Darinda - Part - 1 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | दरिंदा - भाग - 1

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

दरिंदा - भाग - 1

प्रिया के घर के सामने वाले खाली घर में महीनों से सन्नाटा पसरा था। उस घर के आँगन में धूल से नहाये हुए पत्ते, हवा के साथ यहाँ से वहाँ उड़ते नज़र आते थे। जगह-जगह पत्तों के छोटे-छोटे ढेर कचरे में अटक कर एकत्रित हो जाते और अपनी बर्बादी की कहानी ख़ुद ही बताते थे कि जब से उन्होंने वृक्ष को छोड़ा या यूं भी कह सकते हैं कि जब से वृक्ष ने उन्हें छोड़ा, उनकी ज़िन्दगी इसी तरह आवारगी की भेंट चढ़ गई है। यहाँ से वहाँ, इधर से उधर, उड़ते रहना ही उनका भाग्य हो गया है। कभी-कभी तो लोग उन्हें आग के हवाले तक कर देते हैं। काश उनका जीवन ऐसा नहीं होता।

प्रिया अक्सर अपने घर की खिड़की से उस खाली घर की तरफ़ देखा करती थी। वह अक्सर सोचती कि खाली घर कितना बदकिस्मत होता है। काश इस घर में कोई परिवार रहने आ जाए तो इसके भी भाग्य खुल जायें। साफ-सफाई, पूजा अर्चना, आरती का दिया, अगरबत्ती की ख़ुशबू से घर आँगन महकने लगे। उनके घर की तरह सामने वहाँ भी हरा भरा बगीचा हो, घर में रौनक हो। परंतु उसकी यह चाह कब सच होगी उसे इंतज़ार था।

प्रिया अपने पापा विनोद के साथ कुछ दिनों शहर से बाहर घूमने गई थी। विनोद अपनी इकलौती लाडली बिटिया से बेहद प्यार करते थे। उसकी हर बात सर आंखों पर रखते थे। उसी के कहने से वह एक हफ्ते की छुट्टी लेकर मनाली घूमने चले आए थे। वहाँ की हसीन वादियों में उनका एक सप्ताह कैसे निकल गया उन्हें पता ही नहीं चला।

प्रिया की उम्र इस समय 18 वर्ष की थी। उसकी मम्मी उमा का कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका था। उसके बाद विनोद ने अकेले ही प्रिया को बड़ा किया था। दोनों ने भगवान के इस आदेश को स्वीकार कर लिया था और अब दोनों खुश भी रहने लगे थे। एक हफ्ते तक छुट्टियाँ मनाने के बाद आज वह वापस अपने घर लौटे। रात का समय था इसलिए प्रिया और विनोद रिक्शे से उतरकर सीधे घर के अंदर चले गए। सफ़र की थकान ने जल्दी ही उन पर काबू कर उन्हें गहरी नींद में सुला दिया।

दूसरे दिन सुबह जब प्रिया उठी तो वह हर रविवार की तरह अपनी पसंदीदा खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। आज रविवार का दिन था, प्रिया और विनोद के लिए अवकाश का दिन। बाहर देखते ही उसकी आंखें अचरज में पड़ गईं और वह ज़ोर से चिल्लाई, "पापा-पापा, जल्दी बाहर आओ!"

विनोद ने आते हुए कहा, "अरे क्या हो गया प्रिया? क्यों इतनी ज़्यादा खुश हो रही हो?"

प्रिया ने कहा, "अरे पापा, वह देखो सामने वाला घर।"

विनोद भी खिड़की पर आकर खड़े हो गए। उन्होंने बाहर देखते हुए कहा, "लगता है कोई रहने आ गया है। लो तुम्हारी यह इच्छा पूरी हो गई। साफ़ सुथरा आँगन कितना अच्छा लग रहा है ना?"

"हाँ पापा देखो ना कुछ गमले भी रखे हैं लेकिन उनके पौधे सूख रहे हैं।"

"हाँ बेटा हो सकता है उन्हें पौधों को पानी देने का समय नहीं मिल पाया हो।"

"पापा कौन आया होगा?"

"पता नहीं बेटा पर अब हमें भी एक और अच्छे पड़ोसी मिल जायेंगे।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः