gyan in Hindi Comedy stories by Harshad Kanaiyalal Ashodiya books and stories PDF | ज्ञान

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ज्ञान

 

 

दो मित्र, अमित और सुनील, बचपन से ही साथ पढ़े और साथ खेले। दोनों का साथ ऐसा था कि लोग उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे। अमित पढ़ाई में बहुत होशियार था, उसकी हर परीक्षा में अव्वल आने की आदत बन गई थी। दूसरी ओर सुनील पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगाता था। उसे खेलने-कूदने और मस्ती करने में ज्यादा मजा आता था। अमित का समय किताबों में बीतता, वहीं सुनील बहानों की खोज में रहता कि कैसे पढ़ाई से बचा जाए।

समय बीतता गया, और जैसे-जैसे दोनों बड़े हुए, अमित की सफलता की ओर बढ़ने की ललक भी बढ़ती गई। हर कक्षा में वह टॉप करता और शिक्षक उसे हमेशा सराहते। सुनील को जैसे-तैसे हर साल पास होने की जुगत में लगा रहना पड़ता। उसकी पासिंग मार्क्स के ऊपर और नीचे की ही जद्दोजहद चलती रहती थी। 12वीं तक पहुँचते-पहुँचते अमित ने शानदार तरीके से टॉप किया, जबकि सुनील पास होने में असफल रहा और फेल हो गया।

अब दोनों की राहें अलग हो गईं। अमित ने कॉलेज में दाखिला लिया और अपनी पढ़ाई में और भी मेहनत करने लगा। उसने पहले B.Sc की, फिर M.Sc और आखिरकार Ph.D कर ली। कड़ी मेहनत और ज्ञान की गहराई ने उसे एक सफल वैज्ञानिक बना दिया। दूसरी तरफ, सुनील ने पढ़ाई छोड़ दी और छोटे-मोटे कामों में जुट गया, लेकिन उसने अपने भीतर एक आत्मविश्वास कायम रखा। वह अपनी मेहनत और लगन से अपना रास्ता खुद बनाने में जुट गया।

15 साल का समय यूँ ही बीत गया। अमित अब एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बन चुका था, और आज उसे उत्कृष्ट अनुसंधान कार्य के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाना था। यह अमित के जीवन का सबसे बड़ा दिन था, वह बेहद उत्साहित और खुश था।

जब वह घर से निकलने लगा, अचानक उसे अपने बचपन के साथी सुनील की याद आ गई। उसने सोचा, "कहाँ होगा सुनील? वो तो पढ़ाई में बहुत कमजोर था। शायद कोई छोटा-मोटा काम कर रहा होगा। काश, वो आज यहाँ होता तो देखता कि मैं कितनी ऊँचाई पर पहुँच चुका हूँ।" इन ख्यालों में खोया अमित सम्मान समारोह स्थल पर पहुँचा।

बड़े-बड़े लोग उपस्थित थे, मीडिया का जमावड़ा था, और दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट में स्वागत कर रहे थे। मंच पर मंत्री जी से पुरस्कार लेने का समय आ गया। जब नाम पुकारा गया, तो अमित गर्व से मुस्कुराते हुए मंच की ओर बढ़ा। लेकिन जैसे ही उसने मंच पर कदम रखा, उसकी नजर मंत्री जी पर पड़ी और वह हैरान रह गया – ये तो उसका पुराना मित्र सुनील था!

सुनील ने मुस्कुराते हुए अमित को अपने पास बुलाया और उसके गले लगते हुए उसके कान में धीरे से कहा, "साले, मेरे ही आगे हाथ फैलाना था, तो इतना पढ़ने की क्या जरूरत थी?"

अमित इस अप्रत्याशित मोड़ पर चौंक गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस पर हँसे या अपने बचपन के दोस्त की बुद्धिमानी पर गर्व करे। यह सोचते हुए उसने सुनील की ओर देखा, जो आत्मविश्वास से भरा हुआ था। आज उसे अहसास हुआ कि असल सफलता सिर्फ किताबी ज्ञान से नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और मेहनत से भी मिल सकती है। दोनों हँसी के ठहाकों के साथ अपनी पुरानी दोस्ती को याद करते हुए पुरस्कार समारोह का आनंद लेने लगे।