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मालिश करवा लो इगो की

Ego की मालिश का ठेका से होवे भ्रष्टाचार दोनों ही समाज में गहरे मुद्दे हैं, जिनका प्रभाव हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन पर पड़ता है। आइए इन दोनों विषयों पर विस्तार से चर्चा करें:

   Ego की मालिश का ठेका
   Ego या अहंकार का संबंध व्यक्ति की आत्म-छवि और आत्म-सम्मान से होता है। जब कोई व्यक्ति अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए दूसरों से प्रशंसा और मान्यता की अपेक्षा करता है, तो इसे आमतौर पर "Ego की मालिश" कहा जाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को अपनी योग्यता या उपलब्धियों पर अत्यधिक गर्व होता है और वह दूसरों से लगातार प्रशंसा की अपेक्षा करता है।

    Ego की मालिश का ठेका का मतलब है कि कुछ लोग या समूह जानबूझकर किसी व्यक्ति के अहंकार को संतुष्ट करने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं, भले ही वह प्रशंसा वास्तविक न हो। यह अक्सर राजनीति, व्यवसाय, और अन्य क्षेत्रों में देखा जाता है, जहां लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के अहंकार को बढ़ावा देते हैं। इससे क्या होता है वो है.. 

  भ्रष्टाचार
      भ्रष्टाचार का अर्थ है किसी भी प्रकार का अनैतिक आचरण, जिसमें व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद का दुरुपयोग करता है। यह समाज के लिए एक गंभीर समस्या है और इसके कई रूप हो सकते हैं, जैसे रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी, घोटाले, आदि।
भ्रष्टाचार का अर्थ है किसी भी प्रकार का अनैतिक आचरण, जिसमें व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद का दुरुपयोग करता है। इसे इगो (अहंकार) से जोड़कर समझना दिलचस्प है क्योंकि भ्रष्टाचार और अहंकार के बीच गहरा संबंध होता है।

भ्रष्टाचार और अहंकार या इगो का संबंध:

1. अहंकार का प्रभाव: जब किसी व्यक्ति का अहंकार बढ़ जाता है, तो वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। इस स्थिति में, वह अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करने में संकोच नहीं करता। उसे लगता है कि वह कानून और नैतिकता से ऊपर है, और यही सोच उसे भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है।

2. नैतिकता का पतन: अहंकार व्यक्ति की नैतिकता को कमजोर करता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार के कारण नैतिक मूल्यों को नजरअंदाज करता है, तो वह अपने निजी लाभ के लिए अनैतिक कार्य करने लगता है। यह भ्रष्टाचार का मूल कारण बनता है।

3. स्वार्थ और लालच: अहंकार व्यक्ति को स्वार्थी और लालची बना देता है। वह अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता है, चाहे वह रिश्वत लेना हो, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करना हो, या फिर किसी अन्य प्रकार का अनैतिक आचरण करना हो।

4. सत्ता का दुरुपयोग: अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति सत्ता का दुरुपयोग करता है। उसे लगता है कि उसकी शक्ति और पद का उपयोग केवल उसके निजी लाभ के लिए होना चाहिए। इस प्रकार, वह अपने पद का दुरुपयोग करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष:

भ्रष्टाचार और अहंकार के बीच का संबंध स्पष्ट है। अहंकार व्यक्ति को नैतिकता से दूर ले जाता है और उसे अपने निजी लाभ के लिए अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए, भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अहंकार पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देकर और अहंकार को नियंत्रित करके ही हम भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना कर सकते हैं।


इस विषय पर एक कविता  पेश की  है 

तुम अगर वोट देने का वादा करो,
मैं यूँ ही आंख मे धूल उड़ाता रहूँ,

तुम मुझे देखकर सर हिलाते रहो,
मैं तुम्हे देखकर बड़बड़ाता रहूँ।
तुम गधे की तरह बोझ ढोते रहो,
मैं पुछल्ले पर चाबुक चलाता रहूँ।

तुम्हारी मेहनत का कोई मोल नहीं,
मैं बस अपने आराम में खोया रहूँ।
तुम्हारे पसीने की बूंदें गिरती रहें,
मैं अपने आरामदायक कुर्सी पर सोया रहूँ।

तुम्हारी पीठ पर लदे बोझ का भार,
मैं अपने शब्दों से और बढ़ाता रहूँ।
तुम्हारी हर आह पर मैं हँसता रहूँ,
तुम्हारी तकलीफों को अनदेखा करता रहूँ।

तुम्हारी आँखों में दर्द की लकीरें,
मैं अपनी आँखें मूँदता रहूँ।
तुम्हारी हर चीख पर मैं चुप रहूँ,
तुम्हारी हर पुकार को अनसुना करता रहूँ।

तुम्हारी मेहनत का फल मैं खाता रहूँ,
तुम्हारी भूख को मैं नजरअंदाज करता रहूँ।
तुम्हारी हर कोशिश को मैं नकारता रहूँ,
तुम्हारी हर उम्मीद को मैं तोड़ता रहूँ।

तुम्हारी जिंदगी का हर पल कठिन,
मैं अपने आराम में मस्त रहता रहूँ।
तुम्हारी हर हार पर मैं खुश होता रहूँ,
तुम्हारी हर जीत को मैं छोटा करता रहूँ।

तुम्हारी मेहनत का कोई मोल नहीं,
मैं बस अपने आराम में खोया रहूँ।
तुम गधे की तरह बोझ ढोते रहो,
मैं पुछल्ले पर चाबुक चलाता रहूँ।

तुम मुझे देखकर सर हिलाते रहो,
मैं तुम्हे देखकर बड़बड़ाता रहूँ,
तुम गधेे की तरह बोझ ढोते रहो,
मैं पुछल्ले पर चाबुक चलाता रहूँ... 
🤣