अगले दिन
अदिति किचेन का सारा काम समेट कर .... सोचा आज रिवान जी का अलमीरा साफ कर दूं !!
सारा कपड़े एधर - उधर कर दिए हैं ....
अदिति अपने कमड़े में चली जाती है .... और जा कर अलमीरा के सारा समान निकाल कर अच्छे से व्यवस्थित
करती है उसी दौरान अदिति को एक तस्वीर मिलती है जिसे रिवान बहुत अच्छे से संभाल कर रखा था ....
अदिति उस तस्वीर पर बंधे कपड़े को खोल कर देखना चाहती है लेकिन उसी वक़्त सुरभि जी आवाज़ लगाती है
" बहू एक कप चाय लाना वो भी अदरक वाली ।।।"
जी बुआ जी मैं अभी लाई .... जल्दी से चाय देकर अदिति वापस कमड़े में आती है ।
उस तस्वीर को देखती हूं जिसे रिवान जी ने बहुत संभाल कर रखा है .... लगता है ये तस्वीर बहुत पुरानी है ।
तस्वीर खोल कर अदिति देखती है उसी आंखे खुली की
खुली रह जाती है ... अरे ये तो वो मेरे गांव की नानी है
जिसके घर मैं खेला करती थी और बगल में ये वही है जिसे बचपन से मैं सब कुछ मानती अाई हूं ।
कहीं वो लड़का रिवान जी तो नहीं है ।।।
जिसे मैं बचपन में रिनु बुलाया करती थी .... क्योंकि मुझे उसका नाम बिगाड़ने में मजा आता था .... खुशी के आंसू
अदिति के आंखों में झलक पड़े थे ।।
क्या सच में रिवान जी ही मेरे बचपन के रीनू है...और. मैं
उनकी जादू...जो ये नाम मैंने खुद कहा था कि मुझे बुलाए
और मेरे और उनके बीच सीक्रेट रहेगा ।।।।
आज अदिति के खुशियों का ठिकाना नहीं था क्योंकि
जिसे वो दुयाओं में शामिल किया करती थीं वहीं उसका
हमसफ़र है .... हंसते हंसते अचानक अदिति के चेहरे पर उदासी छा जाती है लेकिन क्या मेरा रीनू मुझ पर यकीन करेगा ?? मैं ही उसकी बचपन कि जादू हूं । हकीकत
जानने के बाद क्या मुझे उस कॉन्ट्रैक्ट वाली से आजाद कर .... फिर से मेरे साथ सात जन्मों का रिश्ता जोड़ेगा।
जैसे हम दोनों ने बचपन में खेल - खेल में उस मंदिर में अग्नि के सात फेरा लिया था ।
रिवान जी जिसे ढूंढ़ रहे हैं .... अपने प्यार को क्या वो लड़की मैं हूं या कोई और है ???
पहले इस बात का पता लगाना पड़ेगा फिर अपनी सच्चाई रिवान जी को बताऊंगी मैं ।।
रिवान और विराज दोनों ऑफिस से घर आते हैं आकर हॉल में लगे सोफे पर बैठ जाते हैं .... अदिति मुस्कुराते हुए
दोनों के लिए पानी लेकर अाई ।।
भाभी बुआ कहां है ??? विराज मुस्कुराते हुए बोला ....
लो अा गई तुम सब की बुआ सुरभि बुआ ... अरे भाई बुआ तो तो किसी हिरोइन से कम नहीं लग रही है विराज अपना टेंशन छुपाते हुए हंसते हुए बोला ।।।
अब ज्यादा मक्खन मत लगाओ ... कहो मेरे लिए तुम क्या लेकर आए हो तुम दोनों को बचपन से देखती आती हूं जब कुछ मेरे लिए लेकर आते हो ऐसा ही कुछ बोलते हो .....
' रिवान ' लाया तो कुछ नहीं बुआ ... लेकिन सोच रहा हूं
आपके लिए बहू लाऊं .... और विराज के लिए उसकी हमसफर ।।।।।
अच्छा ... फिर दोनों बहुओं से खूब सेवा करवाऊंगी ।
हम्म बुआ जरूर फिर सभी हंसने लगते हैं।
भाई क्या बात है किस बात पर हंसी मजाक चल रहा है सांवरी जी सोफे पर बैठते हुए बोली ...
बस कुछ नहीं आंटी जी मेरी शादी करवा रहा है रिवान ।
अरे बेटा मैं तुम्हे कितनी बार कहूं तुम मुझे आंटी जी नहीं
मां बुलाया करो ।।।
रीवान , विराज और अदिति के चले जाने के बाद ....
सुरभि जी ' भाभी आखिर कब तक आप विराज की सच्चाई उससे छुपा कर रखोगी ' मैं चाहती हूं कि मेरा दोनों
भतीजा एक साथ ऐसे ही रहे खुशी - खुशी .... लेकिन मुझे समझ क्यों नही आता है ??? आखिर विराज की सच्चाई आप और भईया क्यों छुपा रखे हैं ????
Continue ......
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