Don't let your branded desires live in Hindi Human Science by Review wala books and stories PDF | ब्रांडेड ख्वाहिशें जीने न दे

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ब्रांडेड ख्वाहिशें जीने न दे

किसी सुहाने मंझर को देखता जा रहा था
यह जंगल भी खूबसूरत होते हैं न?
( आपको याद आ गया वो ज़ुल्फ़ों का जंगल?)
आप हंस रहे हैं न?
नहीं,उस जंगल की बात नहीं कर रहा मैं
किसी और तरह के जंगल से गुज़रेंगे हम
सभी गुजरते हैं पर वो नहीं देखते जो मैं देखता हूँ
जंगल आखिर जंगल है
इंसानों की ब्रांडेड ख्वाहिशों का जंगल
आप रोज़ ही गुजरते होंगे न?
पर आप admit नही करेंगे
क्योंकि वो ख्वाइशें आपका अहम ,एगो बन चुकी हैं, 
(एक एक कर के उदाहरण देता हूँ )
दाढ़ी तो फ्लाने ब्लेड और क्रीम से ही बनाऊंगा!
(ज़रा लिकविड या नॉर्मल सोप से बनाइये एक दिन
क्या फर्क पड़ेगा? )
फलाना साबुन या पेस्ट ही प्रयोग करूँगी!
फलानी कम्पनी का सूट या ड्रेस ही लूंगी!
(ज़रा नुक्कड़ वाली दुकान से वो पीला सूट लीजिये न 
मस्त लगेगा ,मेरे कहने से लीजिये न!)
आप तो फलाना बर्गर या पिज़्ज़ा ही खाएंगे न?
वो एक बार श्याम लाल का वडा पाओ खाइये,मस्त लगेगा!
और रजनी भाई के पकोड़े भी
वो काली पीली ड्रिंक मत लीजिये
वो राम देवी के ठेले से  मसाला नीबू पानी पीजिये,क्या मस्त होता है
बस उन ख्वाइशों के जंगल से बाहर आ जाएं
कितनी हसीन लगेगी दुनिया 
Try कीजिये न 
नही तो पैसा वापिस
अब एक कहानी पेश है इसी विषय पर.. 

 इंसानों की ब्रांडेड ख्वाहिशों का जंगल

हर सुबह जब सूरज की पहली किरणें धरती को छूती हैं, तो एक नया दिन शुरू होता है। इसी के साथ शुरू होती है इंसानों की ब्रांडेड ख्वाहिशों का जंगल, जिसमें हर कोई अपनी-अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए दौड़ता है। यह जंगल इतना घना है कि इसमें से गुजरते हुए हम अपनी असली पहचान को भूल जाते हैं। 

रवि, एक साधारण नौकरीपेशा व्यक्ति, हर दिन इस जंगल से गुजरता है। उसकी ख्वाहिशें भी ब्रांडेड हो चुकी हैं। वह हर सुबह अपने महंगे सूट को पहनता है, जो उसकी पहचान बन चुका है। ऑफिस में उसके सहकर्मी उसकी तारीफ करते हैं, और वह खुद को एक सफल व्यक्ति मानता है। लेकिन क्या यह सफलता उसकी असली पहचान है, या सिर्फ एक ब्रांडेड ख्वाहिश?

रवि का दोस्त, अमित, एक बड़े बिजनेस टायकून का बेटा है। अमित की ख्वाहिशें भी ब्रांडेड हैं। वह हर दिन नई-नई गाड़ियों में घूमता है, महंगे रेस्टोरेंट्स में खाना खाता है, और अपने दोस्तों के बीच अपनी धाक जमाता है। लेकिन क्या यह सब उसकी असली खुशी है, या सिर्फ एक ब्रांडेड ख्वाहिश?

एक दिन, रवि और अमित दोनों एक पार्टी में मिलते हैं। पार्टी में हर कोई अपनी ब्रांडेड ख्वाहिशों को दिखाने में लगा हुआ है। कोई अपने महंगे कपड़ों की तारीफ कर रहा है, तो कोई अपनी नई गाड़ी की। रवि और अमित भी इस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन अचानक, पार्टी में एक गरीब बच्चा आता है, जो अपने पेट की भूख मिटाने के लिए खाना मांगता है। 

रवि और अमित दोनों उसे देखकर चौंक जाते हैं। वे समझ नहीं पाते कि इस बच्चे की ख्वाहिशें कितनी सरल और सच्ची हैं। बच्चा सिर्फ एक रोटी चाहता है, जबकि वे दोनों अपनी ब्रांडेड ख्वाहिशों में उलझे हुए हैं। 

रवि उस बच्चे को खाना देता है और उसकी आंखों में खुशी देखता है। वह समझता है कि असली खुशी ब्रांडेड ख्वाहिशों में नहीं, बल्कि दूसरों की मदद करने में है। अमित भी इस घटना से प्रभावित होता है और अपनी ब्रांडेड ख्वाहिशों को छोड़कर असली खुशी की तलाश में निकल पड़ता है।

इस घटना के बाद, रवि और अमित दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में बदलाव लाते हैं। वे अब अपनी ब्रांडेड ख्वाहिशों के जंगल से बाहर निकलकर असली खुशी की तलाश में जुट जाते हैं। वे समझते हैं कि असली खुशी दूसरों की मदद करने में है, न कि महंगे कपड़ों या गाड़ियों में।

रवि अब अपने ऑफिस में भी दूसरों की मदद करने की कोशिश करता है। वह अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर गरीब बच्चों के लिए एक फंड शुरू करता है, जिससे उनकी पढ़ाई और खाने-पीने की व्यवस्था हो सके। अमित भी अपने बिजनेस में बदलाव लाता है। वह अपने कर्मचारियों के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराता है और उनके परिवारों की मदद करता है।

इस तरह, रवि और अमित दोनों अपनी ब्रांडेड ख्वाहिशों के जंगल से बाहर निकलकर असली खुशी की तलाश में जुट जाते हैं। वे समझते हैं कि असली खुशी दूसरों की मदद करने में है, न कि महंगे कपड़ों या गाड़ियों में। उनकी यह यात्रा उन्हें सिखाती है कि असली खुशी ब्रांडेड ख्वाहिशों में नहीं, बल्कि सच्ची और सरल ख्वाहिशों में है।

    (ब्रांडेड ख्वाहिशें हमें असली खुशी नहीं दे सकतीं। असली खुशी दूसरों की मदद करने और सच्ची ख्वाहिशों को पूरा करने में है।)