Jungle - 2 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 2

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जंगल - भाग 2

 ----------------------- अंजाम कुछ भी हो। जानता हु, "शांत लहरें कब तूफान का रुखले" कोई वक़्त की बद नसीबी नहीं जानता।मानने योग था। जिंदगी दो धार की छुरी होती है। दो तरफ से काट देती है। तुम जो भी समझते हो, वो बहुत कम है।

तुम जिंदगी के पंने किताब से जितने फरोलेगे।

कम पड़ते जायेगे।

जिंदगी ब्रेक डाउन है। 

मतलब  किसी को हम इतना प्यार करते है, कभी जान से बड़ के कुछ भी नहीं होता।

जगल एक ऐसा ससकरण है।

राहुल एक ऐसा पात्र है, जो जीवन के साथ चलता जाता है। पटरी है, एक गाड़ी है.... बिखर जाये तो सब 

टूट जाता है, यही जिंदगी की डिबेनुमा प्रसूती है।

कितना घटिया सोच लोगो की कभी कभार हो जाती है.....

राहुल ने पांच सौ का प्रजेक्ट छोड़ दिया था।

हैरत मे मत पड़ो।

जिंदगी मे बहुत उत्तराव देखे हो जिसने, उसके लिए कुछ भी नहीं है.....

मेट्रो सी जिंदगी मे --------------------------------।

थर्ड क्लास का कोई मतलब नहीं रह जाता।

जॉन को सब कुछ  पता था जा न भी हो।

माँ अंजली उसके लिए उसकी माँ थी। किडनेप होने के बाद कैसे वो आ गयी थी।यही बात राहुल सोच रहा था।

गंभीर बात थी।

कितनी दुर्लभ कृति थी।

माँ जॉन की माँ -----राहुल सोच रहा था। अजली को कैसे पता चला, किडनेप का।

पुलिस स्टेशन मे राहुल की चलती थी। हर तेहोर टेबल पर होता था।

आज दिवाली थी...

दस हजार का तोहफा पुलिस स्टेशन पे पहुंच चूका था।

कितना अचम्भा था।

Dsp रंजन घर पर थे। राहुल बात कर रहे थे। साथ दादा जी भी ---------

"माया कौन है "dsp ने एक बार फिर पूछा।

राहुल ने कहा "कुछ भी हो माया जो भी है, जिसने मेरा प्रोजेक्ट पांच सौ करोड़ का हिला दिया। उसके साथ वो नहीं सारी संस्था हिल गयी, जो राहुल की माँ पे बनी थी "पुष्पा ही प्रोजेक्ट " जिसपे गरीबो का लेन देन कर्मचारी वर्ग का होता था। 

Dsp ने पूछा " कोई शक किसी पे हो " 

"नहीं ----- "राहुल ने चाये का कप सर्व किया। राहुल बहुत कुछ रख गया था। Dsp को अलविदा किया....

अंत मे dsp इतनी बात केह गया, कोई खबर पता चले, तो बता देना। राहुल ने अटे पटे से गर्दन हिला दी। 

राहुल ने कहा " दादा जी, माया इतनी गिर सकती है। "

"बेटा जख्मी शेरनी  और घोड़ी जो न समझ हो, उसकी पीठ की सवारी अजूबे वाला वेयक्ति ही कर सकता है।"

"और वो मै हु!"इतना धीरे बोला राहुल दादा जी तक ये आवाज़ नहीं जा सकती थी। 

                  ----------*----------

                   पांच का ससकरण जोड़ रहा हु।

माया वो थी जो सिर्फ राहुल ही जानता था। कहा कब मिलेगी, ये राहुल को ही पता था। उसको जानने वाला सिर्फ राहुल था।

एक रेस्तरा पिंकी हवे टू मे शाम रंगीन चल रही थी।

सब कोई न कोई आपनी बाहो मे किसी को लिए सपना बुन रहा था। एक तरफ राहुल काले कोट मे बैठा वाइन के हल्के घुट पी रहा था।

उसकी आँख घूम रही थी। किसी को ढूढ़ने को --------

"हुँ "तभी हल्की सी आवाज़ गुज़ी।

राहुल निस्ताम्ब था। घूर रहा था उस लेडी को ------

चश्मा उतारा। जो परसनेल्टी के लिए लगा रखा था।

बे -हिचक बोला "माया तुम "राहुल कह कर चुप था।

"जानेमन इतना घुरो मत, मार ही दोगे कया।"

राहुल ने वाइन का बचा पेग पूरा किया।

------------------------------🙏चलदा ----