खामोशी का रहस्य - 8 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | खामोशी का रहस्य - 8

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खामोशी का रहस्य - 8

माया ने उन कागजो को पढ़ा था।फिर बोली,"तुंमने तो जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया था।"
"हैं"
"फिर अब क्या हो गया जो मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो।"
"तुम्हारे साथ जो हुआ उसे लोग जान चुके हैं।मुझसे लोग तरह तरह के सवाल पूछते हैं।समाज मे जीने के लिए जरूरी है कि कोई दाग न हो,"अनुराग बोला,"राम ने तो केवल एक आदमी के आरोप लगाने पर सीता को त्याग दिया था।और तुम तो पूरी तरह अपवित्र हो चुकी हो।"
"मुझे तलाक देकर दूसरी तो लाओगे
"अभी मेरी उम्र ही क्या है
"खुदा न खास्ता दूसरी के साथ भी ऐसा हुआ तो उसे भी त्याग दोगे
माया की बात सुनकर अनुराग कुछ नहीं बोला था
"मैं चाहू तो इन पर दस्तखत न करू और इसी घर मे तुमहारी छाती पर मूंग ढलती रहूँ।चाहू तो तुम सब को दहेज उत्पीड़न में जेल भिजवा दू।तलाक के बदले में लाखों रु की मांग कर सकती हूँ,"माया बोली,"लेकिन मैं इतनी गिरी हुई नही हूँ।।"
अनुराग मुँह लटकाए खड़ा था
"मैं तलाक का इन तजार नही करूंगी,"माया कागजो पर दस्तखत करते हुए बोली,"मैं जा रही हूँ।दहेज में जो तुम्हे मिला तुम्ही को दान करके
और अपने अतीत के दुखद अध्याय को याद करके माया की आंखे भर आयी थी
"फिर तुंमने क्या किया
"कहा जाती मैं।अपनी एक सहेली के पास चली गई।मेरी सहेली दीपा सर्विस करती थी।उसने शादी नहीं कि थी।मैने उसको पूरी बात बताई थी ।वह मेरे साथ कि घटना को सुनकर बोली,"जो भी तेरे साथ हुआ उसमे तेरी क्या गलती थी।फिर उसने तलाक क्यो दिया?"
"समाज मे बदनामी न हो
"तूने तलाक के कागज पर दस्तखत क्यो किये
"ऐसे पति के साथ रहकर क्या करती
"कम से कम हर्जाना तो लेति
"नही
दीपा ने तो बहुत समझाया था पर वह तैयार नही हुई
"फिर?"
"मैं अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी
माया आगे बताने लगी
नौकरी चाहती थी।लेकिन दूर जहाँ मेरा अपना कोई न हो।मुझे कोई न जानता हो।जहाँ पर मेरा अतीत मेरा पीछा न करे।और इसी चक्कर मे कई नौकरी मैने छोड़ी भी।आखिर में मुम्बई जो मेरे लिए अजनबी था।मैं यहाँ चली आयी
माया अतीत में अपने साथ हुई घटना को दीपेन को सुनाते हुए भावुक हो गई थी।
"तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई है,"माया के अतीत को जानकर दीपेन ने उसकी पीठ पर हाथ रखा था।फिर दोनों के बीच मौन छा गया।काफी देर तक चुप बैठे रहे और दीपेन माया के बारे में ही सोचता रहा।जब कुछ देर बाद माया संयत हुई तो वह बोला,"माया अब तो मैं तुम्हारा अतीत जान चुंका हूं।या और कुछ भी कहने के लिए है।"
"जो था मैंने बता दिया है
"अब तो तुम तैयार हो
"किस के लिय
"मुझसे शादी के लिए
"दीपेन।तुम कुंवारे हो।सुंदर हो।अच्छा कमा रहे हो।बहुत सी कुंवारी लड़कियां तुम से शादी करने के लिए तैयार हो जाएगी।"माया ने दीपेन को समझाया था।
"माया प्यार किया नही जाता।प्यार हो जाता है और हर आदमी की दिल की ख्वाइस होती है कि जिस औरत से उसे प्यार हो।वो ही उसे जीवनसाथी के रूप में मिले,"माया की बात सुनकर दीपेन बोला,"मुझे तुम से प्यार हुआ ह4 और शादी करूंगा तो तुमसे वरना
"वरना क्या?दीपेन की बात सुनकर माया बोली थी
"तुम अगर मुहासे शादी नहीं करोगी तो आजीवन कुंवारा रहूंगा
"दीपेन समझो।मैं अपवित्र हूँ
"तुम मेरे लिए सीता की तरह पवित्र हो
और माया को कहना ही पड़ा
मैं तैयार हूँ
(समाप्त)