Darinda - Part - 3 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | दरिंदा - भाग - 3

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दरिंदा - भाग - 3

प्रिया को घर के अंदर से सिसकियों की आवाज़ लगातार सुनाई दे रही थी। लेकिन जब कुछ समय तक कोई खिड़की खोलने नहीं आया तब यह सोचते हुए कि अंदर जो भी है वह बहुत तकलीफ में है उसने फिर से खिड़की को खटखटाया।

अंदर अल्पा ने खटखटाने की आवाज़ तो सुन ली थी परंतु कौन होगा यह सोचकर वह खिड़की के पास नहीं आई। लेकिन जब बार-बार खिड़की खटखटाने की आवाज़ आने लगी तो उसे आना ही पड़ा। उसने आकर खिड़की का दरवाज़ा खोला। सामने एक प्यारी-सी लड़की को देखकर उसने अपने आंसुओं को पोछते हुए इशारे से ही पूछा, "क्या है ...? कौन हो तुम ...?"

प्रिया ने देखा अल्पा के चेहरे पर कुछ नीले-नीले निशान थे। आंखें पोछने के बाद भी आंसू बार-बार उसकी आंखों में छलक-छलक कर बाहर आ रहे थे।

उसने कहा, "मैं प्रिया हूँ और वह सामने वाले घर में रहती हूँ। मैं अंदर आना चाहती हूँ लेकिन दरवाज़े पर तो ताला लगा है?"

अल्पा के गले से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। उसने हाथ से ही इशारा किया नहीं तुम जाओ वापस।

प्रिया वापस आ गई। तब तक उसके पापा नहा कर बाहर आ चुके थे। वह खिड़की से अपनी बेटी प्रिया को देख रहे थे। वह जानते थे प्रिया बहुत दुखी है। वह किसी का दुख देख ही नहीं सकती।

प्रिया जैसे ही घर में आई उसने अपने पापा को देखा तो कहने लगी, "पापा उस इंसान ने उसे बहुत मारा है और वह रो रही है। उसने बाहर से ताला लगाकर उसे घर में बंद कर दिया है। पापा किसी भी तरह से वह ताला खुलवा दीजिए ना। मैं उससे मिलना चाहती हूँ।"

"प्रिया बेटा हम ऐसा नहीं कर सकते।"

"यदि वह आदमी आ गया तो हंगामा हो जाएगा।"

प्रिया को उसके पापा की बात माननी ही पड़ी। शाम तक न जाने कितनी बार प्रिया उस खिड़की में खड़ी होकर उस तरफ़ देखती रहती। उसे विश्वास था कि वैसा सीन अब फिर से कभी भी देखने को नहीं मिलेगा।

लेकिन उसका वह विश्वास उसी दिन टूट गया। शाम को राज जब वापस आया तो स्कूटर की आवाज़ सुनते ही प्रिया खिड़की पर आकर देखने लगी। उसने देखा कि उस इंसान ने जेब से चाबी का गुच्छा निकाल कर दरवाज़ा खोला और अंदर जाते ही तुरंत दरवाज़ा बंद कर लिया।

उसके बाद कुछ ही पलों में फिर से रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

दर्द से भरी उस आवाज़ को सुनकर विनोद का भी कलेजा काँप रहा था। वह सोच रहा था, "बाप रे बाप लगता है यह इंसान तो आते जाते अपनी पत्नी को बेरहमी से मारता है। इसका कुछ तो करना पड़ेगा वरना तो यहाँ रहना मुश्किल हो जाएगा।"

तभी प्रिया ने एक बार फिर अपने पापा से कहा, "पापा लगता है वह इंसान ही उसका पति है। हमें इस तरह चुपचाप तमाशबीन नहीं बनना है।"

"लेकिन बेटा यह उनका घरेलू मामला है, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।"

"क्यों पापा घरेलू हिंसा के खिलाफ हम पुलिस में शिकायत तो करवा ही सकते हैं।"

"प्रिया बेटा ऐसा कुछ भी हम उस लड़की से मिले बिना नहीं कर सकते। चलो रात हो गई है अब सो जाते हैं।"

प्रिया रात को ठीक से सो भी नहीं पाई, पूरी रात उसके कानों में रोने की वही चीखें गूँजती रहीं।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः