Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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सब मित्रों को स्नेहिल नमस्कार व रोशनी के पर्व दीपावली की अशेष बधाई व मंगलकामनाएँ।

हर वर्ष मंगल उत्सव आते हैं, हम मनाते हैं और फिर अपने में खो जाते हैं।

हमारा देश त्योहारों का देश है। एक त्योहार गया और दूसरे की तैयारी शुरू!

ज़िंदगी में चाहे कितनी भी उलझनें क्यों न हों लेकिन त्योहार के आने की ख़ुशी में हर इंसान उन उलझनों में से निकलकर अपनी मस्ती में रहना चाहता है।

वास्तव में कोई भी त्योहार क्यों न हो, हमें कुछ नई ऊर्जा, नए विचार, नवीन चिंतन देकर जाता है।

हमारे प्रत्येक त्योहार के पीछे कोई न कोई कहानी है जो हमें सार्थक संदेश देती है।

हर त्योहार यदि सकारात्मक ऊर्जा से मनाया जाए तो वह हमारे बाहरी और आंतरिक वातावरण को उत्सव में परिवर्तित कर देता है।

सबसे महत्वपूर्ण हैं, मनुष्य के विचार!

ये हमारे विचार ही हैं जो हमें सकारात्मक भी बनाते हैं और नकारात्मकता की ओर भी मोड़ देते हैं। ये विचार ही हैं जो हमारी ज़िन्दगी बदल सकते हैं ।

हम अपनी सकारात्मक ऊर्जा से जो सोचते हैं वो हम बन जाते हैं । हम जो बनते हैं वो हमारी सोच का परिणाम ही होता है ।हमारा चिंतन हमें जीवन में सही दिशा में ले जाने में बहुत सुंदर भूमिका का निर्वहन करता है।

हमारे विचारों में इतनी ताकत होती है कि ये हमारी जिंदगी पूरी तरह से बदल सकते हैं ।

हमारे दिमाग में जैसे विचार चलते हैं हम खुद को वैसे ही ढालने लग जाते हैं इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपने विचारों पर गौर करें ..

हम सबको अपने आप से बात करते रहने की ज़रुरत है।

हमारे दिमाग में हर दिन हजा़रों विचार आते हैं, इन विचारों का आना-जाना लगा ही रहता है लेकिन हममें से बहुत कम लोग हैं जो अपने दिमाग में चल रहे विचारों के लिए थोड़ा-सा वक्त निकालते हैं और उस पर गौर करते हैं ।

हमें खुद से बात करना सीखना होगा, यदि हम ये कर पाए तो अपनी कमजोरियों को लेकर या अपनी खूबियों को लेकर, हम अपने अन्दर बहुत सारे बदलाव कर पाएंगे। हम अकेले में खुद से बात करें, अपने दिमाग में चल रहे विचारों को समझने की कोशिश करें क्योंकि इन्हीं विचारों के कारण हम खुद को वो बना पाते हैं जो हम वास्तव में हैं।

हम सबमें अनेकों गुण हैं, हम जब तक स्वयं से बात नहीं करते, स्वयं को पहचानते नहीं, तब तक हम उथल-पुथल में फँसे रहते हैं।

हम अपने विचारों की छंटनी करके थोड़े से प्रयास से ही अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

तनु बहुत समझदार व सुलझी हुई लड़की है लेकिन किसी के ज़रा सा कुछ कहने पर , देने पर या ज़रा सा भी कुछ टोक देने पर उसे बुरा लग जाता है|न जाने वह कितने दिनों तक उन्हीं विचारों में उलझी रहतीहै और फिर एक उदासी से घिर जाती है |वह कहकर जाने वाले के लिए मन में कुछ न कुछ सोचती रहती है फिर उसे प्रत्युत्तर भी देती है |यह सिलसिला चलता ही रहता है| कभी-कभी दो लोगों के बीच में इधर-उधर का प्रहार ऐसे चलता रहता है कि वह इतना लंबा हो जाता है कि उसमें नकारात्मकता के अलावा और कुछ भी नहीं रह पाता |

प्रश्न यह भी उठता है कि कहने वाला तो कहकर चल गया लेकिन हम उसे अपने विचारों में समेटकर क्यों बैठें ?इसका हश्र यह होता है कि हम भी प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ नकारात्मकता में उतर जाते हैं |तनु के साथ यही हो जाता था और वह विचारों की उलझन में फँस जाती थी |

एक बात और महत्वपूर्ण है कि जब हम किसी के लिए कोई नकारात्मक बात सोचते हैं तब हम पहले स्वयं को नकारात्मकता में घेर लेते हैं और दूसरे को कुछ भी कह बैठते हैं यानि हम स्वयं भीतर से कमजोर पड़ जाते हैं |

ऐसे वातावरण में अच्छे खासे रिश्ते भी खराब हो जाते हैं और बात बिगड़ जाती है |

जरूरी है कि दीपावली की सफ़ाई के साथ हम सब अपने मन की भी सफ़ाई करके उसे सकारात्मकता के दीपों की कतार के साथ रोशन कर लें |

यह रोशनी कुछ ऐसी हो कि सदा के लिए हमारे मनों को जगमगाती रहे |आमीन !

एक बार सभी मित्रों को दीपावली की अशेष शुभकामनाएं |

आप सब की मित्र

डॉ. प्रणव भारती