
अल्पा ने कहा "नमस्ते अंकल, प्रिया ... प्रिया कहाँ है?"
विनोद कुछ पूछता उससे पहले प्रिया वहाँ आ गई। उसने पूछा, "क्या हुआ अल्पा जी ...? सब ठीक तो है ना? आप घर से बाहर कैसे निकलीं? आप जल्दी से अंदर आइये।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः